• वास्तव में, यह एक बड़ा आयोजन है। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इसे अमृत काल में आयोजित किया जा रहा है।
• यह विशेष रूप से उचित और संतुष्टिदायक है कि हमारे वास्तविक नायकों पर ऐसे समय में ध्यान दिया जा रहा है जब भारत अभूतपूर्व रूप से आगे बढ़ रहा है और यह वृद्धि निर्बाध है, जिसे अर्पूव वैश्विक मान्यता और सम्मान हासिल हो रहा है।
• अपने नायकों के प्रति सम्मान के तौर पर, आइए हम अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करने और सदैव गौरवमयी भारतीय होने का संकल्प लें।
• हमेशा राष्ट्र को पहले रखें। कोई भी हित, व्यवसाय या अन्य चीज राष्ट्रीय हित से ऊपर नहीं हो सकती।
• कॉफी टेबल बुक का थीम "वॉयस ऑफ इंडिया-मोदी एंड हिज ट्रांसफॉर्मेटिव मन की बात" जिसका कुछ समय पहले अनावरण किया गया, बहुत ही उपयुक्त है।
• ईमानदार संवाद और जनता के साथ सहज जुड़ाव होने के कारण मन की बात ने एक तरह से लोगों की कल्पना को पूरी तरह से प्रभावित किया है।
• मीडिया से मेरी अपील है कि कॉफी बुक की विषयवस्तु का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए और वास्तविक भारत की सफलता की उन कहानियों को उजागर किया जाए, जो हमारी युगों पुरानी मूल्य प्रणाली 'वसुधैव कुटुंबकम' को अनुकरणीय बनाती हैं।
• मित्रों आज हमारे पास दुनिया का सर्वाधिक प्रकार्यात्मक लोकतंत्र है। हम सबसे बड़ा लोकतंत्र और लोकतंत्र की जननी हैं। हमारी संवैधानिक संस्थाएं मूल रूप में मजबूत और स्वतंत्र हैं। हमें न्याय व्यवस्था पर गर्व है।
• इस पहलु पर हमें शिक्षा देने के लिए दुनिया में किसी के पास वैधता या प्रामाणिकता नहीं है। जो लोग इस कार्य में लगे हैं उन्हें अपने भीतर झांकने और अपने विचारों पर दोबारा गौर करने की जरूरत है।
• यह दुःखद है कि हममें से कुछ लोग हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम और कलंकित करने के कुटिल अभियान के विचारहीन आयोजन में लगे हुए हैं।
• हम ऐसी आंतरिक और बाहरी कुटिल ताकतों को देख रहे हैं जो हमारे विकास-पथ को दूषित और विकृत करने; हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम और कलंकित करने तथा हमारी सफलता को धूमिल करने के हानिकारक एजेंडे के साथ कार्य कर रही हैं।
• आपको दुनिया में ऐसी समतुल्यता नहीं मिलेगी जहां कि सत्ता के पदों पर बैठे लोग अपने ही देश को नीचा दिखाने के लिए दूसरे देशों में जाएं। इस पर हम सभी को चिंतन करने की जरूरत है।
• हम सभी को देश के भीतर और बाहर सक्रिय सुनियोजित वैश्विक तंत्र द्वारा भारत की अखंडता के विरुद्ध चलाए जा रहे आभासी गहन युद्ध के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है।
• यह देखा जा सकता है कि हमारे विकास को बाधित करने के उद्देश्य से कैसे एक पूरा पारितंत्र लगा हुआ है। राष्ट्र राज्य के रूप में भारत की वैधता पर हमला करते हुए, संसद सहित इसकी संवैधानिक संस्थाएं देश के बाहर कुछ लोगों के लिए पसंदीदा मनोरंजन हो रहे है।
• भारत के मूल्यों, अखंडता और इसकी संस्थाओं पर तीव्र हमला सुव्यवस्थित इन्क्यूबेटरों से हो रहा है।
• मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा लेकिन आपका ध्यान आकर्षित करूंगा - 'आइवी लीग' विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया अध्ययन को देखें। इसका वित्तपोषण हमारे अरबपतियों द्वारा किया जा रहा है, यहां तक कि 2008 में सरकार ने भी इसे वित्त उपलब्ध कराया गया। लेकिन हमारे राष्ट्र के संबंध में और हमारे पड़ोसी राष्ट्र के संबंध में उनकी गतिविधियों को देखें। यह सोचने का विषय है कि क्या हमें उनका वित्तपोषण करना चाहिए जिनका एजेंडा बिना सोचे समझे इस राष्ट्र को नीचा दिखाना है?
• वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के आविर्भाव का विरोध करने के लिए एक पारितंत्र तैयार किया जा रहा है। जमीनी हकीकत की अनदेखी करते हुए एक राष्ट्र राज्य के रूप में भारत की वैधता और उसके संविधान पर हमला करना कुछ बाहरी संस्थाओं का पसंदीदा विषय है।
• मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा इस तरह के सुनियोजित आख्यान जोर-शोर से इस तरह प्रसारित किए जाते हैं कि गोएबल्स भी महत्वहीन हो जाते हैं।
• यह स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे असली नायकों के प्रति एक उचित श्रद्धांजलि होगी और उसके बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ अनवरत धर्मयुद्ध को कानूनी रूप से फलीभूत कर सुनिश्चित करना होगा।
• यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कानूनी रूप से दोषमुक्त धर्मयुद्ध का विरोध पक्षपातपूर्ण रुख और व्यक्तिगत सरोकारों के साथ किया जाता है। भ्रष्टाचार के मुद्दों को चुनावी चश्मे से कैसे देखा जा सकता है?
