4 अगस्त, 2023 को नागपुर, महाराष्ट्र में राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का संबोधन (अंश)

नागपुर, महाराष्ट्र | अगस्त 4, 2023

यहां उपस्थित सभी लोगों को मेरा नमस्कार!

इससे पहले कि मैं राष्ट्रवाद के केंद्र नागपुर पर विचार व्यक्त करूं, मुझे आपको यह अवश्य बताना चाहिए कि नागपुर की प्रत्येक यात्रा प्रेरणादायक, अभिप्रेरक और स्फूर्तिदायक रही है तथा यह यात्रा अद्वितीय और अलग है। मुझे यह अवसर उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री नितिन गडकरी जी का आभारी हूं।

मुझे बताया गया है कि नागपुर को संतरे के लिए जाना जाता है और यह बाघों के लिए भी जाना जाता है। दो बाघ यहां मंच पर मौजूद हैं। उनके मेरूदंड की ताकत सभी ने देखी है। लेकिन एक शेर राज्यसभा में मेरा काम मुश्किल कर देता है। जब वे किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़े होते हैं, तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाता हूं। सभा का प्रत्येक सदस्य प्रश्न पूछना चाहता है, शिकायतकर्ता के रूप में नहीं बल्कि आशा-आकांक्षा के साथ; ऐसा कल हुआ। एक कार्यशील व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति जो क्रियान्वयन में विश्वास करता है। सौभाग्य से, नागपुर की मेरी अब तक की सभी यात्राएँ गडकरी जी के साथ हुई है और इनमें उनकी मुख्य भूमिका रही है।

माननीय श्री. रमेश बैस जी, मेरी और उनमें एक बात समान है, वह 1989 में पहली बार संसद के लिए चुने गए थे, उसी वर्ष मैं भी संसद के लिए चुना गया था। मैं सत्तारूढ़ व्यवस्था का हिस्सा था और एक केंद्रीय मंत्री था। वे 2019 तक संसद सदस्य बने रहे, संसद में उनके वर्षों की संख्या मेरे द्वारा संसद में बिताए गए महीनों की संख्या से दोगुनी है। रमेश जी और मैं एक साथ एक समय में राज्यपाल रहे हैं। वह बेहद प्रतिभाशाली हैं और अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

माननीय राज्यपाल ने मुझसे कहा कि यह देखना उनका मिशन है कि बाहरी दुनिया के साथ भी अधिक-से-अधिक संपर्क हो। इस संबंध में, नितिन जी ने मुझसे कहा कि मैं भारतीय वैश्विक परिषद (आईसीडब्ल्यूए) का अध्यक्ष हूं और हमें एक महीने के भीतर इस विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करना चाहिए। नितिन जी कम समय चाहते थे, लेकिन समस्या यह थी कि आईसीडब्ल्यूए के निदेशक विदेश में हैं। नितिन गडकरी जी को देश और विदेश में उनकी योग्यताओं, उपलब्धियों, हमारे भूदृश्य को बदलने, आशा पैदा करने, रोजगार और सबसे महत्वपूर्ण नवाचार के साथ बाधाओं पर काबू पाने के लिए ही जाना जाता है। आपने गुरु फिल्म तो देखी ही होगी, जब महान उद्योगपति को पांच मिनट का समय दिया गया, तो उन्होंने साढ़े चार मिनट में ही समाप्त कर दिया और कहा कि जो आधा मिनट बचा है यही फायदा है। नितिन जी की वजह से जहां भी देश में सड़कों पर जाते हैं...समय बचता है, वही फायदा है।

दोस्तों, मैं हमेशा टॉपर रहा, उस समय हमारे पास पोल्सन बटर था, इसलिए जब भी मैं अपने शिक्षकों के साथ होता था, तो पीछे से कुछ छात्र पोल्सन...पोलसन बोलते थे, क्योंकि छात्र को अध्यापक के पक्ष में रहना होता था।

