यह मेरे लिए गर्व और पीड़ा दोनों का क्षण है। गौरव इस बात का कि मैं एक ऐसे अवसर से जुड़ा हूं जो अरुण जेटली जी नाम पर है। पीड़ा इस बात की कि वे अति शीघ्र चले गए, हमें उनकी कमी खलती है, जीवन के हर पड़ाव पर उनका प्रभाव महसूस होता है, उनकी अनुपस्थिति और भी ज्यादा महसूस होने लगती है। यदि हम ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो उनके जैसे क्षमतावान लोग बहुत कम हैं। राज्य सभा के सभापति के रूप में, मैं उन्हें हर दिन याद करता हूं, उनका न होना देश के लिए एक बड़ी क्षति है।
मैं अरुण जेटली जी को उनकी शादी होने के दो वर्ष के बाद से जानता था, इसलिए संगीता जी उन्हें मुझसे ज्यादा जानती थीं, लेकिन हमारा रिश्ता बहुत अलग था। वे इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राम नाथ गोयनका जी के मुकदमें का प्रतिवाद करने के लिए राजस्थान आए थे, मैं बार काउंसिल में बार का अध्यक्ष था और उस समय मुझे आपराधिक न्यायशास्त्र में प्रतिष्ठित वकील माना जाता था। मुझे अभी भी स्पष्ट रूप से याद है कि हमने अदालत के बाहर गलियारों में बातचीत की, जहां से चलते चलते हम एक सज्जन विमल चौधरी के पास गए, जो राजस्थान विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे। उन्होंने पूछा “आप अरुण जेटली जी को कितना जानते हैं?”, क्योंकि उस समय, मैं बार का अध्यक्ष था, मैंने कहा “बताइए”। उन्होंने जल्दी-जल्दी जानकारी दी। वर्ष 1974-77 तक वह डूसू के तेजतर्रार अध्यक्ष रहे, 19 महीने कारावास में रहे, जनता पार्टी की कार्यकारिणी जो उसका सर्वोच्च निकाय है, के सबसे कम उम्र के सदस्य बने। ये उपलब्धियां कुछ ही लोग प्राप्त कर सकते हैं।
संसद के लिए निर्वाचित होने से पहले, मैं दिल्ली आया और अरुण जी के घर पहुंचा और उनके साथ कुछ समय बिताया। उस समय जेटली जी ने मुझसे पूछा, “जगदीप, चुनाव लड़ोगे?” मैंने कहा कि मुझे राजनीति से एलर्जी है, जो मेरे जैसे छात्र के लिए एक सच्चाई थी, जो हमेशा गोल्ड मेडलिस्ट रहा। उन्होंने कहा, “यह उचित नहीं है। आप हाई कोर्ट बार अध्यक्ष क्यों बने?” राजनीति के बारे में मेरी मानसिक विचार प्रक्रिया में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
मैं वर्ष 1989 में संसद के लिए चुना गया, अरुण जेटली जी अपर सॉलिसिटर जनरल बने, एक बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति, उन्होंने बोफोर्स मामले को देश और देश के बाहर में सराहनीय रूप से संभाला।
मित्रों जिंदगी बहुत विचित्र है। मंत्री के रूप में मुझे एक घर आवंटित हुआ था और मेरे सामने वाले घर में अरुण जी रहते थे। हमने अपनी यात्रा जारी रखी और मैंने दिल्ली इसलिए नहीं छोड़ी, क्योंकि जो एक बार यहां आ जाता है, यहीं बस जाता है। इसलिए मैं वर्ष 1989 से लेकर पांच वर्षों तक सभा का सदस्य रहा।
अरुण जेटली जी की उल्लेखनीय यात्रा उनके राज्य सभा के लिए निर्वाचित होने के साथ शुरू हुई। वे इस सहस्राब्दी की शुरुआत से लेकर अपना स्वर्गवास होने तक राज्य सभा के सदस्य रहे थे। यदि आप भारतीय राजनीतिक परिदृश्य को देखें, तो आपको दूसरा अरुण जेटली जी नहीं मिलेगा, उनके पास रक्षा, वित्त, कारपोरेट कार्य, विधि, सूचना और प्रसारण जैसे अनेक मंत्रालयों के मंत्री पद का पदभार था, लेकिन उन्हें नौकरशाही से कभी परेशानी नहीं हुई। उन्होंने नौकरशाही को उसकी शक्ति को उजागर करने में मदद की ताकि जनहित सेवा में उनका पूरी तरह से दोहन किया जा सके, जिसमें वह उल्लेखनीय रूप से सफल रहे।
