सभी को नमस्कार !
भारत सरकार के माननीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री तथा रसायन और उर्वरक मंत्री और एम्स के अध्यक्ष डा. मनसुख मांडविया जी एक दूरदर्शी और उद्यमशील व्यक्ति हैं। उनमें लेश मात्र भी अहंकार नहीं है और वह जिन संस्थानों के लिए काम करते हैं, उनके विकास में योगदान देते हैं। वह अपना कार्य पूर्ण तन्मयता एवं त्वरित गति से निष्पादित करते हैं, संस्थान में कार्यरत लोगों के साथ इनका तालमेल उल्लेखनीय है। मुझे इनके धैर्य, प्रतिबद्धता और समर्पण से प्रेरणा मिलती है। मुझे यकीन है कि जो इन्होंने कहा होगा वह न केवल पेशेवरों के लिए बल्कि आम नागरिकों के लिए भी बहुत प्ररेणादायक होगा।
माननीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रो. एस. पी. सिंह बघेल अपनी बात के बड़े पक्के हैं।
एम्स के निदेशक प्रोफेसर एम. श्रीनिवास जी एम्स की यह मेरी पहली यात्रा है जो मरीज के तौर पर नहीं है। एक मरीज के तौर पर तो मैं यहां दर्जनों बार आ चुका हूं। मैं आपको बताना चाहता हूं कि यहां के डॉक्टरों का ऐसा समर्पण है कि वे अपने परिवार के सदस्यों को भी बामुश्किल ही समय दे पाते हैं। मरीजों के स्वास्थ्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, समर्पण, सहभागिता का मुकाबला करना नामुमकिन हैं? मैंने राज्यपाल, उपराष्ट्रपति, सांसद और 1990 में मंत्री रहते हुए, सभी स्थितियों में इसे स्वयं देखा है। लेकिन जब मैं एक आम आदमी के रूप में यहां आया, तो इसने मुझे बहुत प्रभावित किया। एम्स का कोई मुकाबला नहीं है, एम्स का देश में कोई विकल्प नहीं है। जिस तरह का नेतृत्व निदेशक महोदय प्रदान कर रहे हैं, वह इसका श्रेय स्वयं ना लेते हुए सभी के साथ साझा करते हैं।
देश के उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति के रूप में एक जिम्मेदारी वाले पद पर आसीन रहते हुए, मैं राज्य सभा के सदस्य डा. अनिल जैन का उल्लेख किए बिना नहीं रह सकता। हम कितने अधिक परिणाम दे सकते हैं, यह बात बहुत कुछ उन पर और उनके सहयोगियों पर निर्भर करता है। हम एम्स जैसे संस्थानों की बराबरी करने की कोशिश करेंगे।
जनता के तेज तर्रार नेता और लोक सभा सदस्य श्री रमेश बिधूड़ी जी।
वर्ष 2015 में पद्म पुरस्कार से सम्मानित और देश में अपने महान योगदान के लिए जाने जाने वाले डॉ. रणदीप गुलेरिया जी।
मेरी प्रत्येक लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार विजेताओं से सीधा संपर्क है। मैं पूरी तरह लाभांवित होकर यहां से जाऊंगा। वे प्रेरणा, उत्प्रेरणा और प्रतिबद्धता के स्रोत हैं।
किसी संस्थान की रीढ़ उसकी फैकल्टी, उसका स्टाफ होता है – मेरा उन सभी को नमस्कार। सबसे महत्वपूर्ण वे छात्र हैं, जो आज अपनी डिग्री ले रहे हैं। आप सभी को बधाई। आपके माता-पिता को बधाई, जिनको आपने गौरवांवित किया है। आप पूरे जीवन भर उस शिक्षक या फैकल्टी को याद रखेंगे जो कक्षा में सख्त थे, क्योंकि उन्होंने आपको तैयार किया है, आपका मार्गदर्शन किया है, मुझे यकीन है, और आप उन्हें कभी निराश नहीं करेंगे।