मुझे माननीय न्यायमूर्ति विकास बुधवर जी का अभिनंदन और सलाम करना चाहिए, मुझे एक बार उनके सामने उपस्थित होने का अवसर मिला, जो यादगार है। एकदम स्पष्ट बोलने वाले व्यक्ति हैं। मैं एक गांव से आता हूं, जो लोग सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं वे तुरंत अपनी उपस्थिति महसूस नहीं कराते हैं लेकिन पेशे में, मैं बेहद भाग्यशाली रहा हूं, मुझे अपने 11 वर्षों के प्रैक्टिस में वरिष्ठ अधिवक्ता मनोनीत किया गया था, 34 वर्ष के उम्र में बार काउंसिल में उच्च न्यायालय बार का नेतृत्व किया था। मैं एक दिन में केवल एक ही मामले में उपस्थित होता था। मैं अदालत में उस 3 मिनट को कभी नहीं भूल सकता जब विद्वान न्यायाधीश ने कहा, "आपके पास केवल तीन मिनट हैं", मैंने कहा, "माई लॉर्ड, केवल 2 मिनट"। और ध्यान दें कि ग्राफ इतना प्रभावशाली था कि दूसरों के पास कोई जवाब नहीं था, उनको मेरा सलाम।

इस ऐतिहासिक अवसर पर इस महती सभा के माननीय सदस्यों, मैं आपको बता सकता हूं कि यह मेरे लिए एक आनंददायक क्षण है। ऐसा पल जिसे मैं संजो कर रखूंगा। मैं एक ऐसे शैक्षणिक संस्थान से जुड़कर सम्मानित और विशिष्ट महसूस कर रहा हूं, जिसके पूर्व छात्रों ने राष्ट्र को गौरवान्वित किया है और जन कल्याण के लिए बड़े पैमाने पर योगदान दिया है।

इस सभा के माननीय सदस्यों, मैं पिछले वक्ताओं से सहमत हूँ कि रूपांतरणकारी परिवर्तन केवल शिक्षा द्वारा ही लाया जाता है। यह शिक्षा ही है जो परिवर्तन ला सकती है, विश्वविद्यालय उत्कृष्ट विचारों और आदर्शों की जीवंत संस्थाएं हैं। वे हमारी प्रगति और उपलब्धियों में सदैव जीवित रहते हैं। हमारे देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जिन्होंने भारत को विश्व गुरु बनाया है। ये संस्थाएं हमारी सामूहिक राष्ट्रीय स्मृतियों में शाश्वत हैं।

मैं जानता हूं कि वर्तमान सरकार कई पहल कर रही है और कई नीतियां बनाई हैं जो आपके आदर्शों, आकांक्षाओं और सपनों को प्राप्त करने के लिए आपकी प्रतिभा, क्षमता और ऊर्जा का पूरी तरह से उपयोग करने का मौका देती हैं। मंा इस मंच से बोलूंगा कि अब समय आ गया है कि विशेष तौर पर हमारे उद्योग हमारी संस्थाओं को पोषित करें। जब उद्योग जगत के नेता देश के बाहर के विश्वविद्यालयों को बड़ी रकम देते हैं तो मुझे थोड़ी चिंता होती है। हमें अपने राष्ट्रवाद में विश्वास करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी पहली प्राथमिकता हमारा राष्ट्र, हमारी राष्ट्रवाद, हमारी संस्थाएं हों।

जरा कल्पना करें कि हमारे देश में कोई है, जिसे नोबेल पुरस्कार दिया जाता है और हम सरकार से एक विदेशी विश्वविद्यालय को 5 मिलियन अमरीकी डालर देते हैं। कल्पना कीजिए कि इस देश का एक बड़ा घराना किसी विदेशी विश्वविद्यालय को 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर देता है। मैं जानता हूं कि उनके इरादे गलत नहीं हैं, वे उचित तरीके से काम कर रहे हैं; लेकिन अब समय आ गया है जब हमें अपनी संस्थाओं को पोषित करने के लिए सब कुछ करना होगा। इसी देश में हमारे पास तक्षशिला, नालन्दा होंगे। दुनिया में कहीं भी आपको ऐसी फैकल्टी नहीं मिलेगी जैसी हमारे देश में है। यदि आप पूरी दुनिया में जाएं, तो आप पाएंगे कि शीर्ष कॉर्पोरेट घरानों में उनके शीर्ष स्तर पर भारतीय लोग हैं।

