मित्रों, यह मेरे लिए परम आनंद का क्षण है। मैं इस क्षण को हमेशा संजो कर रखूंगा। मैं आपको बता सकता हूं कि मैं ऊर्जावान, प्रेरित और प्रोत्साहित महसूस कर रहा हूं और मुझे यकीन है कि हम अमृत काल में हैं और 2047 में जब भारत अपनी आजादी के सौ साल पूरे करेगा तब हम वहां नहीं होंगे। परंतु मेरे पास इस कमरे में 2047 के भारत के योद्धा हैं और मैं अत्यंत आशावादी हूं कि अमृत काल से 2047 तक भारत विश्व के शिखर पर होगा।
आईआईटी गुवाहाटी जो उत्तर-पूर्व भारत का पहला आईआईटी है- अपनी तीन दशकों की यात्रा में लगातार विकास-पथ पर अग्रसर रहा है। इसने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर ख्याति और पहचान अर्जित की है।
मैंने अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स श्री राजीव मोदी और निदेशक के साथ एक मंच पर बातचीत की है और यह घोषणा करने के लिए उनकी सहमति भी है कि भारतीय वैश्विक परिषद का आईआईटी, गुवाहाटी के साथ एक समझौता ज्ञापन होगा और यह समझौता ज्ञापन अलग-अलग प्रकृति की दुनिया के लिए आपको एक माध्यम प्रदान करेगा। यह समझौता ज्ञापन अगले एक महीने गुवाहाटी में निदेशक, भारतीय वैश्विक परिषद के दौरे के साथ फलीभूत होगा।
मुझे असम की भूमि, राजसी और शक्ति संपन्न ब्रह्मपुत्र की भूमि पर आकर बेहद खुशी हो रही है। उत्तर पूर्व अष्टलक्ष्मियों को प्रकृति और संस्कृति के इस स्वास्थ्यकर और उत्कृष्ट संगम का आशीर्वाद प्राप्त है।
माँ कामाख्या और श्रीमंत शंकरदेव की पुण्य आध्यात्मिकता से समृद्ध असम को महान अहोम शासकों और उनके महान व्यक्तित्व लचित बोरफुकन के समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है। मैं आपको बड़े गर्व के साथ याद दिलाना चाहता हूं कि जब हम अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में पीछे मुड़कर देखते हैं, तो 1671 में सरायघाट की लड़ाई हुई थी और मुगलों को परास्त किया गया था।
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'लुक ईस्ट-एक्ट ईस्ट' नीति शुरू करने के विजन से भरपूर लाभ मिल रहे हैं। आईआईटी गुवाहाटी इसका केंद्रबिंदु है क्योंकि जो लोग इस विश्वविद्यालय से स्नातक के रूप में निकलते हैं वे राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।
उत्तर पूर्व को हाल ही में और माननीय प्रधान मंत्री की दूरदर्शी पहल के कारण राष्ट्रीय और ऐतिहासिक आख्यान में अपना उचित स्थान प्राप्त हुआ है।
मित्रों, दीक्षांत समारोह वास्तव में एक महत्वपूर्ण अवसर है, यह आपकी कड़ी मेहनत का प्रतिफल है। इसी मोड़ पर आपको अपने उन शिक्षकों से प्यार होने लगता है जो आपके प्रति बहुत कठोर रहे थे। इसी मोड़ पर आपको अपने माता-पिता के त्याग के बारे में पता चलता है और आज का यह दिन इसी का परिणाम है जिसे आप अपने जीवन में हमेशा याद रखेंगे। अपनी सुयोग्यता के आधार पर अर्जित पहचान के लिए सभी डिग्री धारकों को हार्दिक बधाई। आप दुनिया में चाहे कहीं भी चले जाएं, "आईआईटी गुवाहाटी" का टैग एक विशेष पहचान देगा जैसे कि विश्व में अभी भारतीय पासपोर्ट एक अलग प्रभावशाली पहचान दे रहा है। माननीय प्रधान मंत्री की हाल की संयुक्त राज्य अमेरिका यात्रा के जो प्रभावशाली परिणाम सामने आए, मुझे यकीन है कि हमने ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था। कृत्रिम बुद्धिमता (अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) अमेरिका-भारत बन गया है, दोनों समान रूप से प्रभावशाली हैं।
मेरे युवा मित्रों, राष्ट्र को आपसे बहुत उम्मीद है और यह सही भी है क्योंकि आप 2047 में भारत के उत्थान को अपनाएंगे, उसे पहचान देंगे और उसे नियंत्रित रखेंगे। भारत की अभूतपूर्व अप्रत्याशित विकास और उत्थान न केवल राष्ट्र के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक निर्णायक क्षण है।