मित्रों, मैं वकालत के पेशे से आता हूं। मैं जानता हूं, व्यवसायिकता का क्या अर्थ है। थोड़ी सी शिथिलता, थोड़ा सा व्यावसायीकरण, थोड़ा सा नैतिक विचलन, उन लोगों के लिए विनाशकारी हो सकता है जो सेवा करना चाहते हैं। इसलिए एम्स जैसे संस्थान के 48वें दीक्षांत समारोह के महान अवसर पर आकर मुझे खुशी है। यह मेरे लिए अविस्मरणीय क्षण है।
एम्स ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है और इसके लिए काफी मेहनत की गई है। मैं आपका समय नहीं लूंगा क्योंकि आपके निदेशक ने पहले ही पूरी विनम्रता से, सरल तरीके से सभी बाते बताई हैं जो किसी भी संस्थान को गौरवान्वित करेंगे। आप एम्स में हर स्तर पर जो कार्य कर रहे हैं वह अन्य संस्थानों और स्वास्थ्य संगठनों के लिए अनुकरणीय है।
यह दीक्षांत समारोह तीन वर्ष के पश्चात् आयोजित किया जा रहा है। यह समय अंतराल हमें कोविड महामारी की याद दिलाता है। इस समय अंतराल ने हमें अच्छी तरह समझा दिया है कि दुनिया ने और विशेषकर विश्व की 1/6 आबादी वाले भारत ने कैसे सफलतापूर्वक इसका मुकाबला किया और इस पर काबू पाया। यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य कर्मियों के अथक प्रयासों के कारण ही हो पाया जिनमें आप भी शामिल हैं।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब विश्व भर में हर कोई महामारी की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था और सभी लोग इस महामारी से समान रूप से जूझ रहे थे, तो हमारे स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान की कीमत संबंधी हमारे सभ्यतागत लोकाचार को पूरी तरह से सही ठहराया। उन्होंने जोखिम लिया और हमारा बचाव करने आगे आए।
माननीय प्रधान मंत्री की दूरदर्शिता, उनकी नवीन रणनीतियों और निर्बाध कार्यान्वयन ने लोगों की अभूतपूर्व भागीदारी सुनिश्चित की। मित्रों, मुझे उस समय पश्चिम बंगाल राज्य का राज्यपाल बनने का अवसर मिला था। दुनिया ने कभी भी उस तरह से जन भागीदारी की रणनीति के बारे में नहीं सोचा, जैसा कि माननीय प्रधान मंत्री ने सोचा था। वह जनता का कर्फ्यू था। कोविड पर काबू पाने और उसका मुकाबला करने के लिए पूरे देश ने सहयोग किया और सभी मोर्चों पर व्यापक परिणाम प्राप्त हुए ।
मानवता की चुनौती ने पूरे विश्व को यह भी दिखा दिया है कि भारत में हम अलग-थलग नहीं हैं। हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं, सिर्फ नाम के लिए नहीं। एक तरफ सरकार प्रतिबद्ध होकर 1.3 अरब लोगों की देखभाल कर रही थी। उसी समय सरकार ने वैक्सीन मैत्री का सहारा लिया और करीब 100 देशों की मदद की। ऐसी स्थिति में, यह बिल्कुल उचित है कि यह G-20 जिसका अध्यक्ष इस समय हमारा भारत है, का आदर्श वाक्य है "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य", यह निश्चित रूप से हमारी सभ्यता का सार है। यह हम सभी के लिए बहुत गर्व का क्षण है कि जब हम घर पर कोविड से जूझ रहे थे, तब सफल सहयोग मिला और हमने एक साथ कई देशों की मदद की। मैं तीन बार विदेश गया हूं, कई शासनाध्यक्षों ने मुझे बताया है कि उस तनावपूर्ण समय के दौरान भारत ने उनका ख्याल रखा, जो एक उल्लेखनीय वैश्विक उपलब्धि है और एक सॉफ्ट पावर है जो इस समय हमारे देश में काम कर रही है।
