सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि जब मैं इन नायकों का अभिवादन करता हूं तो मैं उत्साहित, ऊर्जित, प्रेरित और उत्प्रेरित हो जाता हूं। इनमें से प्रत्येक ने उत्कृष्ट प्रतिबद्धता और राष्ट्रवाद को प्रदर्शित किया जिसका हम सभी को अनुकरण करने की आवश्यकता है।
मैं सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के उन बहादुर पुरुषों और महिलाओं के 20वें अलंकरण समारोह से जुड़कर बेहद खुश और प्रसन्न हूं, जो राष्ट्र की सेवा में साहस, वीरता और समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
यह अलंकरण समारोह हमारे बहादुरों के असाधारण योगदानों के लिए उन्हें पहचान देने और सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। जब मैंने उनमें से प्रत्येक से बातचीत की, तो वे पूरे देश से आए थे और उनमें से एक सैनिक स्कूल से थे, जिससे मुझे तुरंत जुड़ाव हो गया। उन सभी को, उनके माता-पिता और परिवारों को बधाई, इन्होंने उन सभी को बहुत गौरवान्वित किया है।
लोक सेवा में लगे योग्य व्यक्तियों का सम्मान करना हमारा दायित्व है। और हमें जितनी बार संभव हो इसका निर्वहन करना चाहिए।
राष्ट्र के प्रहरियों को मेरा नमन।
थार का तपता मरुस्थल हो,
कच्छ के रण का दलदल हो,
कश्मीर की बर्फीली चोटियां हों,
या फिर पूर्वोत्तर भारत के घने जंगल,
आप लोग कठिन से कठिन परिस्थिति में, देश की सीमाओं की 24*7 रखवाली करते हो।
आज मैं बल के सभी बहादुर जवानों को उनकी राष्ट्रसेवा और समर्पण के लिए नमन करता हूँ। भारत को ‘सीमा सुरक्षा बल’ पर नाज है।
अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका श्रेय उनके परिवारों को जाना चाहिए क्योंकि वे ऐसी मेरुदंडीय शक्ति हैं जो उनका मनोबल बनाए रखती है। हमें उन सभी परिवारों को सलाम करना चाहिए जो सीमा सुरक्षा बल में मानव संसाधन का योगदान करते हैं जिसके कारण हम चैन से सो पाते हैं। उनके आदर्श वाक्य को देखें जो सब कुछ कह देता है, "जीवन पर्यन्त कर्तव्य"। इस वाक्य को बीएसएफ के हर व्यक्ति ने, हर विषम परिस्थिति में, सब कुछ न्यौछावर करने के बाद भी चरितार्थ किया है। मैं उनको नमन करता हूँ। मैं उस मिशन जो हमारे राष्ट्रवाद का परम तत्व है, को साकार करने में उनके जुनून, प्रतिबद्धता और कर्तव्य के प्रति समर्पण को सलाम करता हूं।
श्री के. एफ. रुस्तम जी के करिश्माई नेतृत्व में गठित, बीएसएफ एक आधुनिक, अनुशासित और सक्षम बल के रूप में विकसित हुआ है। रुस्तम जी स्मृति व्याख्यान-2023 देना मेरे लिए सम्मान की बात है। जब मैं रुस्तम जी की ओर देखता हूं, तो पता चलता है कि उनके द्वारा कानून की दुनिया में क्या बदलाव लाया गया, ऐसी ऐतिहासिक स्मरणीय उपलब्धियां उस महान व्यक्ति द्वारा अर्जित की गईं। के. एफ. रुस्तम जी ने मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण और शांतिदायक आंदोलन को उत्प्रेरित किया। ऐसा व्यक्ति जिसने सीमा सुरक्षा बल की स्थापना की और भारतीय न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका के लिए मजबूत नींव भी रखी।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में अपनी तरह का पहला राष्ट्रीय पुलिस आयोग (एनपीसी) वर्ष 1977 में गठित हुआ। एनपीसी की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई, क्योंकि 1975 में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आपातकाल का काला युग आया, जिसने बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन, संस्थाओं का पतन देखा, कुछ ऐसा देखा जिसकी संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना नहीं की थी। बड़ी संख्या में लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया। न्यायपालिका तक उनकी पहुंच नहीं थी, इसलिए जब राजनीतिक घटनाक्रम बदला, तो 1977 में राष्ट्रीय पुलिस आयोग अस्तित्व में आया। इस एनपीसी का एक महत्वपूर्ण घटक था जो रुस्तम जी के रूप में था, वह इसके गौरवशाली सदस्यों में से एक थे।