भारत इस समय जी-20 का अध्यक्ष है। आपने अपने संस्थान सहित पूरे देश में इस संदर्भ में गतिविधियाँ देखी होंगी। और हम दुनिया को जो संदेश दे रहे हैं वह हमारी सभ्यता के लोकाचार 'वसुधैव कुटु़ंबकम' का ही सार है।
निस्संदेह भारत प्रौद्योगिकी के बदौलत 2047 में शीर्ष पर विराजमान होगा। समसामयिक वैश्विक और राष्ट्रीय परिदृश्य इस बात का सूचक है कि यह सदी भारत के विश्व में आर्थिक रूप से अग्रणी देश के रूप में उभरने का साक्षी बनेगा।
राज्य और केंद्र स्तर पर कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं और उन्होंने इस देश का इस तरीके से तेजी से विकास सुनिश्चित किया है, जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी। और मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि मैं 30 वर्ष से भी अधिक समय पहले 1989 में पहली बार संसद में पहुंचा था। मैं तब के परिदृश्य को जानता हूं और अब की स्थिति को भी जानता हूं।
भारत आज निवेश और अवसर का एक वैश्विक गंतव्य है। मुझे आईएमएफ अध्यक्ष से दो बार मिलने का अवसर मिला, वह भारत को "आर्थिक दुनिया में एक चमकता सितारा" के रूप में संबोधित करती हैं। यह उत्थान 2022 में देश के 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने के रूप में परिलक्षित होती है। इस प्रक्रिया में हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ दिया। ठीक एक दशक पहले, यह 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है और जिन्हें यह पता है, अर्थशास्त्री इस बारे में आश्वस्त हैं कि इस दशक के अंत तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। भारत का उत्थान अबाध है।
हाल के वर्षों में भारत द्वारा प्रौद्योगिकी को परिवर्तनकारी और प्रभावशाली तरीके से अपनाया गया है। हम 1.3 अरब से अधिक जनसंख्या वाले देश में इस बात की कभी कल्पना तक नहीं कर सकते थे कि उन्होंने प्रौद्योगिकी को कितनी तेजी से अपनाया है।
2022 में, 1.5 ट्रिलियन डॉलर के लेनदेन डिजिटल किए गए और उसमें भारत की हिस्सेदारी 46% से भी अधिक थी। अगर इसे मैं आपके 2022 में किये गये डिजिटल लेनदेन के आंकड़े समक्ष रखूँ और अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी तथा फ्रांस के संयुक्त डिजिटल लेनदेन को चार गुणा करने के पश्चात् भी हम डिजिटल लेनदेन में उनसे आगे ही हैं। क्या हम कभी इसकी कल्पना कर सकते थे? और ध्यान रहे, कि डिजिटल परिवर्तन सिर्फ तकनीक का नहीं है, वरन मानव संसाधन को भी इसे स्वीकार करना होगा। ऐसा गांव में किसानों के साथ, मजदूरों के साथ हुआ है और यह एक उपलब्धि है, एक सिद्धि है। दुनिया हमारी तरफ देख रही है। मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ जिसे मैंने विश्व के नेताओं के साथ साझा किया था, कि भारत इस दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जिसने अपने नागरिकों को को-वैक्सीन प्रमाणन डिजिटल रूप से उपलब्ध कराया है। ऐसा पश्चिम में भी नहीं हो सका था। इस समय हम इस स्तर पर हैं।
मित्रों, जब इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बात आती है, तो हमारे पास 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, लेकिन प्रति व्यक्ति मोबाइल डेटा खपत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन की कुल खपत से भी अधिक है। और यह ऐसी चीज़ है जिस पर हम सभी को गर्व होना चाहिए।