जब भारत कोविड महामारी से निपट रहा था, तो मैं इस पर ज्यादा विचार नहीं करूंगा, कुछ लोगों, जिन्हें हमारी क्षमता पर विश्वास नहीं था, की व्यर्थ की चिंता व्यक्त करने वाली बातों को सुनकर कष्ट होता था, जिनसे एक राष्ट्र के रूप में बचने की जरूरत है - इससे किसी को मदद नहीं मिलती है।
दीक्षांत समारोह उन लोगों के जीवन में सदैव अविस्मरणीय क्षण है, जो मेरे समक्ष अपनी कठिन परिश्रम का फल पाने के लिए बैठे हैं और इस महान दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस संस्थान से जुड़े उन छह संकाय सदस्यों को मेरी शुभकामनाएं, जिन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, उनकी उपस्थिति से सीधा संपर्क बनेगा और आपको उस तरह की ऊर्जा और बल मिलेगा जिसे आप जीवन भर संजोकर रखेंगे।
मैं उन सभी युवाओं, जो आज डिग्री प्राप्त कर रहे हैं, से अपील करूंगा कि वे लाइफटाइम अचीवर्स की प्रोफाइल पढ़ें, उनका अनुसरण करें, उनकी प्रतिबद्धता को समझें, यह जानें कि वे हमारे लिए क्या परिणाम लाएं, वे इस स्तर तक कैसे और क्यों आएं। अपने ही संस्थान और अपने ही साथियों द्वारा सम्मानित किए जाने से बढ़कर जीवन में कोई उपलब्धि नहीं हो सकती।
यह प्रत्येक माता-पिता के लिए गर्व का क्षण है क्योंकि एम्स टैग का महत्व बहुत अधिक है। आपका केवल इतना कहना है, "मैं एम्स से हूं" और आपको पता चल जाएगा कि वह व्यक्ति आपको एक अलग नजरिए से देख रहा है। यह टैग आप जीवन भर साथ रखेंगे। आप इस जगह से एक डिग्री के साथ बृह्तर दुनिया में जा रहे हैं, लेकिन यकीन मानिए आपको हमेशा एक छात्र बने रहना होगा क्योंकि एम्स आपको यही सिखाता है।
आज एमबीबीएस, एमएस, एमडी, डीएम, एमसीएच, पीएचडी प्राप्त करने वालों को बधाई। जब आप पूरे देश में काम करेंगे, तो आप बड़े पैमाने पर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण का केंद्र बन जाएंगे।
आप जो संदेश देते हैं वह आपके आदर्श वाक्य में समाहित है, जो इस प्रकार है: एक स्वस्थ शरीर हमारे सभी गुणों का माध्यम है। यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो हमारे सद्गुणों का कोई अर्थ नहीं है। यह इसके महत्व के बारे में बहुत कुछ बताता है।
प्रत्येक राष्ट्र का विकास तर्कसंगत रूप से उसकी आबादी के स्वास्थ्य से संबंधित होता है। यदि लोग स्वस्थ नहीं है, तो आपको उपलब्धियां नहीं मिल सकतीं, वृद्धिशील उपलब्धियाँ तो दूर की बात हैं। अपने तो समाज में कहा जाता है, 'पहला सुख निरोगी काया' और ' स्वास्थ्य ही धन है', इस पर ध्यान देना हर सरकार का काम है, हर नागरिक का काम है, खास तौर से स्वास्थ्य से जुड़े हुए सभी लोगों का परम कर्तव्य है। यह किसी धर्म से कम नहीं है। इसको व्यवसाय नहीं बनाया जा सकता। यह पैसे का साधन नहीं हो सकता। मैं जानता हूं कि जो डॉक्टर एम्स से निकलते हैं, या यहां कार्यरत हैं, उनको कहीं भी यहां से ज्यादा पैसा मिलेगा, उनके पास देश और विदेश में कई अवसर होंगे। लेकिन जिस प्रकार की संतुष्टि और जिस प्रकार की प्रतिष्ठा, जिस प्रकार की अनुभूति आपको बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करने में मिलती है, और कहीं नहीं मिलेगा।
