सभी को नमस्ते!
हमारे सदियों पुराने लोकाचार 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का प्रतिबिंब इससे अधिक जीवंत नहीं हो सकता और यह सदा हमारे कानों में गूंजता रहेगा। यह वैश्विक संदेश के संप्रेषण का स्थल है। इस दिन मैं इससे बेहतर जगह पर उपस्थित नहीं हो सकता था। संकाय के साथ मेरी संक्षिप्त बातचीत ने ही मुझे पूरी तरह से अवगत करा दिया कि यह ज्ञान का केंद्र है। संकाय के सदस्य न केवल ज्ञान, अनुभव और प्रदर्शन में योगदान देते हैं बल्कि ऐसी उदात्तता और लालित्य भी लाते हैं जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक है और वे आपको यह सब देने के लिए यहां हैं। एक अच्छा संकाय और शिक्षक छात्रों के लिए उनकी पढ़ाई के दौरान हमेशा एक समस्या होते हैं लेकिन वे उन्हें जीवन भर याद रखते हैं। आप भाग्यशाली हैं कि आपके पास ऐसे प्रोफेसर हैं जो आपसे मेहनत कराएंगे, आपको हर पल दौड़ाएंगे लेकिन जब आप बाहरी दुनिया में एक बड़ी छलांग लगाएंगे, तो आप उन्हें हर दिन याद करेंगे।
अभी एक सप्ताह पहले युगांतरकारी घटना, एक परिवर्तनकारी कानून के रूप में हुई। मैंने कल आधी रात से थोड़ा पहले इस पर हस्ताक्षर किए क्योंकि मुझे आज नालंदा पहुंचना था। यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है, इस देश में महिलाओं को वह न्याय मिल गया है जिसके लिए वे दशकों से प्रयास कर रही थीं और उच्च सदन यानी राज्य सभा में सर्वसम्मति से और लोक सभा में केवल दो असहमतियों के साथ हुआ यह एक ऐतिहासिक विकास है। यह महिलाओं की मुक्ति नहीं है, यह महिलाओं का वास्तविक सशक्तीकरण है। यह उन्हें अपनी मौलिक ताकत दिखाने की अनुमति दे रहा है और दुनिया इस वर्ग की ताकत को जानती है। जब मैं वैश्विक नेताओं से बातचीत करता हूं, तो उनमें से अधिकांश इसी वर्ग से होती हैं और वे बहुत शक्तिशाली होती हैं।
ज्ञान के लिए, सीखने के लिए और शिक्षा के लिए, नालंदा एक अद्वितीय ब्रांड है, बेजोड़ ब्रांड है। इस क्षेत्र में दुनिया ने इससे अधिक सक्षम और शक्तिशाली ब्रांड नहीं देखा है। आपके पास नालंदा का जो इतिहास, जो विरासत है वह आपको दुनिया में अलग खड़ा करती है और लोग सिर्फ सलाम करेंगे। आपको उस विरासत को और ऊंचे स्तर पर ले जाना है।
मैं यहां नालंदा के पुनर्जन्म को देखता हूं जो हमें ज्ञान का प्रसार करने, संकाय सदस्यों को समझने, छात्रों को समझ कर उनके साथ सोच और विचार को साझा करने और एक ऐसी दुनिया बनाने हेतु प्रयास करने के लिए वैश्विक आधार प्रदान करेगा जो हर एक का निवास-स्थान बने, किसी के लिए भी निषिद्ध न हो तथा जिस पर किसी का भी प्रभाव न हो और भारत इसी के लिए जाना जाता है।
जी-20 के दौरान स्वागत क्षेत्र की पृष्ठभूमि में नालंदा 'महाविहार' की एक छवि देखी गई। इसे पूरी दुनिया ने देखा। भारत की माननीय राष्ट्रपति, एक आदिवासी महिला, अत्यधिक प्रतिष्ठित, एक नेक महिला ने जीवन को और बहुत कठिन दिनों को देखा है। मुझे उनके साथ राज्यपाल बनने का अवसर मिला। वह जमीनी हकीकत जानती हैं, वह वहां मौजूद थीं और पृष्ठभूमि नालंदा थी।
माननीय प्रधानमंत्री जो मानवता के छठे हिस्से, 1.4 बिलियन लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक ऐसे दूरदृष्टा हैं जो जुनून और मिशन के साथ कार्य करते हैं लेकिन निष्पादन में भी बहुत सटीक हैं और यही कारण है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में बड़े-बड़े विकास कार्य हो रहे हैं। नालंदा की उस पृष्ठभूमि में नेताओं का स्वागत और अभिनन्दन किया गया जो आपके ब्रांड, आपके ब्रांड की स्वीकार्यता, गैर-विवादास्पद, गैर-टकरावपूर्ण, सहयोगात्मक, सहकारी, सहमतिपूर्ण और विकास के लिए अनुकूल है।