मित्रों, मैं इस अवसर पर आपसे आग्रह करता हूं क्योंकि आप बड़ी दुनिया में छलांग लगा रहे होंगे, इसलिए आज जो लोग इस संस्थान से डिग्री प्राप्त कर रहे हैं, भविष्य में इस प्रतिष्ठित संस्थान के भूतपूर्व छात्र कहलायेंगे। मुझे यकीन है कि आपलोग असम के माननीय राज्यपाल द्वारा कुछ समय पहले दिये गये विवेकपूर्ण सलाह को ध्यान में रखेंगे।
याद कीजिए स्वामी विवेकानन्द ने एक समय क्या कहा था। और मित्रों इसे हमेशा याद रखें क्योंकि युवा मन की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक डर है और वह डर विफलता का डर है और वे विफलता को कलंक के रूप में लेते हैं। जब उनके मन में कोई विचार आता है, तो वे उस विचार को अपने मस्तिष्क में रहने का स्थान तो दे देते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। मस्तिष्क कोई ऐसी जगह नहीं है जहां किसी शानदार विचार को केवल संजोकर इसलिए रखा जाए क्योंकि आपको लगता है कि असफलता मिल सकती है। उस डर को छोड़ दीजिए। इसलिए, मुझे स्वामी विवेकानन्द की कही यह बात याद आती है, "अपने जीवन में जोखिम लीजिए। यदि आप सफल होते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं। यदि आप असफल होते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं।"
सकारात्मक शासन नीतियां आपको अपनी क्षमता और ऊर्जा को उन्मुक्त करने और अपनी आकांक्षाओं और सपनों को प्राप्त करने का अनुमति प्रदान करती हैं। आपका संस्थान अन्य संस्थानों के साथ मिलकर इनक्यूबेटिंग केंद्रों का सृजन कर रहा है, उभरते उद्यमियों के लिए इनोवेशन पार्क हैं। मित्रों, मैं आपको बता सकता हूं कि यह एक ऐसा विचार है, जो आपके मस्तिष्क में है और आप सृजन करने में सक्षम हैं। साधारण कोटि के व्यक्ति द्वारा भी कार्य-निष्पादन किया जा सकता है। इसलिए कृपया नेतृत्व करें।
देश को तीन दशकों के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 मिली। और इस एनईपी को मूर्त रूप प्रदान करने से पहले लाखों इनपुट का विश्लेषण किया गया। यह नीति गेम चेंजर साबित हुई। यह क्रांतिकारी साबित हुई। यह भारत सहित दुनिया को बदलने के लिए परिवर्तनकारी तंत्र का एक माध्यम बन गया है।
कौशल को प्रमुखता दी गई है। कुछ चीजें जो हमें पीछे की ओर खींच रही थीं, उन्हें छोड़ दिया गया है। प्रौद्योगिकी की शुरूआत की गई है। और अब वह दिन दूर नहीं जब भारत को गर्व होगा कि अतीत में हमारे पास तक्षशिला और नालंदा जैसे संस्थान थे। आईआईटी गुवाहाटी और अन्य संस्थानों जैसे हमारे संस्थान समय की बात है और वे उस स्तर को प्राप्त होंगे।
Fदोस्तो, मैं आपके समक्ष कुछ ऐसा साझा करना चाहता हूँ जिसके कारण मुझे काफी कष्ट उठाने पड़े। मैं हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल रहा। मुझे बहुत डर रहता था कि अगर मैं यहां प्रथम स्थान पर नहीं आया, तो क्या होगा। मैं उस डर, दबाव और तनाव के साथ जी रहा था। मुझे यह समझते-समझते काफी देर हो गई और जब मैंने जाना कि कुछ ज्यादा नहीं होता, दोस्तों से कुछ ज्यादा बात कर लेता, कुछ खेल लेता..इसलिए दूसरों को हराने के लिए कभी भी तनाव, दबाव और प्रतिस्पर्धा नहीं रखनी चाहिए। अपने आप को उत्कृष्ट बनाएं और मुझे यकीन है कि इससे आपको भरपूर लाभ मिलेंगे।
आप भाग्यशाली हैं कि आप अमृतकाल में हैं, खासकर 2014 के बाद के समय में हैं, क्योंकि 2014 से पहले देश में तीन दशकों तक गठबंधन की सरकार थी। मैं 1989-91 तक उस सरकार में एक केंद्रीय मंत्री था, जो 20 से अधिक पार्टियों से मिलकर बनी थी और मैं संसदीय मामलों का एक कनिष्ठ मंत्री था। तीन दशकों के लंबे अंतराल के बाद 2014 में देश में एक दल को बहुमत प्राप्त था, जिसे 2019 में फिर से जनाधार प्राप्त हुआ। यही कारण है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 से छुटकारा मिल सका जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों के जीवन में बदलाव आया। इस ऐतिहासिक न्याय में सात दशक क्यों लग गये? अनुच्छेद 370 को हमारे संविधान में एक अस्थायी अनुच्छेद के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया था, मुझे नहीं लगता कि एक अस्थायी चीज़ को इतने लंबे समय तक रहना चाहिए था।