आदमी समझ नहीं पाता कि इस संस्था में कितने लोग आते हैं, मैं आपको बता सकता हूं कि एम्स में आने के बाद मरीज में असंतोष नहीं रह जाता, उसे लगता है कि मेरी मुलाकात मेरे रचयिता से हो गई है, ईश्वर की मुझ पर इतनी मेहरबानी रही कि मेरी देखभाल एम्स के डॉक्टर कर रहे हैं। शेष वह अपने भाग्य पर छोड़ देता है। यह संतुष्टि आपकी ओर से एक बड़ी सफलता है।
मुझे हमारे धर्मग्रंथों का यह श्लोक बहुत प्रासंगिक लगता है:
पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही। एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः।।
जिसका अर्थ है: जीवन में सब कुछ पुनः प्राप्त किया जा सकता है - आपके रिश्तेदार, राज्य, मित्र और धन। एकमात्र चीज़ जिसे आप कभी भी पुनः प्राप्त नहीं कर सकते वह आपका शरीर है।
अत: हमें इसका पूरा ख्याल रखना होगा। यदि शरीर ठीक हो, तो इसमें अपार क्षमता है। यह आपकी पूरी प्रतिभा का दोहन कर सकता है, आपकी पूरी ऊर्जा को उन्मुक्त कर सकता है और आप बड़े पैमाने पर लोगों के कल्याण में योगदान दे सकते हैं। लेकिन यदि शरीर ठीक नहीं है, तो आपकी क्षमता, विश्वास, विशेषज्ञता या प्रदर्शन व्यर्थ हैं।
मैं निदेशक, संकाय और माननीय मंत्री को एम्स जिसने राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क में देश के चिकित्सा संस्थानों के बीच शीर्ष रैंकिंग अर्जित की है, की उत्तरोत्तर प्रगति प्रथ को बनाए रखने के लिए बधाई देता हूं लेकिन मेरे लिए यह स्पष्ट था, क्योंकि सब कुछ इतना प्रामाणिक, प्रतिबद्धता और निर्देश से परिपूर्ण है। यह तो होना ही था लेकिन यह कई अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत होगा। यह चिकित्सकों और पराचिकित्सीय स्टाफ का समर्पण और निष्ठा है जिसकी व्यापक सराहना हुई है और जिससे महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। यह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं हो सकता। मुझे एक फिल्म याद आती है जिसमें यह दर्शाया गया था कि अस्पताल में हर व्यक्ति मायने रखता है और वह समर्पण यहां देखा जा सकता है, सेवा के प्रति प्रतिबद्धता और कर्तव्य की गहरी भावना सभी के लिए अनुकरणीय है।
मैं इस अवसर पर एम्स में चिकित्सक, संकाय सदस्यों, पराचिकित्सीय और अन्य स्टाफ सदस्यों के रूप में काम करने वाले सभी लोगों को बधाई देता हूं और उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हूं। यह खुशी की बात है कि एम्स ने आईआईटी दिल्ली, खड़गपुर जैसे अन्य प्रमुख संस्थाओं और देश एवं विदेश की कई अन्य संस्थाओं के साथ साझेदारी करके उत्कृष्टता का एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है। यह वह समय है जब हमें सोच, नवाचार, अनुसंधान, विकास संबंधी प्रतिभाओं को एक साथ लाना चाहिए ताकि वे सभी लोग जो एकजुट हों, उन्हें लाभ हो सके और बड़े परिणाम मिल सकें।
