डा. एम. एस. रमैया जी आजीवन एक कर्मयोगी रहे और देश में शिक्षा और स्वास्थ्य परिदृश्य को बदलने के लिए कर्तव्य पथ पर चलते रहे। उनके जन्म शताब्दी समारोह से जुड़ना हम सभी के लिए गर्व की बात है।
मैं गोकुल एजुकेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष, न्यासियों के बोर्ड, रमैया परिवार के सदस्यों और यहां उपस्थित सभी लोगों को महान कर्मयोगी और संस्था निर्माता डा. एम. एस. रमैया के जीवन और उपलब्धियों का स्मरणोत्सव मनाने के लिए बधाई देता हूँ।
उनका जीवन हमारी सभ्यातागत लोकाचार की उदात्तता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। उन्होंने बहुत विनम्र शुरुआत की ... उन्होंने एक लक्ष्य निर्धारित किया, उसे प्राप्त किया और फिर यह उनके संस्कार हैं कि परिवार के सदस्य भी उसी यात्रा को वार्धिक पथ पर ले जा रहे हैं।
"बिना शिक्षा के सब कुछ अधूरा है"; शिक्षा समाज में परिवर्तन लाने और एक ऐसे पारितंत्र जो डा. बी. आर. अम्बेडकर को बहुत प्रिय था, का निर्माण करने का सबसे प्रभावी माध्यम है।
भारतीय संविधान के निर्माता, एक महान दूरदर्शी डा. बी. आर. अम्बेडकर ने हमारी उद्देशिका में उन विचारों को शामिल किया था; यह कुछ ऐसा है जिसके लिए हम सभी को काम करना होगा।
इस दिन, जब हम अमृत काल में हैं और हम एक अलग स्वरूप के भारत को देख रहे हैं। भारत अभूतपूर्व रफ्तार से आगे बढ़ रहा है और भारत का यह उत्थान निर्बाध रहेगा। पूरी दुनिया इसे स्वीकृति प्रदान कर रही है।
हमारा देश विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से निवेश और अवसरों का प्रमुख गंतव्य बन गया है।
सितंबर 2022 में; हम सभी के लिए कितना गौरवशाली क्षण था वह जब भारत ने दुनिया में पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का गौरव अर्जित किया। दूसरी बात; हमने अपने पूर्ववर्ती औपनिवेशिक शासकों को भी पीछे छोड़ दिया, हमारी अर्थव्यवस्था अब ब्रिटेन जिसने हम पर लंबे समय तक शासन किया, की तुलना में बड़ी है।
सभी स्तरों पर सकारात्मक सरकारी नीतियों और दूरदर्शी कदमों के कारण हम यहां तक पहुंचे हैं। इसमें कोई नहीं है कि दशक के अंत तक हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे।
हमारे सामने वर्ष 2047 (हमारी स्वतंत्रता की शताब्दी) तक हमारे अंतिम लक्ष्यों को साकार करने की एक बड़ी चुनौती है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपके जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों और अन्य जगहों पर शिक्षा प्राप्त कर रहे संवेदनशील युवा मस्तिष्कों की वर्ष 2047 में भारत का स्वरूप निर्धारण में अहम भूमिका होगी और वे वास्तव में बड़ा परिवर्तन लाएंगे।
इस संदर्भ में, मैं यहां हर किसी से भारतीय होने पर गर्व करने का आह्वान करता हूँ। हमें हमेशा अपने राष्ट्र को पहले रखना चाहिए। हमें अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए।
उपराष्ट्रपति के तौर पर मैंने विदेश यात्राएं की है। पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल के रूप में, मैंने विकास कार्य देखा है। देश ने जो हासिल किया है कुछ अन्य लोग उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
उदाहरण के लिए कोविड को लें जो मानवता के लिए एक चुनौती थी। यह प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र के लिए एक भेदभावरहित चुनौती थी और 1.4 बिलियन की हमारी आबादी की वजह से यह हमारे लिए एक कठिन चुनौती थी। लोग चिंतित थे, "भारत का क्या होगा" और अब लोग पूछ रहे हैं, "भारत ने यह कैसे किया? भारत ने यह इतनी सफलतापूर्वक कैसे किया?" सभी नागरिकों को 220 करोड़ टीकों की खुराक मुफ्त दी गई और इन सभी का ब्यौरा डिजिटल रूप से उपलब्ध है।