ऐसी स्थिति में, मैं संकाय और मेरे युवा मित्रों, बालकों और बालिकाओं को विचार करने हेतु दो महत्वपूर्ण सुझाव दूंगा। एक, राजकोषीय कारणों से आर्थिक राष्ट्रवाद पर समझौता नहीं किया जा सकता। इस देश में यह बहुत गंभीर मामला है, क्या दिया, कैंडल, पतंग, फर्नीचर, ऐसी चीज़ें बाहर की आएंगी? क्या हम उनको आयात करेंगे क्योंकि वह सस्ती हैं? व्यापार, उद्योग और व्यवसाय को इसके प्रति बेहद संवेदनशील होना होगा। इससे हमारे देश को काफी मदद मिलेगी। यह केवल नागरिकों द्वारा स्वयं को जागरूक बनाने से ही हासिल किया जा सकता है। यह प्रयास आपमें से हर एक को करना चाहिए। और दूसरा, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। किसी को ऊर्जा, गैस, पेट्रोल या पानी का उपयोग करने का अधिकार केवल इसलिए नहीं है क्योंकि वह इसे वहन कर सकता है। आपकी जेब यह तय नहीं कर सकती कि आपको कितना उपयोग करना है। प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना होगा। यह हमारा बाध्यकारी कर्तव्य है।

मैं आपको बता दूं मित्रों, मैं किसी कारण से गडकरी जी का प्रशंसक हूं: वे नवाचार और लीक से हटकर समाधान ढूंढते हैं, यही कारण है कि आप पाएंगे कि सड़कों में उन्होंने ऐसी सामग्री के उपयोग का आरंभ किया है जो अन्यथा हमारे विकास के इतिहास में हमारे लिए बड़ी समस्याएं पैदा कर रही थीं।

उस समय को देखें जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, उन चुनौतियों को देखें जो उस समय थीं और 100 वर्षों की यात्रा निश्चित रूप से सबसे यादगार, हमारी आकांक्षाओं को साकार करने वाली, हमें हर पल गौरवान्वित करने वाली यात्रा है। मैं सभी पूर्व कुलपतियों, वर्तमान टीम और पूर्व छात्रों को बधाई देता हूं।

एक विचार जिसे मैं लंबे समय से मानता रहा हूं, हमारे संस्थानों के पूर्व छात्र स्वाभाविक थिंक-टैंक हैं, वे राष्ट्र के विकास में बड़े पैमाने पर योगदान दे सकते हैं। वे नीति निर्माण में योगदान दे सकते हैं। इसलिए, मैंने शिक्षाविदों और संस्थानों के शीर्ष पर बैठे लोगों को सोचने के लिए एक विचार दिया है। हम पूर्व छात्रों के संघों का एक महासंघ बनाएं, यदि एक संरचित निकाय हो जिसमें आपके, आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों के पूर्व छात्र हों, और जब वे एक बिंदु पर जुटते हैं, तो दो परिणाम होंगे, एक, वे सरकारी नीतियों में बड़े पैमाने पर मदद करेंगे। दूसरा, उन्हें समाज की संरचना करने और समाज को वापस लौटाने और अपने मातृ संस्था को वापस लौटाने का अवसर मिलेगा। यदि वे मातृ संस्था को वित्तीय सहायता देते हैं, मातृ संस्था के छात्रों के लिए रास्ते उपलब्ध कराते हैं, तो वे सामाजिक उत्थान में योगदान देंगे जो एक महान राष्ट्रीय सेवा होगी।

मित्रों, तीन दशक से भी अधिक समय के बाद देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई, यह परिवर्तन लाने वाला है, इसमें हमारे सभ्यतागत लोकाचार को ध्यान में रखा गया है। इसने शिक्षा के उस हिस्से को कम कर दिया है जो छात्रों को शिक्षा से दूर कर रहा था, यह कौशल और अभिवृत्ति उन्मुख हो गया है। यह आपको लचीलेपन की अनुमति देता है। इस नीति के विकास में सभी हितधारकों के विचार लिए गए थे। उस समय पश्चिमी बंगाल राज्य का राज्यपाल होने के नाते इसे मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। इस नीति के परिणाम पहले से ही दिख रहे हैं। इस मंच से मैं कुछ राज्यों से अपील करता हूं: ऐसे कारणों से जिन्हें तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता, जिन्होंने सक्रियतापूर्ण कदम उठाने और छात्रों के प्रति अन्याय को समाप्त करने हेतु इस नीति को अपनाया नहीं है। कृपया राष्ट्रीय शिक्षा नीति को तुरंत अपनाएं।