ज्ञान शक्ति है। शिक्षा के माध्यम से प्राप्त ज्ञान सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकारी तंत्र है। यदि दुनिया को बदलना है, यदि समाज को प्रगति करनी है, यदि असमानताओं को दूर करना है, यदि न्याय को अंतिम पंक्ति में पहुंचाना है तो केवल ज्ञान ही ऐसा कर सकता है। एक बार जब आप ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, तो कार्यान्वयन कभी भी कठिन नहीं होता और यही कारण है कि ज्ञान, अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाले देशों के पास नवोन्मेष के पर्याप्त विचार हैं।
बच्चों, सौभाग्य से भारत में अब एक ऐसी पारिस्थितिकी प्रणाली का उदय हो रहा है जो आपको अपनी ऊर्जा को पूरी तरह से प्रदर्शित करने, अपनी प्रतिभा और क्षमता का दोहन करने, अपनी आकांक्षाओं और सपनों को साकार करने की सुविधा देता है। अब कोई बाधा नहीं है। मेरे दिनों में, इन वरिष्ठ लोगों के दिनों में कठिनाइयां असहनीय थीं। हमें धन और शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयां हैं, लेकिन सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ में छात्रवृत्ति के लिए मेरे पास अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं होगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक दैवीय उपहार है, लेकिन अगर ऐसी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नालंदा जैसी जगह पर मिले तो यह दैवीय उपहार से कहीं अधिक है, आप पर दायित्व भी उसी प्रकार अधिक हैं क्योंकि आपके पास मानवता की व्यापक भलाई के लिए कुछ करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। जब मैंने इस विश्वविद्यालय की वास्तुकला देखी, तो यह अपने ब्रांड की तरह ही अद्वितीय है। इसमें कई आधुनिक पहलू हैं और यह अनेक लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित करेगा।
माननीय कुलपति ने संकेत दिया था कि इस परिसर को शुद्ध ऊर्जा, शून्य उत्सर्जन और शुद्ध पानी तथा शून्य अपशिष्ट परिसर की आवश्यकता के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है; यह भारत में अपनी तरह का पहला है। अब हमें दुनिया में अपनी तरह की पहली अभिव्यक्ति का उपयोग करना होगा और भारत अब इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। मैंने अपने जीवनकाल में एक बड़ा बदलाव देखा है, मैं 1989 में भारत की संसद के लिए निर्वाचित हुआ था और मुझे यकीन है कि अधिकांश छात्र तब पैदा नहीं हुए थे और मैं केंद्रीय सरकार का सदस्य था। तब मैंने जो देखा था वह परेशान करने वाला और कष्टकारी था। इस देश भारत जिसे एक समय 'सोने की चिड़िया' के नाम से जाना जाता था, को दो बैंकों में रखने के लिए भौतिक रूप में सोना हवाई जहाज से भेजना पड़ा था, क्योंकि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 1 बिलियन अमरीकी डालर के करीब था, अब हमारे पास 600 बिलियन डालर से अधिक हैं और चिंता की कोई बात नहीं है। हम अब वहां आ गए हैं, जहां की कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
केवल 12-13 साल पहले, जैसा कि आप जानते होंगे, चूंकि आप प्रबुद्ध आत्माएं हैं, आपकी कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं, आपका दिमाग बड़ा और लीक से हटकर सोचता है। 13 साल पहले भारत 'फ्रेजाइल-फाइव' का हिस्सा था, जिसमें ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किए, इंडोनेशिया एवं भारत शामिल हैं और इस यात्रा को देखें, जिस दुर्गम इलाके को हमने पार किया है उसे देखें। एक छोटे से दशक में अब हम बिग-फाइव हैं, फ्रैजाइल-फाइव से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है और यह उपलब्धि हमारे पूर्व औपनिवेशिक शासकों यानी ग्रेट ब्रिटेन को पछाड़कर प्राप्त हुई है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि दशक के अंत तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी और इसमें कोई विवाद नहीं है।
