आईआईटी मद्रास के निदेशक यहां के संकाय के साथ इस अमृत काल के दौरान, स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष के दौरान, उन योद्धाओं को तैयार करेंगे जो 2047 में भारत की नियति को आकार देंगे।
किसी भी संस्था के पूर्व छात्र उसका आधार स्तंभ होते हैं। संस्थाएं अपने पूर्व छात्रों, उनकी उपलब्धियों और उनके योगदान के बल पर आगे बढ़ती हैं।
आइये हम सभी संस्थाओं में पूर्व छात्रों के संरचित विकास के लिए एक तंत्र बनाएं। वे पूर्व छात्र संस्थाएं हमारे राष्ट्रवाद, हमारे आर्थिक राष्ट्रवाद और हमारे विकास पथ को दिशा दिखाएंगी।
मैं चाहता हूं कि यह महान संस्थान पूर्व छात्र परिसंघ के माध्यम से एक साथ मिलकर काम करते हुए सभी पूर्व छात्रों के लिए एक आधुनिक मंच तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाए। दुनिया ने विश्व को बेहतर तरीके से बदलने के लिए इससे अधिक मर्मज्ञ थिंक टैंक नहीं देखा होगा।
नवाचार केंद्र (इनोवेशन सेंटर) का उद्घाटन बदलती पारिस्थितिकी और उस नए प्रोफाइल को इंगित करता है, जिसका भारत बड़े पैमाने पर दुनिया को संकेत दे रहा है।
मेरे समक्ष उपस्थित यह सभा और अधिक विविध भारत और भारतीय भावना को प्रदर्शित करती है। यहां पर एक ओजपूर्ण जीवंतता और सकारात्मकता है। मैं भारत की नियति का अनुमान लगा सकता हूं और यह हमेशा आगे बढ़ता रहेगा।
मैं आपके साथ एक छोटी-सी घटना को साझा करता हूं। जब मैंने राजस्थान में अपना कानूनी व्यवसाय शुरू किया, तो एक गांव से एक स्थानीय विधि स्नातक मेरे कक्ष में चले आए। वह रिक्शा पर आए थे और अब एक बहुत ही प्रतिष्ठित वकील हैं, लेकिन संस्कृति की समृद्ध परंपरा वाले परिवार से आए थे। इस शुरूआत से पहले उन्होंने कभी कोई नगर नहीं देखा था और उस महान सफल वकील के लिए कितना सुखद क्षण है कि उनका बेटा आईआईटी मद्रास में सिविल इंजीनियरिंग के चतुर्थ सेमेस्टर का एक छात्र है; उनकी बेटी भी आईआईटी मद्रास में एम.एससी. द्वितीय सेमेस्टर की छात्रा है।
हमारे पास सकारात्मक सरकारी नीतियों का एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है जिससे अब हम अपनी डिजिटल क्षमता का पूरी तरह से फायदा उठाने में सक्षम हैं। और जिस तरह के उतार-चढ़ाव हमने अपनी पीढ़ी में झेले थे, वैसा समय अब नहीं है।
आईआईटी मद्रास एक उत्कृष्ट संस्थान है, जो देश का शीर्ष अभिनव संस्थान है। 620 एकड़ का इसका परिसर पौधों और जीव-जंतुओं की 432 प्रजातियों, तितलियों की 50 प्रजातियों का घर है और साथ ही लुप्तप्रायः काला चीता (ब्लैक पैंथर) भी इसके परिसर में देखा जाता है।
अभी एक साल पहले, जुलाई 2022 में, आपने कुछ अनोखी शुरुआत की और वह लीक से हटकर सोचा गया ऑनलाइन कोर्स था। इस देश में हमें वास्तव में अपने समाधानों के लिए लीक से हटकर सोचने की जरूरत है।
नवीन सोच हमारे डीएनए में है। हमें केवल इसे सक्रिय करना है और इस संस्थान में इसे सक्रिय किया जा रहा है। 1 मिलियन स्कूलों और कॉलेज छात्रों तक पहुंचने के लक्ष्य के साथ इस सर्वाधिक हितकर विकास के लिए यह एक अधिकेंद्र है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमें यह लक्ष्य प्राप्त होगा।
