27 नवंबर, 2023 को नई दिल्ली में भारत के उच्चतम न्यायालय में 'विधिक सहायता तक पहुंच: ग्लोबल साउथ में न्याय तक पहुंच को सुदृढ़ किया जाना' विषय पर प्रथम क्षेत्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में माननीय उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ का भाषण ।

नई दिल्ली | नवम्बर 27, 2023

विशिष्ट अतिथिगण, विधिक विशेषज्ञगण, नीति-निर्मातागण और समर्पित व्यक्यिों,

"वंचित वर्ग के लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण विधिक सहायता तक पहुंच सुनिश्चित किया जाना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर" विषय पर प्रथम क्षेत्रीय सम्मेलन का हिस्सा बनना बड़े सम्मान की बात है। इस सम्मेलन की थीम, हमारे सामूहिक प्रयास और उद्देश्य के सार को दर्शाता है। विशेष रूप से ग्लोबल साउथ (विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित राष्ट्र) के लिए समसामयिक प्रासंगिकता के इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए हितधारकों का एक साथ आना उपयुक्त और समयानुकूल है।

एक अर्थ में इस सम्मेलन की थीम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ग्लोबल साउथ के लिए उठाए गए दूरदर्शी कदमों का संपूरक है।

वर्ष 2023 में भारत द्वारा जी20 की अध्यक्षता के दौरान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विश्व पटल पर विकासशील देशों के हितों की अत्यंत प्रभावशाली ढंग से वकालत करने वाली ग्लोबल साउथ की अग्रणी आवाज़ बनकर उभरे।

प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लोबल साउथ सहित विकासशील देशों के समक्ष पेश आने वाली अनूठी चुनौतियों का समाधान करने वाले समावेशी और न्यायसंगत समाधानों की आवश्यकता पर जोर देते हुए जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और डिजिटल क्रांति जैसे मुद्दों को उठाया।

इंटरनेशनल लीगल फाउंडेशन, यूएनडीपी और यूनिसेफ के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित यह सम्मेलन, सभी के लिए न्याय तक पहुंच को सुनिश्चित करने की दिशा में एक सामूहिक मार्ग बनाने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है, यह एक मौलिक मानवाधिकार है जो लंबे समय से समतापूर्ण और निष्पक्ष समाज की आधारशिला रहा है।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ विशेष रूप से उपांत वर्गों के लिए, कानूनी सहायता की उपलब्धता और सुगमता से न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पूरे जोश के साथ मिशन मोड में कार्य कर रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पिछले एक वर्ष में अनेक जन-केंद्रित और वाद-केंद्रित सकारात्मक नवोन्मेषी कदम उठाए हैं, जो समाज के वंचित वर्गों के लिए विधिक सहायता और न्याय प्रणाली तक सहज पहुंच को बढ़ावा देने में गेम चेंजर सिद्ध हुए हैं।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व में आगामी गोलमेज सम्मेलन के एक सार्थक प्रयास सिद्ध होने की संभावना है। न्याय प्रदायगी में प्रौद्योगिकी के उपयोग संबंधी उनका अभिनव दृष्टिकोण परिवर्तनकारी रहा है, और मुझे विश्वास है कि इस महती समूह को मूल्यवान ज्ञान और अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा ।

वर्तमान में, हम सभी के लिए न्याय प्रदायगी के मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। नि:संदेह विधिक सहायता और न्याय प्रणाली तक पहुंच मौलिक मानवीय मूल्यों के पोषण और संवर्धन तथा समतावादी समाज के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है।

इस प्रकार के पारितंत्र का विकास वैश्विक व्यवस्था और मानव जाति के कल्याण को बढ़ावा देगा। भारतीय संविधान की उद्देशिका में की गई शानदार घोषणा "हम, भारत के लोग" एक समावेशी दस्तावेज़ के सार और भावना को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य पृष्ठभूमि, परिस्थितियों या सामाजिक दर्जे पर ध्यान दिए बिना प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना है।

हमारा संविधान कानून के समक्ष समानता और कानून के तहत समान सुरक्षा के सिद्धांतों को स्थापित करता है। ये उपबंध अपरिहार्य पहलुओं - जो न्यायपूर्ण और निष्पक्ष समाज की आधारशिला है, के रूप में कार्य करते हैं।

डा. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 32 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रदान करने संबंधी उपबंध को स्पष्ट रूप से "संविधान की आत्मा" बताया था।

