आप सभी को नमस्कार।
उत्तराखंड के माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल, गुरमीत सिंह, आपने उनकी बात सुनी, उनका उत्साह, उनकी प्रतिबद्धता, उनकी भावनात्मक भागीदारी बहुत शानदार है। जनरल महोदय में एक जनरल की समझदारी है, लेकिन साथ ही वह एक सैनिक की भावना के साथ काम करते हैं। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो सकारात्मक बदलाव लाते हैं और पिछले दो दिनों में मैंने वन के लिए उनके मन में उत्साह को देखा है।
पिछले दो दिनों के दौरान वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम की निदेशक, सुश्री जूलियट बियाओ कौडेनौकपो के साथ किए गए विचार-विमर्श का हमने अत्यंत गहन विश्लेषण किया। उन्होंने विस्तार में बताया कि हम किन-किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और उनका क्या समाधान हो सकता है।
हमारे साथ केंद्र सरकार की ओर से श्री गोयल हैं, जिन्होंने स्पष्टता, दृढ़ प्रतिबद्धता, ट्रैक रिकॉर्ड और उपलब्धियों तथा उस भूमिका के बारे में बताया, जिसे हम सभी को निभाना है। मंच पर आसीन गणमान्य व्यक्ति, विदेश से पधारे हमारे मित्र, प्रतिनिधिगण और उपस्थित सभी श्रोतागण जिनमें मेरी पत्नी भी शामिल है।
नमस्कार, इस पर जनरल पहले ही विचार रख चुके है कि यह उन लोगों के प्रति हमारा उत्कृष्ट सम्मान है जिन्हें हम संबोधित कर रहे हैं। कल जब से मैं और मेरी पत्नी देव भूमि में आए हैं, तब से ही हमने दिव्यता, उदात्तता, शांति और प्राचीन वातावरण का अनुभव किया है। और मुझे विश्वास है कि विदेश से आए शिष्टमंडल को भी यही अनुभव हुआ होगा, यह भूमि पृथ्वी के अन्य भागों से बहुत अलग है और आपके साथ जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, उनके परिप्रेक्ष्य में यह वास्तव में प्रासंगिक है।
गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की मेरी यात्रा मेरी स्मृति में सदैव के लिए अंकित हो गई है। मुझे विश्वास है कि यदि आप वहां नहीं गए हैं, तो आप वहां जाने के लिए समय निकालेंगे और आप एक अत्यंक अलग भाव से प्रबुद्ध हो पाएंगे। विश्व में बड़े संगठनों का नेतृत्व करने वाले कई लोग रचनात्मक रूप से अपने अवसर का उपयोग करके इस भूमि से प्रेरणा और प्रोत्साहन लेते रहे हैं।
मित्रों, पिछले 2 दिनों के दौरान आपने विश्व एकीकरण के विषय पर चर्चा की है। इस दिव्य अवसर का लाभ उठाकर मैं अपनी पत्नी के साथ इन पवित्र स्थलों पर गया था, वे पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों के लिए शांति और खुशी की तलाश करने की हमारी सभ्यतागत लोकाचार और सार को चिह्नित करते हैं। मैं मात्र मानव जाति की बात नहीं कर रहा हूं, यह पृथ्वी अनन्य रूप से मानव जाति के लिए नहीं है, यह ग्रह बड़ी संख्या में जीवित प्राणियों का घर है, वे बहुमूल्य हैं, हम उन्हें विलुप्त होने नहीं दे सकते हैं।
साथियों, समापन सत्र के लिए प्रतिष्ठित वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून में उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। भारत और विदेशों में एफआरआई का योगदान असीमित रहा है, जो पर्यावरण और वन के मामले में सकारात्मक परिवर्तनों का केंद्रबिंदु, अधिकेंद्र रहा है। एफआरआई लंबे समय से वानिकी क्षेत्र में ज्ञान और नवाचार का पुण्यस्थान रहा है। और मुझे विश्वास है कि इस समय विश्व के समक्ष्ा जो चुनौती है, उसके मद्देनजर यह सही स्थान है जहां नवाचार, अनुसंधान, दिशात्मक दृष्टिकोण और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लगा जा सकता है। एफआरआई न केवल वानिकी में वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी अनुप्रयोगों को आगे बढ़ाने में सहायक रहा है, बल्कि भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के लिए एक प्रमुख प्रशिक्षण अकादमी