एक संदर्भ सुधा गोपाल कृष्ण मस्तिष्क केंद्र का दिया गया। यह वास्तव में मानव मस्तिष्क का मैप तैयार करने के उद्देश्य से एक महत्वाकांक्षी वैश्विक परियोजना है। मेरा फिर से कहना है कि मस्तिष्क मैपिंग मानवता के लिए व्यापक रूप से कल्याणकारी होगी।
मुझे खुशी है कि इस संस्थान ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके एक उत्पाद विकसित किया है जो इसका ज्यामितीय विकास करेगा। यह किसी व्यक्ति में जीन म्यूटेशन करने वाले कैंसर का पूर्वानुमान लगा सकता है।
हल्के-फुल्के अंदाज में कहें तो हमें ऐसा कोई आकलन नहीं करना चाहिए जो चुनावी परिणामों की ऐसी भविष्यवाणी करे जिससे लोकतंत्र की भावना कमजोर हो। ऐसा तब होता है जब कुछ एक्जिट पोल और लोग इस बारे में इधर-उधर की बातें करते हैं। ऐसी बातों को उन लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए जो चुनावी मैदान में हैं।
मैं समकालीन वैश्विक परिदृश्य को साझा करूंगा जिसमें भारत एक ऐसा उज्ज्वल सितारा है जिसे दुनिया में हर कोई पसंद करता है। विकासशील राष्ट्रों में, हमारी अर्थव्यवस्था निस्संदेह सबसे उज्ज्वल है; अन्य, कई विकसित देशों के विकास की तुलना में हमसे कई गुना अधिक विकास हासिल करने की उम्मीद है।
भारत सितंबर, 2022 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया जब हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ दिया और पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि दशक के अंत तक हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। और मेरे सामने 2047 के जो योद्धा हैं, उनकी सहायता से उस समय तक हम अपने चरम पर होंगे अन्यथा ऐसा कोई नहीं कर सकता है।
भारतोदय रुकने वाला नहीं है। यह निरंतर विकास के पथ पर आगे बढना जारी रखेगा। दक्षिण पूर्व और पश्चिम में तनावपूर्ण वैश्विक परिदृश्य के बावजूद भारत का आगे बढ़ना जारी है। हमारा भारत अवसर की भूमि है, निवेश और अवसर के लिए वैश्विक गंतव्य है।
अब भारत जब बोलता है, तो दुनिया सुनती है।
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए दो वक्तव्यों को देखिए। (क) भारत कभी भी विस्तारवाद में शामिल नहीं रहा है। और यह युग विस्तारवाद का नहीं है। (ख) युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। दुनिया की समस्याओं को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करना होगा।
रणनीतिक रूप से तैयार रहना रक्षा का सबसे अच्छा तरीका है और आर्थिक तैयारी के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है-आर्थिक राष्ट्रवाद। हमें अपने लोगों को थोड़ा विचारशील होने और आर्थिक राष्ट्रवाद पर ध्यान देने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना होगा।
दिवाली के दीये और पतंग बाहर से आने चाहिएं क्या? और पटाखे तो यहीं बन सकते हैं; (क्या हमें दिवाली के लिए मिट्टी के दीये और पतंग जैसी वस्तुओं को अन्य देशों से आयात करना चाहिए?)
