2 दिसंबर, 2023 को नई दिल्ली में छठे आईसीसी भारत मध्यस्थता दिवस के उद्घाटन सत्र में माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ द्वारा दिया गया संबोधन

नई दिल्ली | दिसम्बर 2, 2023

आप सभी को हार्दिक सुप्रभात!

आईसीसी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय की अध्यक्ष, सुश्री क्लाउडिया सॉलोमन प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की धनी हैं, जो दशकों से पूर्ण मनोभाव के साथ मध्यस्थता से जुड़ी हुई हैं। उनकी अध्यक्षता एक अति महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
श्री अलेक्जेंडर जी. फेसास आईसीसी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के महासचिव हैं। हमने उन्हें अपने विचार प्रकट करते हुए सुना।
श्री तेजस चौहान - निदेशक, दक्षिण एशिया, आईसीसी मध्यस्थता और एडीआर।
मैं सुश्री पिंकी आनंद जैसे बहुप्रतिष्ठित पेशेवरों की उपस्थिति की अधिकारिक रूप से प्रशंसा करता हूं। उन्होंने इस प्रणाली में काफी योगदान दिया है। मैं राज्य सभा सचिव श्री राजित पुनहानी की उपस्थिति की भी अधिकारिक रूप से प्रशंसा करता हूं। उनकी उपस्थिति काफी मायने रखती है, क्योंकि हम कुछ चीजों को आगे ले जाने की स्थिति में होंगे जिन पर मैं विचार करूंगा।
मैं अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय और आईसीसी मध्यस्थता आयोग से भी जुड़ा रहा हूं और मैं जो कुछ भी कहूं, उसका यह आशय नहीं है कि मैं इस क्षेत्र से जुड़े अन्य संस्थाओं की तुलना में इस संस्था का समर्थन कर रहा हूं। लेकिन निश्चित रूप से, मैं वैसा भी नहीं कर रहा हूं।
छठे वार्षिक आईसीसी भारत मध्यस्थता दिवस का यह उद्घाटन सत्र अत्यंत उपयुक्त समय पर आयोजित किया जा रहा है। हम अमृत काल में हैं। भारत, जहां पूरे विश्व की कुल जनसंख्या का 1/6वां हिस्सा निवास करता है, अभूतपूर्व आर्थिक विकास का साक्षी बन रहा है। पहले से ही यूके और फ्रांस की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए हम 5वीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं। इस दशक के अंत तक हमारा भारत जर्मनी और जापान की अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़कर तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसका अर्थ यह है कि जो लोग इस कमरे में मौजूद हैं उनके लिए पर्याप्त कार्य उपलब्ध है और हमें एक बहुत मजबूत तंत्र की जरूरत है।

आईसीसी भारतीय न्यायालय का शताब्दी समारोह एक बहुत ही गौरवशाली क्षण है। मुझे आयोग और न्यायालय दोनों में बिताए गए दिन याद हैं। मैं जब भी वहां गया, मुझे सीखने को मिला। इस क्षेत्र के प्रतिष्ठित पेशेवरों के साथ संपर्क में रहना हमेशा ज्ञानवर्धन का अनुभव रहा है। यह आपको दिखने वाली सामान्य मध्यस्थता प्रक्रिया से परे एक मंच है। दुनिया के कुछ महानतम विद्वतजन विचार मंथन करते हैं, मध्यस्थता प्रक्रिया के आधार में योगदान देने के लिए यहां एक साथ आते हैं। इस संस्थान की यात्रा सचमुच बहुत ही गौरवपूर्ण रही है।

मैं सुश्री क्लाउडिया सॉलोमन का बहुत गर्मजोशी से स्वागत करना चाहूंगा। हमने महिलाओं का उत्थान देखा है और यह उत्थान विश्व स्तर पर बहुत तनावपूर्ण और कठिन रहा है। उनका निर्वाचन अविस्मरणीय अवसर का द्योतक है, क्योंकि वह इस प्रतिष्ठित पद को संभालने वाली पहली महिला बन गई हैं, लेकिन आईसीसी, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के शताब्दी वर्ष में अन्य महत्वपूर्ण घटना इसे पराकाष्ठा पर पहुँचा देती है। एक मध्यस्थ के रूप में और एक आपातकालीन मध्यस्थ के रूप में अपने व्यापक अनुभव के साथ वह उन अग्रणी महिलाओं की श्रेणी में शामिल हो गई हैं जिन्होंने कानूनी प्रणाली जिन्होंने कानूनी प्रणाली में बाधाओं को तोड़ा है, क्योंकि इस विशेष क्षेत्र में आनेवाले समय में और अधिक संभावनाएं हैं।
हमने ठीक एक सप्ताह या उससे भी कम समय पहले जस्टिस सैंड्रा डे ओ'कॉनर, संयुक्त राज्य अमेरिका की सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश को खो दिया, वे एसोसिएट जज कहते हैं, मुख्य न्यायाधीश को चीफ जस्टिस कहा जाता है। और ऐसा तब हुआ, जब न्यायालय 190 साल पुरानी थी।