हमारे इतिहास, विरासत और सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे नालंदा के कारण ही हमें पता चलता है कि चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्किए, श्रीलंका और दक्षिणपूर्व एशिया से यात्री यहां आए थे। यहां का सौहार्दपूर्ण वातावरण देखिए, यहां का पुस्तकालय देखिए और यहां का ज्ञान-अनुकूल वातावरण देखिए। आप इसका पुनर्स्थापन कर रहे हैं और मैं आपको बधाई देता हूं, आप इसे बहुत सफलतापूर्वक कर रहे हैं। आपकी यात्रा अंकगणितीय रूप से नहीं, ज्यामितीय रूप से वृद्धिशील होगी।
दुनिया तब उन्नति करती है जब ज्ञान और बुद्धिमत्ता का पोषण होता है, दुनिया सदगुणों, उदात्तता, सहिष्णुता, दूसरे के दृष्टिकोणों को सुनने, दूसरे दृष्टिकोण पर सवाल न उठाने पर पनपती है। किसी मुद्दे पर सहमत होना या न होना आपका विशेषाधिकार है लेकिन आप कभी यह नहीं कह सकते कि मैं दूसरे के दृष्टिकोण को नहीं सुन सकता। वैसा होने पर, शिक्षा मौलिक होती है। यह शिक्षा से ही संभव हो सकता है। शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है, शिक्षा ही ज्ञान, सहिष्णुता और अन्य मानव के प्रति सम्मान की ओर ले जाती है। शिक्षा आपके क्षितिज को व्यापक बनाती है ताकि आप किसी गांव या राज्य या राष्ट्र के बारे में न सोचकर वैश्विक स्तर पर सोचें, आप वैश्विक स्थितियों की परवाह करें।
पिछले दो वर्षों में इस देश के प्रधानमंत्री ने दो बयान दिए हैं, पहला है, "यह विस्तारवाद का युग नहीं है", एक बयान जिसका अर्थ है कि एक संप्रभु देश किसी अन्य संप्रभु देश पर भौतिक नियंत्रण नहीं कर सकता। उन्होंने उतना ही महत्वपूर्ण बयान दिया: "युद्ध कोई समाधान नहीं है, संवाद और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है", और इसकी उत्पत्ति नालंदा से है, यह उत्पत्ति आपकी संस्था से है। आप एक ऐसे तंत्र में निहित हैं जो इन बुनियादी अवधारणाओं के बारे में बात करता है।
यह एक सुखद क्षण था, हर कोई चिंता व्यक्त कर रहा था कि हो सकता है कि जी-20 घोषणापत्र में एकमतता न हो, लेकिन ऐसा था। यह वहां अंतर्निहित था और यह सबसे बड़े लोकतंत्र को मिली सबसे बड़ी उपलब्धि है।
बच्चो, मैं आपको बता दूं कि जी-20 में कई महत्वपूर्ण विशेषताएं थीं। इसकी सराहना करने के लिए आपके यहां से बेहतर कोई जगह नहीं है। शुरुआत में जी-20 में यूरोपीय संघ इसका सदस्य था। यूरोपीय संघ के देशों ने अन्य देशों को उपनिवेश बनाया था, आप यह जानते हैं लेकिन वे जी-20 में हैं। हालांकि, अफ्रीकी संघ का गठन करने वाले उपनिवेशित देश इसमें नहीं थे। भारत बहुत ही सुविचारित तरीके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में 'द अफ्रीकन यूनियन' को जी-20 का 21वां सदस्य बनवा सका। यह स्वतंत्रता के लिए, मानवाधिकारों के लिए, विश्व एकता तथा वैश्विक शांति और सद्भाव के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। दूसरी उपलब्धि को देखें, भारत मध्य-पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा जो आपके भविष्य को आकार देगा और आपको ऐसे अवसर उपलब्ध कराएगा जिनके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। यह उस समय के आसपास अस्तित्व में था जब पहले नालंदा अस्तित्व में था। यह लुप्त हो गया है, एक पुनरुद्धार हो रहा है और इस पुनरुद्धार का प्रभाव तब होगा जब भारत 2047 में स्वतंत्रता के शताब्दी समारोह में पहुंचेगा, यह अपनी आर्थिक शक्ति और विश्व-गुरु के रूप में अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर लेगा।