मैं अपने युवा छात्रों से कहता हूं, जब मैं छात्र था, तो कठिनाइयां थीं, उस समय बहुत मुश्किलें थीं, जब आप किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज से पढ़कर बड़ी दुनिया में छलांग लगाएंगे, तो आपके पास संसाधनों की कमी नहीं होगी। मैं एक वकील के रूप में दर्ज था और अपनी स्वयं का पुस्तकालय बनाने के लिए 6000 रुपये चाहता था। मुझे अभी भी एक राष्ट्रीयकृत बैंक का बैंक मैनेजर अच्छी तरह याद है, जिसने मुझे बिना सिक्योरिटी के लोन दिया था। देखिए अब कितना बड़ा बदलाव हुआ है। पैसे के लिए गहन सोच विचार की जरूरत नहीं है; आपके मन में एक विचार होना चाहिए; आपको लीक से हटकर सोचना होगा। आपको पहल करनी होगी और इसीलिए भारत इस बात पर गर्व कर सकता है कि हमारे पास कितने स्टार्टअप हैं, हमारे पास कितनी यूनिकॉर्न हैं; हमारी इन उपलब्धियों के लिए दुनिया हमसे ईर्ष्या करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में देश ने जो ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं, उससे दुनिया दंग है। मैं आपको तीन उदाहरण दूंगा। 2022 में, हमारे देश में 150 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का डिजिटल हस्तांतरण हुआ था जो वैश्विक लेनदेन का 46% था। ये हस्तांतरण अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में डिजिटल तंत्र द्वारा किए गए संयुक्त हस्तांतरण से चार गुना अधिक हैं। क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं? उस हद तक हमारी उपलब्धि देखिए- चार गुना!

भारतीय दिमाग प्रतिभाशाली है। भले ही कोई शिक्षा न हो, हम सीखने में तेज हैं और यही कारण है कि हमारे पास 850 मिलियन स्मार्टफोन धारक हैं और 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट प्रयोक्ता हैं। इंटरनेट पर प्रति व्यक्ति डेटा खपत को देखें। 2022 में, हमारे नागरिकों द्वारा इंटरनेट की प्रति व्यक्ति डेटा खपत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों की संयुक्त खपत की तुलना में अधिक थी। यह एक बड़ी उपलब्धि है।

हमें गर्व करना चाहिए और दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहिए। जब विश्व की आर्थिक स्थिति की बात आती है, तो ठीक एक दशक पहले हम दोहरे अंक में थे। हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि हम कहां होंगे। लेकिन सितंबर 2022 में एक सुखद क्षण आया, एक ऐतिहासिक क्षण आया। भारत पृथ्वी पर पांचवां सबसे बड़ा वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया और क्या उपलब्धि रही! इस प्रक्रिया में, हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासकों, ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया और किसी को भी संदेह नहीं है कि दशक के अंत तक, भारत तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक अर्थव्यवस्था होगा।

यहां उपस्थित श्रोतागण, हममें से कुछ लोग 2047 में मौजूद नहीं होंगे जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएगा, लेकिन आप इसके शीर्ष पर होंगे। मेरे युवा मित्रों, बालकों और बालिकाओं, आप 2047 के भारत के योद्धा हैं!

आप परिवर्तन लाएँगे। आप यह सुनिश्चित करेंगे कि उस समय भारत विश्व गुरु होगा और हम दुनिया की नंबर एक अर्थव्यवस्था होंगे। और क्यों नहीं? हमारा अतीत इसका प्रमाण है। संस्थाओं को देखें-नालंदा, तक्षशिला, अर्थव्यवस्था में हमारी वैश्विक भागीदारी को देखें। फिर हमारी अर्थव्यवस्था को देखिए, यह दुनिया का केंद्र था और हम नंबर एक थे। ऐसा अवश्य होगा। और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है।

मेरी चिंता को व्यक्त करने के लिए नागपुर से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है और मेरी चिंता यह है कि क्या हम किसी को भी - अस्थिर, तर्कहीन, बिना आधार के - हमारे संवैधानिक संस्थाओं को कलंकित करने, धूमिल करने, अपमानित करने, नीचा दिखाने की अनुमति दे सकते हैं? जब पूरी दुनिया भारत को पसंद करती है, और आईएमएफ स्पष्ट शब्दों में यह संकेत देता है कि इंडिया या भारत निवेश और अवसर का पसंदीदा स्थान है? हममें से कुछ लोग मेहनत के प्रतिफल को बर्बाद करना चाहते हैं। हममें से कुछ लोग दूसरा दृष्टिकोण देना चाहते हैं।

