यहां उपस्थित सभी को मेरा नमस्कार!
तीन दशक से इस संस्था ने काफी लंबा, काफी प्रभावशाली सफर तय किया है। और अब जब हम अमृत काल में हैं, तो यह संस्थान एक लंबी छलांग के लिए तैयार है। मैं 25वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर यहां आकर अत्यंत प्रसन्न हूं। सभी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं, उनके माता-पिता, उनके दोस्तों को बधाई। यह सदैव स्मरणीय रहने वाला क्षण है। यह आपके, आपके परिवार के सदस्यों के लिए गर्व का क्षण है और उन संस्थानों में योगदान करने का अवसर है, जिनसे जुड़कर आप भविष्य में एक वृहद् विश्व के साथ ताल से ताल मिलाकर आगे की ओर बढ़ेंगे।
यह सुयोग्य मान्यता कुछ प्रकार के दायित्वों के साथ आती है। दायित्व दो प्रकार के हैं, एक, कभी यह न मानें कि यह सीखने का अंत है। यह सीखने की शुरुआत है लेकिन इसकी प्रकृति थोड़ी अलग है। इसलिए कभी भी सीखना बंद न करें। ज्ञान अर्जित करने से कभी न रुकें। और दूसरी बात, यहां से आप इस प्रतिष्ठित संस्थान के छात्र के रूप में नहीं बल्कि इसके पूर्व छात्र के रूप में जा रहे हैं।
मैं लंबे समय से पूर्व छात्रों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं। यह वास्तव में मेरे लिए विचार करने का एक उपयुक्त अवसर है। हमारे संस्थानों के पूर्व छात्र दुनिया के सबसे प्रभावशाली, शक्तिशाली प्रतिभा भंडार हैं, हमें इस देश में इसे संघीय स्तर पर तैयार करने की आवश्यकता है।
सभी संस्थानों, आपके संस्थान, आईआईटी, आईआईएम और अन्य विश्वविद्यालयों के अपने पूर्व छात्र हैं, लेकिन यदि उनके पास पूर्व छात्रों का एक राष्ट्रीय संघ है, तो नीति निर्माण के कार्य में योगदान अत्यधिक गुणात्मक हो सकता है, अत्याधुनिक इनपुट प्रदान कर सकता है और राष्ट्र के परिवर्तन में मदद कर सकता है।
साथियों, मेरा दृढ़ विश्वास है कि सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा ही एकमात्र सबसे प्रभावी परिवर्तनकारी तंत्र है। अच्छी शिक्षा प्राप्त करना एक विशेषाधिकार है, जिसका आप सभी ने लाभ उठाया है। आपके लिए चिंतन करने, सोचने और समाज को कुछ वापस देने का समय आ गया है। और मुझे यकीन है कि आप ऐसा करेंगे।
मैं प्रत्येक भारतीय की खुशी साझा करना चाहता हूं और आपके अध्यक्ष इस पर विचार कर रहे थे। सचमुच, वह चंद्रमा पर थे और ठीक भी है। चंद्रयान-3 की सफलता को अलग नजरिये से देखना होगा। एक तो यह कि सॉफ्ट लैंडिंग इतनी सावधानीपूर्वक की गई थी, यह पहली बार था कि किसी देश को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग का यह सम्मान मिला। हम चार बड़े देशों में शामिल हो गए हैं और कुछ ही समय में हम नंबर एक पर होंगे।
लेकिन मैं पुरानी यादों में वापस जाता हूं। 2019 में चंद्रयान-2 की लैंडिंग के समय मैं पश्चिमी बंगाल का राज्यपाल था, आधी रात के बाद का समय था। मैं वहां साइंस सिटी में युवा लड़के और लड़कियों के साथ था।
