24 जुलाई, 2023 को संसद परिसर, नई दिल्ली में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा भारतीय वन सेवा के 2022-24 बैच के परिवीक्षाधीन अधिकारियों को संबोधन (अंश)।

नई दिल्ली | जुलाई 24, 2023

आप सभी को मेरा नमस्कार!

मुझे विश्वास है कि आपको भारत की माननीय राष्ट्रपति से प्रेरणादायी सलाह मिली होगी। हमारी राष्ट्रपति अत्यधिक प्रतिभाशाली हैं; वह किसी अन्य की तुलना में वन और पर्यावरण के महत्व और इस सेवा की प्रासंगिकता को अधिक जानती हैं। उनके उस ज्ञान-स्तर को मापना कठिन होगा। वह मन से बात करती हैं, वह हमेशा दृढ़ विश्वास से बात करती हैं और मुझे यकीन है कि यह आप सभी के लिए जीवन भर की यादगार घटना रही होगी। मैं इसे आपके साथ साझा कर सकता हूं - जब भी मुझे माननीय राष्ट्रपति के साथ बातचीत करने का अवसर मिला- हम दोनों एक ही समय में राज्यपाल भी रहे हैं - सर्वत्र उदात्तता, लालित्य, प्रामाणिकता होती है और आप सभी ने धन्य महसूस किया होगा। उन्होंने आपको कुछ सलाह दी होगी; कृपया उसे कभी न भूलें।

मुझे आपको अवश्य बताना चाहिए, एक बहुत ही महत्वपूर्ण युक्ति जो आपको जीवन भर सहारा देगी, अपने बैचमेट्स को हमेशा याद रखें और हमेशा उनके संपर्क में रहें। उन्हें कभी न भूलें और जैसे-जैसे आप अपने पेशे में वरिष्ठ होते जाएंगे आपको इसका एहसास होगा और जैसे-जैसे आप बड़े होंगे आपको पता चलेगा कि यह कितना ऊर्जादायी है। अपने बैचमेट्स के साथ सीधे संपर्क में रहना कभी न भूलें, इस प्रक्रिया में आप पूरे देश से जुड़े रहेंगे।

आप सबसे बड़े लोकतंत्र की इस विशिष्ट सेवा में ऐसे समय में शामिल हो रहे हैं जब भारत का उत्थान अबाध है। दुनिया भारत को अलग नजरिये से देख रही है। आप भाग्यशाली हैं कि आप अमृतकाल में हैं और आयु, अनुभव और अपनी सेवा में वृद्धि सहित हर एक नजरिए से आप 2047 में भारत की उपलब्धि के योद्धा होंगे। इस सेवा हेतु सफल होने के लिए मेरी ओर से आपको बधाई।

मुझे कुछ परिवीक्षार्थियों से पता चला है कि उन्हें जिस तरह का प्रशिक्षण दिया गया है, वह बहुत व्यापक और समावेशी है, जिसे दोनों परिवीक्षाधीनों ने जोश के साथ सुनाया, मुझे उनकी बातों में एक मिशन दिखाई दे रहा था और यही कारण है कि यदि आप जिस सेवा से जुड़े हैं उससे लगाव रखना शुरू करते हैं, तो आपमें कुछ कर दिखाने का जुनून होता है, किसी मिशन के प्रति समर्पण होता है, आप कुछ खास करेंगे। सौभाग्य से, आपकी सेवा एक ऐसी सेवा है जहां आपको जंगलों में, जंगलों के करीब रहने वाले लोगों के जीवन में बदलाव लाकर मानवता की सेवा करने का अवसर मिलेगा। मैं केवल मानव जाति की ही नहीं बल्कि प्राणि मात्र की बात कर रहा हूं। आपको पर्यावरण और जमीनी हकीकत से ऐसा सीधा जुड़ाव मिलेगा। यह अवसर आपके पास आया है, मुझे यकीन है कि आप इसका भरपूर उपयोग करेंगे।

प्रशिक्षुओं में से एक ने कहा कि इसका श्रेय माता-पिता, शिक्षकों, मित्रों और शुभचिंतकों को जाता है; यह कभी मत भूलना। यह बहुत बड़ा श्रेय है, आपको इसे सदैव स्मरण रखना चाहिए। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आपके इस सेवा में आने पर आपके परिवार वालों को कितनी ख़ुशी मिली होगी। आपमें से हर किसी ने कोई दूसरा पेशा, कोई दूसरा व्यवसाय ढूंढ लिया होता और संभव है कि आपने बहुत अधिक पैसा कमाया होता, लेकिन हमारे लोकतंत्र इस स्तर के लोक सेवक बनकर आपको जो गौरव, जो संतुष्टि मिलेगी, वह एक दुर्लभ अवसर है। वैसी संतुष्टि और ख़ुशी आपको हमेशा अपने लिए और राष्ट्र के लिए अधिक से अधिक ऊंचाइयां हासिल करने के लिए प्रेरित करेगी।

