आप सभी को शुभ संध्या।
मुझे आपके अपार धैर्य के लिए आप सभी की सराहना करनी चाहिए, क्योंकि यह एक बहुत लंबा सत्र रहा है। आपने उन लोगों के बेहतरीन संबोधनों का लाभ उठाया है, जो इस विषय को जानते हैं और इसे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।
वो कहते हैं ना, इतने हिस्सों में बंट गया मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं।
श्री अर्जुन राम मेघवाल, उनकी पोशाक को देखकर भ्रमित न हों, वे एक पूर्व नौकरशाह हैं और एक बहुत ही सफल जिला मजिस्ट्रेट रहे हैं।
माननीय विधि एवं न्याय मंत्री, मैं आपको उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताना चाहता हूं। एक युगांतकारी घटना, एक परिवर्तनकारी संवैधानिक प्रावधान, महिला आरक्षण, वे प्रभारी मंत्री थे। 20 सितंबर, 2023 को उन्होंने लोकसभा में संशोधन पुर:स्थापित किया। 21 सितंबर को राज्यसभा में मैं पीठासीन था और वे वहां थे। उनको बधाई! क्योंकि तीन दशकों से न जाने कितने प्रयास हुए, लेकिन वे जमीनी स्तर पर फलीभूत नहीं हो सके। उन्होंने इसे पूरा कर दिया।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा! मैं न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी का आभारी हूं कि उन्होंने न्यायमूर्ति मिश्रा से मेरा परिचय कराया। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में, राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में और उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति मिश्रा का मैंने सामना किया है। और मेरी आखिरी उपस्थिति तब हुई, जब मुझे नियुक्त किया गया था और मैं इसलिए नियुक्त कहता हूं, क्योंकि मैं पश्चिम बंगाल राज्य का राज्यपाल था और मेरे मुख्यमंत्री ने हर बार जोर दिया कि मुझे मनोनीत किया गया, इसलिए मैंने यहां नियुक्त शब्द का प्रयोग किया। मैं उनके न्यायालय में उपस्थित हुआ। आंतरिक रूप से सशक्त इस व्यक्ति ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अत्यंत ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है। एक टीम लीडर के रूप में उन्होंने मानवाधिकारों को ऐसे आयाम दिए हैं, जो मानव आबादी के छठे हिस्से का निवास-स्थान भारत को न्याय प्रदान करते हैं।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी! महोदया ने संवैधानिक कार्यकरण के संबंध में काफी विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने टैगोर के उद्धरणों पर ध्यान केंद्रित रखा। मेरा भी बंगाल से संबंध है। मैंने 'नोमस्कार' कहकर महोदया का अभिवादन किया और हम सभी को कुछ ऐसे पहलुओं पर जानकारी प्राप्त हुई, जिनके लिए वास्तव में ज्ञान की आवश्यकता थी।
श्री तुषार मेहता और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने घर पर मेरा काम बहुत कठिन बना दिया। उन दोनों ने मुझे विधिवेत्ता कहा है। मेरी पत्नी इससे सहमत नहीं है और आम तौर पर वह सही होती है। लेकिन फिर मैं यह कहकर उसके जाल में फंस गया कि विधिवेत्ता अच्छे वकील नहीं होते हैं। इसलिए, वह इन टिप्पणियों से कुछ हद तक खुश हो सकती है।
मैं श्री तुषार मेहता को बहुत लंबे समय से जानता हूं। मैं उनसे उम्र में बड़ा हूं। मैंने लगभग 16 साल पहले उस समय उनकी सराहना की थी, जब वे मुझे नहीं जानते थे पर मैं उन्हें जानता था। मैं उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में उनके योगदान के कारण जानता था। हमें उनकी डीएनए की जांच करनी होगी कि उन्हें सारे मुकदमों के लिए इतनी अच्छी तरह से तैयार होने की आखिर ऊर्जा कहां से मिलती है। मैं उनकी तैयारी के स्तर और उससे भी अधिक उनकी बुद्धिमता और हास्य-विनोद की प्रशंसा करता हूं।
मैं अब वरिष्ठ वकील नहीं रहा, अगर मैं होता, तो मैं किसी दिन अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल आपको उकसाने के लिए करता, हालांकि आप उकसाये जाने की सीमा से परे है।
डा. नितेन चंद्रा, सचिव, विधि कार्य विभाग! जब भी मैंने यह विवरण पढ़ा, मुझे अपने करियर की याद आ गई, जब मैं 1989 में लोकसभा के लिए चुना गया और संसदीय कार्य मंत्री बना। इंडिया टुडे के एक पत्रकार ने मुझसे पूछा और मैंने जवाब दिया, यहां तक कि मेरी स्नातकोत्तर पत्नी को भी नहीं पता कि संसदीय कार्य का मतलब क्या है। अत:, वे विधि कार्य को देखते हैं। कोई उनसे यह जान पाएगा कि विधि कार्य की विषय-वस्तु क्या है?
