26 दिसंबर, 2023 को महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा दिया गया संबोधन (अंश)।

रोहतक | दिसम्बर 26, 2023

इस महत्वपूर्ण अवसर पर मुझे महर्षि दयानन्द जी के बहुत ही उपयुक्त विचार याद आ रहे हैं। मैं उसे उद्धृत करना चाहूंगा, "विद्यार्थी की योग्यता ज्ञान प्राप्त करने के प्रति उसके प्रेम, शिक्षा प्राप्त करने की उसकी इच्छा, विद्वान और गुणी व्यक्तियों के प्रति उसकी श्रद्धा, शिक्षक के प्रति निष्ठा और उसके द्वारा आदेशों के अनुपालन में प्रदर्शित होता है"। ज्ञान के इन मोतियों को हमेशा ध्यान में रखें।

मित्रों, स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का जीवन और उनके विचार सादगी तथा सदाचार को दर्शाते हैं जो कि प्रेरक और प्रेरणादायक हैं। उनका नाम ही हमारी विचार प्रक्रिया में अच्छी चीजों को उत्प्रेरित करेगा। स्वामी जी ने अपने पूरे जीवनकाल में सामाजिक सुधारों को उत्प्रेरित कर पूरे मन से स्वयं को समर्पित करते हुए और वेदों की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचा कर प्रचलित सामाजिक अन्यायों के विरुद्ध डटकर संघर्ष किया। भारत वर्तमान में काफी हद तक स्वामी जी के सपनों का प्रतिरूप है।

सत्य और ज्ञान के निष्ठावान समर्थक के रूप में उनकी मौलिक कृति 'सत्यार्थ प्रकाश' ज्ञान का एक अमूल्य स्रोत है जो आज भी हमें प्रेरित करता रहता है। यह प्रतिष्ठित संस्था हरियाणा राज्य में उच्चतर शिक्षा के सबसे प्राचीन और सर्वाधिक प्रतिष्ठित केन्द्रों में से एक है। वह दिन दूर नहीं जब यह हमारी प्राचीन संस्था नालंदा के गौरव तक पहुंचेगा और उसकी बराबरी करेगा।

मित्रों, आज डिग्री प्राप्त करने वाले सभी छात्रों को शुभकामनाएं! यह आपके लिए एक महान अवसर है, लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण और बड़ा बदलाव क्या है : 1216 पीएचडी की उपाधि दी गई है। बालकों, अपनी सांस रोककर रखो; अगला आंकड़ा आपके लिए एक बड़ी चुनौती बनने वाला है। इनमें से 740 महिलाएं और 476 पुरुष हैं। ऐसा हरियाणा के रोहतक में हुआ है, जो हमारे देश की बदलती रूपरेखा को दर्शाता है।

मित्रों, उपाधि प्राप्ति एक युग के अंत और एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। यह खट्टा-मीठा पल उपाधि प्राप्ति करने वालों और उनके प्रियजनों के लिए सभी प्रकार की भावनाओं से भरा होता है, जिनमें अलविदा कहने से लेकर खुशी के आँसू, उत्साह और भविष्य तक की चिंता होती है।

इस संस्था से उपाधि प्राप्त करना व्यक्तिगत उपलब्धि से कहीं बढ़कर है। यह आपके परिवारों, आपके शिक्षकों और आपकी मातृ संस्था के लिए अत्यंत गौरव का आनंदमय, अविस्मरणीय क्षण है। आप जीवन भर उन लोगों की यादों को संजोकर रखेंगे जो हर कदम पर आपके साथ चले, आपकी खुशी में और शिक्षा के संघर्ष में साथ रहे।

दीक्षांत समारोह आपकी जीवन यात्रा में एक मील का पत्थर है, आपके ज्ञान और शिक्षण का दायरा यहीं समाप्त नहीं हो जाता है। शिक्षण जीवन भर जारी रहेगा और रहना चाहिए। आप ज्ञान और कौशल से समर्थ होकर, नई चुनौतियों का सामना करने, अवसरों का लाभ उठाने और अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार होकर दुनिया में कदम रख रहे हैं। याद रखिए, आप अविश्वसनीय कार्यों पूरा करने में सक्षम हैं, इसलिए अपनी सफलता की कहानी स्वयं लिखें और उसे क्रियान्वित करें!