हमने अपनी सांसें रोक रखी थी। उस अभियान में हमें 96% सफलता मिली; 4% रह गई। वहां बिल्कुल शांति थी। वहां अतिसंवेदनशील उम्र के लड़के और लड़कियाँ थे। मैं वहां उपस्थित था। हम इसरो के साथ स्क्रीन पर लाइव कनेक्ट थे। तभी देश के प्रधानमंत्री ने इसरो निदेशक की पीठ थपथपाई और उन्हें 96 फीसदी सफलता के लिए बधाई दी। वह निदेशक के पीछे चट्टान की तरह खड़े रहे और यही स्थिति हम इस देश में चाहते हैं।' उसी क्षण ने इस वर्तमान सफलता की नींव रखी।
दूसरा उदाहरण, हमारी महिला हॉकी टीम ने टोक्यो में बेहतरीन प्रदर्शन किया। लड़कियां इसमें पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकीं। वे सभी दुखी थीं। प्रधान मंत्री ने उनमें से प्रत्येक से बात की। वहीं पर उसी समय। उनकी आंखों में आंसू थे लेकिन मन में सफल होने की ललक थी। अब समय आ गया है हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए ।हम क्यों हर बार देखें हमारा गिलास आधा खाली है, अरे आधा भरा हुआ है, ऊपर तक भरेगा।
हमें नकारात्मकता छोड़नी होगी। हमारी उपलब्धियाँ शानदार, अभूतपूर्व हैं। इसे ध्यान में रखें। लेकिन इस परिदृश्य का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी में भारत का उदय के रूप में परिलक्षित था, दुनिया के सभी चैनल, चाहे मध्य पूर्व में हों, यूरोप में हों या संयुक्त राज्य अमेरिका में हों, उस सॉफ्ट लैंडिंग पर अपनी नजरें बनाये हुए थे। हर कोई भारतीय प्रधान मंत्री को बधाई दे रहा था। यह हमारे लिए खुशी का क्षण था, गौरव का क्षण था।
5000 साल की सभ्यता है, दुनिया में कोई मुकाबला नहीं कर सकता, हममें से कुछ लोग पता नहीं अपने रास्ते से क्यों हट जाते हैं। यह यंग माइंड्स को देखने की बात है। भारत 2047 में क्या होगा जब यह अपनी आजादी के 100 साल सेलिब्रेट करेगा उसके फुट सोल्जर आप लोग हो। मंच पर उपस्थित हममें से अधिकांश लोग और यहां मौजूद वरिष्ठ लोग भले ही तब न हों, लेकिन हम अपने निर्माता से इस विश्वास के साथ मिलेंगे कि हमारे समृद्ध मानव संसाधन, हमारे लड़के और लड़कियां दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं और वे 2047 में भारत को शीर्ष पर ले जाएंगे।
हमने देखा है कुछ साल पहले भारत के पासपोर्ट का क्या स्तर था, भारतीय होने का क्या मतलब था, हालात बदल गए हैं, जो सोचा नहीं था वह जमीनी हकीकत है।
शायद ही कोई वैश्विक प्रतिष्ठित निगम हो जिसमें भारतीय मस्तिष्क की उपस्थिति न हो। आप एक भारतीय प्रतिभा को उस संगठन के उत्थान में योगदान करते हुए पाएंगे।
हमने जो सॉफ्ट डिप्लोमेसी के पांच महत्वपूर्ण तत्व है उनको इस हद तक ले गए हैं कि आज भारत किसी का मोहताज नहीं है, दुनिया में भारत बात करता है विश्व शांति की, विश्व हित की और विश्व एक परिवार है। एक पृथ्वी, एक परिवार अर्थात् वसुधैव कुटुंबकम् जी20 का आदर्श वाक्य भी है।
मुझे 1989 में संसद के लिए चुना गया था। मैं एक मंत्री था। मुझे तब स्थिति पता थी। अपनी वित्तीय विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए, हमें अपना सोना भौतिक रूप में बाहर हवाई जहाज़ से भेजना पड़ा। अब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि भारत निवेश और अवसर के लिए दुनिया में एक उज्ज्वल एवं पसंदीदा स्थान है।