देश का उपराष्ट्रपति बनने के बाद एक बार जब मैं अपना स्वास्थ्य जांच करा रहा था तो मुझे चर्चा करने का अवसर मिला था और निदेशक मुझे बता रहे थे कि एम्स दिल्ली को एक विश्व स्तरीय चिकित्सा विश्वविद्यालय बनाने के लिए एक मास्टर प्लान है। माननीय मंत्री जी के यहां होने से मुझे कोई संदेह नहीं है, यह फलीभूत होगा। और मैं माननीय मंत्री जी को बता दूं कि यह समय की मांग है। इसका वहां होना जरूरी है। एम्स के पास समृद्ध मानव संसाधन है। इसके लिए वैश्विक स्तर के अनुरूप अवसंरचना की आवश्यकता है।
हाल के वर्षों में क्रियान्वित सकारात्मक कदमों और भावनापूर्ण नीतियों की श्रृंखला ने आम आदमी के लिए एक अत्यंत प्रभावी और किफायती स्वास्थ्य तंत्र सुनिश्चित किया है। ऐसा तब नहीं था जब 80 के दशक के अंत में मेरे पिता हृदय रोग से पीड़ित थे और हमारे देश में बाईपास सर्जरी की सुविधाएं नहीं थी। उन्हें लंदन ले जाया गया। उनका इलाज कर रहे डॉक्टर ने मेरी तरफ देखा और पूछा। क्या उन्हें इलाज के लिए अनुदान प्राप्त है? मैंने कहा नहीं। क्या उनका बीमा है? मैंने कहा नहीं। उनके चिकित्सा बिलों का वहन कौन करेगा? मैंने कहा, मैं वहन करूंगा। वे दिन और अब आयुष्मान भारत की कल्पना कीजिए। 23 सितंबर 2018-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों, मध्यम वर्ग के लिए एक उपहार है। उन्हें वह लाभ मिल सकता है और उन्हें वह लाभ मिल रहा है। यह एक अनोखा विचार है। इसने अर्थव्यवस्था में भी बहुत बड़ा योगदान दिया है। आयुष्मान भारत के अभाव में कई परिवार आर्थिक रूप से बर्बाद हो गए होते। बहुत बढ़िया कदम उठाया गया है।
सरकार ने कई नीतियां लागू की हैं, लेकिन औषधियों से मूल्य के अनुसार लाभ होना चाहिए। दुर्भाग्यवश कुछ वर्ष पहले ऐसा परिदृश्य नहीं था। अब जनऔषधि केंद्रों का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है और पूरे देश में 9000 से अधिक ऐसे केंद्र हैं और लोगों को इसका बहुत लाभ मिल रहा है।
मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग पर इसके प्रत्यक्ष प्रभाव की कल्पना करें। उनकी आय बढ़ती है क्योंकि उन्हें आश्वासन दिया जाता है कि आयुष्मान भारत उनके स्वास्थ्य के लिए पूर्ण आश्वासन है और यही हो रहा है। जब भी मैं विदेश जाता हूं तो लोगों को यह कहते हुए पाता हूं कि भारत दुनिया की फार्मेसी है। हमारे पास वह हुनर है, ऐसा मानव संसाधन है लेकिन आम आदमी तक औषधि पहुंचाने के लिए हमें और अधिक काम करना है। सरकार ने इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम किया है, लेकिन हमें एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना होगा जिसमें हर कोई इसके अनुरूप हो, यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप वाणिज्यिक रूप से उस स्तर तक कमाई नहीं कर सकते हैं जैसा कि सामान्य व्यवसाय द्वारा किया जा सकता है। इसमें एक सेवा भाव जैसा अंतर्निहित होना चाहिए।
भारत का समृद्ध मानव संसाधन विश्व स्तर पर प्रभावशाली हो सकता है और यह संतोष की बात है कि पिछले हाल के कुछ वर्षों में चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या में वास्तविक वृद्धि हुई है। हमने एमबीबीएस और एमडी में प्रवेश की संख्या में वृद्धि की है। हमें इसे और अधिक ऊंचाई पर ले जाने की जरूरत है और एक बार ऐसा हो जाए,तो मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया भर में हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के प्रभाव को महसूस किया जाएगा ।
