आदरणीय वसंता जी आप साधुवाद की पात्र हैं, आपका कर्म है, आपकी तपस्या है आप इसके स्तंभ है, सूत्रधार है तभी यह कार्यक्रम हो रहा है। विजय लक्ष्मी मेरी परिवार से लंबी मुलाक़ात राज्यपाल बनने से पहले हुई तब से मैं परिवार का सदस्य बन गया आप साक्षी है। जिग्नेश जी आप के दामाद बहुत अड़े व्यक्तित्व के धनी हैं थोड़ी देर में बताऊँगा क्यों। यशवंतराव और वेदांत जी इन सब से मेरी मुलाक़ात कई बार हो चुकी है पर दोनों परिवारों को एक घटना जोड़ती है जो पीड़ादायक भी होती है समय के साथ भूली ही नहीं जाती है और वह है वैष्णव की अनुपस्थिति। वसंता जी का पुत्र इस घटना ने दो परिवारों को 2014 के आस-पास जोड़ दिया जब मैं अचानक इनके साथ यात्रा कर रहा था। उसके बाद जब भी मौका मिला और जब भी हैदराबाद गया अल्प समय में भी आपको बुलाया और जब भी यह यहाँ पर आयी हमने चर्चा की तो तब मेरे लिए आज का कार्यक्रम भावुकता से भरपूर है।
श्री मनोहर लाल खट्टर जी, भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री, 10 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। राज्यपाल बनने से पहले, राज्यपाल बनने के दौरान और बाद में मुझे आपके दर्शन का और मार्गदर्शन का बड़ा लाभ मिला है। और जब भी अवसर आया है, मैंने आपका मार्गदर्शन प्राप्त किया है। आपकी उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण है।
श्री जी. किशन रेड्डी केंद्र में मंत्री हैं पर उनके प्रति बंडारू दत्तात्रेय जी का जो प्रेम है, और जो इनका वर्णन करते हैं कि कैसे मोटरसाइकिल पर इन्होने कितनी सेवा इनकी की है, कितने कर्मठ कार्यकर्ता हैं, यह मैंने देखा भी है और आपने परिभाषित भी किया है।
1989 में मै Lok Sabha का सदस्य बना। मेरे वरिष्ठ मंत्री, आज के भारत में कुछ विषय का ज्ञान जो आपको है वह अद्वितीय है। घटनाक्रम ऐसे घटा जो मैं बताऊँगा तो आप थोड़े संकुचित हो जाएंगे। पर He never hesitated to hand-hold me. One of the finest persons. 35–36 years ago a brilliant Cabinet Minister when the government took change but the change of 89 was catalyzed by your courage of conviction.
Arjun Ram Meghwal ji, a man who created history by piloting women empowerment bill, a great social justice act. जमीन से उठे हुए व्यक्ति, प्रशासनिक सेवा में जिलाधीश बने और कभी कोई घमंड नहीं किया, कर्म किया। इनके साथ एक घटना हुई। ये गाँव के अंदर गए, तब सरकार नयी-नयी बनी थी तो कनेक्टिविटी पूरी improve नहीं हुई। आज तो हर गाँव के, हर घर में इंटरनेट है 4G उपलब्ध है, 5G भी बहुत जगह है। तो एक महिला परेशानी में थी, उसको चिकित्सा की मदद मिले तो ये पेड़ के ऊपर चढ़ गए। अर्जुन जी, आप पेड़ पर चढ़ गए और स्वास्थ्य कर्मचारी से बात की कि जल्दी आवो। इन्होंने लुटियंस दिल्ली को देखा नहीं था। अचानक एक ख़बर चल गई की "इंटरनेट कहाँ पर है, मंत्री तो पेड़ पर हैं! इनका कर्म इनके बीच में बाधित हो गया। अच्छा हुआ, लोगों ने समझ लिया बहुत ही कर्मठ व्यक्तित्व के धनी हैं।