मैं 54वें बैच को शुभकामनाएं देता हूं और हमें खुशी है कि इस बैच में हमारे पड़ोसी देश, हमारे मित्र राष्ट्र, भूटान जिसके साथ हमारा व्यापक हित जुड़ा है, के दो प्रशिक्षु अधिकारी भी शामिल हैं। जब मैं पश्चिमी बंगाल राज्य का राज्यपाल था, तब मुझे अन्य सेवाओं के अधिकारियों का भी स्वागत करने का अवसर मिला और भूटान के प्रशिक्षु भी इसका हिस्सा थे। मुझे यकीन है कि वे न केवल प्रशिक्षण का सुफल प्राप्त करेंगे, बल्कि हमारे देश के अपने मित्रों के साथ उनका जुड़ाव भी होगा। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। यह हमारे पड़ोसियों के साथ हमारी मित्रता के स्वरूप को दर्शाता है। वास्तव में, मैं आपको बता दूं कि पड़ोस सर्वथा महत्वपूर्ण है और यही कारण है कि जब माननीय प्रधानमंत्री, तीन दशकों की गठबंधन सरकारों के बाद 2014 में एकल पार्टी बहुमत लेकर आए, तो उन्होंने सार्क देशों को आमंत्रित किया। भूटान के लोगों तक हमारा अभिनंदन पहुंचाएं।

प्रकृति हमेशा से हमारे सभ्यतागत लोकाचार का अभिन्न अंग रही है, बहुत-से देश उस तरह की ऐतिहासिक विरासत का दावा नहीं कर सकते जो हमारे पास है। यह 5000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है, लेकिन इस पूरे दौर में आप पाएंगे कि इसमें प्रकृति के साथ अधिक जुड़ाव था, पर्यावरण का ऐसा संरक्षण था जो अनेक तरह से परिलक्षित होता था। इसके लिए आप सभी को नवोन्मेषी बनना होगा और उन तरीकों पर लीक से हटकर सोचना होगा कि उस परिदृश्य को फिर से कैसे सृजित किया जाए, मुझे यकीन है कि आप सफल होंगे।

मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच सामंजस्य सदैव जीवन का आधार रहा है। वस्तुत:, यह केवल आधार-भर ही नहीं है, यह उससे भी परे है: यह जीवन के लिए अमृत है। आपको न केवल हमारे देश की बल्कि पूरी दुनिया की भलाई के लिए इस सामंजस्य को बनाए रखने और परिरक्षित करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मेरे युवा मित्रों, यदि आप चारों ओर देखें, तो हर सेवा का एक पहलू होता है, ऐसी कई सेवाएं होती हैं, आप बड़ी जमात में हैं लेकिन आपकी सेवा का दुनिया के हर कोने से सीधा जुड़ाव है। आप जलवायु परिवर्तन में अपना योगदान देने के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं और यह एक बहुत ही विशेष स्थिति है जो आप सबको मिली है। मुझे यकीन है, कोई भी निदेशक और अन्य पदाधिकारियों को पसंद नहीं करता क्योंकि वे आपको कठोर प्रशिक्षण, बहुत व्यस्त कार्यक्रम के अधीन रखते हैं; वे आपको अनुदेश देते हैं और अनुदेश देना आसान नहीं है। अनुदेशन करना कभी-कभी बहुत गंभीर और कठोर हो सकता है लेकिन जिस क्षण आप संस्थान छोड़ेंगे, आप उन्हें हमेशा याद रखेंगे कि उन्होंने आपका मार्गदर्शन किया था। उन्होंने आपसे कठिन परिश्रम कराया ताकि आप दूसरों की देखभाल कर सकें। आपके जीवन में उन्होंने जो योगदान किया है उसको कभी न भूलें।

मैं आग्रह करता हूं कि आप माँ-प्रकृति के विकास और संरक्षण की आवश्यकता के बीच विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखने में मदद करने के लिए खुद को समर्पित करें। इस प्रक्रिया में, आपके सामने कई चुनौतियां होंगी। हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि मानव जाति के रूप में हम प्राकृतिक संसाधनों के न्यासी हैं। हम प्रकृति के न्यासी हैं; हम व्यक्तिगत लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन नहीं कर सकते। हमारी जेब, हमारी आर्थिक क्षमता उपयोग को न्यायोचित नहीं ठहराती। किसी के पास अधिक पैसा हो सकता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि वह पेट्रोलियम, पानी, ऊर्जा का उपयोग इसलिए कर सकता है क्योंकि वह इसका खर्च वहन कर सकता है। हमें प्राकृतिक संसाधनों के इष्टतम उपयोग की आदत खुद में डालनी होगी और दूसरों को भी ऐसी आदत डालने के लिए राजी करना होगा।