के रूप में भी मौजूद है और ये लोग भारत में सकारात्मक परिस्थितियां लाएंगे और विदेश से आए मित्रों को यह जानकर खुशी होगी कि हमारे यहां मानव जाति का छठा हिस्सा वास करता है। इस महत्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण आयोजन के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को बधाई। आपके यहां महानिदेशक हैं एवं माननीय मंत्री भी इसको लेकर बहुत उत्साहित हैं। वे एक मिशनरी जोश में हैं, वे सक्रियता से पूरा करने में लगे हुए हैं। जिसने आज मुझे यहां बुलाया है वह इस ग्रह की महत्वपूर्ण आवश्यकता है, इस देश जहां मानव जाति का छठा हिस्सा वास करता है, में हम भाग्यशाली हैं कि हम उस समय में जीवन व्यतीत कर रहे हैं जो अमृतकाल है, विदेश से आए मेरे मित्र हमारी स्वतंत्रता के 75 वर्ष को नोट कर सकते हैं और यह अमृतकाल हमारे लिए गौरवकाल है। ऐसे कई पहलू हैं जहां हम अपनी युगांतरकारी उपलब्धियों पर गर्व कर सकते हैं जिसमें वह मुद्दा भी शामिल है जिसे आप पिछले 2 दिनों से संबोधित कर रहे हैं।
माननीय राज्यपाल ने भारत अर्थात् इंडिया के उदय के बारे में बात की, आपको याद होगा कि ठीक एक दशक पहले भारत को 5 कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में से एक में गिना जाता था जो कुछ मायनों में दुनिया पर बोझ थे। अब 2022 में हम कहां आ गए हैं, जैसा कि माननीय राज्यपाल ने जोर देकर कहा कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गए हैं और इस प्रक्रिया में हमने ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे छोड़ दिया है।
इस बात के पूर्ण संकेत हैं कि इस दशक के अंत तक अर्थात् वर्ष 2030 तक हम जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। भारत अर्थात् इंडिया की इस उपलब्धि ने बदले में पृथ्वी को पेश आने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए राष्ट्र पर समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने का एक बड़ा दायित्व डाला है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित वैश्विक संगठनों ने हमें निवेश और अवसरों के लिए सबसे उज्ज्वल गंतव्य के रूप में स्वीकार किया है। हमारी डिजिटल पैठ और प्रसार ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया है, 2022 में हमारा डिजिटल लेनदेन अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से चार गुना अधिक रहा है। वर्ष 2022 के दौरान हमारा प्रति व्यक्ति इंटरनेट डेटा उपयोग संयुक्त रूप से अमरीका और चीन, दोनों की तुलना में अधिक रहा है। भारत और अन्य देशों के विकास पथ को तभी सुरक्षित किया जा सकता है जब पृथ्वी के सभी लोग अस्तित्वपरक महत्वपूर्ण चुनौतियों से अवगत हों और यह एक अनिष्ट संकेत है। हो सकता है कि कुछ दशक पहले इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया गया हो, लेकिन अब सभी इस बात से अवगत हैं कि पृथ्वी किस चुनौती का सामना कर रही है और इसके क्या भयावह परिणाम हो सकते हैं। यह खुशी की बात है, एक सकारात्मक विकास है। दुनिया के राष्ट्र इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सकारात्मक मानसिकता के साथ एकजुट हो रहे हैं और आपके द्वारा किया गया विचार-विमर्श उसी का हिस्सा है। लेकिन मित्रों, माननीय राज्यपाल ने हमारे हजारों वर्षों के इतिहास, हमारी सभ्यतागत लोकाचार का संक्षिप्त उल्लेख किया था। उन्होंने एक पहलू जो संस्कृत में है, जिसे वसुधैव कुटुम्बकम के नाम से जाना जाता है, पर चर्चा की। जब भारत को जी-20 की अध्यक्षता प्राप्त हुई, तो यह ग्रह के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय में एक उल्लेखनीय अवसर था, हमारे पास इसके लिए एक आदर्श वाक्य था और आदर्श-वाक्य यह था कि हम दुनिया को ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के रूप में देखते हैं।