मित्रों, पूरे पांच वर्षों तक वह राज्य सभा में विपक्ष के नेता रहे। मैंने उन सदस्यों से बातचीत की जो उनके साथ थे, उनके राजनीतिक आलोचक थे और उनका कोई व्यक्तिगत आलोचक नहीं था। उनकी एक असफलता यह थी कि उनका एक भी शत्रु नहीं था। उनकी प्रतिभा की पराकाष्ठा यह थी कि वे हमेशा दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करते थे। मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूं।
मैं तीन वर्ष तक पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल रहा और मेरे सामने एक सख्त मुख्यमंत्री थीं, लेकिन वह अरुण जेटली जी की बड़ी प्रशंसक थीं। उन्होंने ऐसी प्रतिष्ठा अर्जित की थी। विपक्ष के नेता रहते हुए, उन्होंने सरकार के प्रति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरकार को हमेशा आश्वस्त किया कि एक तर्कसंगत सोच के साथ आपके दृष्टिकोण की सराहना की जाएगी, जिसकी हम आज कमी महसूस करते हैं, जो राजनीतिक शासन के लिए हानिकारक है।
फिर अरुण जेटली जी सभा के नेता बन गए। हालांकि, एक खास बात यह रही कि उनकी सीट के अलावा कुछ भी नहीं बदला। एक चीज जो बदली वह थी उनकी विनम्रता जो पहले से बहुत अधिक हो गई थी। न्यायपालिका के बारे में अत्यंत सम्मान के साथ विचार करते हुए वे बिल्कुल शांत रहते थे। उन्होंने जिस व्यवहार को आगे बढ़ाया वह हमारे लिए यादगार और एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।
श्री जेटली संसद के राजनीतिक मंच के केंद्रीय कक्ष के सबसे चमकीले सितारे रहे हैं। वह बिना शोर मचाए चीजें हासिल करने के लिए जाने जाते थे।
देवियो और सज्जनो, इस देश के अब तक के इतिहास में, हमें केंद्रीय कक्ष में दो गौरवशाली अवसर मिले हैं। एक, जब नियति और प्रयास के साथ भारत को आजादी मिली, और दूसरा, जब जीएसटी लागू हुआ। वह जीएसटी के शिल्पकार थे, जो सबसे कठिन कार्य था, कोई विश्वास नहीं कर सकता था कि यह संभव है लेकिन उन्होंने इसे प्राप्त किया। उन्होंने एक व्यवस्था बनाई कि केवल सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाएगा और उनके समय में कोई भी असहमति नहीं थी।
अरुण जेटली जी ने संस्थाओं का निर्माण किया और विधि अधिकारियों, संसद सदस्यों, मंत्रियों के रूप में सर्वोच्च पदों को पाने वाले कई लोगों का मार्गदर्शन किया और मैं भी उनमें से एक हूं।
20 जुलाई, 2019 को मेरे पद संभालने से पहले उनके स्वास्थ्य में गिरावट आ रही थी। मैंने उनका आशीर्वाद लेने का निश्चय किया था, लेकिन उन्होंने मुझे प्रतीक्षा करने के लिए कहा। उनके अनुरोध को स्वीकार करना मेरे लिए कठिन था लेकिन कोई विकल्प नहीं था। उस समय 11:30 बज रहे थे जब मैं कोलकाता के राजभवन में था, मुझे बताया गया कि अरुण जी की हालत गंभीर है। मैं अपनी पत्नी के साथ पहली उपलब्ध उड़ान से दिल्ली उतरा और एम्स गया।
आज के परिदृश्य में, विशेष रूप से इस कॉलेज द्वारा इससे अधिक उपयुक्त श्रद्धांजलि नहीं हो सकती है कि अपने एक पूर्व छात्र जो पूर्णतया अलग दिखता था, के नाम पर एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का नामकरण किया गया है।
मैं वास्तव में गौरवान्वित और सम्मानित महसूस कर रहा हूं और हमेशा इस पल को गर्व और पीड़ा के साथ संजो कर रखूंगा कि मैं भी इससे जुड़ा हूं। मुझे यकीन है कि इस वाद-विवाद में भाग लेने वालों को अरुण जी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