मैं आपको एक छोटी-सी घटना सुनाता हूं, लगभग दो दशक पहले भारतीय वन सेवा के एक अधिकारी मेरे पास आए, मैंने उनसे एक सवाल पूछा- वन उत्पादों को बाहर ले जाने का इतना प्रतिरोध क्यों है? आपको पेड़ों के काटे जाने और उत्पादों के इस्तेमाल पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए? यह केवल उन लोगों के लिए समझ में आता है जो अज्ञानी हैं। उन्हें यह बताते हुए खुशी हुई कि मुझे यह जानना है कि वन होता क्या है। वन वृक्षारोपण का कोई क्षेत्र नहीं है; किसी वन में, एक पेड़ को उगना होता है और पेड़ को वहीं गिरना होता है, उसके बाद कुछ और उगना होता है। अब, वह क्षण आ गया है जब आप इस ज्ञान को साझा करें और उन लोगों को मशविरा दें जो वन उत्पाद को बाहर ले जाने के लिए कथित उल्लंघन शुल्क लेते हैं। दूसरे, आपको मानवीय स्वभाव, वन क्षेत्र में या आसपास रहने वाले लोगों की आदतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होना होगा। आपको उनकी जरूरतों के बारे में अत्यधिक संवेदनशील और विचारशील होना होगा और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप सभी ऐसा करेंगे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था:

"पृथ्वी के पास हर किसी की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए नहीं।"

राष्ट्रपिता ने वास्तव में हमारा ध्यान एक महत्वपूर्ण चीज़ की ओर केंद्रित किया है। हमें खुद को लालच से दूर रखना होगा ताकि हम प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग कर सकें।

मैं आपसे एक जन-आंदोलन, जन-जागरूकता लाने करने की अपील करता हूं, आपकी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका अपने प्राधिकार का प्रयोग करने में नहीं होगी, कानून के तहत आप शक्ति प्राप्त करेंगे, आपकी भूमिका एक परामर्शदाता के रूप में, एक प्रेरक के रूप में, एक प्रेरणा के रूप में अधिक है और यह दूरगामी होगा, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि आप ऐसा करेंगे। हम सभी को सतर्क, सचेत और सक्रिय रहना चाहिए क्योंकि हमारे व्यक्तिगत योगदानों का समाज पर बड़ा प्रभाव होता है।

जैसा कि आप सब जानते हैं, वन संपदा के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। आप में से जो लोग गांवों या अर्धशहरी क्षेत्रों से आते हैं, वे जानते हैं कि चारागाह भूमि हर साल कम हो रही है। तालाब सूख जाते थे, उनके पुनरुद्धार के लिए अब एक अच्छा तंत्र स्थापित किया गया है। मैं विशेष रूप से यह संकेत दे रहा हूं कि न केवल सरकारी ड्यूटी पर रहते हुए आपके पास योगदान करने की क्षमता है, बल्कि जब आप अपने गांव जाएं, अपने शहरी नगर जाएं तो भी आप अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं और यह दूरगामी होगा।

हम एक ऐसा राष्ट्र हैं जो इस समय एक ऐसी अवस्था में है जिसके बारे में मेरी पीढ़ी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मैं 1989 में संसद के लिए चुना गया था, मैं एक केंद्रीय मंत्री था; हमारी स्थिति ऐसी थी कि उस समय हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 1 बिलियन अमरीकी डॉलर था, और हमारी राजकोषीय विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए भौतिक रूप में सोना भेजना पड़ा था। अब हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब अमेरिकी डॉलर के करीब है। मैं हर किसी से कहता रहता हूं कि हम भारतीयों को अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करना चाहिए। हमें सदैव भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए; हमें अपने भारत के हित को सर्वोपरि रखना होगा। अपने देश के हित को सर्वोपरि रखना वैकल्पिक नहीं है, अनिवार्य नहीं है, एकमात्र तरीका ही यही है।