हमने अपनी गरिमा में सुधार किया है, सॉफ्ट पावर कूटनीति का एक पहलू, हमने अपने संवाद स्तर में सुधार किया है, हम साझा समृद्धि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और आप साझा समृद्धि क्यों चाहते हैं, मैं आपको बताऊंगा। 1.3 अरब से अधिक लोग कोविड महामारी का सामना कर रहे थे और फिर भी हमारा भारत कोवैक्सिन के माध्यम से 100 देशों की मदद कर रहा था। यही हमारी संस्कृति है। हम विश्व को एक परिवार मानते हैं।
हम अपनी समस्याओं का ध्यान रख रहे थे और दूसरों का हाथ थामकर उन्हें उपचारात्मक स्पर्श दे रहे थे। हम वैश्विक सुरक्षा और अपने सांस्कृतिक संबंध को बेहतर बनाने पर ध्यान देते हैं।
मेरे युवा साथियों, जो हमारे पास नहीं था वो आपके पास है। कई सरकारी पहलों और सकारात्मक नीतियों के परिणामस्वरूप अब आपके पास एक पारिस्थितिकी तंत्र है, जहां आपको अपनी प्रतिभा और ऊर्जा को पूरी तरह से विस्तारित करने और उजागर करने का अवसर मिलता है। आप अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं और अपनी आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदल सकते हैं। और यही कारण है कि भारत उन यूनिकॉर्न और स्टार्टअप्स की जगह है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर दुनिया को अपने कार्यों से चौंका दिया है।
यह जो बड़ा बदलाव आया है, युवाओं को शायद पूरी जानकारी नहीं होगी, यहां के वरिष्ठ लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी होगी, हमारे सत्ता के गलियारे सत्ता के दलालों से भरे हुए थे। उन सत्ता गलियारों को साफ़ कर दिया गया है। सत्ता के दलालों की संस्था ख़त्म हो गई है। यह कभी पुनर्जीवित नहीं हो सकती है। पारदर्शिता और जवाबदेही शासन की पहचान है।
यह सब एक अच्छे कारण से हो रहा है। भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं है। मैं युवा लड़कों और लड़कियों से आह्वान करता हूं कि सोचें, अगर किसी पर कानूनों के उल्लंघन, भ्रष्टाचार या अपराध के लिए मामला दर्ज किया जा रहा है, तो क्या आप चाहते हैं कि वह व्यक्ति सड़कों पर उतरे या आप चाहते हैं कि वह अदालत में जाए?
आप विचारशील मस्तिष्क हैं, आप इस भारत का भविष्य हैं। आपको इसका मार्गदर्शन करना होगा, इसे उच्चतम स्तर पर ले जाना होगा। इस संस्कृति को ख़त्म हो जाना चाहिए। आपको इसके लिए माहौल बनाना होगा। सोशल मीडिया ऐसा ही अवसर प्रदान करता है।
मेरा मानना है कि हमारी न्याय प्रणाली बहुत मजबूत है और उच्चतम स्तर पर कार्य करती है। पूरी दुनिया को भारतीय प्रणाली पर गर्व है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हमारी कार्यकारिणी काम कर रही है। हमारे पास सड़कें हैं, रेलवे हैं, प्रौद्योगिकी है, हमारे पास विश्व स्तरीय संरचनाएं हैं। लेकिन जब विधायिका, आपके प्रतिनिधियों की बात आती है, तो दृश्य निराशाजनक है। राज्यसभा के सभापति के रूप में, मैं वाद-विवाद, संवाद, चर्चा नहीं देखता। मुझे व्यवधान दिखता है।