1978 में, रुस्तमजी ने बिहार की जेलों का दौरा किया और वहां की उन दशाओं के बारे में लिखा जिनसे वे बहुत विचलित हुए और उन्होंने सोचा कि उन्हें सकारात्मक कार्रवाई को उत्प्रेरित करना होगा, क्योंकि कई कैदी अधिकतम अनुमेय अवधि से कहीं अधिक समय से जेल में थे। इससे पहले जनहित याचिका मामले, हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य का आधार तैयार हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में 40,000 विचाराधीन कैदियों की रिहाई हुई और यह भारत में न्यायिक सक्रियता की घटना का कारक था।
रुस्तमजी के इस विचार में उनकी पीड़ा छिपी हुई थी, “हमारे देश में ऐसी स्थिति कैसे हो सकती है? हमें इसके बारे में कुछ करना चाहिए!'' अगर वह चुपचाप बैठ गए होते तो वे लोग जेल में सड़ रहे होते। लेकिन उन्होंने कोशिश की और सफल हुए। एक भावुक राष्ट्रवादी, रुस्तमजी ने हिंदुओं और मुसलमानों के अल्पसंख्यक अधिकारों पर भी विस्तार से लिखा और इस तथ्य पर अफसोस जताया कि उनके पत्रकारिता संबंधी लेखनों को स्वीकार नहीं किया गया। उनका कहा हुआ एक-एक शब्द अब हमारे कानों में गूंजता है, हमारे मन को संवेदनशील बनाता है।
के.एफ. रुस्तमजी जो मध्य प्रदेश पुलिस के प्रमुख थे और बाद में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के संस्थापक महानिदेशक बने, ने 1952 से 1958 तक प्रधानमंत्री नेहरू के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के रूप में कार्य किया। रुस्तमजी सेवा में प्रभार-ग्रहण के समय से ही एक डायरी लिखा करते थे और तीन दशकों से अधिक समय तक उन्होंने इसे लिखना जारी रखा।
अगस्त, 1965 में, प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा उन्हें नवगठित सीमा सुरक्षा बल के प्रमुख के रूप में चुना गया था।
असाधारण गुणों और दूरदृष्टि वाले व्यक्ति श्री रुस्तमजी ने बहादुरी, ईमानदारी और कठोर परिश्रम का प्रदर्शन किया और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बीएसएफ के असाधारण प्रदर्शन में अपनी भूमिका सहित सभी सौंपे गए कार्यों को गौरव के साथ संपन्न किया जिससे इस बल को व्यापक सराहना और प्रशंसा मिली। 1974 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वे कभी थके नहीं। गृह मंत्रालय में विशेष सचिव के रूप में, उन्होंने केंद्रीय पुलिस संगठन में बीएसएफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की संरचना की। उन्होंने भारतीय तटरक्षक के गठन की भी पहल की।
1991 में उन्हें दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाना राष्ट्र के प्रति उनकी उत्कृष्ट सेवा की एक उचित मान्यता और श्रद्धांजलि थी। यद्यपि 22 मई, 1916 को उनका जन्म एक पारसी के रूप में हुआ था, लेकिन उनकी इच्छा के अनुसार, मार्च 2003 में उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया। वे एक महान नेता, प्रबंधक, रणनीतिकार, लेखक, विचारक, पुलिस अधिकारी और मानवतावादी के रूप में हमेशा हमारी यादों में अंकित रहेंगे।
देवियों और सज्जनों, बीएसएफ की गाथा यहीं समाप्त नहीं होती। बीएसएफ के एक और प्रतिष्ठित महानिदेशक हैं जो पूरे जोश के साथ रुस्तमजी की बैटन और मशाल को उच्च स्तर पर ले जा रहे हैं। मैं बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह जी का जिक्र कर रहा हूं। वे भारत में पुलिस सुधारों को लाने के लिए उत्साह, समर्पण और दूरदर्शिता के साथ काम कर रहे हैं। 1996 में सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की। इसके दस साल बाद 2006 में, हमें उच्चतम न्यायालय से एक और महत्वपूर्ण निर्णय प्राप्त हुआ, जब शासन में बैठे लोगों को यह आधार प्रदान किया गया कि पुलिस को कैसे काम करने दिया जाए और राष्ट्र की सेवा में रहने दिया जाए।