विशिष्ट श्रोतागण, लेकिन उससे पहले मुझे भारत के महान्यायवादी श्री आर. वेंकटरमणी जी की उपस्थिति का अवश्य आभार मानना चाहिए। वे उदात्त व्यक्तित्व के धनी, परम धार्मिक, मृदुभाषी लेकिन परम ज्ञानी व्यक्ति हैं। मैं न्यायालय में दूसरी तरफ भी रहा हूं। वे कभी आपा नहीं खोते और शादीशुदा आदमी बने हुए हैं।
इस संविधान दिवस पर दुनिया भर के भाइयों और बहनों को बधाइयां! यह हमारे उन संस्थापकों को कृतज्ञता और श्रद्धा के साथ याद करने का एक उपयुक्त अवसर है, जिन्होंने बड़ी बुद्धिमत्ता से हमें अद्वितीय संविधान दिया जो हमारे लोकतंत्र की रीढ़ है। मैं ज्यादा कुछ नहीं बोलूंगा, माननीय मंत्री और पहले के वक्ताओं द्वारा बहुत कुछ कहा जा चुका है।
आइए इस दिन एकजुट होकर संविधान के मूलभूत मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा की पुष्टि करें और मित्रों, यह एक गंभीर वक्तव्य है। हममें से कुछ लोग इस परिसीमा से बाहर जा रहे हैं।
वर्षों से, संविधान आशा और स्वतंत्रता का प्रतीक रहा है, सिवाय कि और वह एक अंधकारमय काल था, एक ऐसा काल जिसे हम भूलना चाहेंगे। युवा विद्यार्थी, लड़के और लड़कियां इससे अनभिज्ञ हो सकते हैं और वह जून 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा थी, जो लोकतांत्रिक भारत के स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में सर्वाधिक काला समय था।
आपातकाल लागू किया जाना संविधान के मूलतत्त्व और उसकी भावना को अपमानजनक रूप से कुचल देना था। यह संविधान को अपवित्र करने से कम नहीं था। यह दस्तावेज़ अब 1.4 अरब लोगों के लिए कितना प्रिय है।1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा आपातकाल लागू करना संविधान का बहुत बड़ा अपमान था। आपात काल का लगना संविधान की आत्मा पर कुठाराघात था।
सौभाग्य से, हमारे लिए हमारे लोकतांत्रिक मूल्य इतने मजबूत और इतने गहरे तथा अंतर्निहित हैं कि वर्तमान समय में ऐसे दुस्साहसों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है।
माननीय मंत्री ने संकेत दिया था कि ऐसा 2015 में हुआ कि माननीय प्रधान मंत्री के मन में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का विचार आया। वास्तव में यह 11 अक्तूबर, 2015 का दिन था, क्योंकि माननीय मंत्री की अधिसूचना इसके बारे में बहुत निश्चित है, आपने 19 नवंबर को जो तारीख बताई थी, लेकिन यह घोषणा 15 अक्तूबर, 2015 को मुंबई में माननीय प्रधान मंत्री द्वारा की गई थी। और यह अवसर मुंबई में डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी मेमोरियल की आधारशिला रखने का था।
मित्रों, मैं इस धरती के ऐसे महान सपूत के बारे में अपने विचार प्रकट करना चाहता हूं। हम उनकी बहुत प्रशंसा करते हैं। भारत के संविधान के निर्माता, लेकिन 1989 से 91 तक संसद सदस्य और केंद्रीय मंत्री के रूप में यह मेरे लिए गर्व का क्षण था कि हमारे शासनकाल के दौरान उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। यह बहुत संतोष की बात थी लेकिन हम सभी को इस पर गहराई से विचार करना चाहिए। इतने दशकों की देरी क्यों हुई? मैं इस मुद्दे को यहीं छोड़ता हूं।
हमारे संविधान निर्माण के संबंध में माननीय मंत्री ने इस समिति द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में संकेत दिया है। मैं अपने युवा मित्रों, लड़कों और लड़कियों को ध्यान में रखते हुए दो पहलुओं को सामने रखना चाहता हूं। अन्य लोगों को इसकी जानकारी है।
