- एक दशक बाद गुलाबी नगरी में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के इस 83वें सम्मेलन का उद्घाटन करना मेरे लिए वास्तव में सौभाग्य और सम्मान की बात है।
- मैं आशावान हूँ की इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में मंथन और विचार विमर्शों से अमृत निकलेगा जो अवश्य ही हमारे देश और संसदीय व्यवस्था को अमृतकाल में नई ऊर्जा देगा।
- पीठासीन अधिकारियों का पद गरिमामय होता है। इस पद पर हम राजनीति में हितधारक नहीं हैं।
- प्राथमिक सरोकार जन कल्याण के लिए संसद और विधान मंडल के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों के योगदान को ईष्टतम स्तर तक पंहुचाना है।
- कार्यपालिका, विधायिका और वरिष्ठ राजनीतिक पदों पर आसीन लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि उच्च संवैधानिक पदों को उनके राजनीतिक रुख से दूर रखा जाए।
- भारत को एक महत्वपूर्ण दौर में जी20 का नेतृत्व करने का सौभाग्य मिला है। यह "विश्व को भारत की क्षमता दिखाने का अवसर" है।
एक बड़े देश, लोकतंत्र की जननी, इतनी विविधता और ऐसी संभावनाओं सहित, भारत के पास विश्व के समक्ष अपनी पहचान बनाने और अपना कौशल दिखाने का अवसर है। यह घटनाक्रम मील का पत्थर साबित होगा। - यह सम्मेलन भारत की बढ़ती वैश्विक छवि के संदर्भ में आयोजित किया जा रहा है। आज हम अपनी आजादी के अमृत काल में हैं और देश की आजादी के शताब्दी वर्ष में हम 2047 के भारत की रुप-रेखा का पुख्ता आधार रख रहे हैं।
- हमें पक्षपातपूर्ण रुख से ऊपर उठकर भारतीय होने पर गर्व करने के साथ ही अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर गर्व महसूस करने की आवश्यकता है।
- ये उपलब्धियां सामूहिक प्रयासों और हमारे लोगों की प्रतिभा के साथ-साथ सरकारी पहलों और सकारात्मक नीतियों के कारण हैं।
- भारत अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है। विश्व ने हमारे कोविड से निपटने के प्रयासों की सराहना की है। हाल ही की कतिपय महत्वपूर्ण उपलब्धियां हमारा सिर गर्व से ऊंचा करती हैं।
- अक्तूबर, 2022 में भारत यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़कर दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। दशक के अंत तक हम तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होंगे।
- उद्योग जगत के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार, भारत 2022 में ऑटो बिक्री में जापान को पीछे छोड़कर पहली बार तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।
- भारत ने 1 बिलियन डालर या उससे अधिक मूल्य के सर्वाधिक नए यूनिकॉर्न-स्टार्टअप्स को जोड़ने की दिशा में चीन को पछाड़ दिया है - यह एक और उपलब्धि है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।
- हमारे समृद्ध मानव संसाधन, कुशल कार्यबल और अधिक शासन और कम सरकार के सिद्धांत द्वारा निर्देशित शासन की सकारात्मक नीतियों ने विकास पथ में योगदान दिया है।
- भारत आज वैश्विक महामारी के उपरांत विश्व में निवेश, नवोन्मेष और अवसर का पसंदीदा स्थान है।
- देश ने कोविड के आलोक में लचीलापन और आत्म-निर्भरता दिखाई है। विश्व हैरान है कि हमने 230 करोड़ वैक्सीन की खुराक काफी हद तक नि:शुल्क मुहैया कराई है।
- हमारे टीकाकरण प्रमाण-पत्र डिजिटल रूप से उपलब्ध हैं। यहां तक कि दुनिया के सबसे विकसित देशों ने भी ऐसी उपलब्धि प्राप्त नहीं की है।
- भारत ने 96 देशों को टीकों की लगभग 16.29 करोड़ खुराक प्रदान की है। इनमें से 1.43 करोड़ खुराक उपहार स्वरुप प्रदान किए गए है।
