22 अगस्त, 2022 को नई दिल्ली में माननीय उपराष्ट्रपति के सम्मान में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित बधाई समारोह में उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ का संबोधन।

नई दिल्ली | अगस्त 22, 2022

"मुझे न्यायालय में अपनी पहली उपस्थिति के दौरान हुई घबराहट की याद आती है।
मैं पूर्व वक्ताओं के संबोधन में परिलक्षित गर्मजोशी और सम्मान से अत्यधिक अभिभूत हूं। वे मेरे प्रति इससे अधिक सम्मान नहीं दर्शा  सकते थे।
मैं उन लोगों, जो मुझे जानते हैं और जो मुझे अन्य लोगों से अधिक जानते हैं, द्वारा दर्शाए गए सम्मान के इस पल को सदैव संजो कर रखूंगा।
व्यक्ति की जीवन यात्रा में इस तरह के क्षण दुर्लभ होते हैं। इससे अधिक संतोषजनक, स्फूर्तिदायक और प्रेरक कुछ नहीं हो सकता।
वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में इसी अदालत के पवित्र परिसर में बिताए गए तीन दशक से अधिक समय काफी आनंददायक था। आज मैं जो कुछ भी हूं वह इसी की बदौलत हूं।
यहां मुझे न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, अधिवक्ताओं एवं विनम्र न्यायालय और साथी कर्मचारियों सहित तमाम लोगों से सीखने का अवसर मिला।
मैं राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस के दौरान बार के सदस्यों द्वारा सिखाई गई प्रभावशाली नैतिकता एवं पेशेवर कुशलता को कृतज्ञता से याद करता हूं। पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी, न्यायमूर्ति टिबरेवाल और न्यायमूर्ति विनोद शंकर दवे ने मेरे व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं सदैव उनका ऋणी रहूंगा। यहां तक कि उस समय बार के युवा सदस्यों जिनमें से दो न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी यहां मौजूद हैं, ने भी स्वस्थ अदालती परिवेश और पेशेवर शिष्टाचार का उदाहरण पेश किया। मुझे उनसे संभवत: जितना किया उससे कहीं अधिक मिला।
हमें अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जोसेफ स्टोरी की बातों को याद रखने की आवश्यकता है जिन्होंने 1829 में कहा था:
'कानून एक ईर्ष्यालु प्रियतमा है और उसे लंबे एवं निरंतर प्रेम भाव की आवश्यकता होती है। इसे महज एहसानों से नहीं बल्कि उदार निष्ठा से जीता जा सकता है।'
मैं पूरी गंभीरता से इस ईर्ष्यालु प्रियतमा को शांत करने में लगा हुआ था। हल्के-फुल्के अंदाज में 30 जुलाई, 2019 को राज्यपाल के रूप में पद की शपथ लेने के बाद मुझे इस 'ईर्ष्यालु प्रियतमा' की अनुपस्थिति महसूस हुई।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में तीन साल के दौरान मुझे वाक्-पटुता, हास्य, अदालत में कभी कभार होने वाली नोक-झोंक और दोस्तों के कटाक्ष की याद आई। मैं बेंच और बार से समझ और ज्ञान हासिल करने के लिए प्राप्त असाधारण अवसर के लिए सदैव ऋणी रहूंगा, जिसका मैंने इन वर्षों के दौरान लाभ उठाया लेकिन पिछले तीन वर्षों से कमी महसूस की ।
हमारे शास्त्र में कहा गया है 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अर्थात कानून तभी हमारी रक्षा करता है जब हम उसकी पवित्रता को बरकरार रखते हैं। यह लोकतंत्र और विधि के शासन का 'अमृत वचन' है। मौजूदा दौर में व्यापक और प्रचलित धारणा बन गई है कि यह महत्वपूर्ण सिद्धांत दबाव में है।
देश में सभी लोगों को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि थॉमस फुलर ने तीन शताब्दी पहले किस ओर इशारा किया था और कई मौकों पर इस न्यायालय ने भी बल दिया है:
"चाहे आप कितने भी बड़े हो, कानून सदैव आपसे ऊपर है।"
अधिकारियों और उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा व्यापक जनहित में इसका संज्ञान लेने और लोकतांत्रिक परिवेश को बेहतर बनाए जाने की आवश्यकता है।
आधारभूत तौर पर सुदृढ़, निष्पक्ष एवं स्वतंत्र न्याय प्रणाली लोकतांत्रिक मूल्यों की समृद्धि और उन्हें बनाने  के लिए सबसे सुरक्षित गारंटी है।
न्यायाधीशों की गरिमा एवं न्यायपालिका का सम्मान अपरिहार्य है क्योंकि ये विधि के शासन और संवैधानिकता की बुनियाद हैं।
हाल में सार्वजनिक तौर पर न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत निशाना साधने की गलत प्रवृत्ति का उभार दुर्भाग्यपूर्ण है और इसकी अनुकरणीय रोकथाम की आवश्यकता है।
बार और बेंच के एक सैनिक के तौर पर मैं संवैधानिक संस्थाओं में सद्भाव और कामकाज में एकजुटता की भावना लाने का प्रयास करूंगा।
भारत में संवैधानिक अध्यादेश की मूल भावना के दृष्टिगत सभी संस्थानों को अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से परिलक्षित लोगों की आकांक्षाओं को प्रमुखता से समझने और महसूस करने की आवश्यकता है।
मैं भविष्य में भी बार और बेंच के साथ निरंतर बेहतर जुड़ाव की उम्मीद करता हूं।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और माननीय मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों की इस सहृदयता एवं विचारशीलता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है।
धन्यवाद।"