मैं 1989 में संसद के लिए निर्वाचित हुआ था और मुझे केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर मिला था। इसलिए मैं आपको बता सकता हूं कि हम 20 दलों के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे; उसके बाद तीन दशक तक केंद्र में गठबंधन की सरकारें रहीं। लेकिन 2014 में एक ऐतिहासिक क्षण था। यह भारतीय राजनीति में एक युगांतरकारी घटना थी और देश में तीन दशकों के बाद एक ही दल की सरकार बनी। यह एक ऐसा समय था जब चीजें एक अलग दिशा में बढ़ने लगीं; गुणात्मक रूप से, समावेशी विकास की स्थिति ने जोर पकड़ा और 2019 में चुनावी विश्वास की नए सिरे से पुष्टि हुई।
भारत के विकास का खाका अब कागजों पर नहीं है। यह ज़मीन पर है जिसे क्रियान्वित किया जा रहा है। यदि हम ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स को देखें तो हम 40वें पायदान ऊपर आ चुके हैं और यह अनुसंधान और पेटेंट करने से परिलक्षित होता है, जिसके विषय में यह संस्थान किसी और की तुलना में अधिक जागरूक है। भारत में 80,000 से अधिक स्टार्टअप वाला तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र है और दुनिया में तीसरा सबसे अधिक यूनिकॉर्न है।
मैं आपको बता दूं कि दुनिया में विकास कभी-कभी पिरामिडीय होता है, अर्थात् शहरी केंद्रों को विकास का लाभ होता है। जो जिले पिछड़ रहे थे, ऐसे आकांक्षी जिले जहां जिला मजिस्ट्रेट तैनाती से बचते थे वहां अब जो विकास हुआ है, उसके कारण वे पसंदीदा तैनाती स्थल बन गए हैं। मैं आईआईटी मद्रास के विश्वसनीय कार्यनिष्पादन को देखकर बेहद खुश और संतुष्ट हूं, जिसके इनक्यूबेशन सेल ने लगभग 40,000 करोड़ रुपये के समग्र मूल्यांकन के साथ 300 से अधिक स्टार्ट-अप की मेजबानी की है।
इसने एक आईआईटीयन के दृष्टिकोण को बदलकर उसे देश में नौकरी चाहने वाले से नौकरी देने वाला बना दिया है। मित्रो मैं आपको बता सकता हूं कि जब हम कॉर्पोरेट जगत को देखते हैं तो भारतीय वहां शीर्ष पर हैं। और यह निदेशक जैसे संकाय सदस्यों की सफलता के कारण हुआ है जो भविष्य की सोचते हैं और जो दूरदर्शी हैं, जो आपको अपनी सोच में रखते हुए अपने सपनों और आकांक्षाओं को राष्ट्र के कल्याण के लिए मूर्त रूप प्रदान करते हैं। इसीलिए मैं आपके सामने 2047 के योद्धाओं की बात करता हूं। हममें से कुछ वह देखने के लिए उपलब्ध होंगे जो आप तब कर रहे होंगे और निष्पादित कर रहे होंगे और दुनिया प्रशंसा के साथ देख रही होगी। हो सकता है कि हममें से कुछ लोग यहां न रहें लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि दुनिया में कोई भी युवा मानव संसाधन भारतीय मस्तिष्क के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता और मेरे विचार से इस समय मेरे सम्मुख वह सर्वोत्तम रूप में है।
मुझे स्वामी विवेकानंद द्वारा 19 वीं शताब्दी में दिया गया एक लोकप्रिय नारा याद आ रहा है। मैं राजस्थान के झुंझुनू जिले से हूं, जहां स्वामी जी को काम करने का अवसर मिला था। और मैं पश्चिम बंगाल राज्य का राज्यपाल रहा, जहां स्वामी जी ने प्रभावशाली स्थितियां सृजित कीं तथा मैं अपनी पत्नी डॉ. स्टेस के साथ शिकागो गया, जहां स्वामी जी ने दुनिया को अपना ऐतिहासिक संबोधन दिया। मैं स्वामी जी का संदेश उद्धृत करता हूं, 'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए'। वास्तव में, यह स्वामी जी की विचार प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाला केवल नारा मात्र नहीं है।
यह नारा हमारी सभ्यता के लोकाचार में अंतर्निहित है। यदि आप इसकी उत्पत्ति का पता लगाएं तो आप पाएंगे कि यह उपनिषदों में है। आप में से जो लोग इस बारे में पढ़ने के इच्छुक हैं, मैं उन सभी युवाओं से अपील करूंगा कि वे कुछ समय निकालकर उपनिषदों पर पहली या सरसरी नजर जरूर डालें। यह आपके मस्तिष्क को प्रखर बनाएगा और आपको समाज के व्यापक कल्याण हेतु ज्ञान प्राप्त करने में मदद करेगा।