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एकमात्र ऐसा अनुच्छेद था जिसे मसौदा समिति द्वारा तैयार नहीं किया गया। अन्य सभी अनुच्छेदों का मसौदा तैयार किया गया और डॉ. अम्बेडकर ने इसका मसौदा तैयार करने से इनकार कर दिया। मैं आपसे इस विषय पर उनके पत्राचार को पढ़ने और यह देखने का आग्रह करूंगा कि कैसे इस अनुच्छेद 370, संविधान के एक अस्थायी अनुच्छेद ने जम्मू और कश्मीर के लोगों के जीवन को नरक बना दिया। हम माननीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी की बुद्धिमत्ता और माननीय केंद्रीय गृह मंत्री, श्री अमित शाह के बुद्धिमत्तापूर्ण दृष्टिकोण के आभारी हैं कि वह अनुच्छेद अब हमारे संविधान में नहीं है।
एक तरह से यह डॉ. अम्बेडकर को श्रद्धांजलि है कि जो बात उन्हें मंजूर नहीं थी, उसे भारतीय संसद ने प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता से सम्मान दिया है। दूसरा, मेरे अत्यंत प्रिय मित्र श्री तुषार मेहता जी ने सरदार वल्लभभाई पटेल जी के बारे में उल्लेख किया है कि उन्होंने रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सरदार जी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रियासतों के लिए तीन विकल्प उपलब्ध थे, लेकिन सरदार जी को फिर से जम्मू और कश्मीर राज्य के मामले से दूर रखा गया।
सरदार जी की सफलता प्राप्ति की दर 100% थी। इस देश का इतिहास बहुत अलग होता, यदि सरदार जी को जम्मू और कश्मीर राज्य के एकीकरण का कार्य भी सौंपा गया होता। राष्ट्र ने इसके लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। शुक्र है, हम वापस पटरी पर आ गए हैं।
मित्रों, संविधान दिवस हमारे लिए यह प्रतिबिंबित करने का एक उपयुक्त अवसर है कि हमारे संवैधानिक अंग किस प्रकार कार्य करते हैं। इस राष्ट्र की स्थिति क्या है? सचिव द्वारा विशेष रूप से इस देश के विकास पथ के स्वरूप का जिक्र किया गया है। यह जानकर खुशी हुई कि पिछले लगभग एक दशक से हमारा विकास पथ वृद्धिशील है और हम ऐसा करना जारी रखेंगे, यह संतोष की बात है।
विकास जीवन के हर क्षेत्र और समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रहा है। भारत की वृद्धि की सराहना एक ही कारण से की गई है। यह पिरामिडनुमा न होकर पठारनुमा विकास है, यानी इसका लाभ सभी को मिल रहा है। अगर आपके मेट्रो दिल्ली में 5जी कनेक्टिविटी है, तो मेरे गांव को भी यह सुविधा प्राप्तहै। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
मित्रों, ठीक एक दशक पहले... और चिंता की बात यह है कि हम दुनिया की पांच नाजुक अर्थव्यवस्थाओं का हिस्सा थे। यह हम सभी के लिए अत्यंत चिंता का कारण था। और सिर्फ एक दशक में हम उस स्तर पर पहुंच गए हैं कि हम 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं। 2030 तक, जैसा कि यहां पहले ही संकेत दिया गया है, हम तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होंगे। लेकिन युवाओं, लड़कों और लड़कियों के लिए जो बात ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह है कि इस प्रक्रिया में हमने ब्रिटेन और फ्रांस की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया है। हमारे लिए क्या उपलब्धि है!
