13 सितम्बर, 2023 को भारतीय वैश्विक परिषद (आईसीडब्ल्यूए), सप्रू हाउस, नई दिल्ली के नवीकृत ग्रन्थालय के उद्घाटन के अवसर पर माननीय उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ का संबोधन (अंश) ।

नई दिल्ली | सितम्बर 13, 2023

आप सभी को मेरा नमस्कार!

आप में से प्रत्येक के परिचय पर गौर किया, तो मुझे अत्यंत आनंद और उत्साह महसूस हुआ। परिचय का आधार मज़बूत था। आपने एक विशेषज्ञ के रूप में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कदम रखा है। आपको बधाई!

मेरे विचार से भारतीय वैश्विक परिषद का कार्य-प्रदर्शन निर्धारित लक्ष्य से अधिक रहा है, यह मेरी अपेक्षाओं से कहीं अधिक रहा है, इसने अद्भुत कार्य-प्रदर्शन किया है। मुझे बहुत उत्साहवर्धक रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं कि आपने विश्वविद्यालयों के साथ किस प्रकार के सहमति ज्ञापन संपन्न किए हैं। मेरे समक्ष किए गए प्रस्तुतीकरण उत्साहवर्धक रहे और वैश्विक मामलों के संबंध में मेरे ज्ञान में अभिवृद्धि हुई है। वे अत्यंत निर्णायक, गहन और व्यापक हैं। इससे और अधिक अपेक्षाएँ होंगी और अधिक कार्य-आबंटन किया जाएग। यदि आप होमवर्क नहीं करते हैं, तो कोई भी आपको अतिरिक्त होमवर्क नहीं देता है, लेकिन यदि आप उचित रूप से अपना होमवर्क करते हैं, तो आप अधिक होमवर्क करने के लिए तत्पर रहें।

यह अवसर वास्तव में एक मील का पत्थर है। मैंने जब चारों ओर देखा, तो पाया कि यहाँ सुविधाओं की जानकारी लेने वाले व्यक्ति के लिए सब कुछ अनुकूल है, यहाँ कोई आडंबर नहीं है, कोई अपमानजनक बात नहीं है। शिक्षाविदों और एक अच्छे माहौल के बीच सामंजस्य स्थापित करने से एक व्यक्ति को आत्मशांति प्राप्त हो सकती है, वह अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग कर सकता है, निष्कर्ष तक पहुँच कर अपनी अभिरुचि का निर्धारण कर सकता है। ऐसा 80 वर्षों के बाद हुआ है, इसकी बहुत आवश्यकता थी। मुझे विश्वास है कि यहाँ लोगों की संख्या बढ़ेगी, लोगों की संख्या आंकड़े नहीं हैं, ये कोई चमत्कार नहीं हैं, हम लोगों की संख्या को लेकर अति उत्साही नहीं हैं, हम लोगों की उस संख्या को लेकर अत्यंत उत्साही हैं जो महत्व रखते हैं, जो समाज और देश के व्यापक हित में योगदान दे सकते हैं। इसलिए यह प्रतिष्ठान अब एक पृथक् तरीके से कार्य कर रहा है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि राजदूत ठाकुर इसे एक उच्चतर स्तर तक ले जाएंगी; ऐसा ही होगा।

भारतीय वैश्विक परिषद को अब अपने आप को गढ़ना होगा, आप विश्व के प्रत्येक नागरिक के लिए झरोखे के समान हैं और आप देश के बाहर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक झरोखे के समान हैं। हमारी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का छठवां हिस्सा है, इसलिए आपकी दोहरी जिम्मेदारी बनती है, आपको बाह्य जगत को जागरूक करना होगा कि इस महान देश में क्या-क्या हो रहा है क्योंकि भारत अभी इतिहास के एक निर्णायक क्षण में है। कुछ चीजें जो घटित हो रही हैं, वे बाह्य जगत की महत्वाकांक्षा, कल्पना और अवधारणा से परे हैं। वे यह कल्पना कभी नहीं कर सकते कि जिस देश में धर्म, जाति, पंथ, भाषा और हर चीज की विविधता हो, वहाँ ऐसा भी हो सकता है।

मैं आपको दो उदाहरण देना चाहूँगा, मैंने वर्ष 1989 में अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारंभ की, मैं लोक सभा में निर्वाचित हुआ और एक केन्द्रीय मंत्री रहा, लेकिन तब मैंने यह देखा कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार दो बिलियन रुपये से भी कम था, हम दो सप्ताह से अधिक समय तक इस धनराशि से कार्य नहीं कर सकते थे। सोने को दो बैंकों में रखने के लिए हवाई मार्ग के माध्यम से भौतिक रूप से ले जाना पड़ा था। और वर्तमान में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन रुपये से अधिक है, इस पर सभी को गौर करना चाहिए। यह एक उपलब्धि है।

