'रिफ्लेक्शंस ऑन इंडियाज पब्लिक पॉलिसीज' नामक पुस्तक जो अपने शीर्षक के अनुरूप है, के विमोचन समारोह में शामिल होना मेरे लिए संतुष्टि का विषय है।
1984 बैच के दस सम्मानित आईएएस अधिकारियों, जो अनुभवी नीति निर्माता और निष्पादनकर्ता हैं, के द्वारा अंत:पूर्ण और विश्लेषणात्मक संवाद उनके योगदानों, समृद्ध प्रदर्शन एवं अनुभव और इसके साथ ही व्यापक कार्य-प्रणाली सबसे बड़े लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, जहां विश्व का हर छठा व्यक्ति निवास करता है, से संबंधी उनके ज्ञान की पुष्टि करता है ।
स्वतंत्रता के बाद से भारत की सार्वजनिक नीति का विकास उत्तरजीविता, स्थिरता, आत्मनिर्भरता और समान विकास हासिल करने पर केंद्रित रहा है। हाल के वर्षों में, एक महत्वपूर्ण गुणात्मक बदलाव आया है जिसके परिणामस्वरूप अभूतपूर्व वृद्धि साकार हुई है।
पिछले कुछ वर्षों में शासन व्यवस्था का शानदार और प्रभावशाली उद्भव एक परिवर्तनकारी कदम बन गया है, जिसमें प्रधानमंत्री की दूरदर्शी पहल और नीतियां शामिल हैं, जिन्होंने एक हितकारी वातावरण बनाया है और इसके परिणामस्वरूप भारत निवेश और अवसर का एक पसंदीदा वैश्विक गंतव्य बन गया है।
पिछले कुछ वर्षों में उठाये गए क्रमिक सकारात्मक शासकीय कदमों ने इस स्टीलफ्रेम को महत्वपूर्ण कार्य 'प्ले इन द ज्वाइंट्स' में सक्षम बनाया है जिससे इसकी योगदन क्षमता में बढ़ोतरी हुई है।
2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में धारा 17क को शामिल करना सही दिशा में उठाया गया कदम है। अब यह जांच के लिए संबंधित प्राधिकरण की पूर्व स्वीकृति प्रदान करने के बाद आधिकारिक कार्यों और कर्तव्यों के निर्वहन में लोक सेवक द्वारा की गई सिफारिशों या लिए गए निर्णयों के संबंध में मुद्दों की जांच को नियंत्रित करता है।
सत्ता के गलियारों में अतिरिक्त-कानूनी फायदा उठाने की वह प्रवृत्ति जिससे शासन-व्यवस्था दशकों से आक्रांत थी, अब बीते दिनों की बात हो चुकी है, क्योंकि अब सत्ता के गलियारे को इस प्रवृत्ति से मुक्त कर दिया गया है। इससे नौकरशाही की दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि हुई है।
'न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन', पारदर्शिता,जवाबदेही, डिजिटलीकरण, नवाचार और उद्यमिता पर केंद्रित शासन मॉडल से पर दुनिया को ईर्ष्या हो रही है।
एक नया मानदंड, भ्रष्टाचार के प्रति पूर्ण असहिष्णुता एक जमीनी हकीकत है, जिसमें कोई भी कानून की पहुँच से ऊपर या बाहर नहीं है।
केंद्र में दृढ़ और दूरदर्शी नेतृत्व और स्थिर शासन के परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में एक हितकारी पारिस्थितिकी तंत्र का उदय हुआ है, जिसकी वजह से नीतियों के त्वरित निष्पादन में नौकरशाही कौशल को बंधन मुक्त रखना सक्षम हो पाया है।
तनावग्रस्त वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत सर्वाधिक तेजी से उभरती एक बड़ी अर्थव्यवस्था है, जहां मुद्रास्फीति नियंत्रण में है। भारत जो कि अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, दशक के अंत तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है और इसमें कोई संदेह नहीं है। नौकरशाही प्रतिबद्धता और दृढ़ नेतृत्व के कारण हुए इस उर्ध्वगामी विकास से भारत को 2047 में अपना उचित स्थान प्राप्त करने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी, जब देश अपनी स्वतंत्रता का शताब्दी मना रहा होगा।