देश में एम्स की संख्या 7 से बढ़कर 23 हो गई है, जिनमें से 15 पूरी तरह से क्रियाशील हैं और कुछ को अभी भी कार्यशील किया जाना है। अब हमें सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा। सब कुछ किया जा रहा है। हमें खामियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। चुनौतियां तो होंगी ही लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।
23 एम्स होना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह समय की बात है और वे सभी पूर्ण रूप से क्रियाशील होंगे और वे लोगों को राहत देने और एम्स दिल्ली से कुछ बोझ कम करने के केंद्र बन जाएंगे।
दोस्तों, 2 अक्टूबर 2014 और 15 अगस्त 2014 - दोनों बहुत ही उल्लेखनीय महत्वपूर्ण तारीखें हैं। जब हमारे दूरदर्शी प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा - स्वच्छ भारत, तो कुछ लोगों ने इसे हल्के में ले लिया कि इस महान देश के प्रधान मंत्री स्वच्छ भारत के बारे में कैसे बोल रहे हैं? वे भूल गए कि महात्मा गांधी ने ऐसा किया था और अपने स्वयं के कार्यों का उदाहरण देकर ऐसा किया था लेकिन इसे औपचारिक रूप से 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किया गया था; इससे काफी लाभ हुए हैं।
आप सभी, विशेषकर यहाँ उपस्थित वरिष्ठजन- हम जब भी विदेश जाते हैं, तो हम अपनी कार से केले का छिलका कभी बाहर नहीं फेंकते। जिस क्षण हम इस देश में वापस आते हैं, तो हमें लगता है कि यह हमारा राष्ट्रीय अधिकार है। लेकिन अब ऐसा कोई नहीं करता है। यह जागरूकता चरम पर पहुंच गई है। दरअसल, स्वच्छ भारत ने कई स्टार्टअप को जन्म दिया है और कई उद्यमी इसका लाभ उठाने के लिए आगे आए हैं।
क्या दृश्य होता था जब हम अपने समुद्र तटों पर जाते थे और तो हमें चारों ओर प्लास्टिक और बोतलें मिलती थीं। ऐसी चीजे कम हो रही हैं, लेकिन हमें अभी भी लोगों में एक अच्छी आदत डालने की ज़रूरत है। मैं 1989 में संसद के लिए निर्वाचित हुआ था और कुछ समय के लिए मंत्री भी रहा। जिसकी हम कभी कल्पना नहीं कर सकते थे, कभी स्वप्न नहीं देख सकते थे, कभी संकल्पना नहीं कर सकते थे, वह अब जमीनी हकीकत है।
यह सोचना किसी के लिए भी अकल्पनीय था कि हमारे हर घर में शौचालय होगा, यह अब जमीनी हकीकत है। खुले में शौच से मुक्त गांव हमें गौरवान्वित करते हैं और चीजें सही आकार ले रही हैं। यह बड़े पैमाने पर लोगों के अच्छे स्वास्थ्य में भी योगदान देता है।
वर्ष 1989 में मेरे पास 50 गैस कनेक्शन थे। वह मेरे हाथ में एक बड़ी शक्ति थी। मैं अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति को 50 गैस कनेक्शन उपहार में दे सकता था। मैं कभी कल्पना भी नहीं सकता था कि कोई दूरदर्शी प्रधानमंत्री होगा जो ऐसा करेगा और 170 मिलियन परिवारों को यह मुफ्त मिलेगा। इसका असर उन परिवारों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। वे हमारी विकास कहानियों का हिस्सा बन जाते हैं। ऐसे योगदानों के कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है। हम इस समय 5वें स्थान पर हैं, जो एक मील का पत्थर है, जिसे हमने सितंबर 2022 में अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासक ब्रिटेन को पछाड़कर हासिल किया था। इस दशक के अंत तक हम तीसरे स्थान पर होंगे। अर्थव्यवस्था केवल उद्योग, व्यवसाय या व्यापार के कारण ही नहीं बढ़ती है। यह समाज की समग्र संतुष्टि के कारण बढ़ता है।