फ्रैजाइल फाइव, अर्थात् ब्राजील, तुर्की, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और भारत के बारे में आपसे बेहतर जानकारी अन्य किसी के पास नहीं है। ठीक एक दशक पहले इन देशों की अर्थव्यवस्था को दुनिया पर बोझ माना जाता था। उत्थान की आवश्यकता थी और कल्पना कीजिए कि दस वर्षों में हम कहाँ पहुँच गए हैं; हम फ्रैजाइल फाइव वाली अर्थव्यवस्था से पाँचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गए हैं। इस दशक के अंत तक हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। अब यह अवधारणा, यदि यह आईसीडब्ल्यूए जैसी विश्वसनीय संस्था द्वारा दी जाती है, तो यह हमारे प्रवासी भारतीयों को प्रभावित करेगी, यह विश्व के नेताओं को प्रभावित करेगी, क्योंकि आप जो भी बात कहते हैं उसके लिए आप जवाबदेह हैं और आप जो भी बात कहते हैं, वह प्रतिरक्षा योग्य हो, आप जो भी कहते हैं वह प्रभावित किए जाने योग्य हो और केवल यही अभिव्यक्त किया जाए।

इनमें से एक विषय देश में डिजिटल विकास से संबंधित है, इस देश में जिस भाँति प्रौद्योगिकी की पहुंच का प्रसार हुआ है, उससे दुनिया हैरान है। सरकारी सुविधाओं के लिए आवेदन करने और पासपोर्ट के लिए आवेदन करने हेतु सभी को सेवा शुल्क देना पड़ता था। कितनी लंबी कतारें लगती थीं, आप अपने बड़ों से पूछिए, पानी का बिल, बिजली का बिल जमा करने के लिए उन्हें कार्यालय से आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थी, अब यह बड़ा परिवर्तन आया है लेकिन दुनिया को बताने के लिए आप प्रामाणिक मंच हैं कि वैश्विक स्तर पर हमारी उपलब्धि 46 प्रतिशत रही है। डिजिटल लेनदेन के संदर्भ में संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी की तुलना में हमारा डिजिटल लेनदेन चार गुना अधिक है, यदि आप यह कहते हैं और कोई गहन शोध करता है और सूक्ष्म स्तर पर जाता है - तो यह महत्वपूर्ण है।

जब मोबाइल फोन, कंप्यूटर के उपयोग की बात आती है, तो प्रयोज्यता और कौशल पर ध्यान दें। हमारे देश में प्रति व्यक्ति डाटा खपत संयुक्त राज्य अमरीका और चीन की कुल खपत की तुलना में अधिक है। आपको दुनिया पर कब्जा करना है, आपको झूठे आख्यानों को निष्प्रभावी करना है। जब वे भारत में खाद्यान्न की कमी की बात करते हैं; आपको दुनिया को यह बताना है कि 1 अप्रैल, 2020 से 80 करोड़ से अधिक लोगों को नि:शुल्क चावल, गेहूँ और दलहन मिल रहा है और यह जारी है। दुनिया में कोई भी इस उपलब्धि का दावा नहीं कर सकता है।

आपको भारत के बारे में एक ऐसी धारणा बनानी होगी जो आज की जमीनी हकीकत के अनुरूप हो। कोविड टीकाकरण के 220 करोड़ प्रमाण-पत्र डिजिटल रूप में मौजूद हैं। अन्य सभी देशों में वे कागज पर हैं। कल्पना कीजिए, यह कितनी बड़ी उपलब्धि है, कितना अदभुत काम है।

एक वरिष्ठ राजनयिक ने एक बार कहा था कि आपको एक ऐसा तंत्र बनाना होगा जहाँ कूटनीति में आप एक कदम आगे रहें। यदि आप तर्क के माध्यम से एक कदम आगे बढ़ते हैं, तो आप लड़ाई हार जाते हैं। इसलिए शोधकर्ताओं के रूप में आप किसी विशेष मुद्दे पर विस्तृत इनपुट रखते हुए उन्हें निष्प्रभावी कर देंगे।

