मित्रों, आरंभ में मैं आप सभी और दुनिया भर में कई और लोगों के साथ डॉ. करण सिंह को जन्मदिन की शुभकामनाएं देता हूं, क्योंकि वे भव्यता, सादगी, मोहक विनम्रता और मनोरम लालित्य वाले जीवन के 93वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।
डॉ. सिंह इस बात का देदीप्यमान उदाहरण हैं कि सकारात्मकता जो हमेशा विचार प्रक्रिया का आधार होती है, के साथ एक अनुशासित, सुविचारित और जीवंत मस्तिष्क के लिए उम्र केवल एक संख्या है। वे एक असाधारण विद्वान हैं जो व्यक्तिगत अनुभवों के साथ गहन ज्ञान का तालमेल रखते हैं।
वह एक राजकुमार के रूप में जन्मे, उन्होंने स्वेच्छा से अपनी अभिजात्य छवि को त्याग दिया और खुद को उस लोकतांत्रिक व्यवस्था में ढाल लिया, जिसके हमारे सौभाग्य से वे एक ज्योति स्त्रोत बने हुए हैं।
बहुविज्ञता और बहुमुखी प्रतिभा के कारण डॉ. करण सिंह जी मुण्डक-उपनिषद की उन सर्वोत्तम कृतियों में गहराई तक उत्कृष्टता से प्रतिष्ठित हैं जो हमारे दिमाग को ज्ञान से समृद्ध करना चाहते हैं, ताकि हम खुद को त्रुटियों और अज्ञानता के क्रंदन से मुक्त कर सकें।
उनकी पुस्तक, "मुंडक उपनिषद" का औपचारिक रूप से विमोचन करना वास्तव में एक सम्मान और सौभाग्य की बात है और इसके व्यापक प्रसार के लिए मैं इसकी अत्यंत सराहना करता हूं। इसके लिए हर किसी को समय देना चाहिए।
मित्रो - उपनिषदों से हमें जो सीख मिलती है वह शाश्वत और अभूतपूर्व रूप से समकालीन और प्रासंगिक है । उपनिषद हमें व्यवस्था, सत्य और नैतिक मूल्यों के हितकारी मार्ग पर ले जाते हैं। मुण्डक-उपनिषद् हमारे लिए विशेष महत्व रखता है - हमारा राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डक-उपनिषद् के एक मंत्र का हिस्सा है।
यह आदर्श वाक्य अशोक प्रतीक के नीचे लिखा गया है जो हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है। यह वास्तव में मेरा संवैधानिक कर्तव्य और सम्मान की बात है कि मैं उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में उस पवित्र प्रतीक के नीचे बैठूं और राष्ट्र की सेवा करूं।
मित्रों, डॉ. सिंह ने अपने शानदार लंबे संसदीय कैरियर के दौरान उन संवैधानिक गुणों का उदाहरण पेश किया, जिनकी प्रशंसा और अनुकरण आवश्यक है। वे हमारे उन संस्थापकों के मूल तत्व को दर्शाते हैं जिन्होंने कार्यवाही में एक भी गड़बड़ी और व्यवधान के बिना कुछ सर्वाधिक विवादास्पद और विभाजनकारी मुद्दों का समाधान करते हुए संवाद, वाद-विवाद, चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से संविधान को विकसित किया।
मित्रों, लोकतंत्र के मंदिरों में जो समसामयिक परिदृश्य है, वह चिंताजनक है। शालीनता नहीं बल्कि व्यवधान आज का रिवाज हो गया है। मैं लोगों, विशेष रूप से बुद्धिजीवियों, मीडिया और युवाओं का आह्वान करता हूं कि वे हमारी संसदीय प्रणाली की इस बेअदबी को रोकने के लिए जन जागरूकता पैदा करें।
ऐसे आन्दोलन का समय आ गया है ताकि हम सही अर्थों में अपने आप पर दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र और इसकी जननी होने का गर्व करें।
नि:संदेह हमारे लोग कार्यवाहियों में व्यवधान डालने वालों, नारेबाजी करने वालों और अशोभनीय आचरण कागज फेंकने एवं माइक को निकाल फ़ेंकने और सभापीठ के समक्ष चले जाने वालों से चिंतित और क्षुब्ध हैं। हमारे सांसदों को अनुकरणीय आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
मित्रों, भारत जो अब अमृत काल में है, सर्वाधिक क्रियाशील लोकतंत्र है जिसने वैश्विक पहचान कायम की है। भारत कई मुद्दों पर वैश्विक संवाद स्थापित कर रहा है। सभी भारतीय इस बात से खुश हैं कि देश इतनी अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है और इसके ऊंचा उठने की गति को रोका नहीं जा सकता क्योंकि हम 2047 की ओर बढ़ रहे हैं।
युवा मस्तिष्क जो हमारे सामने हैं, हममें से कुछ लोग उस समय नहीं होंगे, लेकिन 2047 के योद्धा जो अपने 20 और 30 के दशक में हैं, उन्हें हमसे एक सकारात्मक दिशा मिलनी चाहिए।
यह कितना विडंबनापूर्ण, कितना दर्दनाक है! जबकि दुनिया एक कार्यात्मक जीवंत लोकतंत्र के रूप में हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियों की सराहना कर रही है, हममें से कुछ लोग जिनमें संसद सदस्य भी शामिल हैं, हमारे सुपोषित लोकतांत्रिक मूल्यों के विचारहीन, अनुचित अपमान में लगे हुए हैं। हम एक तथ्यात्मक रूप से अपुष्ट आख्यान के इस तरह के अकारण आयोजन को कैसे सही ठहरा सकते हैं?