जैसे मनोहर लाल जी मन को हरते हैं, नायब सैनी भी नायाब हैं। ऐसा लगता है कि आपकी पढ़ाई-लिखाई राजनीति में बहुत अच्छी हुई है। मेरे सामने बहुत वरिष्ठ लोग हैं, उनका नाम लेना मेरे लिए ज़रूरी है पर मैं क्षमा प्रार्थी हूँ यदि किसी का भूल जाऊँ तो।
श्री कलराज मिश्र जी He defines the role of Governor and anyone who would go to Rajasthan Raj Bhavan, भारत के संविधान के निर्माण के बारे में जो जानकारी मिलेगी आपके प्रयास से वह आदित्य है। श्री जगदीश मुखी जी, मुझे उपराष्ट्रपति और राज्यपाल की हैसियत से उस प्रांत में जाने का सौभाग्य मिला, जहाँ आप थे। पर इनसे भी एक अलग लगाव है। इनको भी Ph.D. जब मिली तो इनको बड़ा संकट का महसूस करना पड़ा। मेरी धर्मपत्नी को भी Ph.D. मिली, तो मैं बाधक बना। तो दोनों की आपस में इस बात को लेकर बहुत बात होती थी।
राज्यसभा के सदस्यो के बारे में मैं ख़ास ध्यान रखता हूँ, और उसमें भी यदि कोई निर्दलीय हो चाहे दलीय समर्थन से हो तो बात ही कुछ और है। कार्तिकेय शर्मा जी, सुभाष बराला जी जब लोकसभा की बात आती है तो राज्यसभा और लोकसभा में दो फ़र्क महत्वपूर्ण है। एक प्रधानमंत्री कौन बनता है, यह लोकसभा तय करती है। और वित्तीय मामलों में भी लोकसभा है।
पर जिनका मैं गार्जियन रहा और जो लोकसभा के बहुत वरिष्ठ सदस्य हैं और राज्यसभा में भी सदस्य रहे उनका नाम है दीपेंद्र हुड्डा। मैं इनका गार्जियन रहा हूँ। पूर्व व्यक्ति को भी याद किया जा सकता है। वैसे तो पूर्व को ज़्यादा नहीं करना चाहिए जो हमको छोड़कर चले गए बीच में पर कृष्ण पाल जी आप तो मंत्री बने, अच्छा है।
1979 में एक घटना हुई और वह घटना मैं भूल नहीं पाऊँगा की उस घटना के एक साक्षी यहाँ पर विद्यमान हैं। 1979 को, 1 फ़रवरी को मेरी शादी हुई और रामविलास शर्मा जी वहाँ उपस्थित थे। तब से इनका स्नेह परिवार के प्रति निरंतर है।
हरियाणा के गुरुग्राम के अंदर मेरा काफ़ी समय रहना हुआ। तो वहाँ ज़रूर आपको एक संरक्षण की आवश्यकता पड़ती है। जो आज संघ के अंदर पद पर हैं, क्षेत्रीय संचालक पवन जिंदल जी। राजनीति के अंदर जब शुरुआत की मैंने, और जिसने मेरा हौसला बढ़ाया उसके बाद लगातार सांसद बनता रहा। और हमारे साथ में, सांसद थे उनका नाम जयप्रकाश जी है।
आज के दिन हम environment की चिंता करते हैं और पूरा विश्व इसके बारे में चिंतित है। पर आप तो तब ग्रीन ब्रिगेड के चीफ थे। सामाजिक स्तर पर, सार्वजनिक जीवन में क्या मापदंड हो, उसमें मेरे हमेशा आदरणीय रहे और जिस समाज से मैं आता हूँ, उसके वरिष्ठतम सदस्य हैं। जिनके इतिहास की मैं चर्चा करूँ तो उनके पिताजी कांस्टीट्यूएंट असेंबली के सदस्य रहे, बाद में भी सदन के सदस्य रहे। उनका भी मुझे आशीर्वाद मिला। और माननीय भूपेंद्र जी हुड्डा जी का भी मुझे मिले, लगातार मिलता रहा हैं। और राजनीतिक दृष्टि से, यदि परिवार की भूमिका देखी जाए तो यह बेमिसाल है। किसी भी राजनीतिक चुनाव का आकलन यदि करेंगे तो इसकी गहराई और मजबूती सामने आएगी।
