16 सितंबर, 2023 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार समारोह में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का संबोधन (अंश)

New Delhi | सितम्बर 16, 2023

सभी का अभिनंदन! सभी को नमस्कार!

आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूंगा, इसलिए नहीं भूलूंगा कि इतनी विभूतिओं का आशीर्वाद दिल से, कर्म से, दिमाग से, संस्कृति से.. मुझे आज तक कभी नहीं मिला. एक का आशीर्वाद ही काफी होता है, इतनों का मिला. जब मैंने नीचे जाने का निर्णय किया तो एक बात मेरी नजर से निकल गई की संध्या जी ने व्यवस्था की हुई थी। पर मुझे लगा पिता तुल्य, माता तुल्य महानुभाव जो आए हैं उनका आशीर्वाद मुझे उन्हें बिना कष्ट के लेना चाहिए।

मुझे बहुत अच्छा लगा जब दो अवार्ड दिए गए 'गोरी कुप्पूस्वामी' और 'महाभाश्याम चिट्ठीरंजन जी' उनकी तरफ से जो लेने आए उनकी आंखों में जो चमक थी, जो धमक थी कि हमारे भारत ने उनके प्रतिभा पहचानी वह एक बड़ी उपलब्धि थी।

आज के दिन की सबसे बड़ी खास बात है और बहुत महत्वपूर्ण बात है कि किनका सम्मान किया जा रहा है, उनका सम्मान किया जा रहा है जिनके सम्मान की वजह से भारत की संस्कृति सम्मानित होती है, भारत का गौरव बढ़ता है। वर्गीकरण, देखिए हर सम्मानित महापुरुष और महान महिला 75 साल से ऊपर है और उनको आज तक किसी ने नहीं पहचाना। ऐसा क्यों हुआ?

देश में यह संस्कृति तो चालू हो गई थी पद्म अवार्ड से। पहले पद्म अवार्ड किन को दिए जाते थे? किस तरह से दिए जाते थे? रसूख कहां तक काम आता था सबको पता है। मैं अभिवेचन नहीं करना चाहता पर पिछले 10 सालों में पद्म अवार्ड उनको दिए गए जिनको कभी उम्मीद नहीं थी और मिलने के बाद समाज ने कहा कि सही आदमी को दिया, सही महिला को दिया। इस देश के इतिहास में पद्म पुरस्कार वितरण के बाद पुरस्कारों के संबंध में इतनी व्यापक स्वीकार्यता कभी नहीं मिली। उसी तरीके से आप लोग जो पूरे देश से हैं, क्या वेशभूषा है, हमने देखा सभी का स्वास्थ्य जबरदस्त है, एक बात सामने है हम ऐसे जमाने में रह रहे हैं जहां सब कुछ मुमकिन है।

1989 में सांसद बना था, केंद्र में मंत्री बनाया था, जिसका सपना नहीं देखा जो दिमाग में नहीं आया वह जमीनी हकीकत आज देख रहा हूं। देश का नेतृत्व ऐसी छलांग लगाकर हर असंभव को मुमकिन कर रहा है और उस उपलब्धि में आज का दिन एक मील का पत्थर है। जिन्होंने हमको तराशा, हमारी संस्कृति को तराशा, हमारी संस्कृति को सींचा और कभी किसी ने उनकी सुध नहीं ली। वह गुदड़ी के लाल हैं, वर्षों पहले पहचाने जाने चाहिए थे। अपना विचित्र देश है, अपने अलंकृत कर देते हैं कुछ लोगों को और जिंदगी भर समझ में नहीं आता ऐसा क्यों किया, आज के दिन मुझे समझ नहीं आता पहले क्यों नहीं हुआ, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।