हमें एक ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी, जिसमें अपने कार्यों को साकार करने वालों की प्रशंसा हो, जिसमें लोग अपने कार्यों को शपथानुकूल संपन्न करें, जिसमें लोग अपने संवैधानिक उम्मीदों पर खरा उतरें। आप चाहेंगे कि आपका प्रतिनिधि ऐसे आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करे जिसका अनुकरण किया जा सके, जो दूसरों को प्रेरित कर सके। तीन साल के लिए बनी संविधान सभा ने हमें संविधान दिया, उसमें एक बार भी व्यवधान नहीं हुआ। एक बार भी अशांति नहीं हुई और वे बहुत कठिन मुद्दों, विभाजनकारी मुद्दों, विवादास्पद मुद्दों से निपटे। अब मैं आपको क्यों बता रहा हूं, मैं आपको इसलिए बता रहा हूं क्योंकि आपकी विचार प्रक्रिया, आपका योगदान, आपका अपने मन की बात कहना, आपका तटस्थता से बाहर निकलना, आपका मौन छोड़ना, यह मायने रखेगा कि वे सभा में क्या करते हैं ,यदि वे अपने आचरण का अनुकरण नहीं करते हैं, तो देश के युवा खुश नहीं हैं और यह बहुत मायने रखेगा। आप उच्चतम न्यायालय की स्थिति जानते हैं, आप खुश हैं कि कोई भी कठिनाई हो, हमारा उच्चतम न्यायालय देशहित में कार्य करता है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कार्यपालिका आपके लिए उपलब्धियां हासिल करने के लिए तत्पर है। विधायिका विफल क्यों होनी चाहिए? इस पर ध्यान दें।
फ्रेंड्स हम तो उस जमाने के हैं गांव में बिजली, सड़क नहीं थी, नल में पानी आने का मतलब ही नहीं था, टॉयलेट के लिए तो पूरा जोर था, पैदल जाते थे। गांव के अंदर कभी कोई गाड़ी आ गई गलती से तो मोर बहुत बोलते थे, बताते थे कि गांव में कोई गाड़ी आई है। वकालत में आए तो इंटरनेट नहीं था, सोशल मीडिया नहीं था, इस प्रकार के कंप्यूटर नहीं थे और मैनुअल टाइपराइटर था। हम कहां आ गए हैं ! देश में तकनीकी की पहुंच गांव तक हो गई है। यह हमारे लिए अत्यंत गौरव का क्षण हैं।
11 करोड़ किसान इस देश के साल में तीन बार और अबतक 240000 करोड़ रुपए सीधे अपने बैंक अकाउंट में प्राप्त कर चुके हैं। मैं डिलिवरी की बात नहीं कर रहा हूं, वह तो आपने इंप्रूव कर दी, रिसीव करने वाले की ताकत भी देखो यह कितना बड़ा चेंज आया है। अगर मैं आपको वैश्विक आंकड़ों पर ले जाऊं, तो 2022 में भारत में विश्व के कुल डिजिटल लेनदेन का 46% लेनदेन संपन्न हुआ।
युवक और युवतियों, कृपया ध्यान दें, हमारे लेन-देन संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के कुल लेन-देन से चार गुना हैं।
हम भारतीयों का दिमाग कुछ अजीब है, हमें कोई ना सिखाएं तो भी हम सीख जाते हैं, हम सब में एकलव्य का अंश है, बिना पढ़ाई तो भी हम सीख जाएंगे, इसी का नतीजा है हमारा इंटरनेट पर प्रति व्यक्ति डेटा खपत संयुक्त राष्ट्र अमरीका और चीन दोनों को मिला ले तो भी उससे ज्यादा है। अब ऐसे हालत में सिर ऊँचा होना चाहिये। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए, अपनी ऐतिहासिक घटना, अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए। हमें सदैव राष्ट्र को पहले रखना है। यह वैकल्पिक नहीं है। यही एक रास्ता है। और हमें ये करना चाहिए।
साथियों, सितंबर 2022 का वह दिन में कभी नहीं भूल पाऊंगा, जब भारतीय अर्थव्यवस्था ने फिर लंबी छलांग लगाई और हम पांचवें स्थान पर आ गए। इस प्रकार भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया। वह एक बड़ी उपलब्धि थी। यह उपलब्धि मील की पत्थर साबित हुई। पर कहते है न सोने पे सुहागा हमने पछाड़ा किनको, जिन्होंने सैकडों साल तक हम पर राज किया था। मेरी ओर से मैं कह रहा हूं, और दुनिया का कोई भी अर्थशास्त्री इससे असहमत नहीं होगा कि दशक के अंत तक हमारा देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होगी, दशक के अंत तक हमारा भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होगा।