आज जो छात्र डिग्री धारक बनेंगे, वे पूर्व छात्र बन जाएंगे, उन्हें इस प्रतिष्ठित संस्था के प्रतिनिधि होने पर गर्व होगा। मैं आपसे अपील करता हूं कि पूर्व छात्र के रूप में आप जीवन भर अपनी मातृ संस्था से जुड़े रहें। इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। एक गौरवान्वित सदस्य के रूप में इसे वापस लौटाएं। इसलिए अपने मातृ संस्था के साथ वित्तीय संबंध बनाए रखने का संकल्प लें। वित्तीय संबंध का वित्तीय योगदान की मात्रा से कोई संबंध नहीं है, लेकिन कृपया भौतिक रूप से भी अपनी मातृ संस्था से जुड़े रहें। इससे मातृ संस्था को प्रभावशाली ढंग से आगे की यात्रा करने में मदद मिलेगी और इस कारण यह आगे बढ़ता जाएगा।

मित्रों, आप वास्तव में भाग्यशाली हैं कि आप स्वयं को अमृत काल के पोषक पारितंत्र में पा रहे हैं। अमृत काल हमारा गौरव काल है। आपके पास एक पारितंत्र है। इस पारितंत्र में हमें क्या प्राप्त होता है? यहां आपकी असीम ऊर्जा को उन्मुक्त करने और अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के द्वार पूरी तरह से खुले हुए हैं। भारत का अभूतपूर्व रूप से उदय हो रहा है। साथ ही, मित्रों मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि यह यात्रा, प्रगति यात्रा निर्बाध है।

अपने चारों ओर समृद्ध और प्रगतिशील सकारात्मक पारितंत्र को देखिए। चारों ओर दखिए, पिछले दो-तीन महीनों के घटनाक्रम को देखिए और आपको पता चल जाएगा कि राष्ट्रों के समूह में हमारा भारत कहाँ है।

किसी ने समझदारी की बात कही है, "याद रखें कुछ भी असंभव नहीं है। शब्द स्वयं कहता है, 'मैं संभव हूं!

यह सक्षम शासन आपका इंतजार कर रहा है, जहां ईमानदारी - मेरे शब्दों पर ध्यान दीजिए - एक दशक या 15 साल पीछे जाएं और अब स्थिति को देखें। स्थिति यह है कि ईमानदारी, जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा जैसे तत्वों से समझौता नहीं किया जा सकता। ये शासन के अपरिहार्य पहलू हैं, एक नया मानदंड है। कानून और उसके प्रवर्तन का समान रूप से सम्मान करना इस पारितंत्र की एक अन्य समानतापूर्ण विशेषता है और अब कोई व्यक्ति इससे ऊपर नहीं है। जिन लोगों को लगता था कि कोई भी उन तक नहीं पहुंच सकता है, वे स्तब्ध हैं; वे कानून के दायरे के भीतर हैं। धनवान और शक्तिशाली, सभी कानून के प्रति जवाबदेह हैं और यही लोकतांत्र का गुण है। यदि कोई कानून से ऊपर है, तो उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता है। कुछ लोग सोचते हैं कि वे एजेंसी से बच निकलेंगे; कुछ लोग सोचते हैं कि वे कानून की पहुंच से बाहर हैं। यह परिदृश्य पूरी तरह ध्वस्त हो गया है; कानून सर्वोच्च है।

हाल ही में शासन का एक और महत्वपूर्ण पहलू उभर कर आया है कि भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। कानून के समक्ष समानता और जवाबदेही अब जमीनी हकीकत है। हमें इसके लिए प्रचार करने की आवश्यकता नहीं है, लोग इसके बारे में जानते हैं। मुझे याद है कि 15 साल पहले, सत्ता के गलियारे सत्ता के दलालों और संपर्क एजेंटों से भरे हुए थे। भ्रष्टाचार के बिना कोई भी लेन-देन नहीं हो सकता था, लेकिन अब परिदृश्य यह है कि शासन के गलियारों को सत्ता के उन दलालों से मुक्त कर दिया गया है जो भ्रष्ट और गैर-कानूनी तरीकों से निर्णय लिए जाने का लाभ उठाते थे।