मित्रो, पश्चिमी देशों में भी ऐसा नहीं हुआ है और यह हमारे लोगों, हमारी नीतियों और हमारे नेतृत्व की दूरदर्शिता के कारण संभव हुआ है।
मैं कभी-कभी आश्चर्यचकित होता हूं और मैं युवा लोगों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से आह्वान करता हूं कि वे इन उपलब्धियों पर विचार करे। दुनिया स्तब्ध है कि कैसे हमने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अवसंरचनागत और प्रौद्योगिकीय विकास में इस प्रकार के विकास का पारितंत्र तैयार किया है।
हम कैसे कुछ लोगों को अपने मेहनती लोगों की उपलब्धियों को कलंकित करने, मलिन करने, नीचा दिखाने और खराब करने की अनुमति दे सकते हैं? मैं आपसे इसके बारे में सोचने का आह्वान करता हूं।
हमारे महान संस्थान अब फल-फूल रहे हैं, लेकिन अगर हम अतीत में जाते हैं और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपने देश को देखते हैं, तो हम पाते हैं कि भारत सबसे प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थानों का केन्द्र था जहां पूरे विश्व के विद्यार्थी तथा विद्वान शिक्षा प्राप्त करने आते थे। नालंदा, तक्षशिला, वल्लभी, विक्रमशिला जैसे संस्थान हमारे यहां थे।
यह बहुत संतोषजनक क्षण है कि दूरदर्शी डा. एम. एस. रमैया ने एक संस्थान का सृजन किया है और उस संस्थान के अंतर्गत, कई संस्थान हैं जो विकसित हो रहे हैं। यह इस बात की ओर इंगित करता है कि हम अपने अतीत के गौरव को पुन: प्राप्त करने के रास्ते पर अग्रसर हैं। यह बस थोड़े समय की बात है, वर्ष 2047 तक हम अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक मापदंडों के मामले में दुनिया का मार्गदर्शन करेंगे।
यह वर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और इसका असर हर जगह महसूस किया जा रहा है। हमने बंगलौर सहित अन्य शहरों में, विभिन्न क्षेत्रों के संबंध में कई देशों के नेतृत्व का भारत आगमन देखा है।
बेंगलुरू शहर, युवा मस्तिष्क के सकारात्मक विकास के लिए तंत्रिका केन्द्र है, जो नवोन्मेष को पूर्ण स्वतंत्रता देता है, जो कि एक दुर्लभ अवसर है। इस देश के इतिहास में पहले कभी भी भारत के लोगों की आवाज इतनी नहीं सुनी गई, जितनी अब सुनी जा रही है।
भारत के प्रधानमंत्री ने पिछले एक वर्ष में दो बहुत अच्छे विचार दिए हैं। वे विचार हजारों वर्षों की हमारी विचार प्रक्रिया के अनुरूप हैं। एक, पिछले वर्ष की शुरूआत में दिया था: यह विस्तार का युग नहीं है। भारत शायद एकमात्र ऐसा देश है जिसने ऐतिहासिक रूप से कभी विस्तारवादी सोच नहीं रखीं; और दूसरा, इस वर्ष एक दूसरे कार्यक्रम में जिसकी सराहना दुनिया ने की है: युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है; बातचीत और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है।
इस परिप्रेक्ष्य में, मैं हर किसी से आह्वान करता हूं, विशेष रूप से युवाओं से; उन्हें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। अब हमारे पास एक पारिस्थितिकी तंत्र है जहां हर युवा मस्तिष्क को अपनी क्षमता और प्रतिभा का पूरी तरह से दोहन करने और उपलब्धियां प्राप्त करने की अनुमति है।
अपने युवा दोस्तों को, मैं एक सलाह दूंगा: कोई तनाव न लें, कोई चिंता न करें। प्रतिस्पर्धी परिदृश्य के कारण दबाव में न आएं। गलती होने के डर से कोशिश करने में संकोच न करें; बिना असफल हुए कुछ भी बड़ा हासिल नहीं किया गया है।
मैं आपको बता सकता हूं कि एक मेधावी मस्तिष्क का मानवता के साथ सबसे बड़ा अन्याय यह होगा कि - एक शानदार विचार का आना और उसे निष्पादित न करना यह एक ऐसा कार्य है जो हमारी प्रगति को बाधित कर सकता है।
