सभी को नमस्कार!
इस देश में हमें बहुत जिम्मेदार होना होगा। हमारा भारत अभूतपूर्व रूप से बदल रहा है। देवियों और सज्जनों, मैं 1989 में संसद सदस्य था। मैं केंद्रीय मंत्री था। सरकार में रहते हुए मैंने देखा कि जिस भारत को हम सोने की चिड़िया कहते थे उस भारत का सोना हवाई जहाज से भारत के बाहर गया और स्विस बैंक, दो बैंकों के यहां प्लेस किया गया।
अब देखिए हम कहाँ हैं! तब हम एक अरब, दो अरब (अमरीकी डालर विदेशी मुद्रा भंडार) के बीच ही अटके रह जाते थे; अब हमारे पास 600 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है ।
मेरी इसरो के अध्यक्ष के साथ सार्थक बातचीत हुई।
1960 में हमारा अपना उपग्रह दूसरे देश के पैड से प्रक्षेपित किया गया था और हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इसे अपनी धरती से प्रक्षेपित किया था, लेकिन अब चाहे वह अमरीका हो, ब्रिटेन हो या सिंगापुर हो, हमने उनके उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं। भारत ने यह विकास देखा है।
पंजाब विश्वविद्यालय का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। यह आज जो है इसमें उससे कहीं आगे जाने की क्षमता है। यहां उपस्थित हम सभी को इसे सुदॄढ़ करने की जरूरत है। अगर हम ठान लें तो यकीन मानिए, पंजाब विश्वविद्यालय वैश्विक क्षितिज पर अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक होगा। हमें इसके लिए काम करने की जरूरत है।
मुझे ऐसे कुछ अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियों का सानिध्य पाकर बहुत खुशी हो रही है, जिन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है और वे पंजाब विश्वविद्यालय की समृद्ध विरासत को साथ लेकर चल रहे हैं, यही समान सूत्र है।
पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों ने विश्व स्तर पर हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। मैं पूर्व छात्रों का नाम नहीं बता सकता, मैं कुछ का नाम लेने से चूक जाऊंगा। वे देश के राष्ट्रपति, देश के उपराष्ट्रपति, देश के प्रधान मंत्री, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, कई नौकरशाह, वरिष्ठ नौकरशाह, उद्यमी रहे हैं। वे इन उच्च पदों पर हैं।
अब ऐसा विश्वविद्यालय जिसके पास पूर्व छात्रों के संख्या बल, पूर्व छात्रों की बौद्धिक क्षमता का अप्रतिम भंडार है, वह आज कहां है? हमारे पास पूर्व छात्रों द्वारा तैयार किया गया ऐसा कॉर्पस क्यों नहीं होना चाहिए जो वैश्विक संस्थाओं की ईर्ष्या का कारण बनें? इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र इस परिस्थिति में आगे क्यों नहीं आ सकते?
अमरीका का एक विश्वविद्यालय है जहां हमारे ही देश के लोग, हमारे ही देश के छात्र अपने ही देश का मजाक उड़ाते हैं। कोई और ऐसा नहीं करता है। किसी को तो उन्हें आईना दिखाना ही होगा। ऐसा केवल पूर्व-छात्र संघों द्वारा ही किया जा सकता है।
हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति सभी हितधारकों से इनपुट लेने के तीन दशकों से अधिक समय के बाद तैयार की गई थी। पश्चिमी बंगाल राज्य के राज्यपाल के रूप में मैं उनमें से एक था। मैंने प्रत्येक शिक्षाविद् से इनपुट प्राप्त किया और इससे एक ऐसा तंत्र विकसित हुआ जो छात्रों को पूर्ण स्वतंत्रता देता है।
जब शिक्षा की बात आती है तो हम नहर प्रणाली पर विश्वास नहीं कर सकते, इसे नदी के समान होना होगा। मानव मन को नदी की तरह बहने दो। हम यह सोच सकते हैं कि यह भटकाव क्यों हो रहा है? इसमें बहुत सारी भूमि लग जा रही है लेकिन जब आप वैज्ञानिक रूप से इसे परखेंगे, तो पाएंगे कि यह आसपास की भूमि का पोषण कर रहा है। दुनिया में सभ्यता किसी नहर के आसपास नहीं जन्मीं, सभ्यताएँ नदियों के आसपास ही पनपीं, समृद्ध हुईं। हमारे युवा संवेदनशील मस्तिष्कों को भी ऐसा ही बनाया जाए।
हमें गर्व है कि प्राचीन भारत में कई विश्वविद्यालय थे- नालंदा, तक्षशिला इत्यादि। उस स्तर के वैश्विक संस्थान बनाने से अब हमें कौन रोक रहा है और पंजाब विश्वविद्यालय वह विश्वविद्यालय है जो उस स्तर तक पहुंच सकता है। यह सभा या संघ या सरकार या कुलपति के बल पर नहीं उभर सकता। पूर्व छात्रों की भागीदारी से ही यह उपलब्धि हासिल की जा सकती है।