आपको केवल एक विचार और उस विचार को क्रियान्वित करने के लिए साहस और दृढ़ निश्चय की आवश्यकता है। हमेशा याद रखें, पैराशूट तभी काम करता है जब वह खुला हुआ होता है। पैराशूट की तरह केवल महान मस्तिष्क का होना किसी काम का नहीं है। यदि आप इसे एक पैराशूट की भांति नीचे गिराकर खोलते नहीं हैं, तो आपको दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इसलिए, अपने मन को खुला रखें और मन को असफलता के डर से मुक्त करें।

सकारात्मक नीतियों और शासन ने आपको पहले से ही ऐसा अनुकूल मंच प्रदान किया है जहां आप अपनी प्रतिभा को उजागर कर सकते हैं, मत्वाकांक्षाओं को साकार कर सकते हैं और भारत@2047 की ओर भारत की ऐतिहासिक यात्रा में योगदान दे सकते हैं। मैं अपने युवा मित्रों को संबोधित कर रहा हूं। भले ही हमारे वरिष्ठ हमारे आसपास नहीं हों, लेकिन आप प्रमुख पदों पर होंगे और इसलिए, मैं आपसे अपील करता हूं। आप ऐसे पथप्रदर्शक हैं, जो हमें ऐसे भविष्य की ओर ले जाएंगे जो नवाचार और उद्यम द्वारा परिभाषित हो।

जस्टिस सूर्यकांत ने नया मानदंड परिभाषित किया है, "कड़ी मेहनत करें और बाकी भाग्य पर छोड़ दें। इस पेशे में सफल होने के लिए किसी विशेष पृष्ठभूमि से होना आवश्यक नहीं है।"

कल्पना कीजिए कि उस पृष्ठभूमि से उनका उदय अविश्वसनीय था, बहुत सारी कठिनाइयां थीं, लेकिन वे इस राज्य के सबसे कम आयु के महाधिवक्ता बने, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश हैं, न्यायिक प्रशासन का हिस्सा हैं और कई कीर्तिमान हासिल करना अभी बाकी है। साधारण परिवार! मेरी एक बात उनके समान है। मैं भी बहुत साधारण परिवार से हूं। आप ध्यान रखें कि आप सभी के लिए सीमाएं अनंत है।

आप, भारत के युवा प्रतिभा पुनरुत्थानशील भारत के अग्रदूत हैं! इस देश में युवाओं की उपलब्धियां असाधारण से कम नहीं हैं। मैं उन युवाओं के बारे में बात कर रहा हूं जिन्होंने पहले से ही विश्वविद्यालयों से बाहर काम किया है और भारत के विकास पथ में योगदान दिया है। उन्होंने भारत को विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। उन्होंने अर्थव्यवस्था में एक ऐसा पारितंत्र बनाया है जो हमें वर्ष 2030 के अंत तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देगा। हमारे युवा मित्रों ने विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारितंत्र बनाकर कृषि क्षेत्र में क्रांति ला दी है, उन्होंने या है और उनका योगदान ऐसा है कि भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र होगा। भारत विश्वगुरु बनेगा; इसमें कोई संदेह नहीं है।

हमारे राष्ट्र ने उभरती परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए विश्व के अग्रणी देशों का नेतृत्व करने की बड़ी पहल की है। मैं कुलपति जी का बहुत आभारी हूं क्योंकि उन्होंने कमान संभाल रखी है। मुझे सुखद रूप से आश्चर्य हुआ कि वे इस विशेष क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे। मित्रों, परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी हमारे जीवन में प्रवेश कर चुकी हैं, वे हमारे कार्यस्थल में प्रवेश कर चुकी हैं, हमारे कार्यालय में प्रवेश कर चुकी हैं, हमारे घर में प्रवेश कर चुकी हैं। हमें केवल व्यापक लोक कल्याण के लिए उनके उपयोग को सही दिशा देने के लिए काम करना है। हमारी जीवनशैली, कार्यशैली और एक-दूसरे के बीच परस्पर संबंध को बदल रहे अत्याधुनिक उत्पादों को बनाने के लिए एआई, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्वांटम कंप्यूटिंग, मशीन लर्निंग और हरित प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा रहा है।