मित्रों, एक और बात है जिस पर मुझे आपका ध्यान आकर्षित करना है। हमारा संविधान हमें बहुत बुद्धिमान और दूरदर्शी लोगों द्वारा दिया गया था, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर प्रारूपण समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के संबंध में संविधान में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग शामिल किया था। वे इस बात को लेकर निश्चित थे कि ये सिद्धांत देश के शासन के लिए मौलिक-महत्व के हैं। इसलिए, हमारे संविधान के निर्माताओं और संस्थापकों द्वारा निदेशक सिद्धांतों को 'देश की शासन-व्यवस्था में मौलिक' कहा गया है। कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है।
मित्रों, पिछले कुछ वर्षों में ऐसा हुआ है कि पंचायत एक निदेशक सिद्धांत थी, संविधान में संशोधन किया गया और पंचायतों के लिए एक संरचित तंत्र विकसित हुआ। सहकारिता इससे अलग थी; हमने उन्हें संवैधानिक स्वरूप में बदलते देखा है। शिक्षा का अधिकार एक अन्य व्यवस्था थी, हमने कानून बनाए हैं। उस आधार पर, मैं लोगों की प्रतिक्रिया से कुछ हद तक स्तब्ध हूं, जब एक विचार चल रहा है कि अनुच्छेद 44 के तहत निदेशक सिद्धांत के संबंध में कुछ किया जाना चाहिए और वह है "राज्य पूरे भारत के क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।"
अब, मैं 30 वर्षों बाद कह सकता हूं, मुझे यकीन है कि ऐसी स्थिति आ गई होगी कि समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन में और देरी हमारे मूल्यों के लिए हानिकारक होगी। अंतर्निहित उदात्तता की सराहना करनी होगी और उसे समझना होगा। यह भारत को एक सूत्र में पिरोएगा, यह राष्ट्रवाद है तथा और अधिक प्रभावी ढंग से यही संविधान निर्माताओं की सोच थी। मित्रों, इस पर जरा विचार करें और सोचें, जब हम अमृत काल में हैं, तो निदेशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन में बाधा डालने या देरी करने का कोई आधार या औचित्य नहीं हो सकता है।
मुझे आपके साथ कुछ चिंताएं साझा करने की आवश्यकता है क्योंकि हमारा उत्थान अभूतपूर्व है, अप्रत्याशित है और इसे विश्व स्तर पर मान्यता मिल रही है। दुनिया में भारत का प्रभाव उस रूप में देखा जा रहा है, जैसा पहले कभी नहीं देखा गया। यही समय है जब दुनिया भारत से कुछ कहने की उम्मीद करती है। भारत को अपनी आवाज दुनिया तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है, उन्हें इसका इंतजार है। इसलिए, मुझे यकीन है कि मेरे युवा मित्र विशेष रूप से सहमत होंगे, भारतीय होने पर गर्व करना और अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर हमेशा गर्व करना एक प्रमुख कर्तव्य है।
मित्रों, मैं आपको सावधान करना चाहता हूं, राजनीतिक हिस्सेदारी राष्ट्र या राष्ट्रवाद की कीमत पर नहीं हो सकती, राजनेताओं के लिए खुली छूट होनी चाहिए, वे जिस तरह से राजनीति करना चाहते हैं, उसी तरह से होनी चाहिए, लेकिन आम भागीदारी के साथ; यह हमारे राष्ट्र और राष्ट्रवाद के सम्मान के दायरे में होना चाहिए।