जब हमने जी20 जो कि दुनिया के अब तक के सबसे त्रुटिहीन कार्यक्रमों में से एक था, का आयोजन किया था, तो मुझे वैश्विक नेताओं से जुड़ने और उनके दृष्टिकोण को जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसके आयोजन में किसी तरह की कोई कमी नहीं रही। विश्व बैंक और आईएमएफ, विश्व के दो प्रमुख वित्तीय संस्थान जो पहले यह संकेत दे रहे थे कि हमारी अर्थव्यवस्था कितनी मुश्किल दौर में है। मैं 1990 में केंद्रीय मंत्री था, जब हमारी वित्तीय विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए हमें अपने सोने को भौतिक रूप में स्विट्जरलैंड ले जाना पड़ा था। तब हमारी विदेशी मुद्रा 1 अरब से 2 अरब के बीच थी, अब यह 600 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
तो अब उनका इस विषय में क्या कहना है, उन्होंने भारत की अभूतपूर्व उदय, अप्रत्याशित विकास और वित्तीय समावेशन की सराहना की। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत को निवेश और अवसर का एक उज्ज्वल वैश्विक स्थान मानता है और विश्व बैंक के अनुसार हमारा डिजिटलीकरण मॉडल अन्य देशों के लिए अनुकरणीय है। विवरण पहले ही दिए जा चुके हैं, मैं आपको परेशान नहीं करूंगा।
मित्रों, हमारे वर्तमान समसामयिक परिदृश्य पर नजर डालें। अप्रत्याशित गहन ढांचागत विकास; प्रौद्योगिकी की गहरी पैठ; डिजिटलीकरण; अर्थव्यवस्था का निरंतर औपचारिकीकरण; पारदर्शी और जवाबदेह शासन; भ्रष्टाचार के लिए कोई समायोजन नहीं, ये शासन के पहलू और नए मानदंड हैं और इसका लाभ युवा लड़कों और लड़कियों को मिल रहा है। उन्हें बराबरी का मौका मिलेगा।
भारत का अभूतपूर्व उदय, चाहे वह समुद्र, भूमि, आकाश या अंतरिक्ष के क्षेत्र में हो, उसे वैश्विक मान्यता प्राप्त है। चंद्रमा पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग की स्मृति में 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में घोषित किया गया, दक्षिणी ध्रुव के उस हिस्से पर ऐसा करने वाले हम दुनिया के पहले देश हैं। हम उस बड़ी लीग में शामिल हैं जिसे हमारे वैज्ञानिकों ने साकार किया है।
एक ऐसा देश जिसने उम्मीद खो दी थी। हम आशावादी नहीं थे, कई तरह के पहलों और शासन संबंधी नीतियों से हमारी मनोदशा में बदलाव आता है। और हर तरफ आशा और उत्साह का माहौल है क्योंकि श्रृंखलाबद्ध शासनात्मक पहलों और कदमों के परिणामस्वरूप विकास का लाभ अंतिम स्तर के लोगों को भी प्राप्त हो रहा है, ब्यौरे पिछले वक्ताओं द्वारा पहले ही दिए जा चुके हैं। हमारे पास एक ऐसा पारिस्थितिकी है जहां हर कोई अपने लक्ष्यों और सपनों को साकार करने के लिए अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग करने में सक्षम है। यह एक ऐसा पारिस्थितिकी है जो लड़कों और लड़कियों को उनकी योग्यता और रूचि के अनुसार ऊंचाई हासिल करने में मदद करेगा। आपके लिए कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है। हम अमृतकाल में हैं और मैं हर तरह के विचारों को ध्यान में रखकर यह कह सकता हूं कि हमारा अमृतकाल ही हमारा गौरव काल है।
भारत परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों से जुड़कर काफी तरक्की कर रहा है। इससे कोई बच नहीं सकता। एक समय था जब हम इस पर ध्यान केंद्रित करने वाले अग्रणी देशों में होने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। अब हम उस श्रेणी में हैं। हम दोहरे अंक से भी कम की संख्या वाले ऐसे देशों का हिस्सा हैं, जो बड़े पैमाने पर क्लाउड एडाप्शन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