फिर भी आज के दिन, आपका सबसे बड़ा आभूषण हुआ है, जिनका मैं गार्जियन रहा हूँ — दीपेंद्र, । दुष्यंत उस समय बच्चा था और इनके दादाजी ने मुझे 89 के अंदर एक दिन बुलाया और कहा चुनाव लड़ना है। तो मैंने कहा, मैं तो वकील हूँ, मेधावी छात्र रहा हूँ, वकालत बहुत अच्छी चल रही है, मैं इस मामले में नहीं पड़ना चाहता। तो मनोहर लाल जी उन्होंने कहा, 'पीलीडर का 'पी' हटा दो, लीडर बन जाओ।' और उसमें भी जो मेरी बहुत बड़ी मदद की, वह इन बच्चों ने ही तो की। पर उनके पिताजी और इनके चाचा ने बहुत बड़ा योगदान किया है। और असली जो मेरेको हिम्मत दी, जयप्रकाश ने। बदलाव में पहले वी.पी. सिंह की सरकार में जयप्रकाश मंत्री नहीं बन पाया पर चंद्रशेखर जी की सरकार में बने। ज्ञान चंद्र गुप्ता जी, ज्ञान के भंडार हैं।
आज का दिन बहुत खास है, राज्यपाल जीवनी लिखने लग गए है। कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की महामहिम राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की पुस्तक का विमोचन करने का सौभाग्य मिला और पुस्तक का टाइटल था 'चुनौतियां मुझे पसंद हैं' । मैंने कहा, महामहिम राज्यपाल चुनौतियां तो आपके मुख्यमंत्री योगी जी को भी बहुत पसंद हैं। और मैंने कहा, चुनौतियां मेरा पीछा नहीं छोड़ती, चोली-दामन का साथ है।
भारत के प्रधानमंत्री ने 10 वर्ष में दिखा दिया कि चुनौतियों को वह अवसर में बदलते हैं और हर कसौटी पर खरे उतरते हैं। और नतीजा दुनिया के सामने है, जो भारत अर्थव्यवस्था में लड़खड़ा रहा था, वह आज विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
और हमने जो साइलेंस ऑब्जर्व किया, पहलगाम में जो घटना हुई, आज के दिन हर भारतीय महसूस कर रहा है कि शासन की ताकत क्या होती है, शासन का दृष्टिकोण क्या होता है, शासन का सोच क्या होता है। आज इस मामले में हम किसी देश के मोहताज नहीं हैं। और जो कुछ हो रहा है वह हर भारतीय के मन को ऊचा कर रहा है उस मौन के साथ हमें संकल्प लेने की आवश्यकता है कि हम भारतीय हैं, भारतीयता हमारी पहचान है, राष्ट्रवाद हमारा धर्म है, राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्र प्रथम है।
कोई भी हित व्यक्तिगत, राजनीतिक, आर्थिक राष्ट्रीय हित से ऊपर नहीं हो सकता । और इसको पूरी तरह से परिभाषित करता है ‘जनता की कहानी, मेरी आत्मकथा’, यह निचोड़ है आपके जीवन का। मैंने आपकी किताब पढ़ी है, मैं दंग रह गया कि एक व्यक्ति का जीवन इतने संघर्षों के बावजूद नतीजे लगातार कैसे ले रहा है। व्यक्तिगत संकट, राजनीतिक चुनौतियां, पर यह आगे बढ़ते रहे।
शुरुआत की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में, फिर विस्तारक, फिर Member of Parliament, फिर केंद्र में मंत्री बने तब मेरा इनसे परिचय हुआ और राज्यपाल In the process the Hon’ble Governor of Haryana, सर, आप मेरे चित से कभी उतरने नही है, इसलिए बिहार निकल रहा था, Hon’ble governor of Haryana has traversed the landscape of this country and dotted it by his contributions which are remarkable.