मित्रो, यहां के युवा लोकतंत्र के सिपाही हैं। वे भारत को दुनिया में सभी के कल्याण के लिए सही ऊंचाई पर ले जाने वाले पैदल सैनिक हैं। यह भारी जिम्मेदारी आपके कंधों पर है और इसलिए मैं आह्वान करूंगा कि कभी भी असफलता से मत डरिए, डर का डर अपने आप में बहुत खतरनाक है लेकिन विफलता के डर का मतलब है कि आप प्रयास नहीं करेंगे। यदि आप प्रयास नहीं करते हैं, तो न केवल आप अपने साथ अन्याय कर रहे हैं, बल्कि आप मानवता के साथ भी अन्याय कर रहे हैं। यदि आपके पास एक शानदार विचार है, एक महान नवोन्मेषी विचार है, तो उस विचार को अपने दिमाग में बंद करके न रखें। कोई भी अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है। कुछ असाधारण, कुछ महान, कुछ ऐसा करने के लिए जो पूरी मानवता को सही दिशा में ले जा सके, सकारात्मकता का भाव जगा सके, आपको कई बार प्रयास करना पड़ता है। इसलिए कभी भी नहीं डरिए।
दूसरा, यह वह समय है जब आपको अपने मन की बात कहनी चाहिए। ये सोशल मीडिया के दिन हैं। ऐसी कहानियां फैलाई जाती हैं जो उन लोगों के दिमाग पर हावी हो जाती हैं जो संभवतः उतने बौद्धिक नहीं होते हैं, जिनके पास संभवतः वह ज्ञान नहीं होता है। उन्हें उस कथा द्वारा मनाया जा सकता है। यह आपकी बुद्धिमत्ता है जिसे ऐसे आख्यानों को बेअसर करना है, यह इस समाज के प्रति आपका दायित्व है कि आपको ऐसे अनुचित, भयावह विचारों और आख्यानों को शुरू में ही समाप्त करने के लिए सक्रिय होना चाहिए। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि इस देश से संबंध रखने वाला कोई व्यक्ति इस दुनिया के एक कोने में कहे कि भारत में भूख की समस्या हो सकती है। कल्पना कीजिए कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में मैं इस तथ्य को जानता हूं कि 1 अप्रैल 2020 से 800 मिलियन से अधिक लोगों को चावल, गेहूं और दाल निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है; और वह अब तक जारी है। इसलिए ऐसे आख्यानों को हमें निष्क्रिय करना चाहिए। यह हमारा दायित्व है।
हमें जमीनी हकीकत से रूबरू होना होगा। आईएमएफ अध्यक्ष ने संकेत दिया कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे उज्ज्वल स्थान है, भारत निवेश और अवसर के लिए एक पसंदीदा स्थान है। आपको इस अवसर का लाभ उठाना है, आपको इसका अधिकतम लाभ उठाना है, आपको उन अवसरों को खोजना नहीं पड़ेगा जो आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा कि भारत ने छह साल में ऐसा डिजिटल तंत्र हासिल कर लिया है जो सैंतालीस साल में हासिल नहीं किया जा सका। यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा कहा जा रहा है जो इस खेल को जानता है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में दुनिया के डिजिटल लेनदेन में भारत की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत थी। संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं लेकिन हमारे यहां ये अमरीका और ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के संयुक्त लेनदेन से चार गुने अधिक हैं। क्या उपलब्धि है। इसलिए मैं प्रत्येक भारतीय से इन अभूतपूर्व विकासक्रमों पर गर्व करने का आह्वान करता हूं, ये जमीनी हकीकत हैं। इंटरनेट को देखें। आप प्रीमियम श्रेणी में हैं, लेकिन गांवों में, अर्ध-शहरी इलाकों में रहने वाले सामान्य भारतीय भी टेक्नो-सेवी हैं। और इसीलिए, जब 2022 में हमारी प्रति व्यक्ति डेटा खपत का आकलन किया गया, तो हमारी प्रति व्यक्ति डेटा खपत संयुक्त राज्य अमरीका और चीन की संयुक्त खपत से अधिक थी, यही हमारी उपलब्धि है।