प्रधान मंत्री जन धन योजना, आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत अभियान और उज्ज्वला योजना जैसी सफल योजनाओं के माध्यम से कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण और उत्थान किया गया है जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि सबसे अधिक अधिकारहीन नागरिक तक भी इन मूलभूत आवश्यक सेवाओं की पहुंच हो। यह उल्लेखनीय उपलब्धि सिविल सेवकों की प्रतिबद्धता और सेवा प्रदायगी के कारण संभव हो सकी है।
शासन-व्यवस्था के मूलाधार माने जाने वाले सिविल सेवकों की सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में आधारभूत भूमिका है। मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि हमारे सिविल सेवकों की सेवा प्रदायगी तंत्र दुनिया में अद्वितीय है, बशर्ते उनके किसी कार्य को निष्पादित करने की राह में राजनीतिक दबाव रूपी अड़चन न डाली जाए। मैं इस बात का आश्वासन दे सकता हूँ कि पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक स्तर पर किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न्ा करने की प्रवत्ति का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है, जिसके परिणामस्वरूप देश के विकास पथ में नौकरशाही के योगदान में बढ़ोतरी हुई है। प्रधानमंत्री की दूरदर्शी पहल को कार्य रूप में परिणत किया जा रहा है जिसका श्रेय नौकरशाही और आप जैसे इसके वरिष्ठ नेताओं को जाता है।
2022 में डिजिटल भुगतान संबंधी लेनदेन की राशि 1.5 ट्रिलियन डॉलर थी जो अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के संयुक्त लेनदेन से चार गुना से भी अधिक है। कुछ साल पहले जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी, आज वह एक जमीनी हकीकत है जिसे सभी ने पहचाना और स्वीकार किया है।
कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में देश में सभी स्तरों पर सिविल सेवा द्वारा एक नया वैश्विक मानक स्थापित करते हुए प्रशंसनीय भूमिका निभाई गई है। इस ग्रह पर ऐसा कौन सा देश है जो यह दावा कर सके कि उसने 220 करोड़ लोगों का टीकाकरण करने के बाद उन्हें फोन पर डिजिटल रूप से प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया है? कोई भी देश इस तरह की विशिष्टता का दावा नहीं कर सकता जो हमारे देश ने किया है। नौकरशाही की सफल भागीदारी से यह संभव हो पाया है।
भारत में सिविल सेवाओं का लोकाचार निष्पक्षता, उत्कृष्टता और व्यावसायिकता के सिद्धांतों पर निर्मित है। मैंने सिविल सेवा दिवस पर भी इस बात को प्रतिबिंबित किया कि आपकी योग्यता, क्षमता और सामर्थ्य आपको धन अर्जित करने की हकदारी प्रदान करते हैं, जैसा कि आपके साथी धनार्जन कर रहे हैं। लेकिन व्यापक स्तर पर मानवता की सेवा करके, 140 करोड़ लोगों की जिंदगी बदलकर आपको जो संतोष की प्राप्ति होती है, वह आपके साथियों को नहीं मिल सकती। इसलिए, यह अपेक्षा की जाती है कि पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात प्रत्येक व्यक्ति को समाज के लिए अपना योगदान देना चाहिए -जबकि आप अपनी सेवाकाल के दौरान और सेवानिवृत्त होने के पश्चात भी ऐसा प्रतिदिन करते हैं।