और इस अहितकर दुस्साहस के समय पर ध्यान दें - जबकि भारत जी20 के अध्यक्ष के रूप में अपने गौरव के क्षण जी रहा है और देश के बाहर के लोग हमें बदनाम करने के लिए अतिरेक कार्य कर रहे हैं।
हमारी संसद और संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम और कलंकित करने के लिए इस तरह के गलत अभियान को अनदेखा या स्वीकार करना बहुत गंभीर और असाधारण है। कोई भी राजनीतिक रणनीति या पक्षपातपूर्ण रुख हमारे राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता करने को सही नहीं ठहरा सकता।
अगर मैं देश के बाहर किसी संसद सदस्य के इस दुस्साहसपूर्ण कार्य पर चुप्पी साध लेता हूं, जो कि गलत धारणा, अहितकर और अभिप्रेरित है, तो मैं संविधान के गलत पक्ष की ओर होऊंगा। यह संवैधानिक दोष और मेरे पद की शपथ का अपमान होगा।
मैं उस कथन को कैसे सही बता सकता हूं जिसके लिए भारतीय संसद में माइक बंद कर दिए जाते हैं? लोग ऐसा कैसे कह सकते हैं? क्या कोई ऐसा दृष्टांत रहा है? हाँ! हमारे राजनीतिक इतिहास का एक काला अध्याय था। आपातकाल की उद्घोषणा किसी भी लोकतंत्र का सबसे काला समय था। भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति अब परिपक्व है। उसकी पुनरावृत्ति अब नहीं हो सकती। जो कोई भी देश के अंदर या बाहर ऐसा कहता है जिससे कि भारतीय संसद में माइक बंद कर दिए जाते हैं... कल्पना कीजिए कि लगभग 50 मिनट सभा चलने के बाद ऐसा किया जा रहा है। हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को गिराने के लिए इस तरह का अनियंत्रित व्यवहार एवं दुस्साहस बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। मैं हर किसी - बुद्धिजीवियों, मीडिया और युवाओं जो 2047 के हमारे योद्धा हैं, से आह्वान करता हूं कि वे इस अवसर पर उठें, इन ताकतों को बेनकाब करें और उन्हें बेअसर करें।
मैं राजनीतिक हितधारक नहीं हूं। मैं पक्षपात में शामिल नहीं होता। लेकिन मैं संवैधानिक कर्तव्यों में विश्वास करता हूं और मुझे पता है कि इतने लंबे समय तक डॉ. सिंह के साथ रहने के बाद मेरे दिमाग पर डर हावी नहीं हो सकता है।
यदि मैं मौन धारण करता हूं, तो इस देश में विश्वास रखने वाले अधिकांश लोग हमेशा के लिए मौन हो जाएंगे। हम उन तत्वों जो हमारे बढ़ते विकास को रोकना चाहते हैं, को इस तरह के आख्यान को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दे सकते हैं।
मैं राज्य सभा की अध्यक्षता करता हूं, कोई आगे आए और कहे कि माइक बंद कर दिया गया। संविधान के अनुसार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता है और दुनिया का कोई भी लोकतंत्र इसका मुकाबला नहीं कर सकता। हम सभी स्तरों पर लोकतंत्र को फलते-फूलते देख सकते हैं। कौन सा देश पंचायत, नगरपालिका, राज्य स्तर और केंद्रीय स्तर पर बहुस्तरीय लोकतंत्र होने का दावा कर सकता है?
आप विदेशी धरती पर हमारी न्यायपालिका को नीचा दिखाते हैं। इस धरती पर ऐसी न्यायपालिका कहाँ है जो बिजली की गति से काम करती हो? हमारी न्यायपालिका दुनिया के सबसे अधिक प्रतिभाशाली दिमागों से बनी है।
महोदय, आप समितियों के महत्व को जानते हैं। मुझे उत्पादकता में सुधार हेतु कुछ सकारात्मक करने के लिए कई सदस्यों और समितियों के अध्यक्षों से सुझाव मिले। इसलिए, मैंने समितियों से जुड़े मानव संसाधन को प्रखर बनाया। मैं अनुसंधान उन्मुख, जानकार लोगों को रखता हूं ताकि वे समिति के सदस्यों को उत्पादन और निष्पादन का अनुकूलन करने में मदद कर सकें।
लेकिन मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा यह कहानी फैलाई गई है कि सभापति ने समितियों में अपने ही सदस्यों को नियुक्त किया है। क्या किसी ने तथ्यों की जांच भी की है? समितियों में संसद सदस्य शामिल होते हैं। यह उनका विशेष क्षेत्र है। हमारे संपादक जो कर रहे हैं उससे मैं बहुत परेशान और चिंतित हूं। क्या आप ऐसी आख्यान में संलग्न हो सकते हैं जो असत्य पर आधारित हो? और आपको सच्चाई की जांच करने की परवाह नहीं है। मैंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि अध्यक्ष और सदस्य मेरे पास आए थे और मैं बहुस्तरीय परामर्श के बाद ऐसा कर रहा हूं।