मित्रों, आपने जो संबोधित किया, आपने जिस विषय पर विचार-विमर्श किया, जिन संकल्पों का पता लगाने के लिए आप काम कर रहे हैं, वह इसे सुनिश्चित करना है। अगर दुनिया के राष्ट्र यह विश्वास कर सकते हैं कि यह एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य है, तो जो चुनौतियां हमारे सामने उत्पन्न हो रही हैं, वे किसी एक राष्ट्र को प्रभावित नहीं करेंगी। वे कोविड जो दुनिया के हर हिस्से और समाज के हर हिस्से के लिए एक अज्ञात चुनौती थी, की भांति पूरे ग्रह को प्रभावित करेंगी। यह चुनौती कोविड चुनौती से भी ज्यादा गंभीर है।
जी20 का उपयुक्त थीम काफी सफल रहा। मैं उपराष्ट्रपति के रूप में इससे जुड़ा हुआ था और विश्व के नेताओं के साथ बातचीत की। वे दिल्ली घोषणा लेकर आए, मैं केवल आपके विचार-विमर्श तक ही सीमित रहकर बात करूंगा। यह एक महान उपलब्धि है कि इस घोषणा ने पर्यावरणीय चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के महत्व को स्वीकार किया है। हमारे वन केवल संसाधन नहीं हैं, बल्कि इसमें देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत भी शामिल हैं । वन हमारे फेफड़े हैं, यह हमारी जीवन रेखा है। संतुलन बनाए रखते हुए वनों पर निर्भर लोगों का विकास किया जाना चाहिए।
वन जानवरों के लिए प्राकृतिक वास और मनुष्यों के लिए आजीविका प्रदान करने के अलावा, जलाशय संरक्षण भी प्रदान करते हैं, भूक्षरण को रोकते हैं और जलवायु परिवर्तन का प्रशमन करते हैं।
ये जैव विविधता के भंडार से कहीं ज्यादा हैं, ये हमारे लाखों नागरिकों, विशेषकर आदिवासी और वन पर निर्भर रहने वाले समुदायों की जीवन रेखा भी हैं।
मित्रों, यह आवश्यक है कि हम विकास और संरक्षण के बीच एक सूक्ष्म संतुलन बना सकें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे नागरिकों की विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए हमारे वन पुष्पित-पल्लवित होते रहें। तथापि संरक्षण अनिवार्य, बुनियादी और महत्वपूर्ण होता है, लेकिन इसे वन संसाधनों पर निर्भर समुदायों के हित से पृथक नहीं रखा जा सकता है।
सतत विकास करना और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना एक सुरक्षित भविष्य के लिए सर्वोत्कृष्ट है। ये चुनौतियाँ एक अर्थ में अस्तित्व से जुड़ी हुई हैं। पृथ्वी के एक तिहाई भूभाग में फैला वन क्षेत्र, हमारी दुनिया में जान फूंकता है। यह हमें ऑक्सीजन, आश्रय, रोजगार, जल, पोषण और ईंधन प्रदान करता है। भारत विश्व में सबसे अधिक जैव विविधता वाले देशों में से एक है और कुछ उन देशों में से एक है, जो अपने वन और वृक्ष आच्छादन को बढ़ाने में कामयाब रहे हैं और वह भी अर्थव्यवस्था में तेज़ी से विकास करते हुए हो पाया है।
मित्रों, इसलिए लोगों को यह जानकारी होनी चाहिए और हम सभी के लिए यह सामान्य ज्ञान की बात है कि महासागरों के बाद वन कार्बन का सबसे बड़ा भंडार गृह होते हैं, जो वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों को सोखकर इन्हें भूमि की सतह पर और भूमि के नीचे समाहित कर देते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस तरह के परिदृश्य में, यदि हम वनों को नुकसान पहुंचाते हैं और वनों की कटाई करते हैं, तो हम बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करेंगे जिसके परिणामस्वरूप जलवायु संकट उत्पन्न होगा। हम सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि वन जलवायु से जुड़ी समस्याओं का समाधान है, यह जलवायु परिवर्तन के लिए प्रभावशाली, दृढ़ एवं स्वीकार्य समाधानों में से एक है। वन कार्बन सिंक उपलब्ध करता है। ऐसा कार्बन सिंक जो प्रति वर्ष 2.4 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन सोख लेती है। इन बड़ी समस्याओं से घिरे होने के बावजूद, क्या