बहुत कुछ कहा गया है, पर मैं कुछ बातों की ओर इशारा करूंगा जो आपकी किताब में लिखा हुआ है। 1984 की बात है, और वर्तमान में महामहिम जी चलते-फिरते Naxalite Area में पहुंच गए। अब Naxalite Area में पहुंच गए, तो अपने संस्कारों को इन्होंने ध्यान नहीं दिया। और भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा सिद्धांत है अभिव्यक्ति और वाद-विवाद, बिना भी अभिव्यक्ति के प्रजातंत्र जीवित नहीं रह सकता। और अभिव्यक्ति करने वाले व्यक्ति यह समझे कि जो मैं कह रहा हूं, वही सही है और कुछ सही नहीं है तो अभिव्यक्ति सार्थक नहीं है। अभिव्यक्ति व्यक्त करने वाले व्यक्ति को हमेशा तत्पर रहना चाहिए कि दूसरे का मत सुनो। इसको कहते हैं वाद-विवाद, और हमारे वैदिक व्यवस्था में कहा गया है इसको अनंतवाद। सो प्रजातांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति और वाद-विवाद कंप्लीमेंट्री हैं, एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते। जीवन में अक्सर देखा गया है कि अभिव्यक्ति करने वाला व्यक्ति जब दूसरे की बात सुनता है, तो उसको बहुत जल्दी बोध हो सकता है कि मेरा मत सही नहीं है, उसका मत सही है।
और यदि अगर हम अभिव्यक्ति और वाद-विवाद जिसको 'अनंतवाद' कहते हैं, उससे दूर भटक जाएंगे तो अहम और अहंकार आएगा, जो प्रजातंत्र और व्यक्ति दोनों के लिए ही बहुत कष्टदायी होता है। इस सिद्धांत का पालन करने वाले और पुस्तक के लेखक, आज के महामहिम राज्यपाल, हरियाणा ने 1984 में नक्सलियों के सामने इसका प्रयोग कर डाला और उनसे वाद-विवाद किया और उनसे चर्चा की — remarkable है। हिम्मत चाहिए जब आप खतरे के सामने होते हो। आपकी बोलती बंद होनी चाहिए थी, पर आपने ऐसा नहीं किया आपने अपनी भावना व्यक्त की।
दूसरा सीन याद आता है मुझे इमरजेंसी का। हमने पिक्चरों में देखा है, चल-चित्रों में देखा है। आप 30 फुट से कूद गए, मान्यवर! इमरजेंसी के दौरान यह सब मैंने देखा है। पर उस घटना से मुझे एक बात याद आती है कि भारत की संसदीय यात्रा को जब हम देखेंगे, तो उस कालखंड को हम कभी नहीं भूल पाएंगे। वह 'काला अध्याय' है। उस 'काले अध्याय' की याद हमेशा आती रहेगी। वह हमारे संकल्प को मजबूत करता रहे, कि हम प्रजातांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं और कभी हम यह भूल न जाएं। तो गत 10 वर्षों से भारत गणतंत्र Constitution Day मना रहा है। वह दिन हमें याद दिलाता है कि तपस्वी लोगों ने बड़ी मेहनत करके संविधान बनाया था। उनके एक सपुत्र यहाँ मौजूद हैं। महेन्द्र जी आपके पिताजी संविधान सभा में थे। उनके पोते भी हैं यहाँ है दीपेन्द्र।
वे तपस्वी लोग थे, राष्ट्रवाद से ओतप्रोत थे। तीन साल से कुछ दिन कम उन्होंने बैठके की, पर कभी ऐसा मौका नहीं आया कि disturbance और disruption हो। उन्होंने हमेशा debate, dialogue, discussion और deliberation को महत्व दिया। पर ऐसा नहीं था कि उनके सामने चुनौतियाँ नहीं थीं। They faced divisive issues, contentious issues पर उन्होंने अपने नाव को सुरक्षित किनारे लगा दिया।
जब ऐसे महापुरुष की किताब का विमोचन हो रहा है, तो हमें राष्ट्रवाद के साथ-साथ इस पर भी संकल्प लेना चाहिए कि प्रजातंत्र तभी फलेगा-फूलेगा जब प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएँ, संसदीय व्यवस्था सर्वोपरि होते हुए, that blossom shines, that has to be nurtured.
