6 अगस्त, 2023 को नई दिल्ली स्थित प्रगति मैदान में 'पुस्तकालय महोत्सव' के समापन समारोह में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा संबोधन (अंश)।

नई दिल्ली | अगस्त 6, 2023

सभी को मेरा नमस्कार!

जो कार्य किए गए हैं और जो विवरण यहां रखे गए हैं वे वास्तविक विज़न का संकेत देते हैं। मैंने अभी-अभी जिन पुस्तकों का विमोचन किया है उनमें से एक 'बिब्लियोग्राफी ऑन डिमांड' की ज़रा कल्पना करें। यह लोगों को देश के सभी पुस्तकालयों से किसी विषय विशेष के बारे में जानकारी उपलब्ध कराती है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि माननीय मंत्री के नेतृत्व और दूरदर्शिता से, अधिक से अधिक ऊंचाइयों को छुआ जाएगा। वस्तुत:, अमृतकाल में मंत्रालय की भूमिका अत्यंत अभिप्रेरक, प्रेरणादायी और प्रभावशाली रही है।

सच तो यह है कि जैसे ही मैंने इस समारोह स्थल में कदम रखा, मैंने पुस्तकालयों के प्रति प्रतिबद्ध लोगों, बच्चों, महिलाओं, वृद्ध व्यक्तियों की इस प्रकार की भागीदारी को नहीं देखा, यह एक बड़ी उपलब्धि है।

मुझे पुस्तकालय महोत्सव 2023 के समापन समारोह में शामिल होकर अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। यह महोत्सव जिसका उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी द्वारा किया गया, निश्चित रूप से दुनिया भर के प्रतिष्ठित पुस्तकालयों के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा।

मैं उत्साहित हूं कि 1.3 अरब से अधिक लोगों के देश में ये चीजें हासिल की जा सकती हैं और इसमें महानगरों से लेकर गांव तक के पुस्तकालयों की डेटा मैपिंग उपलब्ध होगी।

हाल के दिनों में, मैंने मंत्रालय को कई नवोन्मेषी कदम उठाते देखा है। यह अपनी तरह का यह पहला और पुस्तकालयों का सबसे पहला महोत्सव है और इसकी थीम को देखें तथा फोकस क्षेत्र को देखें - डिजिटलीकरण और सभी के लिए पहुंच। यह एक ऐतिहासिक विकास है। जब आपके पास समृद्ध मानव संसाधन हों तो दुनिया बदल जाती है। यदि बड़े परिणाम हासिल करने हों तो किसी भी मानव संसाधन की मूल शक्ति और उसकी रीढ़ की ताकत ज्ञान और शिक्षा है और वह मुख्यतः अतीत के ज्ञान से प्राप्त होती है। और किताबें इसका एकमात्र साधन हैं।

मुझे यकीन है कि अच्छी चीजें निकट ही हैं। मेरे बारे में कहा जाता है, और यह मेरी आदत है कि किसी समारोह में आने से पहले मैं सोशल मीडिया पर जाता हूं, जो इन दिनों बेहद महत्वपूर्ण है, मैं उन लोगों से संपर्क करता हूं जो इसके बारे में जानते हैं। मुझे माननीय मंत्री और सचिव से यह कहते हुए खुशी हो रही है कि इस समारोह से चारों ओर अच्छा माहौल बना है। यह बेहद प्रभावशाली रहा है और इसमें कुछ भी नकारात्मक नहीं है। मेरी ओर से बधाई!

आपमें से जो लोग रसायनशास्त्र जानते हैं वे जानते हैं कि उत्प्रेरक बहुत अच्छा काम करते हैं। ये अंकीय विकास को ज्यामितीय विकास में परिवर्तित करते हैं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान कार्यक्रम एक राष्ट्र, एक डिजिटल लाइब्रेरी को साकार करने की दिशा में उठे कदम को उत्प्रेरित करेगा और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को फलीभूत करेगा।

हजारों वर्षों के सभ्यतागत इतिहास वाले देश में इस तरह का कार्यक्रम होने से अधिक उपयुक्त कुछ नहीं हो सकता। ऐसे समय में जब हम 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' के दूसरे चरण में हैं, यह पुस्तकालयों के विकास और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और भारत में पठन-पाठन की संस्कृति विकसित करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