स्वास्थ्य और शिक्षा उसके लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनसे दुनिया निपट रही है। एक मधुमेह है, दूसरा कैंसर है। डायलिसिस एक ऐसी समस्या थी जिसे अब लगभग हल कर लिया गया है, अन्यथा इससे परिवार के मन में घबराहट की स्थिति पैदा हो जाती थी।
लोग दिल की बीमारियों को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के रूप में देखते हैं। आप बेहतर जानते हैं क्योंकि यह आपका विषय क्षेत्र है, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि यदि आप सभ्यता के लोकाचार, हमारे उपनिषद, वेदों की ओर देखें तो इन बीमारियों से कैसे लड़ा जाए, इसकी पर्याप्त जानकारी इनमें उपलब्ध है। हमारे लिए इस पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है और प्रधानमंत्री ने एक बड़ी पहल की है। हमारे शास्त्रों में योग है; योग विश्व को हमारा उपहार है। यह कितना अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण है। हमारे देश में हजारों वर्षों से स्वास्थ्य के लिए इसका महत्व बताया गया है। लेकिन यह 11 दिसंबर 2014 का दिन - हम सभी के लिए बहुत गर्व का क्षण था - जब संयुक्त राष्ट्र 175 देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के लिए एक साथ आए। इसका नेतृत्व भारतीय प्रधान मंत्री ने किया। इस देश के इतिहास में भारतीय प्रधानमंत्री के ऐसे वैश्विक नेतृत्व को इतने कम समय में कई देशों से इतना व्यापक समर्थन कभी भी नहीं मिला। जब मैं जबलपुर में था जब देश ने पिछला योग दिवस मनाया और माननीय प्रधान मंत्री संयुक्त राष्ट्र परिसर में थे। मुझे पता चला कि लोग कैसे जुड़ते हैं। वे कैसे प्रेरित होते हैं। इससे जीवनशैली में बदलाव आया है और एम्स जैसे संस्थानों से कुछ बोझ कम हो रहा है।
हमें हमेशा अपने कोष में अंशदान करना होता है। यदि हम सदियों से हमारे देश में मौजूद संसाधनों का दोहन नहीं करते हैं, तो हम बड़े पैमाने पर मानवता की सेवा नहीं कर पाएंगे। 9 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री द्वारा एक और बड़ा कदम उठाया गया। एक पृथक आयुष मंत्रालय बनाया गया।
यदि मैं आधिकारिक आंकड़ों का उल्लेख करूं कि सरकार ने जो ये सभी कदम उठाए हैं, उनका सामुदायिक प्रभाव क्या है, तो यूएनडीपी और नीति आयोग द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2015 से पांच वर्षों में, भारत 13.5 करोड़ नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और समग्र जीवन स्तर संबंधी उनकी संभावनाओं में सुधार करके बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाल सका है। जनसंख्या की दृष्टि से यह क्या है? यह यूनाइटेड किंगडम की जनसंख्या से दोगुनी है!