हमने हाल ही में अपने सबसे प्रतिष्ठित न्यायाधीशों में से एक, भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश एम. फातिमा बीवी, इसमें हमें 40 साल से भी कम समय लगा, को खो दिया। आप कहीं बीच में हैं।
इस देश के मूर्धन्य लोगों के बीच अपने विचारों को साझा करना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से एक महत्वपूर्ण अवसर है। यहां हर किसी की उपस्थिति बहुत प्रभावशाली है। लेकिन कुछ ऐसे लोगों जो इस देश में मध्यस्थता प्रक्रिया पर हावी हैं, उनकी उपस्थिति और जो मध्यस्थ के रूप में प्रमुख स्थानों पर हैं, उनकी अनुपस्थिति भी उतनी ही प्रभावशाली है ।
यहां हर किसी की उपस्थिति बहुत प्रभावशाली और उल्लेखनीय है, लेकिन कुछ लोगों की उपस्थिति निश्चित तौर पर विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि उन्होंने मध्यस्थ के रूप में देश की मध्यस्थता प्रक्रिया को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है।
यह घटना भारत में मध्यस्थता के बढ़ते महत्व का एक शक्तिशाली प्रमाण है और यह अपरिहार्य है। यदि विकास को एक वृद्धिशील प्रक्षेप पथ की ओर उन्मुख करना है, तो हम जबरदस्त आर्थिक विकास कर रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व रूप से वृद्धि कर रही है। विश्व की संस्थाओं ने हमें अवसर और निवेश के पसंदीदा गंतव्य के रूप में माना है।
हमने जिस तरह की प्रगति दर्ज की है और जिस गति से हम आगे बढ़ रहे हैं, उससे दुनिया आश्चर्यचकित है। विवाद तो होते ही रहते हैं, व्यावसायिक गतिविधि में विवाद स्वाभाविक है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी विशेष दृष्टिकोण को लेकर लोगों में अलग-अलग धारणाएं होती हैं। इसलिए हमें एक ऐसी प्रणाली की अत्यंत आवश्यकता है जो सशक्त, तीव्र, वैज्ञानिक एवं प्रभावी हो और जो सर्वोत्तम मानव प्रतिभा द्वारा संचालित हो।
इस प्रक्रिया में, मैं "रिसेंट ट्रेंड्स इन इंडियन आर्बिट्रेशन – लीनिंग टूवार्ड्स हार्मनी ऑर डिसॉर्डर" शीर्षक वाले पहले सत्र के लिए आईसीसी द्वारा उठाए गए कदमों की अत्यंत सराहना करता हूं। इससे ज्यादा सामयिक कुछ भी नहीं हो सकता है, इससे अधिक उपयुक्त कुछ भी नहीं हो सकता है, विचारशील क्षेत्र में रखे जाने हेतु हमारे लिए इससे अधिक और कुछ नहीं हो सकता। हमें आंतरिक तौर पर सोचना होगा। जैसे ही हम विषय की गहराई में जाते हैं, हमें उसका उत्तर स्वत: मिल जाता है। मुझे यकीन है कि चर्चाएं और विचार-विमर्श हमें बहुत आगे तक ले जाएंगे।
दोस्तों, मैं अपने विचार साझा कर रहा हूं। इस धरती पर कहीं भी, किसी अन्य देश में, किसी अन्य प्रणाली में मध्यस्थता प्रणाली पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की इतनी मजबूत पकड़ नहीं है। हमारे देश में यह व्यापक तौर पर मौजूद है और मुझे एक प्रतिष्ठित न्यायविद्, एक महान कानूनी विशेषज्ञ, एक प्रतिभाशाली मस्तिष्क का सानिध्य प्राप्त है, जो इस देश में न्यायपालिका के परिदृश्य को बदल रहा है। मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रचूड़ का जिक्र कर रहा हूं, उन्होंने इस पर अपना विचार व्यक्त किया। उन्होंने मध्यस्थों की नियुक्ति में विविधता की कमी के संबंध में विचार व्यक्त किए और आगे उन्होंने जो कहा वह बहुत सशक्त बयान है। केवल वही ऐसा बयान दे सकते थे। इस प्रणाली को दोषरहित बनाने, इस प्रणाली को मजबूत बनाने, ज्यादा कार्यात्मक बनाने के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता, वे बोल सकते थे। जिस बिरादरी से आप संबंध रखते हैं, उसके बारे में इतनी निष्पक्षता से बोलने के लिए बहुत साहस की आवश्यकता होती है और उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश इस क्षेत्र में हावी हैं। वे बोलते चले जाते हैं और मैं इसके लिए उन्हें सलाम करता हूं। उनका कहना है कि यद्यपि अन्य योग्य उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, उनका तात्पर्य यह है कि यह मध्यस्थता क्षेत्र के भीतर "ओल्ड ब्यॉज क्लब" की मानसिकता को दर्शाता है। उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि मध्यस्थता नियुक्तियों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का दबदबा रहता है और इस प्रक्रिया में कई होनहार उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। मैं यहां एक क्षण के लिए रुकता हूं। भारत अपने मानव संसाधनों के लिए जाना जाता है। हर कार्यक्षेत्र में, जीवन के हर क्षेत्र में, हमारे पास ऐसे लोग हैं जो इस पर नज़र रख सकते हैं। लेकिन वे किसी मनमानी प्रक्रिया पर निर्णय देने के लिए नहीं बनाए गए हैं।