मैं उस जमाने का व्यक्ति हूं जब पुस्तकालय बहुत प्रासंगिक होता था। सैनिक स्कूल में छात्र होने के नाते, हम सप्ताह में एक घंटा पुस्तकालय को समर्पित किया करते थे। मैं अब भी पढ़ता हूं, याद करता हूं, मुझे छोटी-छोटी किताबें, जीवनियां मिलती थीं जो विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े उन लोगों के जीवन से प्रेरित होती थीं। पुस्तकालय में जाकर मुझे यह देखने का अवसर मिला कि पिकासो कौन थे। मुझे विवेकानन्द जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में पता चला और वे प्रभाव अमिट प्रभाव हैं। तो यह एक महत्वपूर्ण विकास है कि उनकी पढ़ने की संस्कृति को एक मंच द्वारा सुगम बनाया जा रहा है।

हमने इन दिनों देखा है कि उच्च उत्पादकता के लिए मंच बेहद आवश्यक हैं। और माननीय सचिव के साथ जुड़े एक मंच से मुझे बताया जा रहा था कि यदि किसी को राजमार्ग इंजीनियरिंग या राजमार्ग अवसंरचना के निर्माण के बारे में जानना है, तो यह मांग किए जाने पर हमारी ग्रंथ-सूची में उपलब्ध है, और आपको जानकारी मिल जाएगी कि उस विषय पर किस पुस्तकालय में कौन सी विशेष पुस्तक उपलब्ध है। ज़रा कल्पना करें कि इस प्रकार की बुद्धिमत्ता आपके तंत्र में समाहित की गई है; लोगों को निश्चित रूप से सुविधा मिलेगी और वे प्रेरित होंगे।

भारत में आधुनिक पुस्तकालयों के विकास के लिए कार्योन्मुख नीतियों का निर्माण एक कठिन कार्य है। हम विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रीय व्यंजनों और भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों वाला देश हैं। लेकिन सफलता हर गांव तक पहुंचने में है। यह जानकर संतुष्टि हो रही है कि हम मुख्य पड़ावों तक पहुंच गए हैं। गांव-गांव में बिजली पहुंचना अब कोई मुद्दा नहीं है, हर घर में बिजली पहुंच गई है यह एक बड़ी उपलब्धि है।

दूसरी बात, गांव में तकनीकी समावेशन हो चुका है। अन्यथा, हम कैसे समझाएं कि दुनिया का 46 प्रतिशत डिजिटल अंतरण भारत में हो रहा है। 2022 में, अगर मैं संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में हुए डिजिटल अंतरण के आंकड़ों पर बात करूं तो हमारा आंकड़ा उससे चार गुना है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसे पूरा करना एक बड़ी चुनौती है और आप इसे निस्संदेह पूरा करेंगे और कम से कम समय में पूरा करेंगे।

एक जागरूक नागरिक किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सबसे बड़ी ताकत है। केवल जागरूक नागरिक ही राष्ट्रविरोधी ताकतों और आख्यानों को बेअसर कर सकते हैं और नागरिक जागरूक हों, ऐसी प्रास्थिति प्राप्त करने के लिए पुस्तकालय, विशेषकर, सार्वजनिक पुस्तकालय सर्वोत्कृष्ट हैं। यह एक बड़ा काम है जिसमें मंत्रालय लगा हुआ है, मैं इसकी सराहना करता हूं।

मैं रवीन्द्रनाथ टैगोर को उद्धृत करने के लिए उत्सुक हूँ, "किताबें दुनिया को देखने की खिड़कियां हैं।"

इससे अधिक व्यावहारिक और यथार्थवादी कुछ नहीं हो सकता। आप किसी पुस्तकालय में जाते हैं, आप एक किताब खोलते हैं और आपको एहसास होता है कि आपने दुनिया देखने की एक खिड़की खोल दी है। पुस्तकालय विद्या का मंदिर है, एक ऐसा स्थान जहाँ मानव मन साधना करने के लिए जाता है।