हम अपने जीवन में वन के इस महत्वपूर्ण प्रभाव को अनदेखा कर सकते हैं। इसकी तत्काल अत्यावश्यकता है और यह दुनिया के लिए विशिष्ट है और हमारे देश के लिए काफी विशिष्ट है। हमें अपने तालाबों और हमारी वन भूमि का पुनरुद्धार और इन्हें विकसित करना चाहिए, जो कि एक बड़ा क्षेत्र नहीं है। भारत में, अफ्रीका में, दक्षिण अमेरिका में प्रत्येक गांव और छोटे समुदाय में, आप पाएंगे कि वहां वन भूमि होगी, यह मवेशियों का घर होगा जो इस देश के कई मुद्दों का समाधान करेगा। इस देश में यह एक अभियान है। हमने निर्णय लिया है और 75000 अमृत सरोवर होना एक बड़ी उपलब्धि है और 50000 से अधिक पहले से ही मौजूद हैं। वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम, यदि विश्व को कुछ महान प्राप्त करना है, तो आपको एक वैश्विक निकाय की आवश्यकता होगी। संयुक्त राष्ट्र इस कार्य को करने में अद्वितीय है और वन से संबंधित यह मंच केंद्रित सामूहिक कार्यों के उत्पन्न सहयोग का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो आशा की किरण की भांति सेवारत है और राष्ट्रों के साथ ज्ञान का आदान-प्रदान करने तथा एक स्थायी भविष्य के लिए साझेदारी बनाने हेतु एक साथ आने का मंच है।
मुझे विश्वास है कि शिष्टमंडल भारत में हमारे सकारात्मक नीतियों के माध्यम से समस्या के जो समाधान निकाले गए हैं, उन्हें अपने देश में लागू करेंगे। आज विचार-विमर्श और विषय-वस्तु बहुत सोच-समझकर चुने जाते हैं, यह एक चुनौती है। हम दृढ़ हैं, हम स्तब्ध हैं कि हमने जो प्रौद्योगिकीय प्रगति की है, उसके बावजूद हमें कैसे वनाग्नि का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि सबसे विकसित राष्ट्र भी इन समस्याओं का तत्काल समाधान करने में असमर्थ हैं। ये विषय-वस्तु वनाग्नियां, जंगल की आग, यह मुद्दा बहुत तकनीकी है। इसका समाधान किया जाना चाहिए और बहुस्तरीय दृष्टिकोण के माध्यम से समाधान तलाशना होगा। प्रौद्योगिकी उनमें से एक है और लोगों को जागरूक करना दूसरा समाधान है। सही प्रकार से वन को बनाए रखना है और आप यह अच्छे से जानते होंगे। मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हूं, यहां उपस्थित आप सभी विशेषज्ञ हैं और दूसरी बात वन प्रमाणन और संधारणीय वन प्रबंधन है, इससे अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता है। मैं यह कहता हूं कि एक बिलियन से अधिक लोगों, मैं यह कह सकता हूं कि भारत की आबादी अर्थात् पूरे विश्व की आबादी के छठे हिस्से से अधिक लोगों की आजीविका और उनका अस्तित्व वन पर निर्भर होता है और इसलिए न केवल हमारे देश, बल्कि व्यापक रूप से विश्व से जुड़ी दो मुख्य समकालीन प्रासंगिक बातों पर काफी कल्पनाशील तरीके से विचार करने के लिए मैं वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम और भारत सरकार के अधिकारियों को शुभकामनाएं देता हूं।
पूरे विश्व में आप एक चीज पाएंगे कि हमारे समुदाय के जो वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग हैं, वे प्राय: सहन करते हैं और वे सबसे अधिक सहन करते हैं, वे प्रकृति के प्रकोप को गंभीर रूप से सहन करते हैं। सौभाग्यवश, हमारे देश में हमने वैज्ञानिक क्षेत्र में विकास और प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग करके एक पारितंत्र विकसित किया है जिससे यदि हम प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हैं, तो हम लोगों को पूर्व चेतावनी दे सकते हैं। आधिकारिक तौर पर हमारे स्रोतों को कमजोर स्थिति की जानकारी दी जाती है, अन्यथा यह सीमित है, लेकिन फिर भी यह एक तरीका है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि समस्या उत्पन्न न हो, क्या इसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, क्या हम विज्ञान का उपयोग उस स्तर तक कर