तिरंगे की बात हुई, हर घर तिरंगा, दुनिया ने देखा देश ने देखा, अरे तिरंगा तो चांद पर भी हो गया! कैसे मुमकिन होगा? आपकी सोच होनी चाहिए। मैं दो उदाहरण दूंगा आपको, 2019 में पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल था। चंद्रयान-2 की लैंडिंग मून पर होनी थी। मैंने कोलकाता में साइंस सिटी में कार्यक्रम रखा। आधी रात के बाद लैंडिंग का समय था 2:00 बजे के आसपास 500 स्कूली बच्चे और बच्चियों को रखा मैंने, आखिर में वह लैंडिंग नहीं हो पाई? सन्नाटा छा गया। उसी समय एक वक्तव्य आया भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का और क्या कहा हम 96% सफल हैं, अगली बार सफल होंगे। और 23 अगस्त 2023 को वह दिन आया जब हम सफ़ल हुए। कहने का तात्पर्य है, कहने का अर्थ है मनोबल ऊंचा रखना नेतृत्व का काम है, सफलता अपने आप आएगी।

माननीय मंत्री जी अर्जुन राम मेघवाल जी ने कहा कि चांद पर जो हमने हासिल किया है उसमें कुछ पहलू ऐसे हैं जो दुनिया में पहली बार हुए हैं.. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना । हम कहां से कहां आ गए सोचिए, 60 का दशक था, हमारे पड़ोसी देश ने सैटेलाइट अपनी भूमि से लांच किया और हमने दूसरे की भूमि से लांच किया, हमारी हालत तब यह थी। आज क्या मुमकिन की हमारा इसरो सिंगापुर का सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है, यूरोपियन कंट्री का सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है, प्रभावी रूप से कर रहा है और उनको धन का अच्छा मूल्य दे रहा है, यह छोटा काम नहीं है।

आज हम देखते हैं कि खेल जगत में हमारा डंका बज रहा है! और याद कीजिए टोक्यो का वह दिन हमारी बच्चियों ने बड़ा अच्छा प्रदर्शन किया पर वह महत्वपूर्ण मैच हार गई. उनकी आंखों में आंसू आ गए। भारत के प्रधानमंत्री ने हर एक बच्ची से फोन पर बात की, हर एक को उत्साहित किया। ऐसी स्थिति में मेरे को पीड़ा होती है, कई बार मेरे को दुख भी होता है कि कुछ लोग, संख्या बहुत कम है, भारत की प्रगति को लेकर उनका हाजमा कमजोर क्यों है? भारत की प्रगति को पचा क्यों नहीं पा रहे हैं? मंत्री जी कुछ ना कुछ इलाज निकालिये, यह आवश्यक है क्योंकि जब विश्व बैंक का अध्यक्ष कहता है कि भारत में डिजिटल विकास में 6 साल में वह काम किया जो 50 साल में नहीं होता, हमें तालियां बजानी चाहिए, हमें सीना ऊपर करना चाहिए, हमें प्रशंसा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने मेरा परिचय कृषक पुत्र के रूप से कराया।

11 करोड़ किसानों को साल में तीन बार और अब तक 2,50,000 करोड़ का फायदा ले चुके हैं। सीधा बिना बिचौलिओं के, बिना कट के, बिना बिचौलियों के। इसको मैं दूसरे तरीके से देखता हूं और क्या देखता हूं कि देने वाले की ताकत तो है सरकार तकनीकी रूप से सक्षम है पर लेने वाले भी तकनीकी रूप से पात्रता रखते हैं। यह बदलते हुए भारत की तस्वीर है!

जब किसी से चर्चा की, विदेशी प्रोफेशनल से, और कहा कि मैं ऐसे कार्यक्रम में जा रहा हूं जहां हर व्यक्ति जिसको सम्मानित किया जा रहा है 75 साल से बड़ा है, और इस 75 साल के लंबे कालखंड में उसका कभी अभिनंदन नहीं हुआ, यह देश में मुमकिन हो रहा है तो पता है उसका जवाब क्या था वह एक अंग्रेज है। महामहिम, आपके देश में सब कुछ संभव है। एक महान गुणी आदिवासी महिला इस देश की राष्ट्रपति है। यह पहली बार हुआ है ।