हमारे वैक्सीन-मैत्री मिशन के माध्यम से हमने दर्शाया है कि हम वैश्विक कल्याण और विकास में एक जिम्मेदार भागीदार हैं। - वैश्विक सहयोग की इसी भावना के साथ सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को जी-20 का नेतृत्व मिला है।
- Inspired by our age- old ethos- वसुधैव कुटुम्बकम् - हमारे सदियों पुराने लोकाचार- वसुधैव कुटुम्बकम्- से प्रेरित होकर, हमने दुनिया के सतत विकास और समावेशी समृद्धि के लिए नया मंत्र दिया है, "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य।"
- लोकतंत्र का सार जनादेश का प्रसार और जनता के कल्याण को सुनिश्चित करना है।
- ये हम सबका सौभाग्य है की भारत विश्व में लोकतान्त्रिक विस्तार का प्रतीक भी है। हमें विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव हासिल है।
- ये हम सबका सौभाग्य है की भारत विश्व में लोकतान्त्रिक विस्तार का प्रतीक भी है। हमें विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव हासिल है।
- लोकतंत्र के इन मंदिरों की विषम दशा से हम सब भली भांति परिचित ही हैं। समय आ गया है कि इस निराशाजनक स्थिति का उचित समाधान अविलंब निकाला जाय। संसद और विधान सभाओं में अशोभनीय घटनाओं और व्यवहार पर जनता में व्याप्त रोष का निदान खोजा जाय।
- बेशक, संसद और विधान मंडलों की कार्यवाही में मर्यादा और अनुशासन की कमी से लोगों की पीड़ा और निराशा गंभीर है। संसद और विधान मंडलों और उनके प्रतिनिधियों के लिए जनता में सम्मान लगातार कम होता जा रहा है। तत्संबंधी उपचारात्मक उपाय अपनाने की इससे अधिक अत्यावश्यकता नहीं हो सकती।
- विधान सभा सदस्य, विधान परिषद सदस्य और संसद सदस्य जैसे प्रतिनिधि संविधान और विधि की शपथ लेकर कैसे नियमों की धज्जियां उड़ा सकते हैं और शिष्टाचार का परित्याग कर सकते हैं? इस गिरावट को रोकने में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है। मुझे यकीन है कि इस बिगड़ते परिदृश्य पर पूरा ध्यान और ध्यान दिया जाएगा।
- ये समझ से परे है कैसे MPs MLAs and MLCs जो संविधान और कानून की शपथ लेते हैं, विधायिका में नियमों और अनुशासन का उल्लंघन करें! ऐसी स्थिति पर नियंत्रण करने, उस पर अंकुश लगाने में आपकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे विश्वास है इस विषय पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।
- क्या संसद और विधान मंडलों में व्यवधान और नियम भंग करना राजनीतिक रणनीति बनने दी जा सकती है? कदापि नहीं।
- क्या व्यवधानों और नियमों के उल्लंघन को, एक राजनैतिक रणनीति बनने दिया जा सकता है? कदापी नहीं!
- संविधान सभा ने लगभग 3 वर्षों के दौरान अपने 11 सत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों का समाधान किया है। तब व्यवधान या हंगामे की एक भी घटना नहीं हुई।
- संविधान सभा में निर्णयों के लिए संवाद, चर्चा और वाद-विवाद महत्वपूर्ण थे। अलग-अलग दृष्टिकोणों के साथ कई जोशपूर्ण बहसें हुईं। संवैधानिक उपबंधों पर सदैव एक राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास किया गया।
- संविधान सभा एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती है। संविधान सभा में विमर्श में सौहार्द, भाषा में शिष्टता और विचारों में निष्ठा थी। वो लोग विद्वान थे, बड़े उद्देश्य के प्रति समर्पित थे। उनके सामने एक लक्ष्य था, तत्कालीन विषम स्थितियों के प्रति सजग थे और उन परिस्थितियों में अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक थे।
- संसद और विधायिका में आज अनुभव, योग्यता और प्रतिभा भरपूर है। जरा सोचिए, आज वो पुराने मूल्य और आदर्श क्यों और कहाँ खो गए हैं!