मुझे थोड़ा अलग बात कहनी है: कोई भी देश, कोई भी व्यवस्था अनुशासन या मर्यादा के बिना फल-फूल नहीं सकती। जिस क्षण अनुशासन और मर्यादा से समझौता किया जाता है, हमारी संस्थाओं को गंभीर नुकसान होता है। यदि आप किसी संगठन में काम करते हैं, यदि आप अपने वरिष्ठों और अपने साथ काम करने वाले लोगों के माध्यम से अनुशासन क़ायम नहीं कर सकते हैं, तो आप प्रगतिशील पथ पर नहीं जा सकते। राज्य सभा के सभापति के रूप में, मुझे इसे आपके साथ साझा करना चाहिए; मैं सबसे बड़े लोकतंत्र में, लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादा और अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए अपने अधीन हर चीज का उपयोग करने की रीति से काम कर रहा हूं। मर्यादा और अनुशासन लागू करने के लिए कभी-कभी हमें अप्रिय स्थितियों का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन हमें कभी भी संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि मर्यादा और अनुशासन हमारे विकास से, हमारी प्रतिष्ठा से, हमारी समृद्धि से जुड़े हुए हैं। जिस क्षण हम उदार दृष्टिकोण अपनाते हैं, हम समाज की उत्तम सेवा नहीं करते हैं। इसलिए मेरी आपसे अपील है कि मर्यादा और अनुशासन की कमी के प्रति पूर्ण असहिष्णुता रखी जाए। यदि आप ऐसा करते हैं, तो इससे नाटकीय बदलाव आएगा।

हाल के दिनों में आपने देखा होगा कि सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों के फलस्वरूप सत्ता के गलियारों को बुराई से मुक्त किया गया है। वहां सत्ता का कोई मध्यस्थ नहीं है, कोई बिचौलिया नहीं हैं, हमारे आस-पास अब ऐसे लोग दिखाई नहीं देते हैं जो शासन संबंधी पहलुओं पर सरकारी निर्णयों से गैर-कानूनी लाभ उठा सकें। यह एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन हम सभी को अपने राष्ट्रवाद पर चिंतन करने की जरूरत है। वे लोग जो भ्रष्टाचार के कारण ताप झेल रहे हैं, जो कानून लागू होने के कारण ताप झेल रहे हैं..। आप जैसे युवा जो हमारे देश का भविष्य हैं, ऐसी स्थिति का सामना कैसे कर सकते हैं... जो कानून के शासन का सहारा लेने के बजाय, यदि किसी एजेंसी द्वारा आपको तलब किया जाता है, यदि आप जांच के दायरे में हैं, आपको कोई नोटिस मिलता है, हमारे पास एक सुदृढ़ न्यायिक प्रणाली और एक सुदृढ़ विवाद समाधान तंत्र है, हम लोगों को सड़कों पर उतरते कैसे देख सकते हैं? यह कोई तरीका नहीं है। हम भ्रष्टाचार के आरोपियों को ऐसे बच निकलने की इजाजत नहीं दे सकते। मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पिछले कुछ वर्षों में इन भ्रष्ट लोगों के भागने के लगभग सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति भ्रष्ट है, तो हम अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकते हैं - भले ही वह पहले किसी पद पर रहा हो, उसकी वंशावली कुछ भी हो। भ्रष्टाचार से समतामूलक तरीके से निपटना होगा; इस समय देश में यही हो रहा है।

मित्रों, आपको यह जानकर खुशी होगी कि हमारा देश मेरी पीढ़ी के सपनों से भी आगे बढ़ कर उत्थान की राह पर है। एक दशक पहले हम 11वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था थे; सितंबर 2022 में, हम 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गये। इस प्रक्रिया में हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासकों को पछाड़ दिया। सभी संकेतों के अनुसार, इस दशक के अंत तक हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। विश्व निकायों ने, विशेष रूप से आईएमएफ ने, संकेत दिया है कि भारत निवेश और अवसर का एक उज्ज्वल, वैश्विक-पसंदीदा गंतव्य है। हम वैसा ही होते देख रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में आपके योगदान को अंकीय नहीं बल्कि ज्यामितीय होना होगा।

हमारे लोग वयस्क हो गए हैं, हमारे लोग बहुत तेजी से सीख गए हैं। अगर हम डिजिटल अंतरण की बात करें, तो 2022 में डिजिटल लेनदेन का आयाम इतना बड़ा था कि हमारा अंतरण वैश्विक लेनदेन का 46 प्रतिशत था। 2022 में हमारा लेनदेन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से चार गुना अधिक था। यह हमारे लोगों के लचीलेपन के कारण है, ये बहुत तेजी से कौशल सीखते हैं, अन्यथा हम लगभग 11 करोड़ किसानों को वर्ष में तीन बार 2,25,000 करोड़ रुपये से अधिक कैसे भेज सकते हैं?