तीन दशकों से भी अधिक समय से, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) भारत के उपांत समुदायों के लिए समावेशी और सस्ती विधिक सहायता का प्रतीक रहा है। नालसा द्वारा की गई अनेक पहलों से न्याय प्रदायगी की सुगमता सुनिश्चित की गई, विशेषकर 5 मिलियन से अधिक 'टेली-लॉ' परामर्शों के माध्यम से विधिक सेवाओं और जरूरतमंद लोगों के बीच दूरी को पाट दिया गया है, जो न्याय की सुलभता के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के प्रति नालसा के समर्पण को दर्शाता है।

न्यायमूर्ति कौल के नेतृत्व में, नालसा एक ऐसा समाज बनाने का अथक प्रयास कर रहा है जहाँ न्याय सभी के लिए एक मौलिक अधिकार हो। नालसा के न्याय प्रदायगी का मॉडल ग्लोबल साउथ के देशों द्वारा अनुकरणीय है।

भारतीय संसद, राज्य सभा का सभापति होने के नाते मैं जिसका एक अभिन्न अंग हूं, ने संवैधानिक प्रतिज्ञाओं को वास्तविकता में बदलने की अपनी अटूट प्रतिबद्धता का पालन करते हुए, विधिक सुधार, मध्यस्थता को बढ़ावा देने, प्रगति में बाधा डालने वाले पुराने कानूनों को निरस्त करने और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने वाले नए कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू की है।

भारतीय सभ्यता के नैतिक मूल्यों की जड़ें 'वसुधैव कुटुंबकम्', ''एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य'' की अवधारणा में गहराई से समाई हैं और इसने भारत की विदेश नीति और ग्लोबल साउथ के साथ इसके संवाद को आकार दिया है।

भारत हमेशा से सभी राष्ट्रों, विशेषकर ग्लोबल साउथ के युवा और नव स्वतंत्र देशों के अधिकारों और आकांक्षाओं के लिए एक पथप्रदर्शक और योद्धा के रूप में खड़ा रहा है।

भारत की यह प्रतिबद्धता गुटनिरपेक्ष आंदोलन में इसके नेतृत्व, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों हेतु इसकी निरंतर मांग और हाल ही में जी20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका से स्पष्ट होती है।

विविध परिदृश्यों वाले राष्ट्रों को शामिल करने वाले ग्लोबल साउथ को गुणवत्तापूर्ण विधिक सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करने में अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गरीबी, दूरस्थ भौगोलिक स्थिति, सांस्कृतिक बाधाएँ और एक जटिल विधिक प्रणाली प्राय: न्याय की आस रखने वालों के लिए दुस्तर बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।

तथापि, इन चुनौतियों के बीच, विधिक सहायता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए अपार अवसर मौजूद हैं। इस सम्मेलन में निश्चित रूप से इस संबंध में विचार-विमर्श किया जाएगा ताकि ज़रूरतमंद लोगों की कठिनाइयां दूर हों और उनके लिए उम्मीद की एक किरण सुनिश्चित की जा सके । आज मैंने जो चर्चा देखी है, उसके आधार पर मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जहां तक न्याय प्रणाली और विधिक सहायता का संबंध है, कठिनाइयां जल्दी ही दूर हो जाएंगी और आशा का सूरज जल्द ही उगेगा।

जैसे जैसे ग्लोबल साउथ एक उज्जवल भविष्य की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ कर रहा है, अपने औपनिवेशिक अतीत की बेड़ियों से छुटकारा पाना और लम्बे समय तक अन्याय एवं असमानता को कायम रखने वाली ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के लिए मिलकर प्रयास करना अनिवार्य होगा। वस्तुत:, यह सभी के लिए खतरा है। औपनिवेशिक कानूनी शासन की विरासत इन देशों के समाज के कमजोर वर्ग के लिए अत्यधिक बोझिल रही है, जिसका उद्देश्य ही स्थानीय लोगों के प्रति बहुत निष्ठुर रहना और उनका शोषण करना था। अब भारत का उदाहरण लेकर उसका अनुकरण करने का समय आ गया है।

संप्रभु राष्ट्रों के रूप में, ग्लोबल साउथ के देशों को स्थानीय जनता को लेकर मन में पूर्वाग्रह बनाए रखने वाले पुराने औपनिवेशिक कानूनों की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए। हमारा देश इस प्रक्रिया से गुजर रहा है और संसद में ऐसे कानून विचाराधीन हैं जो हमारे दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन लाएंगे और कार्य-पद्धति एवं दंडशास्त्र में उपस्थित शोषणकारी उपबंधों पर पूरी तरह रोक लगाकर, उनको समाप्त कर देंगे।