किसी विश्वविद्यालय की ताकत उसकी अवसरंचना में नहीं होती। आजकल उद्योग अवसरंचना का निर्माण करते हैं। वे शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसाय में उतर गये हैं। स्वतंत्रता पूर्व भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य ये दोनों सेवाएं हुआ करती थीं। अब यह उद्योग और वाणिज्य बन गया है। लेकिन एक विश्वविद्यालय की पहचान उसके संकाय और उसके पूर्व छात्रों से होती है। मैं यह कह सकता हूं कि अगर इस देश के किसी भी विश्वविद्यालय का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण किया जाए तो पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नंबर एक स्थान पर होंगे और इसलिए मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र निश्चित रूप से ऐसा कर सकते हैं।
एक मंच पर आने का समय आ गया है। पूर्व छात्रों को एक मंच पर होना चाहिए और पूर्व छात्रों को अखिल भारतीय प्रतिनिधित्व और वैश्विक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जिस क्षण ऐसा होगा, यह एक बड़ा परिवर्तन होगा जो यहां पढ़ने वाले छात्रों के लिए कई सकारात्मक स्थितियों को उत्प्रेरित करेगा।
दुनिया के कुछ वैश्विक विश्वविद्यालय जो बहुत प्रसिद्ध हैं, मैं उनका नाम नहीं लूंगा, उनकी प्रतिष्ठा पूर्व छात्रों के संख्याबल पर निर्भर करती है। उनका वित्तीय भंडार पूर्व छात्रों के अंशदान से निर्धारित होता है। कोई अधिक अंशदान दे कोई कम यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम जुड़ते कैसे हैं।
अमरीका में एक विश्वविद्यालय है मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन जो भी भारतीय उस विश्वविद्यालय में पढ़ा है, वह वास्तव में यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं हर महीने इतने रूपये का अंशदान दूंगा। मुझे बहुत दुख हुआ जब 2009 में भारत सरकार ने अमरीका में एक विदेशी विश्वविद्यालय को 5 मिलियन अमरीकी डॉलर का अंशदान दिया, किस लिए? क्या हमारे पास यहां पोषित करने के लिए पर्याप्त विश्वविद्यालय नहीं हैं? एक बड़े औद्योगिक घराने ने 50 मिलियन अमरीकी डॉलर का अंशदान दिया। मैं इसके खिलाफ नहीं हूं। आप वही करें जो आपका मन करे लेकिन अपने घर को नजरअंदाज न करें। हमें इसके प्रति बेहद जीवंत और संवेदनशील होने की जरूरत है।
मुंबई जैसी जगहों पर विदेशी विश्वविद्यालयों की पकड़ है। पूर्व-छात्र उद्योग और व्यापार को इसलिए भी जागरूक बना सकते हैं क्योंकि वे प्रमुख पदों पर हैं। तब पंजाब विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले किसी भी छात्र को यह लगेगा कि हां, मेरे असली अभिभावक मेरे विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं। अगर मैं योग्य हूं, मुझे अच्छी शिक्षा मिलेगी तो मेरे प्लेसमेंट में कोई समस्या नहीं होगी। यह आश्वासन पंजाब विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले हर छात्र और छात्रा के पास होगा। हमें यह कर दिखाना होगा।
मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि इस देश में विभिन्न संस्थानों के पूर्व छात्रों के बौद्धिक अनुभव तथा प्रत्यक्ष ज्ञान के संमिलन का समय आ गया है। हमारे पास आईआईएम हैं, हमारे पास आईआईटी हैं, हमारे पास विज्ञान संस्थान हैं, कई विश्वविद्यालय हैं - फोरेंसिक, पेट्रोलियम। हमारे पास महत्वपूर्ण कॉलेज हैं। अब अगर इन संस्थानों के पूर्व छात्र एक मंच पर एक जुट होते हैं, तो वे ऐसी नीतियां बनाने में मदद करेंगे लोगों की आंखे खोल देंगी।
लोग पूछते हैं कि भारत क्या बदलाव लाया है? एक उदाहरण लें, जब 3 दशकों के महान संघर्ष और असफलता के बाद, प्रधान मंत्री लोकसभा और राज्य विधानमंडल में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने के लिए सभी को एकमत कर सके । यह ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज है। तो अनुसूचित जनजाति कोटे में से एक तिहाई और अनुसूचित जाति कोटे में से भी एक तिहाई हिस्सा होगा। क्या कोई इससे बेहतर समतामूलक स्थिति हो सकती है?