अब, मैं आपके साथ कुछ साझा कर रहा हूं, किसी चिंता के कारण नहीं बल्कि केवल आपकी भागीदारी चाहने के उद्देश्य से। संसद भी मंदिर है, एक ऐसा मंदिर जहां वाद-विवाद, चर्चा, संवाद किया जाना होता है। कोई भी यह अपेक्षा नहीं करता कि संसद में अशांति उत्पन्न हो; आप चाहते हैं कि आपके प्रतिनिधि राष्ट्रहित में कार्य करें। मैं उसी दिशा में काम कर रहा हूं। हमारी संसद में अत्यधिक प्रतिभाशाली लोग हैं। वे विशाल अनुभव के साथ सभा कक्ष में आते हैं। मैं चाहता हूं कि उसका उपयोग राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए किया जाए। लेकिन अगर हमारी संसदीय प्रणाली में, लोकतंत्र के मंदिरों में संवाद और चर्चा न की जाए, वे व्यवधान और अशांति से ग्रस्त हों तो इस पर ऐसी ताकतें काबिज हो जाएंगी जो संविधान के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। इसलिए मैं आप सभी से अपील करूंगा कि आप आम आदमी के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग करें, इस देश के नागरिक के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए करें जिसमें हम सदैव राष्ट्र के हित को पहले रखते हुए कार्य करें और एक अनिवार्य तरीके से स्वयं को अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित करें।

पुस्तकालयों के विषय में सुविचारित राष्ट्रीय मिशन 2014 में शुरू किया गया था। यह बहुत प्रभावपूर्ण रहा है। मुझे यकीन है कि इसमें और अधिक जोश लाया जाएगा ताकि हम उस स्तर को हासिल कर सकें जहां हम गांव तक भी पहुंच सकें। मुझे यकीन है कि ग्रामीण समुदाय स्तर तक आधुनिक पुस्तकालयों के विकास के लिए एक कार्यान्वयन योजना अमल में आ जाएगी। हमारी सभ्यता के विकास में ऐतिहासिक बदलाव लाने के लिए उपलब्ध एकमात्र परिवर्तनकारी तंत्र शिक्षा है। यह शिक्षा ही है जो अनुसंधान की ओर ले जाती है। यह शिक्षा ही है जो नवाचार को सक्रिय करती है। कार्यान्वयन कठिन नहीं होता बल्कि एक अवधारणा उत्पन्न करना हमेशा कठिन होता है। शिक्षा और ज्ञान जुड़वां हैं। जो तंत्र विकसित किया जा रहा है वह उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में रखेगा और लोगों को इससे लाभ होगा।

कल्पना करें कि हजारों साल पहले, मानव प्रतिभा में यह सुनिश्चित करने की चाह थी कि ज्ञान का प्रसार और संरक्षण हो और उन्होंने ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों को अपनाया। मुझे कोलकाता में राष्ट्रीय पुस्तकालय में उन्हें देखने का अवसर मिला। इसमें किए गए महान प्रयास को देखें। तकनीकी विकास की बदौलत अब चीजें बहुत बेहतर हैं। हमें प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए ताकि ज्ञान का प्रसार और संरक्षण लोकहित को बहुत ऊंचे स्तर पर ले जाए।

पुस्तकालयों के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए चल रहे प्रयासों की अत्यंत सराहना की जा रही है क्योंकि इसका प्रभाव महसूस किया जा रहा है। वास्तव में, यह आवश्यक है कि डिजिटल लाइब्रेरी की पहल बाधाओं को तोड़ते हुए सभी नागरिकों को ज्ञान तक पहुंच के साथ सशक्त बनाए।

मैं आपसे एक बात कहता हूं। यदि आप भारत के विकास इतिहास का अध्ययन करें। 1950 के दशक से जीवन के किसी भी क्षेत्र में, उदाहरण के लिए प्रौद्योगिकी उद्योग के क्षेत्र में, पचास के दशक के शीर्ष 10 औद्योगिक घराने; उनमें से कितने जीवित बचे हैं? और आप तुरंत इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि हर दशक में ज्ञान और प्रौद्योगिकी के कारण कुछ न कुछ जुड़ता गया और वर्तमान दशक में स्थिति यह है कि भारतीय उद्योग में नई प्रतिभाओं का वर्चस्व है। यही ज्ञान की शक्ति है। पुस्तकालय के विकास से समाज एवं संस्कृति का विकास होता है। यह सभ्यताओं की प्रगति और हमारे विकास क्रम का भी पैमाना है।