सर्वोत्तम परिपाटियों को साझा करना, सहयोग को बढ़ावा देना और स्थानीय विशेषज्ञता का लाभ उठाना, पूरे क्षेत्र में विधिक सहायता सेवाओं की प्रदायगी को सुदृढ़ करने में काफी सहायक सिद्ध होंगे।

इस देश से बहुत कुछ सीखा जा सकता है इसका सरल सा कारण यह है कि हमारा देश विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न भाषाओं और विधिक सहायता तक पहुंच वाला एक विविधतापूर्ण देश है। सौभाग्य से, इस समय हमारी न्यायपालिका का नेतृत्व ऐसे हाथों में है, जो इन सभी बातों का ध्यान रखते हैं और यह बहुत ही निर्बाध होता जा रहा है। ग्लोबल साउथ के देशों को इन क्षेत्रों में भारत द्वारा की गई कार्रवाइयों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए और उन्हें अपने-अपने देश में परिस्थिति के अनुसार अनुकूलित करके लागू करना चाहिए।

भारत की जी20 अध्यक्षता, ग्लोबल साउथ के देशों में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यान्वयन को समर्थन प्रदान करने हेतु सोशल इम्पैक्ट फंड में 25 मिलियन डॉलर का इसका योगदान और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ के दो शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया जाना, ग्लोबल साउथ की बेहतरी लिए भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता का मज़बूत प्रमाण हैं।

कुछ वर्ष पहले भी कोई ग्लोबल साउथ से अवगत तक नहीं था। अंततः भारत के प्रधानमंत्री को इसे एक ऐसे मंच पर लाने का बीड़ा उठाना पड़ा जहां मुख्यत: विकसित देशों का वर्चस्व रहा है और इसमें यूरोपीय संघ के साथ-साथ अफ्रीकी संघ को शामिल करने से जो सफलता मिली है, वह उल्लेखनीय है।

यह सम्मेलन, विशेषकर ग्लोबल साउथ के लोगों के लिए अनुभव साझा करने, समाधान निकालने और एक बेहतर भविष्य तैयार करने का एक मंच बन गया है।

एक राष्ट्र के रूप में हमारा ग्लोबल साउथ के देशों के साथ सांस्कृतिक और अन्य रूप से गहरा भावनात्मक संबंध रहा है। औपनिवेशिक शासन के नकारात्मक पक्ष हमें एक साथ बांधे रखते हैं। हमने युगों-युगों से कष्ट सहा है। हमें एक-दूसरे से सीखकर कष्ट को कम करना होगा।

जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है, वर्तमान में हमारे देश के उत्थान को रोक पाना संभव नहीं है। हमारा उत्थान अभूतपूर्व है। विश्व ने हमारी प्रगति को सराहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत को निवेश और अवसर के लोकप्रिय वैश्विक गंतव्य के रूप में स्वीकार किया है। विश्व बैंक ने हमारी डिजिटल क्रांति की सराहना करते हुए इसे दूसरों के लिए अनुकरणीय कहा ।

यदि मैं आंकड़ें बताऊँ, तो आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे, वर्ष 2022 में हमारा डिजिटल लेन-देन अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी के कुल लेन-देन की तुलना में चार गुना अधिक था।

हमारी प्रति व्यक्ति इंटरनेट खपत चीन और अमरीका की कुल खपत की तुलना में अधिक है। कल्पना कीजिए कि हमारे जैसे देश में 110 मिलियन किसान वर्ष में तीन बार अपने-अपने खातों में सीधे धनराशि प्राप्त कर सकते हैं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सरकार ऐसा कर सकती है। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है और मैं इसे एक किसान का बेटा होने के नाते देखता हूं कि किसान के पास इसे प्राप्त करने के लिए साधन उपलब्ध हैं और इससे भारतीय शासन एक मानक के रूप में पारदर्शी और उत्तरदायी बन गया है। ग्लोबल साउथ के देश भारत से बहुत कुछ सीख सकते हैं। किस प्रकार से भ्रष्टाचार को कोई स्थान नहीं देना है। सत्ता के गलियारों को कैसे निष्क्रिय करना है। वाणिज्यिक क्षेत्र में निर्णय बनाने की प्रक्रिया को गैरकानूनी रूप से प्रभावित करने वाले सत्ता के दलाल पूरी तरह गायब हो गए हैं। ये आसान काम नहीं है, ये ऐसे लक्ष्य नहीं हैं जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सके। भारत ने ऐसा कर दिखाया है। उस परिप्रेक्ष्य से, मैं इस सभा को एक मजबूत शुरुआत के रूप में देखता हूं। एक छोटा कदम जो हमें एक बड़ी छलांग लगाने में मदद करेगा।