समय आ गया है कि जब हमें आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है, जरूरी हो तो कानून द्वारा आवश्यक बदलाव लाकर भी आगे बढ़ने की जरूरत है। मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश के उस साहसिक बयान, उस प्रासंगिक बयान का समर्थन करता हूं, यह बयान इस देश में मध्यस्थता प्रक्रिया को आंतरिक तौर पर लंबे समय तक सशक्त बनाये रखने में काफी मदद करेगा।
दोस्तों, तदर्थ की तुलना में संस्थागत मध्यस्थता के कई फायदे हैं। न्यायालय में रहते हुए मैं इन सब चीजों से अवगत हुआ हूं। यह आपको एक ऐसा तंत्र प्रदान करता है जहां चीजों का ध्यान प्रतिभासंपन्न तंत्र और दुनिया के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों द्वारा रखा जाता है और यही कारण है कि आईसीसी मध्यस्थता एक अद्वितीय ब्रांड है। यह समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
हालांकि, इस देश और अन्य जगहों पर न्यायिक हस्तक्षेपों ने सामान्य वाद प्रक्रिया में एक स्तर के रूप में मध्यस्थता को कम कर दिया है। यदि आप माध्यस्थम निर्णयन प्रक्रिया का विश्लेषण करते हैं, तो यह एक पुरस्कार प्रदान करने के साथ शुरू होती है और जब तक आप पुरस्कार देने तक पहुंचते हैं, तब तक न्यायिक हस्तक्षेप के लिए पर्याप्त गुंजाइश बन जाती है। प्रतिभाशाली व्यक्ति जिनमें से कुछ यहां मौजूद हैं, जानते हैं कि हस्तक्षेप करने के लिए न्यायिक प्रणाली को किस तरह से काम में लाया जाता है और किस तरह से उन्हें कानून द्वारा वैध बनाया जाता है, इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
आपके पास एक फैसला है और यह एक चुनौती है जिस पर कोई आपत्ति नहीं है। है। कानूनी अपील का प्रावधान है, यदि आप राज्य क्षेत्र या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं, तो आपको उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, तब तक आप अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभा पाएंगे।
इसलिए हमें एक ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जहां मध्यस्थता प्रक्रिया को न्यायिक हस्तक्षेप का सामना न करना पड़े। मुझे फिलहाल इस बात की जानकारी नहीं है कि आईसीसी, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय क्या कर रहा है। जब मैं वहां था, उनके पास सौहार्दपूर्ण विवाद समाधान का एक अनूठा तंत्र था और यह आश्चर्यजनक था कि आप न्यायिक रूप से लागू करने योग्य पैकेज प्रदान नहीं करते हैं, जो आप आम तौर पर तब करते हैं जब आप मध्यस्थता प्रक्रिया का सहारा लेते हैं, लेकिन सौहार्दपूर्ण का मतलब है कि यह संस्थानिक है। ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों का चयन किया जाता है जिनके पास अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता होती है और वे पक्षों को एक सर्वसम्मत दृष्टिकोण अपनाने में मदद करते हैं। मुझे लगता है कि समय आ गया है जब हमें इस पर और अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
मैं जानता हूं कि जब विवाद लंबे समय तक चलते हैं, तो एक समय पर जिस बिरादरी से मैं संबंध रखता हूं, उसे निश्चित रूप से लाभ होता है, लेकिन हमारा भौतिक लाभ राष्ट्रीय लाभ, राष्ट्रीय समृद्धि की कीमत पर नहीं हो सकता। विश्व आर्थिक व्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी और नई ऊंचाइयों पर जाएगी; यदि विवाद समाधान तंत्र काफी न्यायसंगत और निर्णायक है, तो सभी के लिए समान रूप से प्रगति होगी। अधिकांश संविदात्मक शर्तों में यह प्रावधान है कि मध्यस्थता का निर्णय अंतिम होगा, लेकिन फिर भी कुछ कानूनी क्षेत्रों में हमारा क्षेत्र मजबूत होने के कारण न्यायिक प्रणाली तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है और किसी भी संविदा में ऐसा प्रावधान नहीं हो सकता है जो इसका प्रतिकार करे या इसे बेअसर कर दे। इसलिए मध्यस्थता प्रक्रिया या मध्यस्थता के अंतिम परिणाम के संबंध में न्यायिक प्रणाली तक पहुंच अपरिहार्य है।
