24 फरवरी, 2023 को नई दिल्ली में आईसीएआर-आईएआरआई के 61वें दीक्षांत समारोह में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का संबोधन

नई दिल्ली | फ़रवरी 24, 2023

मेरा नाता काफी पुराना है आपकी संस्था (आईएआरआई) से। मैंने आपकी पैरवी न्यायालय में की है। आपकी प्रतिभा से मैं भली भांति परिचित हूं। पर एक विशेष बात जो आपकी संस्था में है वो है - आईसीएआर-आईएआरआई की संस्था में प्रवेश मुख्य रूप से प्रतिनिधि भारत से लिया गया है। यह उस वर्ग से लिया गया है जिसमें देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने के लिए सबसे प्रामाणिक प्रतिभा, उद्यम, उद्यमिता और मिशन और जुनून है।

आज के दिन मैं विद्यार्थियों से एक बात कहना चाहूंगा, जो माननीय प्रधानमंत्री जी ने कई बार कही है - कभी चिंता मत लो, कभी तनाव मत लो।

भारत का उत्थान निर्बाध है। हम अवसरों और निवेश के सबसे पसंदीदा स्थलों में से हैं। और सबसे महत्वपूर्ण एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित हो गया है कि प्रत्येक संवेदनशील मस्तिष्क अपनी प्रतिभा या क्षमता का पूरी तरह से दोहन कर सकता है। हमारे समय हालात ये नहीं थे।

कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। कृषि और कृषि आधारित उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति हैं और उनकी वजह से भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक उभरता हुआ सितारा है। भारत ने सितंबर, 2022 के पहले सप्ताह में पूर्व में हम पर शासन करने वाले यू.के. को पछाड़कर 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त किया। वास्तव में, यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और भारत के वैश्विक उत्थान में कृषि और कृषि क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

हम किसी को भी इस राष्ट्र के लिए पसीना बहाने वालों की उपलब्धियों को कलंकित करने, मलिन करने और कम करने की अनुमति नहीं दे सकते। इस दशक के अंत तक, अर्थशास्त्री सहमत होंगे… हां कुछ लोग जो यहां आरबीआई में काम कर चुके हैं, मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं, वो विदेश से आये। आकर एक पद ग्रहण किया और जब समय खत्म हो गया तो नवीकरण की चेष्टा की, नहीं मिला तो वापस विदेश चले गये और वहां से कहेंगे, भारत में खाद्य संकट हो सकती है। मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहा हूं और मैंने देखा है... कोविड के दौरान 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को अनाज दिया गया और दिया जा रहा है। ऐसा संभव क्यों हुआ – क्योंकि हमारा अन्नदाता है, आप लोग हैं।

दशक के अंत तक, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। और आप लोग – युवाओं को नींव डालनी है कि 2047 में अपना भारत दुनिया को क्या-क्या देगा? 2047 में, जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी में प्रवेश करेगा, तो यह पूरे विश्व के लिए शांति, सद्भाव, सुरक्षा और विकास का केंद्र बिंदु होगा।

आपके पास कृषि उपज का मूल्यवर्धन करने की क्षमता, बुद्धि, दृष्टिकोण और झुकाव है और ये भारत के अंदर आर्थिक क्रांति का बहुत बड़ा मुद्दा बनेगा। मेरा सुझाव है कि ऐसी व्यवस्था की जाये कि किसान अपने कृषि उत्पाद का मूल्य वर्धन अपने खेत में ही कर सकें।

भारत की पहल पर यूएन ने वर्ष 2013 को अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष घोषित किया है। हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे - मोटा खाओ, मोटा पहनो, सुखी रहो।

मेरा आपसे ये आग्रह है कि एग्रीकल्चर एजुकेशन को एक नया आयाम दें। कृषि शिक्षा को उद्यमशीलता का केंद्र बनना चाहिए जिसका परिणाम अनुसंधान और नवोन्मेष होना चाहिए। कृषि उपकरण उनमें भी आप लोग बहुत कुछ कर सकते हैं। मेरा अटूट विश्वास है कि अन्नदाता की जितनी मदद करोगे भगवान आप पर उतनी ही कृपा करेगा।

आज ‘लैब टू लैंड’ का बहुत बड़ा मूवमंट चल रहा है। मुझे विश्वास है कि आईएआरआई कृषि और कृषि क्षेत्र में नवोन्मेष, गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन और तकनीकी अनुकूलन के साथ देश की सेवा करना जारी रखेगा।

हम लोकतंत्र के जन्मदाता हैं, हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, हम सबसे क्रियाशील लोकतंत्र हैं।

भारतीयों के रूप में हमें हमेशा अपने भारत को पहले रखना चाहिए। हमें गर्वित भारतीय होना चाहिए और अपनी महान उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए।

 

मेरी एक पीड़ा आपके सामने रखकर मैं वाणी को विराम दूंगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हमारी संसद लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है। उस मंदिर में जो भी कोई बोलता है, उस पर कोई मुकदमा नहीं हो सकता ना ही सिविल और ना ही आपराधिक हमारे संविधान निर्माताओं ने इतना बड़ा अधिकार अनुच्छेद 105 के माध्यम से दिया कि संसद सदस्य सदन में बेबाक होकर अपनी बात कहेगा। ये प्रिवेलेज है पर एक चीज को हम नजरअंदाज करते हैं कि यह विशेषाधिकार निरंकुश नहीं है। जहां एक ओर 140 करोड़ लोगों में से कोई मुकदमा नहीं कर सकता – दीवानी या फौजदारी, तो हम लोगों का दायित्व है, उत्तरदायित्व है कि जो कुछ सदन में बोलें, जिम्मेदारी से बोलें, प्रामाणिक तरीके से बोलें।

नियमों के तहत पीठासीन अधिकारी का यह कर्तव्य है कि बाहर किसी भी व्यक्ति के आचरण को ठेस न पहुंचे। सदन के बाहर अगर वही बात कही जायेगी तो प्रभावित व्यक्ति मानहानि का मुकदमा कर सकता है, फौजदारी मुकदमा भी कर सकता है।

यह विशेषाधिकार बहुत बड़ी जिम्मेदारी के साथ आता है और यह जिम्मेदारी है कि संसद में बोला गया हर शब्द सोच-समझकर, सम्यक रूप से विचार करके बोला जाए। यह असत्यापित स्थितियों पर आधारित नहीं हो सकता। संसद को वो अखाड़ा नहीं बनने दिया जा सकता जहां सूचना का निरंकुश प्रवाह हो।

लोकतंत्र का मंदिर संसद, संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श के लिए है।जब इस मंदिर में ये बातें न होकर, व्यवधान और विघ्न होता है तो मेरे पास हजारों की संख्या में लोगों के इनपुट आते हैं कि इस व्यवहार से हम दुखी हैं। आपके माध्यम से में ये आग्रह करूंगा कि जनमानस को इन दो मुद्दों पर गंभीर चिंतन करना चाहिए और चिंता करनी चाहिए क्योंकि जब भारत का उत्थान तेज़ी से हो रहा है, निर्बाध है तो इस पर कुठाराघात करने के कुप्रयास निराधार मापदंडों पर कहीं से भी आ सकते हैं। यह बुद्धिजीवियों और विशेष रूप से युवा मस्तिष्कों का काम है कि वे इसे नोट करें और इसे बेअसर करें।