मित्रों, मैं आपको बड़े संतोष के साथ बता सकता हूं कि क्वांटम कंप्यूटिंग के संबंध में हम उन अग्रणी राष्ट्रों में हैं, जिन्होंने इस विषय पर ध्यान केन्द्रित किया है। हमारे क्वांटम कंप्यूटिंग आयोग को पहले ही 6000 करोड़ रुपये आबंटित किए जा चुके हैं। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन पहले से ही मौजूद है, इसके निपटान में 19000 करोड़ रुपये लगाए गए हैं। वर्ष 2030 तक 6 लाख रोज़गार के लिए 8 लाख करोड़ रुपये के निवेश की संभावना है। आप सभी को इसका उपयोग करना होगा। आपको इसे दिशा देनी होगी। इसे ध्यान में रखें और मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय के पास परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी की जांच करने के लिए संभावित क्षमता और पर्याप्त संकाय है। यह आपके लिए, हमारे राष्ट्र के लिए अत्यंत लाभकारी होगा। यह प्रोद्योगिकी हमारी सुरक्षा के लिए भी काफी प्रासंगिक होगी।

अच्छी बात यह है कि एक समय था जब हम प्रतीक्षा करते थे कि प्रौद्योगिकी कहीं अन्य स्थान पर विकसित हो जाए। तब, हम इस बात की प्रतीक्षा करते थे कि प्रौद्योगिकी कैसे प्राप्त की जाए तथा वे देश निबंधन और शर्तों को निर्धारित करते थे कि हमें प्रौद्योगिकी कैसे मुहैया किया जाएगा और इसका कितना हिस्सा वे हमें देंगे - इसका केवल एक छोटा सा हिस्सा। अत:, शक्ति की विषमता थी। आज, भारत नवाचार और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में नेतृत्व करने वाले विश्व के प्रथम 10 देशों में से एक है । मित्रों, विशेषकर जब परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी - उनके उपयोग, उनके व्यापक उपयोग और उनके विकास की बात आती है, तो मुझे विश्वास है कि यह विश्वविद्यालय अपनी छाप छोड़ेगा।

मेरे प्रिय युवा मित्रों, भारत को आपसे बहुत अपेक्षाएं हैं और क्यों न हो? आप इस महान भारत के नागरिक हैं, जहां मानव जाति का छठा हिस्सा निवास करता है। हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहां भारत का प्रभाव और प्रभुत्व सीमाओं के पार भी महसूस किया जाता है। विदेश में भारतीय होना हमारे लिए गर्व की बात है, क्योंकि दूसरे लोग अब हमें एक नए सकारात्मक नज़रिये से देखते हैं। मित्रों, जीवन में इससे बड़ा कोई आनंद नहीं हो सकता कि हम अपने राष्ट्र और अपनी मातृ संस्था और अपने समाज के ज्यामितीय उत्थान में योगदान दें। मुझे विश्वास है कि आप सभी इस बात को ध्यान में रखेंगे, वास्तव में यही वेदों का सार है, यही हजारों वर्षों पुरानी हमारी सभ्यता का सार है।

असफलता सबसे बड़ी शिक्षक होती है और अंतत: यह सफलता की सीढ़ी है। इसलिए, असफलता से कभी न डरें, कभी निराश न हों। जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, “अपने जीवन में जोखिम उठाएं। यदि आप विजयी होते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं! यदि आप पराजित हो जाते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं!”