सकते हैं जहां हम इस गंभीर मुद्दे का समाधान कर सकते हैं। एक अन्य पहलू यह है कि विश्व भर में और विशेष रूप से हमारा संविधान संसाधनों का समान वितरण और सामाजिक न्याय प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि शासन ऐसी होनी चाहिए जो हर व्यक्ति को प्रभावित करे। यह उस श्रेणी के लोगों की बेहतरी के लिए जीवन को बदल देता है, जिन्होंने उम्मीद खो दिए हैं। पिछले दशक में उठाए गए अनेक कदमों के द्वारा भारत का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है, प्रदर्शन का स्तर इतना रहा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी या जिसका सपना भी नहीं देखा जा सकता था। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि वर्ष 1989 में जब मैं संसद में लोक सभा में निर्वाचित होने के बाद सरकार से जुड़ा और सरकार का हिस्सा बन गया था, तब बड़े बदलाव आए लेकिन और अधिक किए जाने की आवश्यकता है। मित्रों, सामाजिक न्याय दिलाना मात्र शासन का कार्य नहीं है, बल्कि पृथ्वी के प्रत्येक व्यक्ति को इसे सुनिश्चित करना है। उसे अपना कर्तव्य निभाना है और यह समाज को वापस देना है। कुछ जो महत्वपूर्ण है: वनों की कटाई, आवास विखंडन, मानव गतिविधियों द्वारा अतिक्रमण हमारी समृद्ध जैव विविधता के लिए काफी गंभीर संकट उत्पन्न करते हैं। हमने अपने देश में एक गंभीर प्रयास किया है कि हमें जैव विविधता का पोषण करने, इसे संरक्षित करने और इसे फिर से बनाने की आवश्यकता है। अगर हम ऐसा कर सकते हैं, तो हम भावी पीढ़ियों के लिए ऋणी हैं क्योंकि हम वर्तमान में केवल एक ट्रस्टी हैं। हम लापरवाही से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करके अपनी भावी पीढ़ियों से समझौता नहीं कर सकते हैं। हम सभी प्राकृतिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग करने के लिए बाध्य हैं। विश्व भर में यह मत बननी चाहिए कि आपकी आर्थिक शक्ति को प्राकृतिक संसाधनों की खपत या उपयोग से नहीं जोड़ा जा सकता है। सौभाग्यवश, हम अन्य तरीके भी ढूंढ़ रहे हैं ताकि आर्थिक मोर्चे पर प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता कम हो जाए। ऊर्जा क्षेत्र को ले लीजिए, जहां नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत उपयोग में आ रहे हैं।
मेरे विदेशी मित्र इस बात की सराहना करेंगे और कभी-कभी इसका एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक पहलू भी होता है। शस्त्र के रूप में ऊर्जा का उपयोग किया जाना एक अन्य तरीका बन गया है। समाधान निकालने के लिए हर किसी को मिलकर काम करना होगा ताकि ईश्वर ने जो हमें दिया है, हम उसे वितरित और उपयोग करके फलीभूत करें। इन सबसे ऊपर चुनौतियां हैं। जलवायु परिवर्तन इन चुनौतियों को बढ़ाता है और और यही वह चीज है जिसे आपने संबोधित किया है। बारंबार जंगल में आग लगना, पूरे विश्व में पैटर्न में परिवर्तन आना, आप देखिए कि रेगिस्तानी क्षेत्र में बाढ़ आ रहे हैं, पैटर्न में परिवर्तन आ गया है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र में इस प्रकार का परिवर्तन ला रहे हैं जिसमें ढलने के लिए मानव जाति को समय लगेगा। अत:, इस बड़े बदलाव में ढलने, इसके शिकार बनने और इससे पीड़ित होने के बजाय हमें इसका समाधान निकालना चाहिए। मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि विश्व के पास पर्याप्त ज्ञान है। राष्ट्रों के पास पर्याप्त ज्ञान है, यदि वे अभिसरित होते हैं, तो वे एक समाधान निकाल सकते हैं। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे समक्ष एक समस्या है। इसके लिए अभिनव प्रौद्योगिकियों के उपयोग की आवश्यकता है। इसके लिए उपग्रह से निगरानी करना एक तरीका है। मैं आपको यह कह सकता हूं कि यह बड़े गर्व की बात है कि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पृथ्वी का पहला देश बन गया है। लेकिन अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हमारा महान वैज्ञानिक संस्थान, इसरो ने अन्य ऐसे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर बड़े पैमाने पर योगदान दिया है जो उन मुद्दों के समाधान में लगे हुए हैं जिन पर आपने चर्चा की है और इसमें ऐसे देश भी हैं जो इसलिए इतने अधिक विकसित हैं क्योंकि इसरो का धन की दृष्टि से महत्व अधिक है और जिसने वैज्ञानिक, तीक्ष्ण, अत्याधुनिक और सतत विकास किया है। कुछ साल पहले जो नारा था, भारत में पिछले 10 वर्षों में हमने साकार किया है। हमने इसे महत्वकांक्षी राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, स्वच्छ भारत मिशन और ग्रीन इंडिया मिशन के रूप में वास्तविक रूप से साकार किया है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता, विज़नरी दृष्टिकोण का प्रमाण हैं जिनमें मानव जाति के लिए कार्य करने का उत्साह है। उनका एक विज़न है जो वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात् एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के अनुरूप है और निष्पादन में त्वरित है। ऐसा हुआ है, जलवायु और पर्यावरणीय कार्रवाई के संबंध में भारत का ध्यान पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वाकांक्षी ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम के शुभारंभ से उजागर होता है। यह परिवर्तनकारी साबित हो रहा है। आरंभ में, यह धीमी गति से बढ़ना शुरू हुआ। अब जब आप क्रेडिट लेते हैं, तो आपकी अर्थव्यवस्था बढ़ी हुई है। इस प्रक्रिया में व्यापक रूप से मानव जाति को एवं पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली का लाभ प्राप्त हुआ है और प्रधानमंत्री इसे लेकर काफी उत्साहित रहे हैं। उन्होंने मासिक रूप से प्रसारित अपने 'मन की बात' में इस पर ध्यान केंद्रित किया है, उन्होंने संसद में इस पर ध्यान केंद्रित किया है, उन्होंने वैश्विक मंच पर इस पर ध्यान केंद्रित किया है और यह दो वर्ष पहले प्रधान मंत्री द्वारा विश्व स्तर पर प्रारंभ की गई एक प्रमुख पहल है। इसके गुणोत्तर परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। हमारी प्रशमन कार्यनीति स्वच्छ और प्रभावी ऊर्जा प्रणाली तथा सुरक्षित और स्मार्ट एवं सतत ग्रीन सार्वजनिक शहरी परिवहन नेटवर्क पर जोर देती है। मित्रों, यदि आप यहां कुछ दिन बिताएंगे, तो आप पाएंगे कि हमारी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विश्व की सर्वोत्तम प्रणालियों में से एक है। आपमें से जो लोग 2 दशक पहले इस देश में आए हैं, वे इस बात की सराहना भी नहीं कर पाएंगे कि यहां कभी ये सारी कनेक्टिविटी होती थी और ये सभी पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में ही हैं। विश्व की एक सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का ध्यान ऊर्जा सुरक्षा पर रहा है, यह सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत प्रतिबद्ध है और यह उस मुद्दे का हिस्सा है जिस पर आपने स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण के लिए चर्चा की है। 2030 तक हमारी आवश्यकता की आधी बिजली नवीकरणीय स्रोतों द्वारा उत्पन्न की जाएगी। एक समय था जब हम विश्व की किसी प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए वर्षों और दशकों तक प्रतीक्षा करते थे। अब हम इस प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सबसे आगे हैं और यह प्रौद्योगिकी हमारे पर्यावरणीय स्थिति को नियंत्रण में रखता है। मैं एक उदाहरण से इस बात को स्पष्ट करना चाहूंगा: जनवरी 2022 में मंत्रीपरिषद् द्वारा अनुमोदित 19000 करोड़ रुपये के प्रारंभिक परिव्यय वाली राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में