यह सब जो डेवलपमेंट हो रहा है, यह हमारे लिए अजीब नहीं होना चाहिए, 5000 साल की हमारी संस्कृति है, हमारी विरासत है और अब हम उसी रास्ते पर चल पड़े हैं। 2047 में भारत दुनिया की peak पर होगा। अर्जुन जी और मीनाक्षी जी ने वे दिन नहीं देखे जो मैंने देखे हैं .. इनका सौभाग्य है की ये भारत के संसद में तब आये जब देश एक नयी करवट ले रहा था। पर मैं भारत की संसद में 1989 में आया और मंत्री बना। हमारा विदेशी मुद्रा एक और दो बिलियन के बीच में झूल रहा था और 15 दिन से ज्यादा आर्थिक ऑक्सीजन नहीं थी। साख बचाने के लिए हवाई जहाज में देश का सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा। आज के दिन उससे 600 गुना ज्यादा विदेशी मुद्रा भारत में है।

हमने वह सपना नहीं देखा 50 गैस कनेक्शन मिलते थे एक एमपी को और वह हमारी ताकत थी कि किसी को भी दे देंगे गैस कनेक्शन। आजकल हर घर में हो गया है, करोड़ों में दिए जा रहे हैं, उन परिवारों को दिए जा रहे हैं जिनको आवश्यकता है।पहले विदेश में जाते थे कोई हिम्मत नहीं करता था केले का छिलका गाड़ी से बाहर विदेश में कोई नहीं फेकता था, अपने लोग नहीं फेंकते थे पर हिंदुस्तान में आते ही भारत में आते ही अपना अधिकार समझते थे केला खाया, शीशा नीचे किया और छिलका फेंक दिया, अब होता है क्या? नहीं.

कहते हैं भारत के प्रधानमंत्री के साथ एक विदेशी मेहमान आए थे और सब लोग रेलवे पटरी के आसपास शौच कर रहे थे। पूछा उसने यह कौन लोग है, पर किसी ने सोचा नहीं की समस्या का निदान क्या होगा। खुले में शौच से मुक्त कितने लाखों में हमारे गांव हो गए हैं सोचना मुश्किल था यहां तो निष्पादित हो गया है। जहां सोचना मुश्किल था वहां निष्पादित हो गया है.

जो मैंने मेरी आंखों से देखा और उसके लिए मैं बहुत अभिभूत हूं कि हमारी सांस्कृतिक झलक जो जी-20 में देखने को मिली,हर कोई दंग रह गया!

दुनिया भर के नेता थे, उन्होंने क्या देखा? उन्होंने देखा कि क्या नजारा है... तीन भागों में बांटा हुआ है, हल्की शुरुआत है, फिर मध्य में है, फिर अंत में है..कितने उपकरण हैं, कितनों की सहभागिता है, कोने-कोने से लोग आए हुए हैं. वह पहुंच जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते थे, यह हमारे देश में हुआ।

भारत की प्रगति के लिए जरूरी है। दो तरह की कूटनीति होती है,एक तो साधारण तरीके से करते है, दूसरी है इसको सोफ़्ट डिपलोमेसी कहते हैं, इसके कई आयाम है, पर एक संस्कृति है, और संस्कृति इसमें सबसे आगे है।

मैं रेड्डी जी के नेतृत्व वाली मंत्रियों की टीम और श्री गोविंद मोहन जी के नेतृत्व वाली नौकरशाहों की टीम को बधाई देता हूं। उन्होंने सर्वोत्तम परंपराओं का उदाहरण प्रस्तुत किया है और इसे हमारी कूटनीति का एक महत्वपूर्ण साधन बनाकर पूरा किया है।

मैं पत्रकार बंधुओं से आग्रह करूंगा कि बहुत कम देश दुनिया में है, डबल डिजिट में नहीं है, जिनकी संस्कृति 500- 700 साल पुरानी हो। हमारी तो 5000 साल पुरानी है। इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम हमारे कलाकारों की कद्र करें, उनका ध्यान रखें, उनका संरक्षण करें, उनको सींचे और एक संरचित ढंग से उनकी सहायता करें। मेरे को व्यक्तिगत ध्यान है,क्योंकि तीन साल तक मैं पूर्वी जोन कल्चरल सेंटर का प्रेसिडेंट रहा। मुझे बताया गया कि भारत सरकार की बहुत नवोन्मेषी योजनाएँ है। उन्ही योजनाओं के आधार पर मदद की जा रही है।