मैं एक गांव से आता हूं और उन महिलाओं की दुर्दशा की कल्पना करता हूं जिन्हें सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद शौच के लिए जाना पड़ता था। अब हर घर में शौचालय है। कल्पना कीजिए कि उन महिलाओं को कितनी बड़ी राहत मिली होगी जो हमारे लिए खाना बनाती हैं, हमें खाना खिलाती हैं, जो चूल्हे के ऊपर बीमार हो जाती थी, फूंकनी से फूंकती रहती थीं, लकड़ी लाती थीं। गैस कनेक्शन, और ध्यान रहे 10 करोड़ या उससे भी ज्यादा गैस कनेक्शन जरूरतमंदों को मुफ्त दिया गया है, ये आसान काम नहीं है।
मैं यह कहना चाह रहा हूं कि अपने चारों ओर भारत बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत किसी भी अन्य देश से अधिक बदल रहा है लेकिन भारत की लंबी छलांग इसके विश्वविद्यालयों से शुरू होगी। मैं आप सभी से आज एक संकल्प लेने का आग्रह करता हूं कि आप अंशदान हेतु एक सुनियोजित तंत्र बनाएंगे... वित्तीय अंशदान, योगदान का एक छोटा सा लेकिन बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, मैं यह नहीं कहता कि 3.5 करोड़ का अंशदान कम है... यह बहुत महत्वपूर्ण है , अपना अंशदान देना किसी के लिए भी कठिन हो जाता है। मैं इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि मैं वकील भी हूं। कहते हैं कि वकील तो देता नहीं है।
आज मैं जो सुझाव दे रहा हूं वह हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है, एक विचारक मंडल होना चाहिए, कार्यान्वयन के लिए एक पत्र होना चाहिए। आप इसे परिचालित कर सकते हैं, फिर आपके पास एक तंत्र होगा कि क्या जोड़ा जा सकता है, प्लेसमेंट कैसे हो सकते हैं, हम उन लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं जिन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता है?
इस वैश्विक सम्मेलन को इस मिशन के साथ नए सिरे से शुरू करें... एक निष्पादन पत्र रखें, जुनून के साथ यह बदलाव लाएं, आपको संतुष्टि मिलेगी। मेरा विश्वास करें, मानव संसाधन के पोषण से बढ़कर कहीं कोई संतुष्टि नहीं हो सकती। आपके अल्मा-मेटर जिसने आपको वह बनाया है जो आप आज हैं, को पोषित करने से बढ़कर कोई संतुष्टि नहीं हो सकती ।
आप दुनिया भर में देखें, तथाकथित विकसित दुनिया में, अनुसंधान को कॉरपोरेट्स द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। हमारे देश में ऐसा नहीं हो रहा है। हमें एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना होगा जिससे कॉरपोरेट्स इस ओर आकर्षित हों। मुझे पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के उत्कृष्ट सामर्थ्य पर कोई संदेह नहीं है। उनके पास पंजाब विश्वविद्यालय के लिए बड़ा परिवर्तन लाने की क्षमता, सामर्थ्य, अनुभव और पहुंच है।
इस विश्वविद्यालय को बहुत आगे जाना है। मुझे लगता है कि मुझे इससे अधिक समय नहीं लेना चाहिए, लेकिन मैं आपको एक बात बताता हूं। कुछ स्थितियों में, हम वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ ही शुरुआत कर रहे हैं, और ऐसा अनुसंधान के क्षेत्र में भी है: डिज़रप्टिव टेक्नोलॉजी, आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स। बस मशीन लर्निंग की कल्पना करें। हम शाब्दिक अर्थ पर नहीं जा सकते। मशीन लर्निंग क्या है? हम 6जी की बात 5जी के संदर्भ में करते हैं क्योंकि आपके हाथ में एक मोबाइल फोन है। 6जी बहुत अलग है; यह इन सभी मुद्दों पर ज्यामितीय परिणाम लाएगा। पूर्व छात्रों को एक भूमिका निभानी है; वे यहां एक महत्वपूर्ण केंद्र बना सकते हैं। छात्रों की इसमें रुचि होगी और पंजाब विश्वविद्यालय के एक सैनिक के रूप में, कुलाधिपति के रूप में, मुझे अंशदान देकर वास्तव में खुशी होगी।
मेरे कहने का मतलब यह है कि एक समूह बनाएं या कई समूह बनाएं। मुझे पंजाब विश्वविद्यालय के किसी एजेंडे के साथ पूर्व छात्रों के दल का अपने यहां स्वागत करने और मेरे दोनों कार्यालयों की चुनौतियों के दृष्टिगत मैं जितना समय निकाल पाऊं उतने समय के लिए उनके साथ उनकी सुविधानुसार बातचीत करने में और उनके साथ विचार-मंथन करने में खुशी होगी। हम आगे बढ़ेंगे, हमें एक ऐसी संस्कृति तैयार करनी होगी कि हर कोई अपने अल्मा मेटर की ओर आकर्षित हो जैसे एक बच्चा माँ की ओर आकर्षित होता है।