- समय आ गया है कि हम सब डा. अम्बेडकर के संविधान सभा में अंतिम संबोधन में दी गई चेतावनी पर विचार करें। उन्होंने कहा था "कोई संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, उसका ऐसी स्थिति में बुरा होना निश्चित है जब इसे लागू करने वाले लोग बुरे सिद्ध होते हैं।"
- मुझे विश्वास है कि पीठासीन अधिकारियों के रूप में आप इस पर पूरा ध्यान देंगे और एक ऐसा पारि तंत्र विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे जहां लोकतंत्र के ये मंदिर मर्यादा और उदात्त संसदीय परिपाटियों के लिए उत्कृष्ट केंद्र बनें। संसद और विधान मंडल के सदस्य ऐसे आचरण का प्रदर्शन करें जो अनुकरणीय दक्षता और उदात्तता का उदाहरण प्रस्तुत करें।
- निश्चित रूप से आप संविधान में निहित भावना के अनुरूप विधायिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की आवश्यकता पर गंभीरता से विचार करेंगे। इस ज्वलंत विषय पर सार्थक चर्चा मार्गदर्शक का काम कर सकती है।
- प्रत्येक संवैधानिक संस्था को डा. अम्बेडकर की टिप्पणियों पर ध्यान देना चाहिए "संविधान केवल राज्य के अंगों जैसे विधान मंडल, कार्यपालिका और न्यायपालिका का प्रावधान करता है। परंतु जिन कारकों पर राज्य के इन अंगों का कार्य निर्भर करता है वे हैं -लोग और राजनीतिक दल..."
- लोकतंत्र तभी कायम रहता है और फलता-फूलता है जब विधायिका, न्याय पालिका और कार्यपालिका संवैधानिक लक्ष्यों को पूरा करने और लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए एकजुट होकर कार्य करती हैं। जिस प्रकार न्यायपालिका विधि निर्माण नहीं कर सकती उसी प्रकार विधायिका न्यायिक फैसलों को लिपिबद्ध नहीं कर सकती है।
- इन सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपने कार्यक्षेत्र के अनुरूप कार्य करना चाहिए। सार्वजनिक दिखावा या एकजन श्रेष्ठता, जो बार-बार दिखाई दे रहा है, स्वस्थ परंपरा नहीं है। इन संस्थाओं के कर्णधारों को इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है।
- डा. राजेंद्र प्रसाद ने भी संविधान सभा में अपने समापन भाषण में आगाह किया था, "यदि निर्वाचित लोग सक्षम और चरित्रवान हैं, तो वे एक दोषपूर्ण संविधान का भी बेहतर उपयोग करने में सक्षम होंगे। यदि इनमें इन गुणों की कमी है तो संविधान देश की मदद नहीं कर सकता। आखिर जो संविधान मशीन की तरह है वह एक निर्जीव वस्तु ही है..."
- लोकतांत्रिक समाज में, किसी भी 'बुनियादी ढांचे' का 'आधार' लोगों के जनादेश की सर्वोच्चता होना चाहिए। इस प्रकार संसद और विधान मंडलों की प्रधानता और संप्रभुता अलंघनीय है।
- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका जैसी सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहने और मर्यादा और शालीनता के उच्चतम मानकों के अनुरूप व्यवहार करने की आवश्यकता है। इस संबंध में, वर्तमान परिदृश्य पर सभी संबंधितों, विशेष रूप से इन संस्थानों के कर्णधारों द्वारा गंभीरता से ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
- संविधान में संशोधन करने और विधान कार्यों की संसद की शक्ति किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन नहीं है। यह लोकतंत्र की जीवन रेखा है। मुझे विश्वास है कि इस पर आप गहन चिंतन करेंगे।
- वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले में, उच्चतम न्यायालय ने पहली बार न्यायालयों को ऐसे संवैधानिक संशोधनों को रद्द करने का अधिकार प्रदान किया गया, जिनसे उच्चतम न्यायालय के शब्दों में संविधान की "मूल संरचना", या संविधान की मौलिक संरचना का उल्लंघन हो रहा था।
- परवर्ती वर्षों में, उच्चतम न्यायालय ने ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय दिए जो इस "मूल संरचना" के लिए महत्वपूर्ण थे और इस प्रक्रिया में संसदीय संप्रभुता से समझौता किया गया।
- "मूल संरचना सिद्धांत" की सबसे हालिया और प्रमुख न्यायिक अभिव्यक्ति 16 अक्टूबर, 2015 को की गई, जब देश के उच्चतम न्यायालय ने 4-1 के बहुमत के फैसले में, 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्तियां आयोग, अधिनियम 2014 (एनजेएसी), दोनों को यह कहते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया कि ये अधिनियम संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।