मुझे इस कॉफ़ी टेबल बुक के लिए माननीय मंत्री और सचिव की सराहना करनी चाहिए। यहां आने से पहले मैंने कुछ जानकारी एकत्र की, लेकिन कॉफी टेबल बुक को देखें; मैंने बस इसे एक नज़र देखा, मुझे यकीन है कि आपका ध्यान शतप्रतिशत केंद्रित होगा; यह एक असामान्य कॉफी टेबल बुक है। यह वस्तुत: हमारी मूल्य प्रणाली के लिए स्वतंत्रता के लिए भारतीय प्रतिभा का सबसे प्रामाणिक रिकॉर्ड है। यह आपको वह उपलब्ध कराता है जो आपसे छिपाया गया था, जो निषिद्ध था, और इसमें प्रत्येक शब्द विशिष्ट अर्थ रखता है, आपको उस शब्द को तत्कालीन स्थिति के संदर्भ में देखना होगा।

इस समय, हम भाग्यशाली हैं जब भारत अभूतपूर्व तरीके से उत्थान की राह पर है, देश का यह उत्थान अबाध है। आईएमएफ और अन्य संगठनों द्वारा कहा गया है कि हम एक चमकता सितारा हैं, अवसर और निवेश के लिए एक पसंदीदा गंतव्य हैं। लेकिन उस समय जब महान नायकों ने, चाहे वे ज्ञात हों या अज्ञात, उन लोगों से मुकाबला करने का साहस जुटाया जो उनके साथ बहुत कठोरता से निपट सकते थे। मैं पोर्ट ब्लेयर की सेल्यूलर जेल में गया हूं, उन्हें वहां रखा गया था, लेकिन उन्होंने भारत माता की सेवा करने का साहस जुटाया। आज वे इसे इस कॉफ़ी टेबल बुक में लेकर आये हैं। मुझे यकीन है कि यह हमेशा आपके दिमाग में और आपकी मेज पर होगी।

हमें प्रत्येक बच्चे को इसे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, इसमें हमारी भावना का सार और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए निरंतर आग्रह निहित है। इसने भारत को आज दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे प्राचीन लोकतंत्र बना दिया है।

मैं आपको बता सकता हूं मित्रों, दुनिया के किसी भी देश में उस तरह की लोकतांत्रिक संरचना नहीं है जैसी हमारे पास है। भारत में हमारा लोकतंत्र ग्राम स्तर पर, पंचायत समिति स्तर पर, जिला परिषद स्तर पर संवैधानिक रूप से संरचित है। ठीक वैसे ही, जैसे राज्य स्तर पर विधान-मंडल के और केंद्रीय स्तर पर संसद के चुनाव होते हैं। यह हमारे उन स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करने का भी अवसर है जिनका उल्लेख इस कॉफी टेबल बुक में है।

मित्रों, हमें अपने देश पर सदैव गर्व करना चाहिए। आइए हम गौरवान्वित भारतीय बनें। अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करें और अपने राष्ट्र को हमेशा पहले रखें। कभी-कभी हमें दुख और वेदना होती है क्योंकि हममें से कुछ लोग हानिकारक उद्देश्यों के वशीभूत होकर हमारी संस्थाओं को कलंकित करने, बदनाम करने और उन्हें नीचा दिखाने का अशुभ प्रयास करते हैं। उनके बारे में निर्णयात्मक बनें। उनके दृष्टिकोण पर ध्यान दें। यदि आप अन्यथा आश्वस्त हैं तो ऐसे समय, जब हमारे जैसा बड़ा देश बहुत तेजी से बढ़ रहा हो और वैश्विक मापदंडों पर उसके सबसे तेज विकास का अनुमान तथा व्यवस्थापन किया जा रहा हो तब भारत-विरोधी आख्यानों को बेअसर करने में कदापि संकोच न करें। एक दशक पहले जब वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति की बात आती थी तो हम दोहरे अंकों में थे। हम 10वें या 11वें स्थान पर थे। सितंबर 2022 में, हमें 5वें स्थान पर आने का अवसर मिला और इस प्रक्रिया में, हमने अपने पूर्व औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ दिया। दशक के अंत तक हम तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होंगे।

तो जब ऐसा अभूतपूर्व और अद्वितीय विकास होता है जिसके बारे में कुछ वर्ष पहले तक सपने में भी नहीं सोचा जा सकता था; प्रतिक्रियावादी चुनौतियां तो होंगी ही। मैं सभी से अपील करूंगा कि जब बात राष्ट्रवाद या राष्ट्रहित की हो तो कभी भी पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण न रखें। राजनीतिक कार्यक्षेत्र में राजनीतिक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण ठीक है। लेकिन जब आप राष्ट्र के विकास में हितधारी बन जाते हैं, तो राजनीति को पीछे हट जाना चाहिए। जब राष्ट्र के हित की बात हो तो हमें हमेशा इसे आगे रखना चाहिए। 'हमें सीधे बल्ले से खेलना चाहिए और साहस और दृढ़विश्वास के साथ खेलना चाहिए।' मुझे यकीन है कि आप सभी ऐसा करेंगे।