साथियों, चूँकि आप प्रबंधन के एक विशेष विषय से जुड़े हैं, तो आपके लिए यह मायने रखता है कि तंत्र कार्यों के निष्पादन का दिशा किस तरह से तय करता है, आपके लिए यह मायने रखता है कि वह निर्णय कैसे लेता है? क्या फैसले पारदर्शी हैं? क्या वे जवाबदेह हैं? क्या उनके शासन में सुगमता है? जब मैं पश्चिमी बंगाल राज्य का राज्यपाल था, तो मैं 10 राज्यपालों के एक समूह का नेतृत्व कर रहा था और हमारा काम शासन में सुगमता पर एक प्रतिवेदन देना था। तो कानून की पढाई करने के साथ साथ मुझे मैनेजमेंट की पढाई उसमें करनी पड़ी, ये सब तो आप लोगो का काम है। आप यह काम रात-दिन करते हैं। जो लोग व्यवसाय, व्यापार उद्योग प्रबंधन में हैं, ये उनका काम है, दिक्कत आती है तो उन्हें पता लगता है की हमारा विदेशी संयुक्त उद्यम क्यों नहीं हो पाया।
साथियों, अगर मैं इस समय हमारे भारतीय आर्थिक परिदृश्य का वर्णन करूं, तो इसमें मजबूत बुनियादी सिद्धांत और लचीला ढांचा, बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धात्मकता, बढ़ी हुई पारदर्शिता, डिजिटलीकरण का विस्तार और नवाचार को बढ़ावा देना शामिल है। इनसे भारत को आगे बढ़ने में मदद मिली है और इसके वृद्धिशील पथ को तैयार करने में मदद मिली है। और ये केवल शब्द नहीं हैं, यह हकीकत है।
आप में से जो लोग गांव से हैं, आजकल गांव के अंदर किसी की भी टिकट हो रामसिंह का बेटा कर देगा । पासपोर्ट के लिए अप्लाई करना है श्यामसिंह का पोता कर देगा। आपको कोई फॉर्म भरना है तो तुरंत कर देगा। हमारे गाँव सचमुच स्मार्ट गाँव बन गये हैं।
सरकार को देखिए, उसे आकांक्षी जिलों और स्मार्ट शहरों की अवधारणा मिली। कई लोग कहते हैं कि गवर्नमेंट का कांसेप्ट आकांक्षी जिलों और स्मार्ट शहरों का क्या है, आप समझोगे स्मार्ट सिटी का क्या मतलब है, आप किसी टियर 3 शहर में जाएंगे और आप का इंटरनेट इफेक्टिवली काम करेगा, आप वर्क फ्रॉम होम कर पाओगे, तो आप कहोगे कि स्मार्ट सिटी है, कुछ लोग हैं जो स्मार्ट सिटी का कांसेप्ट, फिजिकल स्मार्टनेस से देखते हो, ऐसा नहीं है यही हाल आकांक्षी जिलों का है। इस देश में बड़े बदलाव हो रहे हैं।
मेरी सभी से अपील है कि हम सभी को आर्थिक राष्ट्रवाद की अवधारणा को स्वीकार करना चाहिए। अच्छा नहीं लगता जो चीज देश में बन सकती है, देश में बन रही है कुछ फायदे के लिए हम बाहर से मंगाते हैं, दीपावली के दीए मंगाते हैं, कैंडल मंगाते हैं, पतंग मंगाते हैं, फर्नीचर मंगाते हैं, इस सोच को बदलना होगा। राजकोषीय लाभ के लिए हम देश के आर्थिक हितों से समझौता नहीं कर सकते। जिस उद्योग, व्यवसाय और व्यापार में आप जा रहे हैं, उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने कच्चे माल अर्थात् मानव संसाधन में संवर्धन करें। हम अपने कच्चे माल अर्थात् मानव संसाधन को अपना स्रोत छोड़ने नहीं दे सकते हैं ताकि कोई और उसका मुद्रीकरण कर सके, उसका लाभ उठा सके।