- एनजेएसी के संबंध में संसद में एक तरह का इतिहास रचा गया। लोक सभा में पूर्ण एकमतता थी। विरोध का एक भी स्वर नहीं था। लोक सभा ने इस संवैधानिक संशोधन के पक्ष में एकमत होकर मतदान किया। राज्य सभा में एक सदस्य, जिन्होंने भाग नहीं लिया था, के सिवाय सर्वसम्मति थी।
- सोलह राज्य विधान मंडलों ने इसकी अभिपुष्टि की-राजस्थान विधान सभा ऐसा करने वाली पहली विधान सभा थी।
- यह प्रकिया संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत माननीय राष्ट्रपति की सहमति के साथ ही संवैधानिक विधि में परिवर्तित हो गई।
- इसे न्यायपालिका द्वारा निरस्त किया गया । विश्व के लोकतांत्रिक इतिहास में इस तरह का परिदृश्य शायद अद्वितीय है।
- कार्यपालिका को संसद द्वारा निर्मित संवैधानिक विधि के अनुपालन का अधिदेश है। यह एनजेएसी का अनुपालन करने के लिए बाध्य थी। न्यायिक निर्णय इसे अवरुद्ध नहीं कर सकता।
- संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता को सीमित करने या इसके साथ समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह संसद की प्रधानता और संप्रभुता का विषय है और विधायिका अनतिक्रमणीय है।
- यह लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए यह सर्वोत्कृष्ट है।
- कोई भी संस्था लोगों के जनादेश को निष्प्रभावी करने के लिए शक्ति या प्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकती।
- लोगों की संप्रभुता की रक्षा करना संसद और विधान मंडलों का दायित्व है।
- यह स्मरण रखा जाना चाहिए कि संविधान में संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित विधान को अनुमति प्रदान करने के लिए संसद के लिए किसी तीसरे और उच्चतर चैंबर की कभी अभिकल्पना नहीं की गई है।
- कार्यपालिका या न्यायपालिका को संसदीय संप्रभुता को कमजोर करने या उसके साथ समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- ऐसे सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है क्योंकि संसद और विधान मंडल लोगों की संप्रभुता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अनुकूलता स्थापित करने के लिए संसद और विधान मंडल विशेष रूप से उपयुक्त हैं। चिंताजनक पारि तंत्र उत्पन्न करने वाले इन संस्थानों के नित्य सार्वजनिक रुख को ध्यान में रखते हुए इसे प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- राज्य सभा के हाल के 258वें सत्र के समापन पर अपने समापन भाषण में, मैंने सभा से यह महसूस करने का आग्रह किया था कि "लोकतंत्र की इस सभा पर देश के एक अरब से अधिक लोगों और अन्य विदेशी लोगों की नजर है। वे सभी सपने संजोते हैं और आशा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि हम उनकी आकांक्षाओं को साकार करने और उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में कार्य करेंगे।"
- इस बात पर बल देते हुए, मैं केवल डा. बी.आर. अंबेडकर की चिंता को दोहरा रहा था, जिन्होंने चेतावनी दी थी "जब तक हम संसद में अपनी जिम्मेदारियों को महसूस नहीं करते हैं और लोगों के कल्याण और भलाई के लिए कार्य नहीं करते हैं .. मेरे मन में इस बात को लेकर लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि बाहर जनता इस संसद के साथ घोर तिरस्कार का व्यवहार करेगी।" जब हम अपने संविधान पर कार्य कर रहे हैं, तो हमें अपने गणतंत्र के संस्थापकों की भविष्य की चिंताओं और चेतावनियों के प्रति अत्यधिक सचेत रहना चाहिए।
- इस अमृत काल में जब 2047 में देश अपनी स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा, यह सम्मेलन हमारे संस्थापक पूर्वजों की चिंताओं और हमारे मतदाताओं की अपेक्षाओं की तुलना में हमारे कार्य-निष्पादन का आकलन, विश्लेषण और जांच करने और हमारी विकास यात्रा का पथ प्रशस्त करने का एक अवसर है।
- इस सम्मेलन में किए गए विचार-विमर्श और निकाले गए निष्कर्ष संसद और विधान मंडलों में लोगों के विश्वास को सुदृढ़ करने और उसका संवर्धन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। मैं इस सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूं।
- जय हिन्द