साधनयुक्त होना और धन भेजना एक बात है, लेकिन प्राप्तकर्ता के पास क्षमता भी तो होनी चाहिए, जो कि मौजूद है। हमारे देश में हम लोगों के पास प्रतिभा का एक मजबूत डीएनए है। हमारे लोगों ने पूरी दुनिया पर प्रभाव डाला है। पिछले वर्ष के हमारे इंटरनेट उपयोग को देखें; हमारे पास 850 मिलियन स्मार्टफोन थे, हमारे पास 700 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, हमारे देश की प्रति व्यक्ति डाटा खपत चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका की संयुक्त खपत की तुलना में अधिक थी।

इस प्रक्रिया में आपको कुछ ऐसा भी पता चलेगा जो आप अब तक नहीं जानते होंगे। जब आप वन क्षेत्रों में रहने वाले अलग-अलग संस्कृतियों, अलग-अलग आदतों, अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ व्यवहार करेंगे, तो आप उस तरह की सांस्कृतिक संपदा से परिचित होंगे जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी और वे कलाकृतियों, वस्तुओं को बनाने के लिए वन-उपज का उपयोग कैसे करते हैं, वे कैसे टिके रहते हैं यह आप सभी के लिए आंखें खोलने वाला होगा।

मित्रों, यह जो अवसर आपको मिला है, इस देश का रोल मॉडल नागरिक बनने के लिए आपको कार्यालय में या बाहर हर दिन काम करना जरूरी है। आप जो काम कर रहे हैं वह हमारे संवैधानिक निदेशों में व्यापक रूप से परिलक्षित होता है। आप राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में पाएंगे कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी की देखरेख और चिंता होनी चाहिए। इसे आप मौलिक कर्तव्यों में भी देखेंगे। मैं आपके करियर में बड़ी सफलता की कामना करता हूं, आपके सुखी जीवन, स्वस्थ जीवन की कामना करता हूं।

सेवा में आने के बाद, आपने स्वयं देखा होगा, परिवर्तन का एक स्वरूप, आपने स्वयं देखा होगा, भीतर से एक जिम्मेदारी की भावना है, समग्र रूप से राष्ट्र की सेवा करने की भावना है। इसलिए मैं आपके साथ दो विचार छोड़ता हूँ।

पहला, मौलिक कर्त्तव्यों को ध्यान से पढ़ें और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि हर कोई इनको जाने, इसके लिए निवेश की आवश्यकता नहीं है, इसके लिए शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं है, इसके लिए बस इरादे की आवश्यकता है। उस इरादे का क्रांतिकारी असर होगा। मैं आपको एक छोटा-सा उदाहरण देता हूं, प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत अभियान शुरू करने से पहले, जो कोई भी विदेश में रहा था उसने कभी चलती कार से केले का छिलका नहीं फेंका था, लेकिन वही सज्जन जब भारत आते हैं, तो इसे अपना मौलिक कर्त्तव्य मानते हैं कि उस केले के छिलके को तुरंत कार से बाहर फेंक दो। यह चलन अब बदला है; एक बड़ा परिवर्तन हुआ है। इसलिए एक बार जब आप मौलिक कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो समाज की सेवा करना बहुत असरकारी होगा।

दूसरा, आर्थिक राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसे उपभोक्ताओं द्वारा, व्यवसाय, व्यापार और उद्योग से जुड़े लोगों द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। जरा कल्पना कीजिए, क्या इस देश को फर्नीचर की जरूरत बाहर से है? ऐसा नहीं है। लेकिन अरबों डॉलर बाहर चले जाते हैं, क्योंकि फर्नीचर का आयात किया जाता है। क्यों? क्योंकि यह थोड़ा सस्ता है। क्या हम राजकोषीय लाभ के लिए अपने आर्थिक राष्ट्रवाद से समझौता कर सकते हैं? नहीं। पतंगें, दिवाली के दीये, मोमबत्तियां, वे सभी चीजें जो आयात की जाती हैं। एक बार जब प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने हिस्से के आर्थिक राष्ट्रवाद को मजबूत कर लेगा, तो हमारा देश वित्तीय दृष्टि से आज की तुलना में कहीं अधिक बेहतर होगा।

मुझे यकीन है कि आप वन में, वन के आसपास रहने वाले लोगों के लिए इस देश के राजदूत होंगे। आप यह सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर योगदान करेंगे कि हमारे पास उस तरह की जलवायु न हो जो हमारी बर्दाश्त से परे चुनौतीपूर्ण हो। आपको शुभकामनाएं और भारत की सेवा में एक शानदार यात्रा के लिए शुभकामनाएं।

धन्यवाद।