मित्रों, मुझे कभी-कभी चिंता होती है कि हम दीवार पर लिखी बातों को क्यों नहीं देखते? हम कुछ ऐसी आवाजों को अनुमति क्यों देते हैं जो हमारी व्यवस्था को विकृत करती हैं, हमारे लोकतंत्र को कलंकित करती हैं, हमारी सफलता को रोकती हैं। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए। दुनिया हमारी सराहना कर रही है और हममें से कुछ लोग सवाल खड़े कर रहे हैं।
भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र और धरती पर लोकतंत्र का जनक है। मैं विरोधाभास के डर के बिना यह कहने की हिम्मत रखता हूं कि भारत सबसे अधिक क्रियाशील लोकतंत्र है। हमारे पास वह सब कुछ है जिसमें लोकतंत्र की भव्यता और भावना निहित है।
मुझे बताएं कि धरती पर कहां ऐसी न्यायपालिका है जो बिजली की गति के साथ कार्य करती है। पता करें, आपको कहीं नहीं मिलेगी। हमारी न्यायपालिका ने हमारे लोकतंत्र को एक नया नाम देने के लिए बिजली की गति से काम किया है। आपको कहीं और ऐसी समानांतरता नहीं मिलेगी। धरती पर कहां ऐसी कार्यपालिका है जो व्यापक योजना बनाती है, व्यापक स्तर पर निष्पादन करती है।
जरा कल्पना कीजिए, 220 करोड़ वैक्सीन खुराकें, और कुछ लोगों द्वारा, इस कार्यक्रम में रुकावट डालने की कोशिश करते हुए, राष्ट्र पर विश्वास किए बिना और सोचे-समझे बिना, तर्कहीन तरीके से हर तरह के मुद्दों को उठा रहे हैं।
लेकिन हमने कोविड को हरा दिया है। 220 करोड़ वैक्सीन की खुराकें और वे भी आपके मोबाइल पर डिजिटल रूप से प्रमाणित हैं। विकसित पश्चिमी देशों सहित दुनिया का कोई भी देश ऐसा दावा नहीं कर सकता है।
कुछ अन्य मुद्दे भी हैं। जब मैं संसद का सदस्य था तो संसद सदस्य के रूप में मैं किसी को भी 50 गैस कनेक्शन दे सकता था। और अब 150 मिलियन गैस कनेक्शन जरूरतमंद परिवारों को दिए गए हैं। उस पैमाने को देखें जिस पर चीजों को क्रियान्वित किया जा रहा है। फिर भी हम लोगों को हमारे विकास सूचकांक पर उंगली उठाने की अनुमति देते हैं। युवाओं को ठोस तथ्यों के आधार पर उनसे सवाल करना होगा। यह हमारा देश है, हमारी उपलब्धि है, हमारी निष्पत्तियां हैं। हम इन्हें उन लोगों द्वारा बाधित करने की अनुमति नहीं दे सकते जो संभवतः हममें से अधिकांश की भांति अभिप्रेरित न हों।
मित्रो! मैं अपने दो विचारों को युवाओं के साथ साझा करूंगा।
यहां सभा में और बाहर भी जो लोग उपस्थित हैं, और अपने पद की हैसियत से, मैं राज्य सभा का सभापति हूं, जो वरिष्ठों का सदन है, उच्च सदन है, जो स्थायी है, जिसे विघटित नहीं किया जा सकता है। अब हमारे लिए एक आदर्श मौजूद है। संविधान सभा, जिससे तीन वर्षों से बहस चल रही है, क्या आपने उसमें कोई विघ्न, कोई व्यवधान होते हुए, किसी को सभापीठ के समक्ष (वेल में) जाते हुए देखा, नहीं।
यदि हमारे संस्थापकों, संविधान-निर्माताओं ने संवैधानिक मुद्दों, विवादास्पद मुद्दों, बहुत विभाजनकारी प्रकृति के मुद्दों के बारे में निर्णय नारेबाजी किए बिना, किसी व्यवधान में पड़े बिना, सभापीठ के समक्ष (वेल में) जाए बिना, सभापीठ को चुनौती दिए बिना लिए हों तो अब हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? लोकतंत्र का यह मंदिर संवाद, वाद-विवाद, चर्चा और विचार-विमर्श के लिए है। यह विघ्न और व्यवधान के लिए नहीं है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि यह आचरण आपकी प्रतिक्रिया को प्रेरित नहीं करता है। मैंने किसी भी अखबार में किसी संपादकीय में नहीं पाया है, मैंने बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को इसे उठाते हुए नहीं देखा है, मैंने इस पर जन आंदोलन नहीं देखा है। इस देश की जनता सदन में व्यवधान का कैसे समर्थन कर सकती है?