चूंकि मैं प्रश्न ले रहा हूं, मैं संक्षेप में बताऊंगा लेकिन मैं कहूंगा, मैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जुड़ूंगा, यह तीन दशकों से अधिक समय के बाद आई है, जिसमें हजारों हितधारकों से राय ली गई है। यह एक गेम-चेंजर है इसने हमें डिग्री-ओरिएंटेशन से मुक्त कर दिया है। इसने कर्ज के बोझ को हमसे दूर रखा है, आप एक साथ कई पाठ्यक्रमों में भाग ले सकते हैं और यह भारत के लिए बनी है। यह इसलिए बनाई गई है ताकि भारत पुनः विश्व-गुरु का पद प्राप्त कर सके।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, भारतीय संविधान के जनक, वह प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण विचार रखे थे जिन्हें ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को जानना आवश्यक है, मैं उद्धृत करता हूं:
"जो मनुष्य को योग्य नहीं बनाती, समानता और नैतिकता नहीं सिखाती, वह सच्ची शिक्षा नहीं है, सच्ची शिक्षा समाज में मानवता की रक्षा करती है, आजीविका का सहारा बनती है, मनुष्य को समानता का पाठ पढ़ाती है, सच्ची शिक्षा समाज में जीवन का निर्माण करती है।"
मैं एक ऐसे समूह के सम्मुख हूं जिसमें इस विषय-वस्तु को आगे बढ़ाने का केंद्र बनने की क्षमता है ताकि इसका सकारात्मक अर्थों में प्रसार हो सके। मित्रो, यह सदी एशिया की है। एशिया में इस तंत्र के उद्भव में भारत को बहुत बड़ी भूमिका निभानी है और भारत की उस भूमिका को युवा मन ही निभा सकता है।
जिज्ञासु बनो, सीखना कभी बंद मत करो, भले ही आप नालंदा छोड़ दो, यह निश्चित है कि आपकी शिक्षा तब भी शुरू होती है। चूंकि मनुष्यों को वैश्विक स्तर पर व्यापक रूप से समाज में योगदान देने का कार्य सौंपा गया है, इसलिए आप कभी भी सीखना बंद नहीं कर सकते। हमेशा दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करें, इस बारे में आलोचनात्मक न बनें। मेरा अनुभव यह है कि कभी-कभी दूसरे का दृष्टिकोण ही सही दृष्टिकोण होता है। जब हम दूसरे के दृष्टिकोण के लिए अपने दिमाग को बंद कर लेते हैं, तो हम बुद्धि, मानवता और विकास के साथ अन्याय कर रहे होते हैं।
अपनी अभिरूचि और दृढ़ विश्वास का अनुसरण करें। अपनी अभिरूचि के अनुसार, अपने आंतरिक विश्वास के अनुसार चलें और तब आपकी जानकारी मुझसे अधिक होगी; माइक्रोसॉफ्ट या गूगल किसने बनाया? मैं यह नहीं कहता कि सीखना छोड़ दें, सीखना छोड़ देना अच्छी बात नहीं है, लेकिन अगर आप पढ़ाई छोड़ देते हैं, तो भी चीजें बड़ी हो जाती हैं जब लोग शिक्षा छोड़ देते हैं और अपनी योग्यता और दृढ़ विश्वास के पीछे लग जाते हैं। जैसा कि मैंने कहा, भय विकास का हत्यारा है, आपको विकास में योगदान देना होगा, इसलिए आप डरकर नहीं रह सकते।
नवोन्मेषी बनें, लीक से हटकर सोचें और एक चीज कि आसमान टूट पड़ेगा, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं, ऐतिहासिक रूप से आसमान कभी नहीं टूटा, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जहां आसमान टूटा हो, अब वह क्यों टूटेगा? इसलिए, उस डर या आघात के अधीन न रहें।