युवक और युवतियों, एक नई प्रवृत्ति चालू हो गई है कि मैं चार गाड़ी रखूंगा क्योंकि मैं खरीदने की हैसियत रखता हूं। मैं जितना पानी चाहूँगा उतना उपयोग करूँगा। मैं ऊर्जा का उपयोग उतना करूँगा जितना मैं चाहूँगा। अब, हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षक हैं। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग मेरी जेब की ताकत पर निर्भर नहीं हो सकता। हम सभी को अपने प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना होगा। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग राष्ट्रीय हित का कार्य नहीं है बल्कि हमें इसके लिए एक संस्कृति विकसित करनी है।एक बार डेवलप कर लेंगे, समझ आ जाएगा और यह इतना बड़ा काम आप लोगों के अलावा कोई नहीं कर सकता। यहां उपस्थित आप में से प्रत्येक एक तंत्रिका केंद्र हैं, सकारात्मक परिवर्तन का केंद्र हैं।
आपको आंकाना है जो भारत की राइज़् हो रही है, इसमें न्यूटन का थर्ड प्रिंसिपल आ गया है। प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है। जो भी भारत विरोधी ताकतें हैं, देश में और देश के बाहर उनकी एपेटाइट भारत की ग्रोथ के लिए बहुत कमजोर है, उनका हाजमा बिगड़ गया है, वह दिन-रात यह सोचते हैं कि भारत की ग्रोथ को कालिख कैसे लगाई जाए। बेवजह के मुद्दे उठाना अनर्गल बातें करना हमारी संस्थाओं पर टिप्पणी करना, अरे खिड़की खोलो... परिवर्तन की बयार चलने दो । और देखो हम कहां हैं, हमारे आस पड़ोस का क्या हाल है, पूरी दुनिया नतमस्तक है और फिर भी हम में से कुछ लोग परेशान हैं। राजनीति को भारत के विकास से कभी नहीं जोड़ना चाहिए। जो लोग राजनीति की फील्ड में हैं, उनको राजनीति करने का पूरा अधिकार है। उन्हें अपनी राजनीति करने दीजिए... लेकिन जब राष्ट्रीय विकास की बात आती है, राष्ट्रीय मुद्दों की बात आती है तो हमें राजनीति से ऊपर उठना चाहिए।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी... तीन दशक के बाद व्यापक मंथन चिंतन के पश्चात नेशनल एजुकेशन पॉलिसी बनी, कुछ लोग कहते हैं हम लागू नहीं करेंगे, यह किसी राजनीतिक दल की पॉलिसी नहीं है, यह भारत की पॉलिसी है, सोच समझकर बनाई गई है, क्यों बनाई गई है, हमें याद आता है कि नालंदा थी, तक्षशिला थी, उच्च स्तर पर पहुंचना है इसलिए बनाई गई है। डिग्री तो बहुत लोगों को मैनेजमेंट स्कूल में मिलती है पर आपके यहां जिसको मैंने डिग्री दी, मेडल दिया कोई डिलॉइट में जा रहा है कोई अर्नेस्ट एंड यंग में जा रहा है, आप लोगों का जो लगाव है फिक्की के साथ एसोचैम के साथ। मुझे बहुत ख़ुशी हुई क्योंकि इस संस्थान से निकलने वाले लड़के और लड़कियों के हाथ सबसे पहले भरे होने चाहिए।
मैं स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिये गये कालजयी मंत्र को उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ:
"उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
2047 में भारत - भाग्य आपके हाथ में है। यह सुरक्षित हाथों में है। यह उन लोगों के हाथ में है जो भारत में विश्वास करते हैं और हमारे भारत को गौरवान्वित करेंगे।
बहुत-बहुत धन्यवाद!