मुझे व्यक्तिगत रूप से यह सुनने का अवसर प्राप्त हुआ कि संगठनों का नेतृत्व करने वाले विज्ञान जगत के कुछ वैश्विक नेताओं को इस देश के बारे में क्या कहना है। आपको आश्चर्य होगा कि हमारे बात करने से पहले ही उन्होंने हमारे बारे में बात की। हमें नेतृत्व करना चाहिए। हमें अपने लोगों को भी यह बताना होगा कि हम वास्तव में कितने कारगर, प्रभावशाली और सुदृढ़ हैं।

विश्व बैंक के प्रमुख, श्री अजय बांगा ने सामूहिक उपलब्धियों के बारे में बताया कि प्रधानमंत्री जी का विज़न है, मिशन है, जोश है और नौकरशाही के माध्यम से इसका कार्यान्वयन किया जाता है और बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा यह स्वीकार्य है। उन्होंने कहा, "भारत ने केवल छह वर्षों के भीतर वित्तीय समावेशन संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है, अन्यथा जिसे प्राप्त करने में कम से कम सैंतालीस वर्ष का समय लग जाता।" एक व्यक्ति जो विश्व बैंक का प्रभारी है, जिसका एक वैश्विक दृष्टिकोण है, जो अपने प्रत्येक शब्द के लिए जवाबदेह है, वह हमारे देश की सराहना कर रहा है।

यहाँ किसी को इस शोध पत्र में लगना होगा कि भारत का वित्तीय समावेशन तब प्रारंभ हुआ, जब हमारे पास जन धन खाते थे। ऐसे आलोचक रहे हैं, जिनकी हर व्यवस्था के लिए एक राय होती ही है। उनके नेक इरादे हो सकते हैं, उनके गलत इरादे हो सकते हैं। लेकिन यदि आप जांच करें कि वित्तीय समावेशन के द्वारा देश के परिदृश्य में किस प्रकार परिवर्तन आया है, कितने खाते खोले गए हैं, तो वे 400-500 मिलियन से अधिक हैं। इसका प्रभाव किसानों पर पड़ता है; मैं उन्हें एक श्रेणी में रख रहा हूँ, क्योंकि किसान गांव में हैं, किसान प्रौद्योगिकी का काफी कम उपयोग करते हैं, मैं किसान परिवार से हूँ, इसलिए मुझे इसकी जानकारी है। यदि इस देश में, वर्ष में तीन बार, 110 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष रूप से उनके खाते में धनराशि प्राप्त होती है... यह बहुत कुछ कहता है और जो यह उपलब्ध करा रहा है वह सक्षम है, लेकिन प्राप्तकर्ता भी उतना ही सक्षम है। ऐसा वित्तीय समावेशन के कारण हो रहा है। इसलिए यह एक कथन एक शोध पत्र की विषय-वस्तु हो सकती है। उक्त से संबंधित व्यापक पत्र हमें बहुत आगे तक ले जाएगा।

अजय बांगा ने आगे यह कहा, "केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए अभूतपूर्व कदम और सरकारी नीतियों और विनियमों की महत्वपूर्ण भूमिका डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के परिदृश्य को आकार दे रही हैं।"

आप में से जो लोग गाँव से जुड़े हुए हैं, वे अपने गाँव जाएँ, वहाँ इंटरनेट चलेगा, यह बेहतर होगा। हमारे देश में विकास पिरामिड के समान नहीं है कि महानगर विकसित होता जा रहा है और निचले स्तर पर गांवों में कोई नहीं जा रहा है। बल्कि हमारे देश में विकास एक पठार के समान है। सभी चीजों का विकास हो रहा है। आपके यहाँ हवाई अड्डे मौजूद हैं, आपके यहाँ रेल अवसंरचना मौजूद है, आपके यहाँ सड़क अवसंरचना मौजूद है, आपके यहाँ प्रौद्योगिकीय अवसंरचना मौजूद है, और आपके यहाँ गांव में स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाएं मौजूद हैं। इसलिए विश्व बैंक के प्रमुख यह कहते हैं, "भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का एक परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ा है, जो वित्तीय समावेशन से कहीं आगे तक व्यापक है।"

मैं चाहता हूँ कि आप में से कुछ लोग इस परिवर्तनकारी प्रभाव पर ध्यान केन्द्रित करें, इसने लोगों के जीवन को कैसे बदल दिया है, वे किस प्रकार लाभान्वित हुए हैं और भारत कैसे एक रोल मॉडल है जो अन्य देशों में ऐसी अवसंरचना विकसित करने के लिए विश्व स्तर पर योगदान दे सकता है। ऐसा तभी होगा, जब प्रभावशाली लोग मौजूद हों।