जरा कल्पना कीजिए कि हमारे जैसे देश ने राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में वैश्विक नेतृत्व किया है। इसके लिए छह हजार करोड़ रूपये पहले ही आवंटित किए जा चुके हैं। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, इसके लिए 19 हजार करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन मिशन में 6 लाख करोड़ रूपये का निवेश आकर्षित करने और 8 लाख रोजगार पैदा करने की क्षमता है।
हम अब अपने दृष्टिकोण में भविष्यवादी हैं क्योंकि अब हम दुनिया का वह हिस्सा हैं, जहां दुनिया हमें देखती है। हम एजेंडा तय करने वाले हैं, अब एजेंडा का हिस्सा नहीं हैं। दुनिया ने भारत के प्रधानमंत्री की आवाज कभी इतनी जोरदार ढंग से पहले कभी नहीं सुनी थी जितनी अब सुनी जाती है। हमारे पासपोर्ट का सम्मान इतना कभी नहीं था जितना अब है।
दोस्तों, हमें यह पसंद आये या नहीं आये - परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियां, हमें इसके साथ जीना होगा, वे हमारे साथी हैं। अत: हमें वह सकारात्मकता निकालनी होगी। अच्छी बात यह है कि हमारा देश दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जो इस मुद्दे से सकारात्मकता के साथ निपट रहे हैं और जैसा कि माननीय मंत्री ने संकेत दिया था कि यह हमें अपना स्थान दिलाने में बहुत मददगार होगा जब हम 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी में भाग ले रहे होंगे। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व ने हमारी वैश्विक स्थिति और प्रतिष्ठा को बढ़ाया है, जिसे मैं जी20 के दौरान महसूस कर सका। विश्व का हर नेता इस कार्यक्रम से स्तब्ध और प्रभावित था और क्यों नहीं हो? जी20 की मौजूदगी देश के प्रत्येक राज्य, प्रत्येक संघ राज्य-क्षेत्र, लगभग 60 स्थानों और 200 संवादों में महसूस की गई।
वे भारत और सम्पूर्ण भारत को देखने आये। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने भरपूर योगदान दिया। किसी भी तरह की त्रुटि नहीं थी। यह एक अद्भुत कार्यक्रम था, लेकिन उपलब्धियों पर नजर डालें! राष्ट्रों के वैश्विक समूह में भारत का उत्थान काफी अधिक है, क्योंकि हम जी20 में अफ्रीकी संघ को शामिल करने में सफल हो सके। यूरोपीय संघ पहले से ही इसका हिस्सा था। हम दुनिया को प्रभावित कर सके; भारत वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने वाले एक नेता के रूप में उभरा। भारत-मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाला गलियारा बनाकर हम वाणिज्य और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा अवसर पैदा कर सके। वह तो सदियों पहले अस्तित्व में था। हमने यही किया है। हमारा देश जैव ईंधन के उत्पादन में अग्रणी है। वास्तव में, हम अपनी अवधारणा 'वसुधैव कुटुंबकम' का पालन करते हुए दुनिया को बहुत कुछ दे रहे हैं। ऐसा साकार हुआ है।
डॉ. अंबेडकर ने इस संबंध में क्या कहा, डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने इसका सार समझ लिया जब उन्होंने यह कहा : "मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति के आधार पर मापता हूं।"
मुझे इस बात का संतोष था कि मैं जिन सात पुरस्कार विजेताओं को बधाई दे रहा हूं, उनमें चार लड़कियां थीं। संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए 1/3 सीटों का संवैधानिक रूप से स्वीकृत आरक्षण की यह सीमा ऊपरी सीमा नहीं है, यह निचली सीमा है। यह हमेशा अधिक रहेगा क्योंकि वे अन्य सीटों से भी चुनाव लड़ने के लिए विधिवत रूप से हकदार हैं।