इस पर तभी काबू पाया जा सकता है जब हम सौहार्दपूर्ण विवाद समाधान की ओर बढ़ें। मुझे यकीन है कि हमें एक ऐसा तंत्र बनाना चाहिए जो अर्थव्यवस्था और उसमें शामिल लोगों सहित सभी की मदद करेगा।
हम बहुत कठिन समय में जी रहे हैं। पूर्णरूपेण प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप शुरू होने से पहले ही हम सशंकित हैं, चिंतित हैं। क्या आप जानना चाहेंगे कि परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियां हमारे जीवन का हिस्सा हैं। हम उनके साथी हैं। हमें उनके साथ ही जीना होगा और परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियां इस तरह के विवादों को जन्म देती हैं, जिनका तत्काल समाधान करने की आवश्यकता होगी।
हमारे बीच एक व्यक्ति, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष मौजूद हैं, जो आपातकालीन मध्यस्थ के रूप में कार्य कर रहे हैं। कई दशकों पहले, हम केवल हस्तक्षेप, अंतरिम आदेशों के बारे में जानते थे जो बहुत तेज़ हुआ करते थे लेकिन अब हमें उससे भी तेज़ और फिर सबसे तेज़ बनना होगा।
मुझे नहीं पता कि यह सही है या गलत, लेकिन मैंने कहीं पढ़ा है कि किसी ने मुझसे पूछा कि प्रकाश की गति क्या है और उसने कहा 'आज गया और कल वापस आ गया'। उसी प्रकार की तीव्रता का हमें प्रदर्शन करना होगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने क्या कहा। एक रास्ता यह होगा कि हमारे पास मध्यस्थ संस्थाएं होनी चाहिए। हमारे देश में माध्यस्थम संस्थाओं की संख्या में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन उन संस्थाओं को केंद्रीय स्थान लेने की आवश्यकता है और उन सभी को सार्थक बनाने के लिए कानून में आवश्यक बदलाव किए जाने की आवश्यकता है।
यह उस प्रणाली को दोषरहित बना देगा जिसे हम स्वस्थ्यकर नहीं मानते, क्योंकि यह अतीत नहीं हो सकता। इसे एक गहरी व्यावसायिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए। आपको मध्यस्थता प्रक्रिया के प्रति अत्यधिक जोशीला होने की आवश्यकता है। मध्यस्थ बार मुख्य बार के सहयोगी के रूप में नहीं, बल्कि अकेले सक्षम बनाया जाना चाहिए। यह एक विशेषज्ञता से परिपूर्ण विषय है और हमारे देश और दुनिया में अर्थव्यवस्था के विकास को लाभदायक स्थिति प्रदान करने में आपका योगदान महत्वपूर्ण है। मुझे यकीन है कि आपका विचार-विमर्श उस स्तर तक पहुंचने में बेहद उपयोगी होगा।
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए कि मैं किसी समय अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय और उसके आयोग से जुड़ा था और मैं देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति दोनों के पद पर हूं, मैं इस विषय पर अधिक बोलना नहीं चाहता, लेकिन मैं आपको एक विचार के साथ छोड़े जाऊंगा। आपका यह सत्र इस देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है; आपका सत्र सिर्फ सतही स्तर तक सीमित नहीं होना चाहिए। आपको इसकी गहराई में उतरना होगा। गहन विश्लेषण करना होगा। निदान एक्स-रे की भांति नहीं बल्कि एमआरआई की तरह शानदार और उत्कृष्ट होना चाहिए। मैं उस कार्यकरण की प्रतीक्षा कर रहा हूं और मुझे यकीन है कि हम कुछ न्यायसंगत करेंगे, क्योंकि हमारी न्यायपालिका के प्रमुख ने पहले ही इस पर विचार कर लिया है।
मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करता हूं कि इससे अधिक सुखदायक और कुछ नहीं हो सकता कि देश का सर्वोच्च न्यायालय तीन दर्जन से अधिक पृष्ठों में मध्यस्थता फैसले के प्रत्येक विवरण पर विचार करेगा और मध्यस्थता के हर विवरण पर गौर करेगा और यह संकेत भी देगा कि न्यायालय को मध्यस्थ फैसले के बारे में विस्तार से नहीं बताना चाहिए।