शोध पत्र लिखने वाले किसी व्यक्ति के लिए यह अर्थपूर्ण होगा। लेकिन यदि भारतीय वैश्विक परिषद द्वारा उक्त शोध पत्र पेश किया जाता है, तो इसका प्रभाव बहुत अलग होगा।

मैं भारतीय प्रतिनिधिमंडल के नेता के रूप में वर्ष 1990 में यूरोपीय संघ गया। यूरोपीय संघ की चार राजधानियाँ हैं, मैं सभी चार राजधानियों में गया। अब यदि आप जी 20 को देखेंगे, तो इसमें बहुत से राष्ट्र आते हैं, लेकिन इसमें भी यूरोपीय संघ है। आप यूरोपीय संघ के उन सदस्यों के संबंध में शोध कर सकते हैं, जो यूरोपीय संघ का हिस्सा होने के नाते जी 20 का हिस्सा हैं। दशकों पहले क्या स्थिति थी?

एक ऐतिहासिक गतिविधि, एक महत्वपूर्ण गतिविधि यह है कि अफ्रीकी संघ जी 20 का हिस्सा है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। एक और उपलब्धि जिस पर अध्ययन करने की आवश्यकता है, वह भारत से होते हुए सऊदी अरब, मध्य पूर्व और यूरोप से गुजरते हुए नोम पेन्ह और वियतनाम तक जाने वाला एक गलियारा है। दूसरों ने क्या-क्या कार्य किया है, उस संदर्भ में इसकी जांच करें। इस गलियारे, इसके भावी प्रभाव को देखिए, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाइए कि हजारों वर्षों पूर्व यह गलियारा पूरी तरह कार्यशील था।

विगत 20 महीनों से एक युद्ध चल रहा है जिसके संबंध में हमारे प्रधानमंत्री जी ने दो बातों का संकेत किया है। एक, हम विस्तार के युग में नहीं हैं। यह एक अत्यंत सख्त बयान था कि एक संप्रभु राष्ट्र विस्तार जिसका अभिप्राय है कि आप अन्य राष्ट्र की संप्रभुता में हस्तक्षेप कर रहे हैं, में संलिप्त नहीं हो सकता। दूसरी बात, युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। संवाद, विचार-विमर्श और कूटनीति के माध्यम से निपटान और समाधान निकालना होगा।

आप संवाद, विचार-विमर्श और कूटनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हममें से जो लोग संसद में कार्य करते हैं, यदि आप हमें परामर्श देंगे, तो यह यह विवेकपूर्ण होगा। आपके विचार अत्यंत गहन, सूक्ष्म स्तर पर विस्तृत और सम्यक् रूप से दोष मुक्त होते हैं। आईसीडब्ल्यूए को ऐसा ही करना है, मुझे विश्वास है कि वह ऐसा करेगा।

संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति, श्री जो बाइडेन ने कहा, "अफ्रीकी संघ एक महत्वपूर्ण साझेदार है।" हाँ! लेकिन यह भारत द्वारा जारी किया गया था, हर कोई सहमत था लेकिन पहले किसी ने पहल नहीं की। उन्होंने आगे कहा, "आप (प्रधानमंत्री मोदी) हमें एक साथ ला रहे हैं, हमें एक साथ जोड़ रहे हैं और हमें याद दिला रहे हैं कि हम चुनौतियों से मिलकर निपटने की क्षमता रखते हैं।"

भारत की जी-20 अध्यक्षता एक बड़ी उपलब्धि थी। इसने वैश्विक सहमति बनाई। एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत का न्यायसंगत तथा उचित उदय हुआ। भारत के हित उसके लोगों के हितों से निर्धारित होते हैं। हमारे ऐसे कोई भी विदेश मंत्री नहीं रहे जिनको स्पष्टवादिता के लिए इतनी सराहना मिली हो। विदेश मंत्री ऐसे कार्य में लगे हुए हैं जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली घोषणा जो भारत की विदेश नीति और भारत के सार्वजनिक रुख के अनुरूप है, हेतु पूर्ण सहमति बन पाई है। हमारे देश में यह नीति संघटित रूप से विकसित हुई।

मैं आप सभी से आग्रह करूँगा कि आपको इनसे अधिक ऊर्जस्वी निदेशक नहीं मिल सकता, जो इस संस्था को और ऊँचे स्तर पर ले जाएगा। मुझे विश्वास है कि आगामी एक महीने में वह एक विजन दस्तावेज तैयार करेंगी और बताएंगी कि आईसीडब्ल्यूए किस प्रकार भारत में प्रवासियों और विदेशियों के लिए सूचना के प्रसार और आदान-प्रदान का एक संपर्क सेतु बनेगा।