सबसे बड़ी चुनौती है की आपने लिखने की हिम्मत करना। लिखना बहुत मुश्किल है। ख़ुद का आकलन कई बार पीड़ादायक होता है, पर आपने बड़ी ईमानदारी से बातें लिखीं। और जितने चित्रों का चयन आपने किया है, वह चित्र बोल रहा हैं। ऐसा लगता है कि वे आपके सामने हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ आपके परिवार की फ़ोटो।
जब मैं देखता हूँ, तब मुझे लगता है कुछ मिसिंग है। उसके बावजूद आपने जो परिवार को इतना स्थायित्व दिया है, वह सराहनीय है। जब मैं देखता हूँ तेलंगाना की पृष्ठभूमि के अंदर दो बड़े चेहरे आपकी उपस्थिति में क्या मुस्कुराकर बात कर रहे हैं जिनका राजनीतिक टकराव हमेशा पराकाष्ठा पर रहा हैं। मुझे तो लगता नहीं, मन तो बहुत करता है कि कई बार किताब लिख डालू क्योकि हाल ही में दो-दो महामहिम राज्यपालों ने लिख दी है। पर किसी भी आदमी को अपना संकट ज़्यादा बढ़ाना नहीं चाहिए। हो सकता है किताब लिखकर ज़्यादा संकट पैदा हो जाए। तो मन की बात कहना बहुत अच्छी बात है, पर कई बार अच्छी बात है कि मन की बात मन में ही रखी जाए। पर इस विषय के ऊपर अभी मैं चिंतन-मंथन में हूँ, और हो सकता है कि दर्शन मुझे इतना ज्ञान दें कि मनोहर लाल जी, आपकी स्वीकृति लेकर मैं लिख भी डालूँ कभी कुछ।
मुझे बहुत प्रसन्नता इसलिए भी है कि कई कार्यक्रम होते हैं, जो भव्य होते हैं, आडंबर होता है। इस कार्यक्रम की एक खासियत है जब दूर तक देखता हूँ, हर वर्ग के लोगों को देखता हूँ, पूर्व सांसदों को देखता हूँ। सुनीता जी सोचेंगी मेरा नाम नहीं लिया! सुनीता जी, सबसे पहले आपको देख लिया। और धर्मवीर जी अंत में कहना चाहता था, पर बीच में कहना पड़ रहा है की मेरी राजनीतिक यात्रा के अंदर जो सबसे बड़ा धक्का लगाया, वह धर्मवीर जी ने लगाया। और तब धर्मवीर जी मंत्री थे। याद है, धर्मवीर जी! और मैं झुंझुनू से 75 जीप लेकर आया था, संख्या तो ज़्यादा थी, पर नाम 75 रखा क्योंकि ताऊ का 75वाँ जन्मदिन था। याद है ना आपको? और आपने जो हमारे लोगों को खिलाया-पिलाया, उससे मुझे बहुत नीचा देखना पड़ा, क्योंकि आज तक वे लोग कहते हैं कि आप धर्मवीर जैसा स्वादिष्ट भोजन कब कराओगे? आज तक कहते हैं।"
Ladies and gentlemen, it's a great occasion that one of the towering giants of our social system, who had never had ambition of his own, who always fought with zeal of serving the people at large, has penned down his thoughts, his simplicity, his modesty, and his commitment to the nation is emulative and remarkable. I must be extra careful धर्मवीर जी, राज्यसभा के सदस्यों के लिए, क्योंकि I have to be more carefully about.
मैं आपको बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। फिर मैं शुरू में कह चुका हूँ और इस बात पर कायम भी हूँ कि वसंता जी को ही पूरा का पूरा क्रेडिट जाता है। विकट परिस्थितियों में यहाँ न होने की वजह से मेरी धर्मपत्नी नहीं आ पाई, पर उसने कहा है कि मैं तो हैदराबाद जाकर भी यह बात व्यक्त कर दूंगी उनकी बात ही मैं अभिव्यक्त कर रहा हूँ।
Address (Excerpts) by Shri Jagdeep Dhankhar, Honourable Vice President at the book launch "Janata Ki Kahani Meri Aatmakatha", authored by Shri Bandaru Dattatreya, Governor of Haryana, at New Maharashtra Sadan in New Delhi on May 9, 2025.
New Delhi | May 9, 2025