दोस्तों, अभूतपूर्व प्रभावशाली परिणामों से युक्त सकारात्मक कार्यकारी शासन ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि हमारे राष्ट्र का उत्थान निर्बाध है। लेकिन मुझे अभी भी हममें से कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं, यद्यपि यह संख्या बहुत कम है, वे हमारे विकास को पचा नहीं पा रहे हैं। मैं कोई रास्ता निकालने के लिए जानकारों को बुलाऊंगा। जब भी देश में कुछ बड़ा हो रहा होता है, वे हमारी संस्थाओं को कलंकित, धूमिल, अपमानित करने में लग जाते हैं। भारत पर विश्वास करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है, एकमात्र विकल्प यह है कि हमें हमेशा अपने राष्ट्र को सर्वोपरि रखना होगा। हमें अवश्य राजनीति करनी चाहिए। मेरा राजनीति से कोई सरोकार नहीं है, मेरा सरोकार तो शासन-व्यवस्था से है। लेकिन जब शासन या सरकार या राष्ट्र की बात आती है, तो राजनीति को इससे दूर रखना चाहिए। लेकिन कुछ लोगों को यह बहुत मुश्किल लगता है। जनता की राय वास्तव में घटनाओं की दिशा बदल सकती है।
मित्रों, हमारी मजबूत न्यायिक प्रणाली को अपनी स्वतंत्रता और उत्पादकता के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। प्रौद्योगिकी का सदुपयोग करते हुए उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में पारदर्शिता, दक्षता और न्याय तक पहुंच की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रणालीगत पहल शुरू करके न्यायिक प्रणाली को लोकोन्मुख बनाया है। कई कदम उठाए गए हैं। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़जी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि "न्यायालयों को स्वयं में बदलाव लाने की आवश्यकता है ताकि न्यायिक प्रणाली लोगों तक पहुंच सके, बजाय इसके कि लोगों को उन तक जाना पड़े।"
न्यायिक प्रणाली में बड़े बदलाव आ रहे हैं! उच्चतम न्यायालय की ई-समिति ने परिवर्तनकारी पहल की अगुआई की है और वे वादकारियों की बेहतरी के लिए जीवन में बदलाव ला रहे हैं। वादी अब वह पाने में सक्षम हो गए हैं वे दशकों से तलाश कर रहे थे। और यह सौभाग्य से, इस समिति की व्यापक कार्रवाई का प्रभाव न केवल उच्चतम न्यायालय, बल्कि उच्च न्यायालयों और इनसे निचली न्यायालयों तक भी पड़ा है। न्यायिक प्रणाली को वादी-अनुकूल और लोकोन्मुख बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा डिजिटलीकरण को अपनाया गया है। ये कदम, सक्रिय कदम जो विशेषकर पिछले एक वर्ष में उठाए गए हैं, इन्होंने अधिक कुशल, पारदर्शी तंत्र तैयार किया है और लोगों की उस तक अत्यधिक आत्मविश्वास के साथ पहुंच सुनिश्चित हुई है। अब उन्हें गौण सामग्री पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कुछ महीने पहले जो संकेत दिया था, उससे सुगम न्याय सुनिश्चित हो पा रहा है।
हमारे संविधान के विकास के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। हमें याद रखना चाहिए कि इसे संविधान सभा द्वारा विकसित किया गया था। हमारे मंच पर न्यायाधीश, पूर्व न्यायाधीश मौजूद हैं। जब संविधान सभा द्वारा संविधान तैयार किया गया था, तो संदेश जोरदार और स्पष्ट था - यह संसद के अनन्य क्षेत्राधिकार में है। किसी भी अन्य एजेंसी, चाहे वह कार्यपालिका हो या न्यायपालिका, को छोड़कर संसद अकेले ही संविधान की निर्माता है। इसे आम आदमी की भाषा में कहें, तो संसद उच्चतम न्यायालय का निर्णय नहीं लिख सकती है और इसी तरह, उच्चतम न्यायालय हमारे लिए कानून नहीं बना सकता है। वह हमारा क्षेत्राधिकार है।
संसद लोगों की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। जो लोग संसद में बैठते हैं, वे वहां इसलिए बैठे हुए हैं कि एक उचित मंच पर एक वैध तंत्र के माध्यम से लोगों ने उन्हें अपना जनादेश दिया है और इसलिए संसद लोकतंत्र की आत्मा है, जो लोगों की मन:स्थिति और उनकी राय को प्रामाणिक रूप से प्रतिबिंबित करती है। संविधान के एकमात्र निर्माता के रूप में संसद की सर्वोच्चता निर्विवाद है। यह या तो कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा अपने कार्य में हस्तक्षेप किये जाने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