हरित हाइड्रोजन के उपयोग में तेजी लाना है। इसका उपयोग करने वाले दस देश भी नहीं हैं, लेकिन यह रोजगार का अवसर, उद्यमियों के लिए अवसर, औद्योगिक व्यवसाय के लिए स्थान प्रदान करता है और यह जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का निवारण करता है। भारत ने सौर ऊर्जा संबंधी गठबंधन का नेतृत्व किया। हमने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निकट इसका मुख्यालय स्थापित किया है। अत:, कई पहल की गई हैं। मुझे विश्वास है कि विचार-विमर्श के दौरान आपने हमारे सामने पेश आने वाली बड़ी चुनौती के समाधान के लिए कई और नवोन्वेषी कदम और नवीन समाधान के बारे में विचार किया होगा।
मित्रों, मुझे कोई संदेह नहीं है। मैंने न्यासधारिता के सिद्धांत के बारे में बात की। यह पृथ्वी हमारी नहीं है। यदि हम इसकी स्थिति में सुधार नहीं ला सकते हैं, तो हमें पृथ्वी की वर्तमान स्थिति को बनाए रखते हुए इसे भावी पीढ़ियों को सौंपना होगा। आज हम जो निर्णय लेंगे, उसकी गूंज युगों-युगों तक सुनाई देगी और भावी पीढ़ियों के लिए सौंपी गई विरासत को आकार देगी। मित्रों, विशेषज्ञों के इस निकाय में आने से पहले, यह मेरा प्राथमिक क्षेत्र नहीं है, लेकिन मैं मात्र एक नागरिक होने के नाते, एक प्रभावित व्यक्ति होने के नाते इस पर विचार किया। मैंने आपके दैनिक विचार-विमर्श का रिकॉर्ड भी रखा है, पूरे विश्व में क्या हो रहा है,उसका भी और मुझे कोई संदेह नहीं है, मैं आपके साथ अपने विचार साझा कर सकता हूं। पर्यावरणीय चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन का दृढ़ और प्रभावपूर्ण समाधान के लिए यह आवश्यक है कि सामंजस्यपूर्ण वैश्विक दृष्टिकोण अपनाया जाए। और यही एकमात्र विकल्प है। मुझे विश्वास है कि यहां दो दिनों में आपने इस पहलू पर विचार-विमर्श किया है। हम वैश्विक स्तर पर एकजुट होकर कार्य करने का संकल्प लें ताकि भविष्य में हमारे वन पुष्पित-पल्लवित होते रहें और अपने सभी अद्भुत रूपों में जीवन को बनाए रखें। हम प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण और इष्टतम उपयोग करने का संकल्प लें। हम किसी व्यक्ति को वित्तीय सामर्थ्य के आधार पर प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? यह अनुचित है, यह न्यायसंगत नहीं है, यह अस्वीकार्य है। प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने के लिए पृथ्वी पर हर किसी को ट्रस्टी होना आवश्यक है और मुझे विश्वास है कि ऐसा होगा। लोग कभी विश्वास नहीं करेंगे कि आइंस्टीन के अनुसार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पृथ्वी पर सबसे महान मनुष्यों में से एक थे, वह उनकी एक सलाह साझा करते हैं, मैं उन्हें उद्धृत करके बात समाप्त करना चाहूंगा, जो राष्ट्रपिता ने कहा था:
“पृथ्वी पर हर किसी की ज़रूरत के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन हर किसी के लालच के लिए नहीं।
इसे विश्व भर में भयावह, हानिकर तंत्र के संदर्भ में देखें, जब वे वन्य जीवों के साथ पेश आते हैं, जब वे वन उत्पादों का व्यापार करते हैं, मुझे विश्वास है कि आपके विचार-विमर्श एक ऐसी कार्यनीति को आकार देने में दूरगामी होंगे, जो बड़े पैमाने पर पृथ्वी की सहायता करेगा। मैं आयोजकों का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे इस धरती पर हर जीव के जीवन को छूने वाले मुद्दे पर विचार प्रस्तुत करने का यह अनूठा अवसर प्रदान किया। अंत में, कृपया हमारे विदेशी शिष्टमंडल भारत भ्रमण करने के लिए समय निकालें। मैं आपको बता दूं कि आप प्रकृति और मानव जाति, दोनों में उस तरह की सांस्कृतिक विविधता देखेंगे, जो आपको दुनिया में और कहीं नहीं मिल सकती है।
धन्यवाद, अपना समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिंद, जय भारत।