मित्रों, आप आनेवाले दिनों में एक वृहद दुनिया में प्रवेश करेंगे और एक ऐसे आर्थिक क्षेत्र में अपना योगदान देंगे जिस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है, मैं अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से भी अपील करूंगा कि वे अपनी औद्योगिक बिरादरी यानी आर्थिक राष्ट्रवाद से जुड़ें। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आर्थिक राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित करें, राजकोषीय लाभ के लिए इससे समझौता न करें। कैसा लगता है, पतंग विदेश से आएगी? दिवाली के दिये विदेश से आएंगे? फ़र्नीचर विदेश से आएगा? और हमारी विदेशी मुद्रा ख़त्म हो जायेगी। मैंने केवल कुछ वस्तुओं के नाम बताए हैं, मैं वैश्विक व्यापार तंत्र में विश्वास तो करता हूं, लेकिन यह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा नहीं बनना चाहिए। यह उद्योग और व्यवसाय से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह राजकोषीय लाभ सुनिश्चित करे, अनुसंधान या आवश्यकता से बाहर कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजकोषीय लाभ एक मार्गदर्शक कारक नहीं होना चाहिए। मुझे यकीन है कि आप अच्छी स्थिति में होंगे, आप इस विचार के राजदूत होंगे, आप एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सक्षम होंगे जहां हमारी आर्थिक राष्ट्रवाद की भावना पनपेगी और बढ़ेगी।
मित्रों, किसी भी विदेशी संस्था को हमारी संप्रभुता और प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आख़िरकार, भारत विश्व की कुल जनसंख्या की 1/6 हिस्से का निवास-स्थल है; हमारा मानव संसाधन वैश्विक संस्थानों को प्रभावित कर रहा है और दुनिया के हर हिस्से में धीरे-धीरे कदम रख रहा है। जब हमारी संप्रभुता और प्रतिष्ठा की बात आती है, तो हम पीछे नहीं रह सकते। हम अपने फलते-फूलते एवं विकसित होते लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं पर दाग नहीं लगा सकते।
मित्रों मुझे बताइये कि विश्व के किस भाग में ग्राम स्तर पर, पंचायत स्तर पर, जिला परिषद स्तर पर, राज्य स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर और सहकारिता के क्षेत्र में लोकतंत्र इतने व्यापक स्तर पर फल-फूल रहा है और सब कुछ संवैधानिक रूप से सुरक्षित और सुनिश्चित है? दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जहां सत्ता का हस्तांतरण इतना सहज, निर्बाध और सम्मानजनक हो। हम ऐसे हैं और हमें इसका हमेशा संज्ञान रखना चाहिए, हम सबसे पुराने, सबसे बड़े, सबसे जीवंत और क्रियाशील लोकतंत्र हैं और जो वैश्विक शांति और सद्भाव की राह को स्थिरता प्रदान कर रहा है।
मित्रों, आपके पास हर जानकारी उपलब्ध है। यह चिंता का विषय है कि समय-समय पर और रणनीतिक तरीके से राष्ट्र-विरोधी आख्यान चलाये जाते हैं जिसका उद्देश्य हमारी छवि को धूमिल एवं बदनाम करना है। अब समय आ गया है कि भारत विरोधी आख्यान चलाने वालों को प्रभावी ढंग से ख़ारिज किया जाए। ऐसा केवल प्रशिक्षित युवा दिमागों द्वारा ही किया जा सकता है जिनके पास आप जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के भूतपूर्व छात्र होने का टैग है। यह विडम्बना और प्रकृति का उपहास है और इससे मुझे दुख होता है कि हममें से कुछ लोग उस भयावह योजना का शिकार हो जाते हैं जिसका प्रतिकार करना होता है।
मित्रों, दूसरा पहलू जो हमारे जीवन को बदल रहा है, वह है शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही का होना। अब, भ्रष्टाचार के प्रति पूर्ण असहिष्णुता है, मुझे यकीन है कि यहां हर कोई सहमत होगा, कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। कानून के लंबे हाथ हर किसी तक पहुंच रहे हैं। जिन लोगों ने सोचा था कि कानून उन्हें कभी छू नहीं पाएगा, वे कानून की आंच झेल रहे हैं, और इस समय ऐसा इसलिए हो पा रहा है क्योंकि भ्रष्टाचार के प्रति पूर्ण असहिष्णुता की नीति है।