सिविल सेवकों को गर्व के साथ राष्ट्र की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए और वे ऐसा ही कर रहे हैं, दूसरे लोगों को भी उनकी कार्य-प्रणाली का अनुकरण करने की आवश्यकता है - गर्व से मेरा आशय इस प्रकार है:
• बिना किसी व्यक्तिगत पक्षपात के सार्वजनिक सेवा, मैं यहां यह इंगित करने के लिए रूकूंगा कि हमारी नौकरशाही प्रणाली में नियंत्रण और संतुलन की प्रणाली मौजूद है जो इस तरह की कार्यप्रणाली को सुनिश्चित करता है। इन न्यायसंगत तंत्रों के अवलोकन और अनुपालन की दर लगभग शत- प्रतिशत है।
जमीनी स्तरों पर लागू विधि-सम्मत शासन,
जनता के साथ किये जाने वाले व्यवहार में ईमानदारी,
कर्तव्य के प्रति समर्पण, और
नीतिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने में दक्षता।
लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था लोक सेवकों के समक्ष अपनी अनूठी चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगा। उन्हें कानून और संविधान-सम्मत शासन-व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अटूट और दृढ़ प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी होगी। संघवाद के गौरव को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले देश के कुछ हिस्सों में सत्तारूढ़ व्यवस्था के साथ अधिकारियों के चिंताजनक राजनीतिक अनुग्रह के लिए कोई बहाना नहीं हो सकता है। इसके लिए सभी संबंधितों की ओर से व्यवस्थित रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। मैं इसको लेकर विशेष रूप से चिंतनशील हूं। किसी राज्य में राजनीतिक आकाओं के साथ नौकरशाही की मिलीभगत एक बाध्यकारी पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा उत्पन्न होता है जिसे किसी अधिकारी विशेष द्वारा नहीं रोका जा सकता है। इस पर केवल व्यवस्थित कार्य-प्रणाली द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है और इसे निष्प्रभावी बनाया जा सकता है। मुझे यकीन है कि इस पर ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि नौकरशाही का राजनीतिक अनुग्रहभाजन न केवल लोकतांत्रिक शासन के लिए असंगत है, बल्कि यह प्रशासनिक-व्यवस्था को खोखला बना देता है और विकास को बाधित करता है, लोगों के विश्वास को कमजोर बनाता है और संघवाद की मूल भावना को नष्ट करता है।
2047 के लिए भारत का विज़न उचित रूप से महत्वाकांक्षी, दूरगामी और साध्य है, जिसमें 21वीं सदी में देश के एक अग्रणी वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा प्रतिबिंबित होती है, जिसका मूल ध्यान स्थायी विकास, सामाजिक समावेश और तकनीकी प्रगति पर केंद्रित है।
सिविल सेवक अच्छी दूरदर्शी नीतियों के शिल्पकार होते हैं और यदि इसके प्रमाण की आवश्यकता हो तो इस पुस्तक को पढ़ा जा सकता है।
इस बात का उल्लेख करना काफी संतोषप्रद है कि "रिफ्लेक्शन्स ऑन इंडियाज पब्लिक पॉलिसिज" नामक इस पुस्तक में अनुभवी वरिष्ठ सिविल सेवकों ने अपने ज्ञान और अनुभव को साझा करने के लिए इकट्ठा किया है, जो वास्तव में सामूहिक प्रयास और सहयोग की शक्ति का एक प्रमाण है।
दशकों से शासन-व्यवस्था से गहन रूप से जुड़े सिविल सेवकों द्वारा रचित इस पुस्तक की संरचना सही अर्थों में समग्रतामूलक तरीके से किया गया है, जिसमें राष्ट्र के विकास के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्षेत्रों अर्थात् सार्वजनिक वित्त से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा, ऊर्जा सुरक्षा से लेकर कृषि और ग्रामीण औद्योगिकीकरण तक शामिल हैं। यह सार-संग्रह वास्तव में उस विशाल अनुभव का एक ऐसा प्रभावी भंडार है जिसे आपने लगभग चार दशकों की सार्वजनिक सेवा में रहते हुए एकत्रित किया है।