संसद की संप्रभुता राष्ट्र की संप्रभुता का पर्याय है और वह अभेद्य है। मैं ऐसा क्यों कहता हूं? आज कार्यपालिका सुचारू रूप से तभी कार्य कर पाती है, यदि उसके पास संसद में शक्ति है। मैं बड़बोला होना नहीं चाहता, लेकिन दूसरी संस्था भी तभी सुचारू रूप से कार्य कर पाती है, जब उसे संसद द्वारा मंजूरी प्रदान की जाती हो। इसलिए, एक ऐसा निकाय जिसकी नींव लोगों का जनादेश है, अपने क्षेत्राधिकार में किसी भी ऐसे घुसपैठ की अनुमति नहीं दे सकता है, जिससे लोकतंत्र में शासन की नाजुक व्यवस्था में व्यवधान पैदा होगा। दोस्तों, संसद के अनन्य क्षेत्राधिकार में किसी भी तरह का घुसपैठ लोकतांत्रिक गुण और मूल्यों के प्रतिकूल होने के साथ-साथ संवैधानिक उल्लंघन भी होगा।
जब कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका जैसे राज्य अंग सद्भाव, तालमेल और एकजुटता से काम करते हैं, तो लोकतंत्र का बेहतर ढंग से पोषण होता है। कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के सुपरिभाषित संवैधानिक क्षेत्राधिकार हैं। यह संवैधानिक अधिदेश है कि राज्य के ये सभी अंग अपने-अपने क्षेत्राधिकार के अधीन कार्य करें।
किसी एक अंग या दूसरे अंग के प्राधिकार का उत्सादन संविधान निर्माताओं की सोच से परे था। यदि आप डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के विचार पर गौर करें, तो उन्होंने कभी इस पहलू की ओर ध्यान नहीं दिया। यह उनके चिंतन से परे था कि संसद के संप्रभु क्षेत्राधिकार में घुसपैठ की कोई प्रणाली या तंत्र कभी भी हो सकता है, एक ऐसी स्थिति जिसे हमें दूर करने की आवश्यकता है।
यह समय संवैधानिक मूलतत्व को संरक्षित करने, बनाए रखने और पुष्पित-पल्लवित करने का है, न कि एक के द्वारा दूसरे के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण करके उसकी भूमिका को धूमिल करने का है।
भारत जो कि विश्व की कुल जनसंख्या के छठे हिस्से का निवास-स्थल है, का निरंतर विकास सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका टकराव का बोध पैदा करने के बजाय सहयोगपूर्ण संवाद करें।
चुनौतियों और तकनीकी विस्तार के उद्भव को देखते हुए शासन गतिशील हो गई है। मतभेद तो होंगे ही, मुद्दे भी रहेंगे। मुद्दों को सुलझाना होगा। हमारे जैसे देश जिसे पूरी दुनिया का पथप्रदर्शन करना है, में विशेष रूप से इन तीन संस्थाओं के बीच अभिवृत्ति का सामंजस्य होना चाहिए।
यदि मतभेद हैं, जिनका होना अवश्यंभावी है, तो ऐसे मतभेदों और उनका समाधान उत्कृष्ट राजनीतिक कौशल के साथ किया जाना चाहिए। ऐसे मतभेदों से निपटने की रणनीति के रूप में सार्वजनिक रुख अपनाने या धारणा पैदा करने से बचना ही बेहतर है।
मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि मैं न्यायपालिका का एक सिपाही हूं। मैं कानूनी पेशे से जुड़ा हुआ हूं। देश के लाखों लोगों की तरह न्यायिक स्वतंत्रता मुझे भी बहुत प्रिय है। हम आधारभूत रूप से सशक्त न्यायपालिका चाहते हैं और मैं विरोधाभास के डर के बिना कह सकता हूं कि हमारी न्यायपालिका दुनिया में सर्वश्रेष्ठ न्यायपालिकाओं में से एक है।
मैंने उठाए गए नवोन्वेषी कदमों की सराहना की है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता निर्विवाद है, लेकिन समय आ गया है कि हमें उन लोगों के बीच एक सुव्यवस्थित संवाद तंत्र बनानी चाहिए, जो ऐसी संस्थाओं के कार्यों में शीर्ष पर तैनात हैं ताकि मुद्दे सार्वजनिक क्षेत्र में न आएं।
मुझे यह जानकर खुशी है कि इन संस्थाओं की कमान संभालने वाले लोग राजनीतिज्ञ हैं। वे दूरदर्शी हैं, चाहे वे देश के प्रधान मंत्री हों, राष्ट्र के राष्ट्रपति हों या भारत के मुख्य न्यायाधीश हों। हम इससे अधिक भाग्यशाली नहीं हो सकते कि ये प्रख्यात लोग इन संस्थाओं का नेतृत्व कर रहे हैं और इसलिए, पर्यवेक्षण द्वारा या अन्यथा सार्वजनिक क्षेत्र में आने वाला कोई भी विपथन हमारे कानों के लिए सुखदायक नहीं होगा, जिसका अर्थ है बड़े पैमाने पर लोगों के लिए सुखदायक नहीं होगा।