भ्रष्टाचार अलोकतांत्रिक है, यह खराब शासन-व्यवस्था है, जो हमारे विकास को धीमा कर देता है, लेकिन एक और दृश्य सामने आ रहा है, अगर कोई भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है, तो हमारे पास एक मजबूत न्यायिक प्रणाली है, हमें इस प्रणाली तक पहुंच बनानी चाहिए, लेकिन लोग विरोध में सड़कों पर उतर आते हैं। जो लोग सत्ता के पदों पर रहे हैं, जो लोग संवैधानिक पदों पर रहे हैं, वे कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने के बजाय सड़कों पर उतर जाते हैं। इसलिए, मैं आपसे आग्रह करूंगा कि ऐसे समय में, भ्रष्टाचार में हितधारक, भ्रष्टाचार में लाभार्थी, छिपने और भागने का रास्ता खोजने के लिए सभी ताकतों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह आप जैसे युवा दिमाग द्वारा शुरू किया गया आख्यान है ताकि इसे बेअसर किया जा सके। एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज आपके विकास पथ को सुनिश्चित करने की दिशा में सबसे सुरक्षित गारंटी है। इसलिए, मैं यहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति से, विशेष रूप से मेरे युवा मित्रों, लड़कों और लड़कियों से आग्रह करूंगा कि आपके पास समझने की क्षमता है और आपके पास यह पता लगाने की क्षमता है कि क्या सही है और क्या गलत है, लेकिन कृपया मौन न रहें। आपका मौन देश के लिए बहुत महंगा पड़ सकता है।
दशकों पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में एक सर्वेक्षण किया गय और यह संकेत दिया गया कि यदि मूक बहुमत जनसंख्या मूक धारण किए रहने का निर्णय लेती है, तो वह हमेशा के लिए मौन हो जाएगी। इसलिए, मैं युवाओं से आग्रह करता हूं कि वे समझदार बनें और अपना फैसला खुद लें, लेकिन उस विचार को अपने तक ही सीमित न रखें, बल्कि उस विचार को मूर्त रूप प्रदान करें जिससे राष्ट्र हित में एक प्रणाली विकसित करने में मदद मिलेगी।
मेरे प्यारे युवा मित्रों, आपको असमिया भोजन की भूख तो होगी ही, लेकिन अन्य दृष्टिकोण की भी भूख रखिए। आजकल हम बहुत असहिष्णु हो गए हैं, दूसरों की बात पर विचार नहीं करना चाहते, यह मानवता के लिए अच्छा नहीं है। अनुभव से पता चला है कि सामान्यतया दूसरे का दृष्टिकोण सही दृष्टिकोण साबित होता है। तो बिना सोचे समझे, दूसरों के दृष्टिकोण को अस्वीकार न करें। इसका दर्द राज्यसभा के सभापति से ज्यादा कौन महसूस कर सकता है? मेरे पास जो पद है, संसद जिसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, विचार-विमर्श, संवाद और चर्चा की जगह है कि दूसरे व्यक्ति को जो कहना है उसे समझना और एसकी सराहना करना। आप सहमत या असहमत हो सकते हैं, ऐसी परिस्थिति के अंदर मेरी वेदना व्यक्त करते हुए मैं आपसे कहूंगा असहमति को विरोध में प्रवर्तित करना जनतंत्र के लिय अभिशाप से कम नहीं है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की मूल भावना से मेल नहीं खाती यह बात। संवाद की डोर मानवता और प्रजातंत्र के जीवन डोर है। इसमें खिंचाव और गाँठ जन कल्याण के लिय हितकारी नहीं हो सकते। एक छत के नीचे विरोध और असहमति स्वाभाविक है।
अलग-अलग तरह के दृष्टिकोण होते ही हैं, जिनमें शायद सामंजस्य भी नहीं बिठाया जा सके, इसका निदान विचार विमर्श है। यही हमारी हजारों साल की संस्कृति का अमृत यही है, कि बातचीत से हम मामलों का समाधान निकालेंगे। दुनिया इस समय एक विशाल युद्ध का सामना कर रही है और भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक राजनेता के रूप में अपनाए गए रुख, "युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है" की विश्व स्तर पर सराहना की गई है।