प्रशासन की कठिन परिस्थितियां जो कभी-कभी आपकी मदद करने के लिए मौजूद ताकतों द्वारा उत्पन्न होती हैं और सकारात्मक भूमिका निभाती हैं, से निपटने के दौरान विशिष्ट योगदानकर्ताओं ने नीति निर्माण और नीति कार्यान्वयन के बीच आने वाली चुनौतियों का व्यक्तिगत स्तर पर सामना किया है। आपने नागरिक केंद्रित शासन-व्यवस्था की मूल भावना को साकार करने के लिए सरकार के विजन और लोगों की धारणा में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया है। नागरिक केंद्रित शासन-व्यवस्था कोई विकल्प नहीं है; यह देश के विकास के लिए जरूरी है।
सेवानिवृत्त सिविल सेवक, जो अद्वितीय मूल्यवान राष्ट्रीय मानव संसाधन हैं, को हमेशा राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखते हुए पक्षपातपूर्ण रुख का शिकार हुए बिना राष्ट्र हित के प्रति सरोकार रखने का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
सेवानिवृत्त सिविल सेवक जो एक ऐसा दुर्जेय वर्ग है, जो हमारी संवैधानिक संस्थाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों को अनुचित रूप से कलंकित और धूमिल करने वाली भीतरी एवं बाहरी झूठे तथा राष्ट्र-विरोधी आख्यानों को निष्प्रभावी और निष्क्रिय करने के लिए प्रमुख रूप से तैनात हैं। राष्ट्र निर्माण में सेवानिवृत्त सिविल सेवकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। वे प्रतिभा एवं अनुभव के भंडार हैं और वे जानते हैं कि देश के लिए सर्वोत्तम क्या है। वे हमेशा झूठे बयानों का विश्लेषण करके सशक्त रूप से अपने मन और मस्तिष्क की बात कहते हैं।
यह पुस्तक निस्संदेह नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और सार्वजनिक नीति में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में काम करेगी। राज्य सभा के सभापति के रूप में, मैं इसका व्यापक प्रचार सुनिश्चित करूंगा और यह भी सुनिश्चित करूंगा कि यह पुस्तक विभिन्न स्थायी समितियों के अध्यक्षों के लिए उपलब्ध हो ताकि वे जिस कार्यक्षेत्र में काम कर रहे हैं वहां तक इस पुस्तक से जुड़ सकें और यह विभिन्न स्थायी समितियों और इसके सदस्यों के लिए लाभप्रद और ज्ञानवर्धक साबित होगा। यह पुस्तक हमारे राष्ट्र के समक्ष मौजूद चुनौतियों और उपलब्ध अवसरों के संबंध में अद्वितीय नजरिया प्रस्तुत करता है और सभी भारतीयों के लिए ज्यादा न्यायसंगत एवं समृद्ध भविष्य बनाने की रूपरेखा प्रदान करता है।
यह ग्रंथ निश्चित रूप से पाठक को चिंतनशील स्थिति में ला खड़ा करेगी और हर किसी को इसे अपने पास रखनी चाहिए। यह पुस्तक इस पृथ्वी पर सबसे बड़े लोकतंत्र, जो विश्व के हर छठे व्यक्ति का निवास-स्थल है के कार्यकरण की एक झलक है। लेखकों ने केवल सतही ज्ञान प्रस्तुत नहीं किया है। वास्तव में, वे ज्ञान की गहराई तक गए हैं। यह उन लोगों द्वारा अवश्य पढ़ा जाना चाहिए जो निकट भविष्य में उत्कृष्ट भारत को विश्व गुरू होने के रूप में देखते हैं।
एक बार मैं पुन: आप सभी और प्रकाशक के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ कि आपने इस पुस्तक को इतना सुंदर आकार दिया। धन्यवाद। जय हिन्द!