हमारे देश की संप्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण है, हम सभी इसके लिए प्रतिबद्ध हैं। इससे कभी भी समझौता करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। सीमा की लंबाई, सरंध्रता और जटिलता के कारण बीएसएफ को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा हमारे देश की प्रगति और समृद्धि की आधारशिला है। हमारे राष्ट्र की सुरक्षा में योगदान देना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है और बीएसएफ इस नेक प्रयास में सबसे आगे है।
सीमा सुरक्षा के साथ बी.एस.एफ. के लोग नक्सलवाद, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों को जब मिटाते हैं, उनके परिवार के ऊपर बहुत बीतती है। ऐसी परिस्थिति में उनके हर परिजन को मैं सलाम करता हूँ, हमें उन पर नाज है।
मेरी सभी राज्य सरकारों, विशेषकर सीमावर्ती राज्यों से अपील है कि वे सीमा सुरक्षा बल के प्रति अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण और संवेदनशील बनें। उन्हें सीमा सुरक्षा बल को अपने आप से पहले रखना होगा। बीएसएफ का नेतृत्व राज्य सरकारों के साथ सहयोग करने के लिए हमेशा इच्छुक रहेगा। मैं सभी राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे सभी सकारात्मक कदम उठाएं, अपने तंत्र को संवेदनशील बनाएं ताकि बीएसएफ का मनोबल हमेशा ऊंचा रहे।
2022 में, बीएसएफ ने 300 किलोग्राम हेरोइन, 10,000 आग्नेयास्त्र और हजारों की संख्या में मवेशी जब्त किए। बीएसएफ के सामने मौजूद चुनौतियों के संदर्भ में यदि नागरिक स्वयं को बीएसएफ का ही एक विस्तार मानने लगें, तो इसकी दक्षता बढ़ जाएगी।
देवियों और सज्जनों। हम अपने देश में अमृत काल के ऐसे दौर में हैं, जब भारत अभूतपूर्व तरीके से आगे बढ़ रहा है। यह वृद्धि निर्बाध्य है। वृद्धिशील विकास पथ हमेशा ऊँचा रहेगा, 2047 तक भारत एक वैश्विक नेता होगा। अभी एक दशक पहले, हम दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था थे। सितंबर, 2022 में हमें पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होने का गौरव प्राप्त हुआ।
यदि हम 700 मिलियन इंटरनेट प्रयोक्ताओं को देखें, तो हमारी प्रति व्यक्ति डेटा खपत चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका की कुल डेटा खपत से अधिक है। यह एक मूक क्रांति है और ये क्यों संभव है, इसका एक प्रमुख कारण है जो सीमा पर कठिन परिस्थिति में प्राण प्रण से सेवा करते हैं। उनसे कोई चूक होगी ये गड़बड़ा सकती है।
सुरक्षा आर्थिक विकास, शांति और समरसता में एकीकृत और अंतर्निहित होती है। और इसलिए आप वास्तव में अपनी अटूट प्रतिबद्धता, स्व-सेवा और बलिदान से राष्ट्र के समग्र विकास की देखरेख में लगे हुए हैं।
भारतमाता की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बीएसएफ के सभी जवानों-अधिकारियों को मैं विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं। मेरी संवेदनाएं उन शहीदों के परिजनों के साथ हैं।
मैं आपको बता सकता हूं, राज्यपाल के रूप में, मैंने हर उस घर का दौरा किया जिसने किसी बीएसएफ योद्धा को खोया। मैं और मेरी पत्नी हम दोनों वहां गए। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक वरिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ संवैधानिक पदाधिकारी इसे एक प्रथा बनाएं। यह परिवार के लिए सांत्वना नहीं है, यह उस वर्ग के लिए सांत्वना है जो हमें इस तरह जीने में मदद कर रहा है।
मैं आप सभी के स्वर्णिम भविष्य की कामना करता हूं। जय हिन्द!