मित्रों, मैं एक दूरदर्शी और प्रतिभाशाली व्यक्ति जिन्होंने हमारे संविधान का मसौदा तैयार किया, डॉ. बी.आर. अंबेडकर के दो अन्य उद्धरणों का संदर्भ देना चाहूँगा। मुझे यकीन है कि हर कोई विशेष रूप से मेरे युवा मित्र जो भारत@2047 के योद्धा हैं, यह बात ध्यान में रखेंगे, "आपको पहले भारतीय होना चाहिए, आखिरी में भारतीय होना चाहिए और भारतीयों के अलावा और कुछ नहीं होना चाहिए"। यह विचार हमें हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, जिस क्षण हम ऐसा करेंगे, मुझे यकीन है कि हमारे देश के उत्थान की प्रक्रिया और तेज हो जाएगी।
हमारी संविधान सभा ने 3 साल तक बेहतरीन कार्य किया, लेकिन मैं उस पर विचार करना चाहूंगा जो डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने आखिरी दिन, 25 नवंबर 1949 को अपनी समापन टिप्पणी में कहा था:
“यह बात नहीं कि भारत कभी स्वधीन न रहा हो। बात यह है कि एक बार वह पाई हुई स्वाधीनता को खो चुका है। क्या वह दुबारा भी उसे खो देगा? जो तथ्य मुझे बहुत परेशान करता है वह यह है कि भारत ने पहले एक बार अपनी स्वाधीनता खोई ही नहीं वरन् अपने ही कुछ लोगों की कृतघ्नता तथा फूट के कारण वह स्वाधीनता आई गई हुई। क्या इसी इतिहास की पुनरावृत्ति होगी?..." मित्रों, उन्होंने 25 नवंबर 1949 को अपने ही कुछ लोगों की कृतघ्नता और फूट को दर्शाते हुए जो कहा था, वह हम अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। विश्व स्तर पर ऐसे संस्थान हैं जहां भारतीय उद्योग निवेश करते हैं और अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स इस पर ध्यान देंगे, उन बाहरी संस्थाओं को लाखों डॉलर दिए जाते हैं लेकिन विदेशों में उन संस्थाओं में हमारे छात्र और संकाय सदस्य केवल अपने ही देश की आलोचना करते रहते हैं। मैं अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से आग्रह करूंगा कि वे इस पर ध्यान दें कि आईआईटी गुवाहाटी जैसी हमारी संस्थाओं को उद्योग से योगदान मिलना चाहिए, वे सीएसआर से वित्त पोषण का मुख्य स्रोत होना चाहिए, मुझे यकीन है कि वह इसे आगे बढ़ाएंगे।
युवा मित्रों, जब आप अपनी डिग्रियाँ लेकर निकलेंगे, तो दुनिया आपसे ईर्ष्या करेगी, आपकी कोई विफलता नहीं हो सकती, आप बहुत बड़ा योगदान दे रहे होंगे। एक बात का ध्यान रखें, अपने शिक्षकों का सम्मान करें, अपने माता-पिता का सम्मान करे और एक संकल्प जो आप समाज को वापस देंगे। मैं लंबे समय से एक विचार का समर्थन कर रहा हूं, भूतपूर्व छात्र किसी संस्था की ताकत होते हैं, भूतपूर्व छात्र संघों का एक परिसंघ होना चाहिए, जो राष्ट्र के विकास के लिए सबसे अधिक समृद्ध थिंक टैंक साबित होंगे।
आप सभी को शुभकामनाएं, आपका भविष्य मंगलमय हो, अच्छा हो। बिना टेंशन, दबाव और असफलता के भय से मुक्त होकर खुश रहिये। जो भी आइडिया आए, उसे निष्पादित करने की कोशिश करें, क्या पहली बार आदमी चांद पर गया और सफल हुआ? नहीं हुआ, वह सफल हुआ, जब 20 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर लैंड किया, उसके पहले भी प्रयास हुए थे, आज इसरो में जो प्रगति हो रही है, ऐसी परिस्थिति में यह कहूंगा, लीक से हटकर सोचिए, छलांग लगाइए, नवोन्मेषी बनिये, जो ख्याति हमने प्राप्त की है दुनिया में यूनिकॉर्न्स और स्टार्ट-अप्स के अंदर, उसको विश्व की ईर्ष्या है।
मुझे यहां आने का जो अवसर मिला, मैं उसे अपना परम भाग्य मानता हूं यह दिन मुझे सदैव याद रहेगा।
आज, मैं स्वयं को आप सभी के साथ हृदय से जुड़ा हुआ महसूस कर रहा हूं जिसे मैं अपनी निर्माण-प्रक्रिया में आजीवन महसूस करता रहूँगा ।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!