बच्चों, आपको कुछ सक्रिय कदम उठाने होंगे। अब मुझे राष्ट्रवाद की, संप्रभुता की बात करनी है। कभी भी ऐसे राजनीतिक समीकरण की उत्पत्ति, विकास या सृजन न होने दें जो अज्ञानता को बढ़ावा देता हो। कोई अज्ञानी है, हम उसे शिक्षित नहीं करते, हम प्रबुद्ध नहीं करते और हम अपना राजनीतिक साम्य बनाने के लिए उस अज्ञानता का फायदा उठाते हैं जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती और ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। आपको राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखना होगा, यह वैकल्पिक नहीं है और यही एकमात्र रास्ता है।
यह चिंतन का विषय है, मंथन का विषय है, चिंता का विषय है, कि कुछ लोग संवैधानिक संस्थाओं पर अगर यदि टिप्पणी करते हैं, राजनीतिक चश्मा पहनकर, ऐसा उनको नहीं करना चाहिए। यह आचरण हमारी सांस्कृतिक धरोहर के विपरीत है, ऐसा जो भी कर रहे हैं जाने-अनजाने में, देश का बहुत बड़ा अहित कर रहे हैं। हमारा संकल्प है, हम भारतीयता को, हमारी सांस्कृतिक धरोहर है इसका सर्जन करें और मर्यादित आचरण करें जो व्यक्ति जितने बड़े पद पर है उसका आचरण उतना ही मर्यादित होना चाहिए राजनीतिक फायदा उठाने के लिए कोई भी टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।
जब संवैधानिक संस्थाओं की बात आती है, तो मैं सभी से पूरा जिम्मेदार होने का आह्वान करता हूं। हमें केवल कुछ राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए संवैधानिक पदाधिकारियों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए, यह स्वीकार्य नहीं है लेकिन इसे कौन निष्प्रभावी कर सकता है? इसे वे लोग बेअसर कर सकते हैं जो मेरे सम्मुख उपस्थित हैं। बच्चों, मैं एक उदाहरण दूंगा और फिर अपना स्थान ग्रहण करूंगा और आपके प्रश्नों का उत्तर दूंगा।
यदि आप यहां हैं तो आपको अपनी उपस्थिति को न्यायोचित ठहराना होगा, आपको शिक्षा पर ध्यान देना होगा, आपको ज्ञान प्राप्त करना होगा, आपको अपने शिक्षकगण के साथ बातचीत करनी होगी, आपको यह सब करना होगा। मैं राज्य सभा का सभापति हूं, सदस्यों के कुछ कर्त्तव्य हैं, ये दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, मानवता के छठे हिस्से के संसद सदस्यगण हैं और उन्हें अपना अनुकरणीय आचरण प्रदर्शित करना आवश्यक है ताकि व्यापक रूप से लोगों द्वारा उनका अनुकरण किया जा सके।
आप एक संसद सदस्य से वाद-विवाद, चर्चा, संवाद, विचार-विमर्श में शामिल होने की उम्मीद करेंगे, आप उम्मीद करेंगे कि वे अपने शानदार विचारों से कानून बनाने में योगदान दें। वह चीज़ जिसकी आप सबसे अंत में अपेक्षा कर सकते हैं वह है अशांति और व्यवधान, हम इसे देख रहे हैं। जब संविधान सभा ने हमें संविधान दिया। तीन वर्षों तक वे कई सत्रों में मिले, कोई व्यवधान नहीं हुआ, केवल विचार-विमर्श हुआ। उनके पास बहुत ही गंभीर मुद्दे, विवादास्पद मुद्दे, मतवैभिन्य के मुद्दे रहे, उन्होंने संवाद, चर्चा में शामिल होकर कठिन स्थितियों में बातचीत की।
इसलिए मैं युवाओं से अपील करता हूं, आप लोकतांत्रिक शासन में सबसे बड़े हितधारक हैं, आप दुनिया के सबसे बड़े हितधारक हैं, जब शांति और व्यवस्था के लिए वैश्विक मामलों का निर्धारण हो तो आप सबसे बड़े हितधारक हैं, आप इस बात को सुनिश्चित करने में सबसे बड़े हितधारक हैं कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग उनके उपयोगकर्ताओं की आर्थिक वहनक्षमता के आधार पर नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम न्यूनतम उपयोग करना होगा क्योंकि यह एक सामूहिक उपहार है, सभी के लिए दैवीय उपहार है, न कि उन लोगों के लिए जिनकी जेबें भरी हुई हैं।
मैं आपके धैर्य के लिए आप सभी का आभारी हूं, बहुत-बहुत धन्यवाद!