करदाताओं के करोड़ों रुपये हर दिन के कामकाज के लिए खर्च होते हैं। संसद कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए है, सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए है। इसलिए मैं आप सभी से अपील करता हूं कि आप सोशल मीडिया द्वारा या अन्यथा, संचार के हर तरीके से जुड़कर एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद करें कि लोकतंत्र के मंदिरों, संसद और विधान-मंडल की शुद्धता और पवित्रता भंग न हो। हमें वहां वाद-विवाद, संवाद, चर्चा और विचार-विमर्श करना चाहिए। यह अभिव्यक्तियों के मुक्त आदान-प्रदान के लिए एक जगह है। मुझे आपके समर्थन की जरूरत है। मुझे युवाओं के समर्थन की जरूरत है और मैं जानता हूं अगर आप ऐसा करना चाहेंगे तो यह एक जन आंदोलन बन जाएगा। और इस प्रकार से जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराया जा सकेगा।
और हां, जो लोग आपको वहां भेजते हैं, जो लोग कार्यनिष्पादन के लिए आपकी ओर देखते हैं, वे व्यवधान या विघ्न का समर्थन नहीं करते हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता का परिरक्षण करना मेरा संवैधानिक दायित्व है। मैं बहुत धैर्यवान व्यक्ति हूं। मैं बहुत प्रबोधक हूं लेकिन क्या मैं भारतीय संविधान को समझ सकता हूं? क्या मैं आपकी आकांक्षाओं को समझ सकता हूं? क्या मैं आपके सपने को रोक कर सकता हूं? मैं आपका सिपाही बनूंगा लेकिन मैं चाहता हूं कि आप इसके लिए आगे बढ़ें। और मैं आपसे इसी की उम्मीद करता हूं।
दूसरे, मेरा ऐसा विचार इसलिए है क्योंकि कुछ संपादकीय लिखे गए हैं। संविधान के अनुच्छेद 105 में एक उपबंध है जो संसद सदस्यों को आपराधिक मुकदमेबाजी से संरक्षण देता है। यह एक बहुत बड़ा विशेषाधिकार है। एक संसद सदस्य कुछ बोलता है और संविधान कहता है कि 140 करोड़ लोग भले ही उससे आहत हों, न्यायालय नहीं जा सकते, मानहानि का मुकदमा नहीं कर सकते, आपराधिक कार्रवाई नहीं कर सकते। यह संसद सदस्य को दिया गया अभिव्यक्ति का विशेषाधिकार है लेकिन क्या यह विशेषाधिकार जिम्मेदारी के बगैर है, जवाबदेही के बगैर है? क्या यह विशेषाधिकार सभा में कुछ भी साझा करने का लाइसेंस है? नहीं।
सदन को 140 करोड़ लोगों की गरिमा बनाए रखनी होगी, ताकि इसे कोई कहानी गढ़ने के लिए किसी असत्यापित, आक्षेपकारी, गैर-जिम्मेदाराना सूचना को लेकर अखाड़ा या डंपिंग ग्राउंड न बनाया जा सके।
इसलिए मैंने एक उत्कट अपील की है कि कोई भी सूचना सभा में दी जा सकती है, वहीं पर सूचना और अभिव्यक्ति का पूर्ण आदान-प्रदान होगा। लोकतंत्र की भावना यही है। लेकिन यह एक अपेक्षा के साथ आती है। आपको ऐसी सूचना को प्रमाणित करना होगा। आपको सूचना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और यदि यह गलत साबित होती है तो हमारे पास संसद में 'विशेषाधिकार हनन' का तंत्र मौजूद है।