मित्रों, अब समय आ गया है जब हमें भारत-विरोधी आख्यानों को निष्प्रभावी करने के लिए व्यक्तिगत रूप से सब कुछ करना होगा। और आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? भारत की कभी भी उस तरह की वैश्विक प्रतिष्ठा, ख्याति और स्थिति नहीं थी जैसी अब है। इतिहास में पहले कभी किसी भारतीय प्रधान मंत्री को इतना सम्मान नहीं मिला जितना श्री नरेंद्र मोदी को मिला है। उनकी अमेरिकी यात्रा का ही उदाहरण लें, जब वे वहां व्यवस्थापिका सभा - कांग्रेस और सीनेट - को संबोधित कर रहे थे, तो उन्होंने दो बातें कहीं, अर्थात् आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जब उन्होंने अगली बात कही, अमेरिका और भारत, तो वहां मौजूद पूरी सभा ने अनायास ही उनका अभिनंदन किया, क्योंकि यही यह स्थिति है। दोनों देश लोकतंत्र हैं। हम लोकतंत्र की जननी हैं। हम सबसे पुराने लोकतंत्र हैं। दुनिया के किसी भी देश में भारत जैसा संवैधानिक रूप से संरचित लोकतंत्र नहीं है। हमारा संविधान ग्राम स्तर पर, पंचायत स्तर पर, जिला परिषद स्तर पर लोकतंत्र की व्यवस्था करता है। हमारे देश में अब लोकतांत्रिक मूल्य पुष्पित और पल्लवित होते हैं। परंतु मैंने आपके विचारार्थ एक विचार रखा है। हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। हर किसी को कानून के अधीन रहना होगा। आप किसी भी कुल या परिवार से हों, किसी भी कद के हों, कानून को अपना काम करना होगा। लेकिन आश्चर्य की बात है कि जब कानून अपना काम करता है तो लोग सड़कों पर उतर आते हैं। क्या इसका समर्थन किया जा सकता है? क्या इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है?

यदि किसी के साथ कानून के अनुसार व्यवहार किया जा रहा है, तो एकमात्र साधन हमारे देश की मजबूत न्यायिक प्रणाली का लाभ उठाना है। हमारी मजबूत न्यायिक प्रणाली बिल्कुल स्वतंत्र है। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता। इसलिए मैं आप सभी से, विशेष रूप से अपने युवा मित्रों से, एक ऐसा पारितंत्र बनाने की अपील करता हूं जहां इस प्रकार की प्रवृत्तियों से निपटा जाए और उन्हें बेअसर किया जाए। ये राष्ट्रहित में नहीं हैं।

मित्रों, अभी जो हम चारों ओर देख रहे हैं, उसे हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। हमने कभी नहीं सोचा था। यह हमारी कल्पना से परे था। माननीय राज्यपाल और मैं 1989 में संसद सदस्य थे। हमारे हाथ में एक शक्ति थी, 50 गैस कनेक्शन और वह 50 गैस कनेक्शन हमारी शक्ति थी। हम एक साल में, जिसे चाहें, 50 गैस कनेक्शन दे सकते थे। आज की जमीनी हकीकत की कल्पना कीजिए। 170 मिलियन गैस कनेक्शन जरूरतमंद परिवारों को दिए जाते हैं और सभी के पास यह है। एक बड़ा परिवर्तन हुआ है।