मैं हर उस व्यक्ति से आह्वान करूंगा कि जीवन में प्रतिस्पर्धा का समाना करें। मैं अपने वकील मित्रों से कहता रहता हूं कि हम भारतीयों के पास मुकदमेबाजी की अधिक समझ होती है। जब तक हम उच्चतम न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटा लेते, हम चैन से नहीं बैठेते। यही स्थिति प्रतिस्पर्धा को लेकर भी है। हमें एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है जिसमें इस देश में योगदान करने के लिए पर्याप्त अवसर हो और मैं आपको बताऊंगा कि ऐसा क्यों है। उपराष्ट्रपति के रूप में मुझे आईएएस, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय वन सेवा, भारतीय सूचना सेवा, भारतीय रक्षा लेखा सेवा के प्रशिक्षुओं, परिवीक्षार्थियों से मिलने का अवसर मिला और मैंने पाया कि वहां डॉक्टर हैं, आईआईटी से हैं, आईआईएम के लोग हैं, वकील हैं। गौर करने वाली बात बहुत स्पष्ट है। आपको अपनी जगह मिल जाएगी। प्रतिस्पर्धा में ज्यादा न उलझें। अपनी योग्यता पर ध्यान दें और आप बहुत बड़ा योगदान देने में सक्षम होंगे। यदि आप अपनी निर्णय लेने की प्रक्रिया के विरुद्ध जाते हैं, तो आपका कार्य कठिन हो जाएगा और यह ठीक नहीं होगा।
चिकित्सकों द्वारा ली जाने वाली शपथ के बारे में एक संकेत था: मैं उच्चतम स्तर की देखभाल प्रदान करने के लिए अपने स्वास्थ्य, कल्याण और क्षमताओं का ध्यान रखूंगा। अब कुछ चीजें करने की बजाय कहने में अधिक सहज हैं। लेकिन मैं इस मंच से यह कहने का साहस करता हूं: इस पृथ्वी पर कभी भी ऐसा डॉक्टर नहीं होगा, विशेषकर हमारे देश में, जो अपने स्वास्थ्य के लिए रोगी के कल्याण का त्याग करेगा। वह मरीज को बचाने के लिए हर संभव प्रयत्न करेगा। यह उस सेवा के प्रति एक महान सम्मान है जिससे आप जुड़ने जा रहे हैं।
अंत में, मैं देश और विदेश के लाखों लोगों के साथ मिलकर हमारे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को सलाम करता हूं जिन्होंने हमें सफलतापूर्वक कोविड महामारी पर काबू पाने में मदद की। मैं उन लोगों को हार्दिक बधाई देता हूं जो आज दीक्षांत समारोह के लिए यहां आए हैं और संकाय सदस्यों की कड़ी मेहनत के लिए आभार व्यक्त करता हूं; विशेषकर माता-पिता के लिए यह गर्व का क्षण है। समाज में उनका सम्मान निश्चित रूप से बढ़ा है क्योंकि उनकी संतानें एम्स से हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र समेत महत्वपूर्ण प्रभावशाली कदमों की शृंखला के कारण भारत अभूतपूर्व रूप से आगे बढ़ रहा है। अब हमारा उत्थान अबाध है। हमारा उत्थान असाधारण है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि निवेश और अवसरों के लिहाज से भारत सबसे उपयुक्त स्थान है। निश्चित रूप से यह हम सभी के लिए गर्व करने का अवसर है।
अत: मैं निष्कर्ष निकालूंगा: हमेशा अपने राष्ट्र को पहले रखें। यह वैकल्पिक नहीं है, यह अनिवार्य नहीं है, यही एकमात्र तरीका है। आपको अपने राष्ट्र को हमेशा पहले रखना होगा। हमें विश्वास करना होगा कि हम गौरवशाली भारतीय हैं और अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व करते हैं। यदि यहां-वहां से कुछ आवाजें आ रही हैं, तो मैं उस पर ज्यादा विचार नहीं करूंगा, लेकिन उन्हें बेअसर करना हम सभी का इस राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है। उस मोर्चे पर हमारी चुप्पी बहुत अच्छी नहीं हो सकती है।
मित्रों, आइए हम मानवीय दुख को कम करने, सभी के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने का संकल्प लें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वे सन्तु निरामया:।
सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें।
एक बार फिर मैं माननीय मंत्री जी जो एम्स के अध्यक्ष हैं और निदेशक के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे दर्शकों के सामने अपने विचार रखने का अवसर प्रदान किया जो 2047 जब हम अपनी आज़ादी का शताब्दी वर्ष मनाएंगे, मैं भारत के लिए अपना पूरा जीवन योद्धाओं के रूप में समर्पित करेंगे ।
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
जय हिन्द!