इस बारे में मुझे कोई संदेह नहीं है कि हमारे डीएनए में कुछ अनोखा है, हमारे डीएनए में नवोन्मेष है, अनुसंधान है, उद्यम है, उद्यमिता है और हमें यही करना है। आज दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं, भारत की बुद्धि का लोहा देखने को मिलता है, विश्व इससे लाभान्वित हो रहा है।
जब मैंने अपना करियर शुरू किया और वकील बना, मुझे बैंक से लाइब्रेरी के लिए 6000 रूपए का कर्ज़ लेने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। मैं आभारी हूं उस बैंक मैनेजर का जिसने मुझे बिना किसी प्रतिभूति जमानत के मेरी लाइब्रेरी के लिए 6000 रुपये दिए। आज आपको बस एक विचार की जरूरत है और उसके बाद धन संबंधी कोई कठिनाई नहीं होगी।
हमारे स्टार्ट-अप, यूनिकॉर्न को देखें, वहां किए जा रहे निवेश को देखें और हमारे युवा मस्तिष्कों द्वारा बनाए गए सभी चीजों को देखिए। हम विश्व की अगुवाई कर रहे हैं।
यह सब इसलिए संभव है क्योंकि अब हमारे पास एक ऐसी सरकार है जो बड़ा सोचती है, बड़े कार्य करती है, अपने मानव संसाधन में विश्वास करती है और परिणाम सभी के सामने हैं।
34 वर्षों के बाद देश में एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया और मुझे भी उसमें शरीक होने का मौका मिला क्योंकि उस वक्त मैं पश्चिमी बंगाल राज्य का राज्यपाल था और वह थी नई शिक्षा नीति - 2020.
इस शिक्षा नीति का विकास एक लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें लाखों हितधारकों से इनपुट प्राप्त किए गए, यह नई शिक्षा नीति एक बहुत बड़ा परिवर्तन लाएगी। यह हमारी शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी, यह इसे कौशल उन्मुखी बनाएगी, यह हमें डिग्री केंद्रित संस्कृति से दूर करेगी, यह हमें एक उत्पादक पथ पर अग्रसर करेगी। इसके माध्यम से समावेश और उत्कृष्टता के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकेगा।
पिछले 8-9 वर्षों में, हर दिन दो कॉलेज और हर हफ्ते एक विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है।
जब दुनिया के लोगों को यह पता लगता है तो वे अचंभित होते हैं।
चूंकि यह एक बहुत ही विशेष अवसर है, इसलिए मैं गोकुल एजुकेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष से एक विशेष अपील करूंगा। कृपया इस मामले में अगुवाई करें। एक मानव संसाधन जिसका हमें दोहन करना चाहिए, वह है किसी भी संस्थान के पूर्व छात्र। हमें हर संस्थान में पूर्व छात्रों की संस्कृति विकसित करनी चाहिए। पूर्व छात्र संगठन सही मायने में समाज से जो हम सीखते हैं वह उसे वापस देने का सबसे अच्छा माध्यम हैं। पूर्व छात्र न केवल संस्थान, बल्कि पूरे क्षेत्र की मजबूत कड़ी होते हैं। इसलिए मैं पूर्व छात्रों के संघों का एक परिसंघ बनाने की अपील करता हूं और इसकी शुरूआत बेंगलुरु शहर से हो सकती है। पूर्व छात्र संघों का अखिल भारतीय संघ जो बहुत गहराई से विषयों पर विचार करेगा और जो आने वाली समस्याओं का समाधान करने में हमारी सहायता करेगा।
साथियो, भारत उन्नति कर रहा है, लेकिन हम भारतीयों को अपना काम करना है।
जब पहली बार स्वच्छ भारत की बात आई तो कुछ लोगो को अजीब लगा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं। फिर इसमें तेजी से काम होने लगा। गांवों में अब शौचालय हैं। विकास हुआ है और यह एक उद्योग भी बन गया है। लेकिन मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूं कि विदेश गए किसी भी भारतीय ने कभी भी कार से बाहर कुछ नहीं फेंका है, और एक समय ऐसा था जब हम अपने देश में यह अपना अधिकार मानते थे कि सड़क हमारा कूड़ेदान है। यह बदल रहा है। सड़क पर हमारा अनुशासन क्या होना चाहिए, अगर आज यह भी होता है, अगर प्रभावशाली युवा इसका समन्वय करते हैं, तो भारत की तस्वीर और बदल जाएगी।