जीवन में हर प्रयास में सफल होना या सफलता पर निर्भर होना जरूरी नहीं है। यह जरूर नहीं कि आप प्रयास करो, सफल होगे। हो सकता है आप असफल हो। असफलता व्यक्ति की नहीं होती, असफलता एक पारितंत्र की होती है। उस पारितंत्र को बाद में बदला जाता है और सफलता आने वाले समय में निश्चित होती है।

मैं हमारे संविधान-निर्माता डा. बी.आर. अंबेडकर को उद्धृत करने के लिए उत्सुक हूं और उनका जीवन संघर्ष और उपलब्धि का जीवन रहा है। उन्होंने अपने तरीके से चुनौतियों का सामना किया, जिसका आप अनुसरण कर सकते हैं। मित्रों, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मेरे विचार से हममें से कुछ लोग, बहुत कम संख्या में लोग इससे सीख नहीं लेते हैं। इससे हमारा दिल दुखता है। भारतीयता में विश्वास रखने वाला कोई व्यक्ति, भारत का एक नागरिक कैसे देश भर में या विदेश जाकर हमारे राष्ट्र की प्रतिष्ठा को कम कर सकता है और उसकी निंदा कर सकता है, हमारी प्रगति को धूमिल कर सकता है, हमारी संवैधानिक संस्थाओं को कलंकित कर सकता है। उनके लिए यह सबक है कि वे डा. अंबेडकर की इस विवेकपूर्ण विचार को ध्यान में रखें, जिसे मैं उद्धृत कर रहा हूं, "आप शुरू से लेकर अंत तक भारतीय हैं और भारतीय होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।"

आज जब आप यहां से उत्तीर्ण होकर निकलेंगे, तो आपको याद रखना चाहिए कि आपकी सफलता का श्रेय आपके माता-पिता, शिक्षकों और आपकी मातृ संस्थाकन को जाता है।

गुरुजनों का आदर, परिजनों की सेवा और देश का सम्मान आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए। गुरुजनों का आदर हो जाता है, पर परिजनों का सम्मान आना चाहिए। जब ऐसा होगा, तब हमारी सांस्कृतिक विरासत पर एक कालिख लगेगी। हम उस भारत के नागरिक हैं, जहां बुजुर्गों का सम्मान होता है। मैं कहता हूं : ''मुझे सबसे बड़ी पीड़ा होती है जब कोई कहता है कि मैं वृद्धाश्रम बना रहा हूं। हमारे भारत में वृद्धाश्रम की कहां आवश्यकता है? हमारे यहां रिश्ते इतने खिले हुए हैं कि इसकी आवश्यकता नहीं है।''

सभी छात्रों से मुझे यह अपेक्षा है: ''कुछ भी परिस्थिति हो, कितना भी विकास हो, दुनिया के किसी भी कोने में आप कम करें। भारत के लिए नाम काम कमाएं, खुद के लिए नाम कमाएं, अपने माता-पिता, परिजनों का हमेशा ध्यान रखें। उनकी सेवा में ही ईश्वर है।''

भारतीयता हमारी पहचान है। अंग्रेजीयत नहीं है। भारतीयता है। भारत का हित सर्वोपरि है। हम दूसरों के हित को सर्वोपरि नहीं रख सकते हैं लिए, हमारे को रखना पड़ेगा। हमें सृजन करना पड़ेगा, हमें संरक्षण करना पड़ेगा। हमने जो विरासत पाई है, दुनिया की किसी देश ने ऐसी विरासत नहीं पाई है। हमने जो कल्प अकल्पनीय अप्रत्याशित प्रगति हाल के वर्षों में की है, दुनिया उससे अचंभित है। मैं आपका ज्यादा समय नहीं लेना चाहता, आप सबको पता है कि जो इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड बैंक क्या कहते थे पहले और आज भारत के बारे में क्या कहते हैं। भारत वाह-वाही लूट रहा है क्योंकि उनके अनुसार भारत निवेश और अवसर का लोकप्रिय गंतव्य है।

हम अमृत काल में हैं और यह हमारा गौरव काल है और 2047 में आजादी के शताब्दी महोत्सव पर भारत विकसित देश और विश्व गुरु निश्चित रूप से बनेगा।

मैं आपके पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन में आपके भावी प्रयासों की पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।