आपको बता दूं कि कोविड से इस देश में प्रधानमंत्री के सबसे कल्पनाशील तंत्र द्वारा निपटा गया। हमारे जैसे विशाल और विविधता से भरे देश में, जहां सभी राजनीतिक दलों के विचार अलग-अलग हैं, प्रधानमंत्री जनता कर्फ्यू की शुरुआत करने का विचार लेकर आए। जनता के कर्फ्यू ने कमाल कर दिया और इस जनता के कर्फ्यू ने ऐसी भावना जागृत की कि इस वैश्विक महामारी का अर्थात् भेदभाव रहित है, इसने अमीर, गरीब, विकसित राष्ट्र, विकासशील राष्ट्र किसी को भी नहीं छोड़ा और वहां हमने क्या नायाब तरीका निकाला और कहने को हम हमारी सांस्कृतिक विरासत पर विश्वास नहीं करते, ये जमीनी हकीकत है, कोविड के दौरान जहां एक ओर भारत की जनता को वैक्सीन दिया जा रहा था, हमारे देश ने इस परंपरा को निभाते हुए पड़ोसी देशों को, जरूरतमंद देशों को, वैक्सीन मैत्री के माध्यम से कोवैक्सीन दी। और जो अनेक देशों के नेता मुझसे मिलते हैं, अपना आभार प्रकट करते हैं कि ऐसे मौके पर आपने मदद की जिसको हम कभी भूल नहीं सकते।

मैं अपने युवा मित्रों से कहूंगा कि वे कभी भी डर से न डरें। कभी भी दबाव एवं तनाव में न रहें। डर का डर इंसान के लिए सबसे बड़ी खामी है। पहले प्रयास में आज तक कोई भी सफल नहीं हुआ है। अधिकांश ऐतिहासिक उपलब्धियाँ, वैज्ञानिक खोजें, आविष्कार अनेक प्रयासों के बाद हुए हैं। इसलिए, अपनी प्रतिभा का पूरा उपयोग करें। निर्णय करने में पूरा समय लें और समझने में शीघ्रता करें। इन दिनों हममें असहिष्णुता का जो स्तर है, हम सुनने को तैयार ही नहीं हैं। हम दूसरे के दृष्टिकोण पर विचार करने के लिए तैयार नहीं हैं। हम दूसरे दृष्टिकोण के प्रति बहुत असहिष्णु हैं। मैं अपने युवा मित्रों से अपील करता हूं कि ऐसा दृष्टिकोण बिल्कुल न रखें। उन लोगों के साथ खुले विचार रखें जो आपसे असहमत हैं। जिस क्षण आप उनके रुख की सराहना करेंगे, आप बुद्धिमान हो जायेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि आपका रूख गलत है, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको उनके रूख से सहमत होना होगा। सत्य सबसे महत्वपूर्ण है लेकिन सत्य की वास्तविक खोज उन लोगों से जुड़ना है जो आपके सोचने के तरीके से नहीं सोचते हैं और तभी जाकर ये अमृत निकलेगा, यदि हमने हमारी बात को जिद बना लिया, असहमति को विरोध बना लिया, हमने प्रजातांत्रिक मूल्यों को तिलांजलि दे दी, तो मैं स्वयं के समक्ष एक प्रश्न रखता हूं कि पार्लियामेंट का क्या मतलब है, पार्लियामेंट का मतलब है कि देश भर के प्रतिनिधि वहां आते हैं, हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनका दायित्व है कि वाद-विवाद, वार्तालाप, विचार-विमर्श में शामिल होना है, न कि विघ्न डालना और व्यवधान उत्पन्न करना और इसका उपाय आपलोगों के पास है, वो बात कभी आगे नहीं बढ़ सकती जिसको जन समर्थन नहीं मिलता है, आप से आह्वान करूंगा कि जन आंदोलन बनाइए, उदाहरण हमारे सामने है, संविधान सभा जिन्होंने हमें यह संविधान दिया तीन साल तक वह चली, एक बार भी हल्ला नहीं हुआ, प्लेकार्ड नहीं दिखाए, वेल में नहीं आए, शालीनता से काम हुआ।और यह कभी न भूलें कि संविधान सभा को अविश्वसनीय रूप से कठिन, विभाजनकारी और विवादास्पद मुद्दों का सामना करना पड़ा। परंतु उन्होंने तालमेल, समन्वय और सहयोग की भावना से इसे सुलझा लिया। अब वह गायब है। लोकतंत्र के मंदिरों को वस्तुतः तहस-नहस कर दिया गया है और मुझे इससे भी बड़ा ख़तरा दिखता है कि यदि लोकतंत्र के मंदिर- राज्य सभा, लोक सभा और राज्य विधानमंडल, यदि वे चर्चा, वाद-विवाद, संवाद के मंच नहीं बनेंगे, तो यह जगह ख़ाली नहीं रह सकता, इस पर दूसरों का कब्ज़ा हो जाएगा। और वे ताकतें प्रतिनिधिक नहीं होंगी। वे ताकतें जवाबदेह नहीं होंगी। वे वैसी ताकतें नहीं हैं जिन्होंने संविधान को बनाए रखने की शपथ ली है। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए आप सभी को व्यक्तिगत रूप से खुद को सक्रिय करने का मैं आग्रह करता हूं कि ऐसा संदेश जाए कि जिस कार्य के लिए जनता का पैसा खर्च हो रहा है और जिस कार्य को करने हेतु संविधान द्वारा हम बाध्य हैं उस कार्य में हमें लगे रहने की आवश्यकता है। मुझे यकीन है कि उस दिशा में सभी कदम उठाये जायेंगे।