एक अवसर था जब अरुण जी सभा के नेता और वित्त मंत्री थे। एक क्षण ऐसा आया जब एक संसद सदस्य ने बताया कि जब मैं मंत्री था तो मेरे सचिव ... अरुण जी उठे और कहा कि जब हम विभिन्न पदों पर देश की सेवा करते हैं, तो बहुत से लोग हम पर विश्वास करते हैं, हमें इसे कभी प्रकट नहीं करना चाहिए। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।
इस प्रक्रिया में, उन्होंने मानव स्वभाव की उदारता, गहराई को निरूपित किया। उनकी विचार प्रक्रिया में कभी कोई पीड़ा, क्रोध नहीं था। मुझे उन्हें यह बताने का मौका मिला कि भले ही मैं भाग्यशाली था कि 11 वर्षों की प्रैक्टिस के साथ मैं एक नामित वरिष्ठ बन गया और मेरा हमेशा दूसरे पक्ष को उकसाने का अपना तरीका था लेकिन आपने मुझे विफल कर दिया कि आप केवल एक मुस्कान के साथ उत्तर देते थे। हालांकि, मैं संसद का सदस्य नहीं था लेकिन मैं एक वकील के रूप में कभी-कभी दिल्ली आता था। वह कहते थे कि चलो, अपनी पसंदीदा जगह ओबेरॉय में कुछ लंच कर लेते हैं।
वह खेलों, क्रिकेट से जुड़े हुए थे और मुझे खुशी है कि उनका बेटा कानून और खेल दोनों क्षेत्रों में अपनी जगह बना रहा है। एक बात जो मुझसे छूट गई और दुर्भाग्य से वह फलीभूत नहीं हो सकी कि बहन संगीता जी के अलावा परिवार के अन्य सदस्य हमें व्यक्तिगत रूप से नहीं जान सके। एक बार जब वह अदालत में बहस कर रहे थे, तो मैंने उनके बगल में बैठने और हमारी निकटता का संकेत देने के की कोशिश की। किसी भी समय और किसी भी स्थिति में इस परिवार की मदद करना मेरे लिए हमेशा सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
नियति के क्रूर हाथों ने भारत के सबसे प्रतिभाशाली पुत्रों में से एक को उस छोटी सी उम्र में छीन लिया है, जबकि उनका सर्वोत्कृष्ट आना शेष था और यह नियति है जिसने मुझे राज्य सभा के सभापति के पद पर ला खड़ा किया जबकि मैं एक सदस्य होने के बारे में सोच रहा था। महोदया, वह हमेशा हमारे साथ रहेंगे, वे हमेशा हमारे विचारों में रहेंगे, उन्होंने एक ऐसी सद्भावना बनाई है जो कभी नष्ट नहीं हो सकती। आज जो कार्यभार संभाले हुए हैं, वे उनकी कीमत जानते हैं। आज देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है उनमें से कुछ इस महान सपूत के कारण समाधान के करीब हैं।
इसलिए देवियो और सज्जनो, इस अवसर पर मैं इससे अधिक और क्या कहूं कि अरुण जी ने जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए वाद-विवाद में महारत हासिल की और वाद-विवाद में उन्होंने हमेशा संयम, धैर्य का परिचय दिया। उन्होंने आक्रामकता में कभी विश्वास नहीं किया, वह अनुनय-विनय में विश्वास करते थे। उनका हमेशा मानना था कि आप दूसरों के दृष्टिकोण को समझें, दूसरों के दृष्टिकोण को उचित महत्व दें और फिर दूसरों के दृष्टिकोण पर काम करें। मुझे विश्वास है कि यह महान संस्थान ऐसे समय में इसकी शुरुआत कर रहा है जब दिल्ली विश्वविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। यह प्रथम वाद-विवाद है, मुझे विश्वास है कि हर कोई इसके बारे में ऐसी छवि लेकर चलेगा कि वर्षों तक यह वाद-विवाद प्रतियोगिता स्वर्गीय श्री अरुण जेटली की प्रतिष्ठा और मान्यताओं के साथ पूरा न्याय करेगी। मैं आयोजकों का, संगीता जी का आभारी हूं कि उन्होंने इस अवसर पर आने के बारे में सोचा। मैं अंत में यही कहूंगा; यह मेरे लिए गर्व और पीड़ा दोनों की बात है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।