आपको एक बड़ी भूमिका निभानी है। आप इस देश के सबसे प्रभावशाली राजदूत हैं। मैं आपको बता दूँ, हमें सावधान रहना होगा, कुछ लोगों का भारत के विकास को देखकर हाजमा गड़बड़ हो जाता है। आप इसका मुकाबला अपने विवेक और बुद्धिमत्ता से कर सकती हैं।

समय-समय पर घातक, भयावह और राष्ट्र-विरोधी प्रकृति के आख्यान दिए जाते हैं। जब यहां दाल गलती है तो, आप यूरोप जा सकते हैं, आप यूनाइटेड किंगडम जा सकते हैं, वहां हमेशा कोई-न-कोई स्वीकार कर लेगा, क्योंकि विश्व की कुल जनसंख्या के छठे हिस्से वाले देश का उदय अभूतपूर्व और अकल्पनीय है, यह निवेश और अवसर का एक वैश्विक गंतव्य है। हमारी संवैधानिक संस्थाओं को कलंकित, धूमिल, अपमानित और नष्ट करने के लिए गढ़ी गई ऐसी रणनीति को निष्प्रभावी करने में आपकी भूमिका पर्याप्त है। बड़े दु:ख के साथ मैं आपको यह संकेत करता हूँ क्योंकि आपको वैश्विक मामलों, सीनेट, कांग्रेस और हाउस ऑफ कॉमन्स की कार्यवाहियों की जांच करनी है। हमारी अपनी संविधान सभा में संवाद, वाद-विवाद, विचार-विमर्श हुए थे, लेकिन कोई व्यवधान नहीं आया, कोई अशांति नहीं हुई। अब, जब भारत का उदय हो रहा है, तो क्या हम एक राजनीतिक शक्ति के रूप में अशांति को हथियार बनाने का जोखिम उठा सकते हैं? हम ऐसा नहीं कर सकते। अब देश में विवेकवान व्यक्ति को ही संविधान सभा के बारे में जानकारी होगी, लेकिन आपका भी एक दृष्टिकोण होगा। आप 20 देशों को चुन सकते हैं, क्या वहां स्लोगन 'शाउटिंग' होती है ? या सभापीठ के आसन के समक्ष के स्थान में आते हैं? तख्तियाँ दिखाते हैं?

कल्पना कीजिए, संचार कितना महत्वपूर्ण है। एक राष्ट्र, एक चुनाव एक अवधारणा है, कोई इससे असहमत हो सकता है और कोई इसका पुरजोर विरोध कर सकता है। लेकिन यह कहना कि हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे, यह लोकतंत्र नहीं है। जब हम संवाद और विचार-विमर्श से दूर हो जाते हैं, तो लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आ जाती है, लोकतंत्र के विकास को बड़ा झटका लगता है। मैं राज्य सभा की अध्यक्षता करते हुए खुश नहीं रह सकता, हम आपके लिए क्या उदाहरण स्थापित कर रहे हैं? आप में से प्रत्येक को राष्ट्र-विरोधी आख्यानों और अस्वास्थ्यकर संसदीय परिपाटियों का गहन विश्लेषण करना होगा और एक पारितंत्र का निर्माण करना होगा जिससे हमारी स्थिति व्यवस्थित हो जाए। लोगों के अपने राजनीतिक दृष्टिकोण होंगे, हम दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करते हैं, हम दूसरों के दृष्टिकोण को एकाएक दरकिनार नहीं कर सकते हैं, लेकिन तब चर्चा, वाद-विवाद, संवाद और विचार-विमर्श करना होगा। मैं विशेष सत्र की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

मैं मंत्रालयों में विभिन्न सहमति ज्ञापन संपन्न करने के लिए राजदूत ठाकुर को बधाई देते हुए अपनी बात समाप्त करता हूँ, दो मंत्रालयों ने मुझे पत्र लिखकर कहा है कि वे उनकी उपस्थिति से प्रसन्न, अभिभूत और अभिप्रेरित हैं। हमारी एक संरचित कार्य पद्धति होगी, हम देशभर से राज्य सभा में प्रशिक्षुओं को आमंत्रित कर रहे हैं, हमने पूर्वोत्तर से, सैनिक स्कूल से शुरुआत की है और हम राजदूत ठाकुर के सुझावों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।