मैं चाहता हूं कि युवा इस बात को समझें। मैं अपने पत्रकार मित्रों से अपेक्षा करता हूं, मैंने कुछ संपादकीय देखे हैं और मुझे उनसे दुख पहुंचा है। उन्हें संविधान सभा की बहस का अवलोकन करना चाहिए। उन्हें वैश्विक परिदृश्य को देखना चाहिए। किसी को विशेषाधिकार हनन के लिए पकड़ना अभिव्यक्ति का गला घोंटना नहीं है। यह उन सूचनाओं की डंपिंग को रोकने के लिए है जो प्रमाणित नहीं हैं और जिन्हें संसद के मंच का दुरुपयोग करने के लिए लापरवाही से निर्मित किया गया है।
मैं आप सभी से इस बारे में गंभीरता से सोचने की अपील करता हूं। युवा मित्रों के सामने दो सरल बातें रखकर मैं अपनी बात समाप्त करूंगा। हमारे पास एक मजबूत न्यायालय प्रणाली है। माननीय प्रधानमंत्री सहित उच्च और महान लोगों के लिए चीजें महसूस की जाती हैं। दो दशकों तक, इस मुद्दे पर न्यायिक हलकों में विचार-विमर्श किया गया, सभी स्तरों पर गहन जांच की गई। देश की सर्वोच्च अदालत, सबसे बड़े लोकतंत्र की सर्वोच्च अदालत ने आखिरकार 2022 में सभी मोर्चों पर फैसला सुनाया, और हमारे सामने एक वृत्तचित्र द्वारा एक कथा सुनाई जा रही है, कुछ लोग कहते हैं कि यह अभिव्यक्ति है। तो क्या आप अभिव्यक्ति के नाम पर उच्चतम न्यायालय को नीचा दिखा सकते हैं, क्या आप दो दशकों की गहन जांच को अमान्य ठहरा सकते हैं? यह एक अलग तरह की राजनीति करने जैसा है। जब लोग अलग तरीके से राजनीति करना चाहते हैं, तो यहां और बाहर के युवा मस्तिष्क बौद्धिक रूप से उन्हें चुनौती देने के लिए तत्पर हैं।
कहीं एक सज्जन हैं जो धन बल का उपयोग कर रहे हैं, उनके पास कुछ समर्थक, कुछ लाभार्थी है, कुछ राजकोष को नुकसान पहुंचाने वाले हैं और वे हमारे देश के लोकतंत्र के बारे में बात करते हैं। मैं हैरान हूं, दुखी हूं, कोई समझदार व्यक्ति किसी ऐसे दक्षिणी देश के साथ जिसका कोई पडोसी देश नहीं है, हमारी तुलना कैसे कर सकता है?
इसलिए मैं आपसे अपील करता हूं कि यदि आपको इस देश को 2047 तक ले जाना है, संस्थापकों के विश्वास को सही साबित करना है, तो कृपया सचेत रहें। जो लोग अलग तरह से राजनीति करते हैं, उनका मुकाबला करने, उन्हें बेअसर करने और उन्हें अपने तर्कसंगत सवालों से चुनौती देने की आवश्यकता है।
एक बार फिर, यहां आकर मुझे खुशी और प्रसन्नता हुई है। यह हमेशा संजोए जाने वाला क्षण है। आईआईटी, मद्रास के छात्रों के समूह के दिल्ली आकर मेरे अतिथि बनने और दिल्ली व संसद देखने के लिए उनकी मेजबानी करने में मुझे बेहद खुशी और प्रसन्नता होगी।
बहुत-बहुत धन्यवाद।