मित्रों, इतना बड़ा परिवर्तन हो रहा है, जब भारत 2047 में अपनी आजादी की शताब्दी मनाएगा तब मेरी पीढ़ी के अधिकांश लोग यहां नहीं होंगे। हमारे युवा मन जिनमें ज्ञान प्राप्त करने की ललक है, उनके लिए एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध कराया गया है जहां वे अपनी ऊर्जा का उपयोग अपनी क्षमता और प्रतिभा को साकार करने के लिए कर सकते हैं और इस प्रक्रिया में अपने सपनों और आकांक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। युवा मस्तिष्क सबसे महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय घटक हैं, आप 2047 के योद्धा होंगे। इसलिए, यह आप पर निर्भर करता है कि आप हमारे राष्ट्रीय विकास का गंभीर विश्लेषण करें और एक दृष्टिकोण अपनाएं। आपकी चुप्पी उचित नहीं होगी। आपको उन विपरीत सोच रखने वाली बुरी ताकतों को हराने के लिए अपने मन की बात कहनी होगी।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी देश में जब कानून अपना काम करता है तो लोग सड़कों पर उतर आते हों? सभ्य दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है। यदि आपको कानून के प्रकोप का सामना करना पड़ता है, तो एकमात्र रास्ता देश में मौजूद हमारी मजबूत न्यायिक प्रणाली का सहारा लेना है। और मैं खंडन के किसी डर के बिना कह सकता हूं वह मजबूत न्यायिक प्रणाली दुनिया में सबसे अच्छी है। तो फिर सड़कों पर क्यों उतरें?

ये सवाल मेरी ओर से नहीं बल्कि देश की जनता की ओर से आना होगा। उन्हें सोचना होगा, चिंतन करना होगा और आत्मनिरीक्षण करना होगा तथा एक ऐसी पारिस्थितिकी तैयार करनी होगी कि कोई भी कानून से ऊपर न हो। इसमें, पद या शक्ति समेत किसी भी आधार पर कोई भी अपवाद न हो।

मानव इतिहास का विकास हमेशा आपके ज्ञान के आधार पर हुआ है। एक बार जब आपके पास ज्ञान और शोध हो तो कार्यान्वयन आसान होता है और इसलिए हमें ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एक समय था जब हम तक्षशिला और नालंदा जैसे संस्थाओं पर हम बहुत गर्व करते थे। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारी हिस्सेदारी बहुत ज़्यादा थी। अच्छी बात यह है कि सकारात्मक बदलाव आया है। हम सही रास्ते पर हैं और उच्चता की ओर बढ़ रहे हैं। हमारा प्रक्षेप-पथ वृद्धिशील है। हम मंजिल तक पहुंचेंगे लेकिन उसके लिए हर भारतीय को मन-मस्तिष्क तथा हृहय से योगदान देना होगा।

मैं और अधिक समय नहीं लूंगा, मुझे बहुत कुछ कहना था, बहरहाल मैं मंत्रालय की उपलब्धियों से बहुत प्रभावित हूं। मैं यहां के लोगों की गर्मजोशी से बहुत प्रभावित हुआ हूं। मैं उनके साथ घंटों-घंटों समय बिता सकता था। मित्रों, मैंने कुछ लड़के-लड़कियों से बात की है, मुझे उनकी आंखों में एक चमक दिखती है। मैंने चारों ओर देखा है, लोग आनंद की स्थिति में थे और ज्ञान आपको आनंद देता है। ज्ञान तनाव और अवसाद के लिए एक एंटीडोट है। ज्ञान एक ऐसा कारक है जो नकारात्मकता को निष्क्रिय कर देता है। यह सकारात्मकता का संचार करता है। यह आपको स्वयं से परे व्यापक समाज के दर्शन की ओर ले जाता है।

तो मित्रों, मैं माननीय मंत्री से सहमत हूं कि यह अंत नहीं है, यह शुरुआत है और एक बार फिर, मैं सचिव और उनकी टीम को ऐसी उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए बधाई देता हूं जो देश के प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करेगी।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!