• यह हम सभी के लिए महसूस करने का समय है कि लोकतंत्र में कोई भी किसी भी आधार पर कानून से ऊपर और कानून की पहुंच से परे होने का दावा नहीं कर सकता है।
• अब समय आ गया है कि सभी लोग इस स्तर की जमीनी वास्तविकता से सामंजस्य स्थापित करें। हमेशा याद रखें, "आप कितने ही ऊँचे हो जाएं, कानून हमेशा आपसे ऊपर है"।
• न्यायिक फैसलों से उत्पन्न होने वाले मुद्दों सहित विभिन्न मुद्दों को व्यवस्थित ढंग से हल करना होगा।
• "कीटाणुओं के खिलाफ़ नारे लगाकर और तख्तियां दिखाकर मरीज की बीमारी से नहीं लड़ा जाता है।" इस बात को मैंने उस पुस्तक से चुना है जिसे मैं अभी पढ़ रहा हूँ। आइए, विमर्श करें और समस्या का निदान करें और फिर कार्य करें।
• हाल के वर्षों में, हमारे इतिहास में उपेक्षित रहे हमारे गुमनाम नायकों को उचित और सराहनीय पहचान मिली है।
• मित्रों, हाल के वर्षों में शासन प्रणाली में हुए ठोस परिवर्तनों से पारदर्शी और जवाबदेह पारितंत्र का उदय हुआ है।
• सत्ता के गलियारे, जो लंबे समय से मध्यस्थों और अवांछित लोगों के प्रभाव में थे, को अब साफ-सुथरा कर दिया गया है। एक समय यह एक लाभदायक उद्योग हुआ करता था।
• "मलाईदार पदों" की संकल्पना के प्रभावहीन होने के साथ नौकरशाही की स्थिति में भी एक बड़ा परिवर्तन परिलक्षित हुआ है।
• यह हमारे इन ज्ञात और गुमनाम नायकों के प्रति श्रद्धांजलि ही है कि क्रमिक सरकारी पहलों और नीतियों के कारण कल्याणकारी बदलाव हो रहा है जिससे नागरिक अपनी क्षमता और प्रतिभा का पूरी तरह से उपयोग करने में समर्थ हो रहे हैं।
• अवसरों के नए आयाम अब उपलब्ध हैं। यह इस पृष्ठभूमि में है कि 80,000 से अधिक स्टार्ट-अप और 100 से अधिक यूनिकॉर्न बनाने की हमारी पिछली उपलब्धियां दुनिया के लिए ईर्ष्या का विषय है।
• अन्यथा तनावग्रस्त वैश्विक परिदृश्य में भारत आज निवेश और अवसर का एक वैश्विक गंतव्य है।
• सितंबर, 2022 में हम सबके लिए गर्व का क्षण था जब भारत हमारे पूर्व औपनिवेशिक शासक ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया। इस दशक के अंत तक भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
• मित्रों, मेरा विशेष रूप से पत्रकारों और बुद्धिजीवियों से आग्रह है कि वे ऐसा वातावरण तैयार करें कि हमारे सांसद लोकतंत्र के मंदिरों में उच्च मानकों का उदाहरण प्रस्तुत करें जो बड़ी संख्या में लोगों के लिए अनुकरणीय बनें।
• लोकतंत्र के ये मंदिर, संवाद, वाद-विवाद, चर्चा और विचार-विमर्श के ये विधिसम्मत संवैधानिक रंगमंच अनेक व्यवधानों और विघ्नों से त्रस्त हैं।
• संसद में अव्यवस्था सामान्य व्यवस्था बन गई है। इससे ज्यादा चिंताजनक कुछ नहीं हो सकता।
• यह हमारे ज्ञात और गुमनाम नायकों के प्रति एक वास्तविक श्रद्धांजलि होगी कि उनके बलिदानों से हमें उपहार में मिले हमारे लोकतंत्र को विकसित और समृद्ध करने के लिए हम सब कुछ करें।
• इसे सबसे बेहतर तरीके से हासिल किया जा सकता है तथा लोकतांत्रिक मूल्यों और जनहित को इष्टतम रूप में पूरा किया जा सकता है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपने-अपने क्षेत्र में रहते हुए अपने संबंधित दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करें तथा सद्भाव, एकजुटता और तालमेल से कार्य करें।
• हमारे राष्ट्र जैसे गतिशील लोकतंत्र में ऐसा समय कदापि नहीं आएगा, जब इन संस्थाओं के बीच कोई मुद्दे न हों। मुद्दे होना लाजिमी है। सहयोगात्मक रुख अपनाते हुए इनका समाधान करने की आवश्यकता है।
• इन संस्थाओं - विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के शीर्षस्थ लोगों के बीच एक संरचित संवाद तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है ताकि मुद्दों का समाधान सम्यक् रूप से किया जा सके।
• मैं न्यायपालिका का सिपाही हूं और तीन दशकों तक वरिष्ठ अधिवक्ता रहा हूं। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के पद पर भी रहा हूं। मैं एक पल के लिए भी कैसे सोच सकता हूं कि मैं कुछ ऐसा करूंगा जिससे संस्था को नुकसान होगा? मैं इस मंच का उपयोग यह कहने के लिए करूंगा कि जो लोग संवैधानिक संस्थाओं के शीर्ष पर स्थित हैं वे सार्वजनिक क्षेत्र में संवाद न करें।
• मित्रों, मैं करोड़ों देशवासियों के साथ भारत के वास्तविक नायकों की दिल से सराहना करता हूं और उनको समर्पित इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए नेटवर्क 18 के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। हम सदैव उनके ऋणी रहेंगे।
• धन्यवाद! जय हिन्द !