(पर मैं आप से प्रश्न पूछता हूं कि कोई भी भारतीय अभी विदेश गया हो उसने कभी केले का छिलका गाड़ी से बाहर नहीं फेंका, और एक जमाना था कि हम अपने देश में अधिकार समझते की रोड हमारी डस्टबिन है। ये दृष्टिकोण बदल रहा है। सड़क पर हमारा क्या अनुशासन हो, ये भी अगर इसको आज ठान ले, युवा प्रभावशाली मस्तिष्क इसका समन्वय करे, भारत की तस्वीर और बदल जाएगी।)
जब भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है और दुनिया इंतजार कर रही है कि भारत क्या कहेगा, कब कहेगा और कितना कहेगा। भारत अपने हितों को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर आगे कदम बढ़ा रहा है।
मैं अपना दर्द भी आप सभी के साथ साझा करना चाहता हूं। डा. अम्बेडकर ने भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तीन वर्ष तक संविधान सभा में बहस होती रही। संवाद, वाद-विवाद, चर्चा, विचार-विमर्श हुआ। उनके सामने समस्या जटिल थी, अनेक विवादित मुद्दे थे, लोगो के मत विपरीत थे, सामंजस्य बिठाना मुश्किल था; फिर भी सविधान सभा में एक बार हंगामा नहीं हुआ, संविधान सभा में एक बार भी व्यवधान नहीं हुआ। किसी ने नारे नहीं लगाए, कोई सभापीठ के समक्ष नहीं आया, किसी ने तख्तियां प्रदर्शित नहीं की। जब देश के लिए संविधान देने वाले लोगों ने हमारे लिए इतना बड़ा काम किया, तो क्या समस्या है कि हम उनके उदाहरण का पालन नहीं कर सकते।
राज्य सभा के सभापति के रूप में मैं जो देखता हूं वह आप सभी के लिए चिंता का कारण होना चाहिए।
राज्य सभा के प्रत्येक मिनट के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। व्यवधान के साथ आप सरकारी तंत्र पर लगाम नहीं लगा सकते। राज्य सभा कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने का मंच है।
जन आंदोलन होना चाहिए। मैं युवा मस्तिष्कों से अपील करता हूं। हम राज्य सभा और संसद में हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश सही रास्ते पर है। हमें अपने आचरण के द्वारा दृष्टांत स्थापित करना होगा जिसका सब अनुकरण कर सकें, जिसका सभी अनुसरण कर सकें।
हम नहीं चाहते कि हमारे लड़के-लड़कियां व्यवधान से सीखें, हम नहीं चाहते कि वे नारेबाजी, तख्तियां दिखाने की सराहना करें और इसलिए मेरी आपसे अपील है कि ऐसा माहौल बनाएं, ऐसा जनमत तैयार करें, हम उपलब्ध माध्यम का उपयोग करें ताकि हम अपने संसद सदस्यों को समझा सकें, हम अपने संसद सदस्यों से अनुरोध करते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर में हम इस तरह से पेश आएं कि हम हमारे आचरण से गौरवान्वित महसूस करें। हमारा आचरण देश के विकास के लिए होना चाहिए।
सोचिए कि अगर शिक्षा के मंदिर में पढ़ाई नहीं होगी तो क्या होगा! लोकतंत्र की शक्ति के बारे में भी ऐसा ही है। मैं इस विचार को युवा मस्तिष्क पर छोड़ रहा हूं। मेरे नौजवान साथियो, मैं ये बहुत उम्मीद के साथ कर रहा हूं। क्योंकि वर्ष 2047 में भारत क्या होगा, हममें से कुछ अपने जीवन के अंतिम दिनों में होंगे, लेकिन आप अपनी युवावस्था में होंगे, आप उस समय नेतृत्व की भूमिका में होंगे, आपके पास कमान होगी और इसलिए वर्ष 2047 तक जब भारत को हर क्षेत्र, चाहे वह अर्थव्यवस्था हो या अन्य क्षेत्र, में विश्व का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ना है - आपको सतर्क रहना होगा।
मेरे युवा मित्रो, मुझे भरोसा है कि आप मेरी जोशीली अपील पर ध्यान देंगे, मेरी अपील गैर-पक्षपातपूर्ण है। मेरी अपील राजनीति में एक हितधारक के संबंध में नहीं है। मेरी अपील इसलिए है क्योंकि हम राष्ट्र के विकास में हितधारक हैं। हम शासन में हितधारक हैं ताकि डा. बी. आर. अम्बेडकर द्वारा दी गई संविधान की उद्देशिका को साकार किया जा सके।
जय हिंद, जय भारत!