मैं ऐसी प्रणाली तैयार करने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार अपने तरीके से काम कर रहा हूं, क्योंकि इन संस्थाओं से जुड़ा कोई भी व्यक्ति शिकायतकर्ता नहीं रह सके, वे शिकायतकर्ता नहीं हो सकते हैं और उन्हें बड़े पैमाने पर शिकायतकर्ता की शिकायतों का समाधान करना है। मुझे यकीन है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
इस महत्वपूर्ण दिन पर, मैं डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के गहन चिंतन का संदर्भ देना चाहूँगा : “संविधान का उद्देश्य न केवल संघ के तीन अंगों के निर्माण तक सीमित है, बल्कि उनकी शक्तियों की सीमाओं को निर्धारित करना भी है। और यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यदि सीमाएं निर्धारित नहीं की गईं, तो ये संस्थाएं निरंकुश हो जाएंगी और शोषण शुरू कर देंगी। इसलिए, विधायिका को किसी भी तरह का कानून बनाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए, कार्यपालिका को किसी भी तरह का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए और उच्चतम न्यायालय को कानूनों की व्याख्या करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए।”
उच्चतम न्यायालय को कानून या संविधान की व्याख्या हेतु प्रदान किया गया संवैधानिक प्रावधान एक छोटी सी चूक हैं। यह व्यापक रूप से नहीं हो सकता। हमें इसके बारे में बेहद सावधान रहना होगा और मुझे यकीन है कि आसपास के लोग, वे जिस तरह की प्रतिभा रखते हैं, वे जिस तरह की राष्ट्रवाद की भावना से भरे हुए हैं, इन मुद्दों को खत्म कर दिया जाएगा और हम ऐसी स्थिति में होंगे जब हमारी संस्थाएं हमारे भारत को उच्चतम स्तर तक ले जाने के लिए सद्भाव और एकजुटता के साथ काम कर रही होंगी।
कहीं मुझ पर आरोप न लग जाए, इसका ध्यान मुझे सांसदों पर भी है, विधायिका पर भी है। माननीय मंत्री यहां मौजूद हैं! माननीय मंत्री एक और पोर्टफोलियो भी देखते हैं और वह संसदीय कार्य मंत्री का है। मैं उनके माध्यम से देशभर के सांसदों से अपील करता हूं। संसद और राज्य विधायिका के सदस्यों को राजनीतिक रणनीति के रूप में वाद-विवाद, संवाद, चर्चा और विचार-विमर्श को, न कि अशांति और व्यवधान को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।
अभी हमारे पास इसका विपर्यय है। सभा की कार्यवाही को निष्क्रिय बनाने के लिए राजनीतिक रणनीति के रूप में व्यवधान और अशांति को हथियार बनाया गया है। लेकिन मैं बड़े पैमाने पर लोगों, विशेषकर लड़कों और लड़कियों से अपील करता हूं कि आप शासन में सबसे बड़े हितधारक हैं।
जब भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा, तो हममें से कुछ लोग उस समय नहीं हो सकते हैं, लेकिन आप वहां होंगे। आप 2047 के भारत के योद्धा हैं। बोझ आपके कंधों पर है। आपके पास पर्याप्त क्षमता और संभाव्यता है। आजकल हमारे पास जनमत तैयार करने के लिए जिस तरह का सोशल मीडिया मौजूद है, उसे देखते हुए यह बात आंखों के लिए सुखद नहीं है कि संसद में सांसद वह काम नहीं करते, जो डॉ. बी. आर अंबेडकर जैसे लोगों ने सांसदों से उम्मीद की थी। हमें मानसिकता और पारिस्थितिकी में बदलाव लाने की आवश्यकता है। मैं इसे वहीं पर छोड़ता हूं।
मित्रों, आइए इस दिन हम राष्ट्र को सदैव सर्वोपरि रखने का संकल्प लें। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए, हमें अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए। मैं आपके अद्भुत धैर्य के लिए आप सभी को समुचित रूप से धन्यवाद देता हूं। वास्तव में मेरा मतलब यही है।
धन्यवाद। जय भारत!