विचारों के आदान-प्रदान, अन्वेषण की सर्वोत्तम परिपाटियों और साझेदारी निर्माण के माध्यम से हम नवोन्मेषी पद्धतियों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं ताकि सभी के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित किया जाए।

एक समय था जब ग्लोबल साउथ के देश और भारत जैसे देश, हर बात के लिए विकसित या नार्थ के देश कहे जाने वाले अन्य देशों की ओर देखते थे। वे हमारा एजेंडा निर्धारित करते थे। अब, विश्व पटल पर भारत एजेंडा निर्धारित करने वाला देश बनकर उभर कर आया है।

इसलिए हम एकजुट होकर पुनर्विचार करें, विनियमित करें, प्रौद्योगिकी का उपयोग करें, समुदायों को सशक्त बनाएं और विधिक सेवाओं और जरूरतमंद लोगों के बीच असमानता को पाटें। हम एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयास करें जहां पृष्ठभूमि, परिस्थितियों या अवस्थिति पर ध्यान दिए बिना न्याय मौलिक अधिकार के रूप में सभी के लिए सुलभ हो।

मैं इस देश में विदेशी शिष्टमंडलों का स्वागत करता हूं ताकि वे यह बात साक्षात जान लें कि भारत के सभ्यतागत लोकाचार वैश्विक कल्याण से जुड़े हैं। हमने युगों-युगों से अपने भारत का विश्व के एक अभिन्न हिस्से के रूप में सृजन किया है और संपूर्ण विश्व हमारा परिवार है। और विश्व जब कोविड महामारी से जूझ रहा था, तब भारत ने अपने कार्य द्वारा यह प्रदर्शित किया है। हमारे देश ने स्वयं विश्वव्यापी महामारी की चुनौती का सामना करते हुए भी लगभग 100 देशों को कोविड टीके की आपूर्ति करके सहायता प्रदान की । इसलिए भारतीय लोकाचार अब वास्तविकता बन गई है और समस्त विश्व पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। मेरे अनुसार, ग्लोबल साउथ का उदय विश्व के लिए सबसे बड़ी स्थिरकारी शक्ति बनेगी और यह विश्व के विकास पथ को आगे बढ़ाएगी। इसे नियंत्रित करें, इसमें तेज़ी लाएं और इसे बनाए रखें।

मित्रों, ग्लोबल साउथ की परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए, एक ऐसी दुनिया की ओर मार्ग प्रशस्त करें जहां न्याय का अर्थ है उपांत लोगों की आवाज सुनी जाए और सभी के लिए समानता को मूर्त रूप दिया जाए। हमें अतीत में बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। इन सभी मुद्दों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विचार किया है। वे यह कहते हुए एक ऐसी प्रणाली में विश्वास करते थे कि पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सब कुछ है, लेकिन लालच के लिए नहीं। अब, ये ऐसे संबंध हैं जिनके आधार पर हम एक दूसरे के साथ विकसित या नार्थ के देशों के साथ स्थापित संबंधों की तुलना में कहीं अधिक गुणात्मक रूप से गहराई से जुड़े रह सकते हैं। हैं। इसलिए हमारी मैत्री नैसर्गिक रूप से विकसित हो रही है, यह स्वाभाविक है, प्रामाणिक है। मुझे बहुत खुशी है कि यह पहल की गयी है। यह हमें बहुत आगे तक ले जाएगी।

इस सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श हमारे आगे के रूख का मार्ग प्रशस्त करेंगे । मैं यह उल्लेख करके अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा कि न्याय प्रणाली तक पहुंच से वंचित किए जाने, विधिक सहायता से वंचित रखे जाने से उपेक्षित और कमजोर वर्ग के लोगों को उनके अस्तित्व से जुड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है और हमें सकारात्मक नीतियों और पहलों द्वारा चुनौतियों को दूर करके उनके लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा। इस समय हम जहां उपस्थित हैं, इसकी उससे अधिक प्रभावशाली शुरुआत और कहीं नहीं हो सकती है।

अंत में, मैं मानसिकता में बदलाव लाने, परिवर्तनकारी नीतियों और उच्चतम न्यायालय को वर्चुअल माध्यम से देश में सभी के लिए उपलब्ध कराने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय को बधाई देते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं।आपके धैर्य और समय के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय भारत!