मैं आग्रह करूंगा सभी अधिकारियों से और मंत्रीगण से की एक नई सोच कि इसमें शुरुआत हो सकती है क्योंकि हम उस भारत में हैं जहां सब कुछ मुमकिन है, और जहां मुमकिन ही नहीं है.. मुमकिन किया जा रहा है।

आज मैं बहुत ऋणी होकर जा रहा हूं, बड़ा कर्ज़ लेकर जा रहा हूं कि मुझे ऐसे महानुभावों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। मैं पूरी तरह प्रेरित, पूरी तरह उत्साहित और पूरी तरह ऊर्जावान होकर जा रहा हूं। आप में से एक ने मुझे कहा कि 70 साल की तपस्या के बाद यह दिन देखने को मिला, सपने में नहीं सोचा था।

हमारी सांस्कृतिक विरासत कहती है इतिहास में एक पल आता है कोई व्यक्ति प्रकट होता है और वह 140 करोड़ लोगों के भाग्य को एक दिशा देता है, निस्वार्थ रूप से, और सिद्धांत क्या है? 10 साल पहले, भारत और चार और देश दुनिया पर बोझ बन पड़े थे। उनको कहा जाता था फ़्रजाईल फ़ाईव, ब्राज़ील, तुर्की, इंडोनेशिया, साउथ अफ्रीका और भारत। हम कहां से कहां आ गए। कहां फ़्रजाईल फ़ाईव थे, और कहां आज भारत दुनिया की पांचवी बड़ी आर्थिक महाशक्ति है। यह हमारी उपलब्धि है। इसी दशक के अंत में, हम तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनेंगे और 2047 में जब भारत आजादी के 100 साल मना रहा होगा तब हम दुनिया में सर्वोपरि होंगे।

मेरी बात को समाप्त करने से पहले, विधि मंत्री के सामने, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में जो कहा गया वह बताना चाहता हूं। वह निर्णय संस्कृति को लेकर है, उसका पहला पैराग्राफ़ क्या है? कि कैमब्रिज विश्वविद्यालय का एक प्रोफेसर अपने एसी चेंबर में अध्ययन कर रहा थे, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उस समय एक अंग्रेजी सैनिक उनके कमरे में आया और उसने अपना गुस्सा दिखाया और कहा कि आप आराम से से बैठे हो और हम लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रोफ़ेसर ने शालीनता से पूछा किसकी लड़ाई लड़ रहे हो? क्यों लड़ रहे हो? इस पर सैनिक का गुस्सा बढ़ गया, सैनिक ने कहा देश के लिए लड़ रहा हूं। इस मिट्टी और कल्चर के लिए लड़ रहा हूं। तो प्रोफेसर ने कहा कि आप मुझे विस्तार से बताओ कि आखिर में आप किस चीज के लिए लड़ रहे हो? मैं जस्टिस अंसारिया के फैसले से उद्धृत कर रहा हूं, प्रोफेसर धीरे से कहते हैं, "मैं भी तो कल्चर का ही काम कर रहा हूं", सैनिक ने उसको सलाम किया।

हमने आज जिनको सम्मानित किया है, वह भारत के कल्चर का सृजन कर रहे हैं। इनको सलाम करना हमारा धर्म है। इन्होंने उस कल को जीवित रखा है, जिस पर सदियों तक आक्रमण होता रहा। उनको मेरा प्रणाम, उनको मैं नमस्कार करता हूं। वे सदैव प्रसन्न रहें और उनपर सदैव ईश्वर की कृपा बनी रहे। मैं आप सबका सदा आभारी रहूंगा। ध्यान रखिए भारतीयता से ऊपर कुछ नहीं है। देश का हित सर्वोपरि है। हम इस देश के गौरवान्वित नागरिक हैं और हमें अपनी ऐतिहासिक और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर हमेशा गर्व होना चाहिए।

जय हिंद!