मैं एक किसान परिवार से हूं। आपके माननीय प्रधानमंत्री ने ठीक ही मुझे किसान पुत्र कहा, जिसका तात्पर्य यह है कि मैं सक्रिय रूप से किसान नहीं हूं, लेकिन मेरा परिवार किसान है। मेरे लिए कितने गर्व का क्षण है कि 110 मिलियन किसानों को सीधे उनके खाते में पैसा मिलता है। अब तक यह राशि 2,25,000 करोड़ रुपये रही है। मैं इस राशि पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा हूँ। मैं सरकार नहीं हूं, मैं किसान हूं और किसान समावेशी बैंकिंग तंत्र के कारण उस राशि को प्राप्त करने के लिए तकनीकी रूप से तैयार है और इसीलिए यह महान क्रांति हुई है। अभी क्या हो रहा है? एक समय था जब सत्ता के गलियारे सत्ता के दलालों, बिचौलियों से भरे हुए थे। ऐसे लोग होंगे जो विधिवाह्य जाकर निर्णय लेने का अतिरिक्त लाभ उठाते होंगे। वे यह निर्धारित करते होंगे कि कोई विशेष नीति कैसे तैयार की जाएगी। हम सभी जानते हैं कि सत्ता के इन गलियारों को पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त कर दिया गया है। दुर्भाग्यवश, सत्ता के दलाल की संस्था अब उनके लिए अस्तित्व में नहीं है और सौभाग्य से राष्ट्र के लिए यह विलुप्त हो चुकी है।

भ्रष्टाचार आम आदमी के लिए सबसे बड़ा अन्याय है। हमें भ्रष्टाचार से समझौते की कोई आवश्यकता नहीं है और यह दिखाई दे रहा है। लेकिन भ्रष्टाचारी एकजुट हो गये हैं। वे भागने के रास्ते ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। वे आंदोलन का रुख भी अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करना आम आदमी जो लोकतंत्र और राष्ट्र के विकास में सबसे बड़ा हितधारक है, का उत्तरदायित्व है कि यह प्रणाली जो विकसित हुई है, वह न केवल स्थिर हो जाए बल्कि एक अलग तरह के रास्ते पर चले जिससे हमारे राष्ट्र को व्यापक रूप से सहायता मिले।

मित्रों, मैं आपके सामने एक विचार रख रहा हूँ जो डॉ. बी.आर. अम्बेडकर से आया है और यह विशेष रूप से मेरे युवा मित्रों, बालकों और बालिकाओं के लिए है:

''जो मनुष्य को योग्य नहीं बनाती, समानता और नैतिकता नहीं सिखाती, वह सच्ची शिक्षा नहीं है। सच्ची शिक्षा समाज में मानवता की रक्षा करती है, आजीविका का सहारा बनती है, मनुष्य को ज्ञान और समानता का पाठ पढ़ाती है। सच्ची शिक्षा समाज में जीवन का निर्माण करती है।”

मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप गंभीरता से सोचें, खूब पढ़ें, लगातार अनुकूलन करें और अपनी-अपनी यात्राओं पर आगे बढ़ते हुए अपने क्षितिज का लगातार विस्तार करें।

अपने शिक्षकों का सम्मान करें, अपने परिवार के सदस्यों का सम्मान करें। एक अच्छे नागरिक बनें। हमेशा राष्ट्र को पहले रखें। राष्ट्र को प्रथम रखना वैकल्पिक नहीं है, यह अनिवार्य है, यही एकमात्र रास्ता है।

जय भारत!

धन्यवाद!