उपराष्ट्रपति ने सीजेआई की भावनाओं को दोहराया कि मध्यस्थता क्षेत्र में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का वर्चस्व है जबकि अन्य योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी की जाती है
सीजेआई ने हाल ही में टिप्पणी की थी कि भारत में मध्यस्थता का क्षेत्र "पुराने लड़कों के क्लब" जैसा है
मध्यस्थता प्रणाली को इस पकड़ से मुक्त कर इसे प्रामाणिक और विश्वसनीय बनाने की आवश्यकता है - उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने एक ऐसा तंत्र विकसित करने का आह्वान किया जहां मध्यस्थता प्रक्रिया को न्यायिक हस्तक्षेप का सामना न करना पड़े
हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था को मजबूत और व्यवस्थित मध्यस्थता संस्थानों की जरूरत है - उपराष्ट्रपति
मध्यस्थता संस्थानों का विकास एक गहरी व्यावसायिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए; यह कोई मनोरंजन का विषय नहीं हो सकता - उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में छठे आईसीसी भारत मध्यस्थता दिवस का उद्घाटन किया
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज नई दिल्ली में छठे आईसीसी भारत मध्यस्थता दिवस का उद्घाटन करते हुए मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की भावनाओं को दोहराया, जिन्होंने मध्यस्थों की नियुक्ति में विविधता की कमी की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश मध्यस्थता क्षेत्र पर हावी हैं, जबकि अन्य योग्य उम्मीदवारों (जैसे वकील और शिक्षाविद) को नजरअंदाज कर दिया जाता है। सीजेआई ने हाल ही में टिप्पणी की थी कि भारत में मध्यस्थता का क्षेत्र "पुराने लड़कों के क्लब" जैसा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में कहीं भी मध्यस्थता पर इतना कड़ा नियंत्रण नहीं है जितना हमारे देश में है और सिस्टम को इस पकड़ से मुक्त कर इसे प्रामाणिक और विश्वसनीय बनाने की जरूरत है।
श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विकास की तेज गति के लिए हमारी आत्मनिर्भरता के संकेत के रूप में देश में मजबूत और व्यवस्थित मध्यस्थता संस्थानों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब हमें आत्म-निरीक्षण करने की जरूरत है, यदि जरूरत पड़े तो कानून में आवश्यक बदलाव लाकर भी इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।
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उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश और अन्य जगहों पर न्यायिक हस्तक्षेपों ने सामान्य मुकदमेबाजी प्रक्रिया में एक स्तर पर मध्यस्थता को कम कर दिया है। उन्होंने एक ऐसा तंत्र विकसित करने का आह्वान किया जहां मध्यस्थता प्रक्रिया को न्यायिक हस्तक्षेप का सामना न करना पड़े।
भारतीय अर्थव्यवस्था के उच्च विकास पथ का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे मामले में, वाणिज्यिक विवाद होना स्वाभाविक है, क्योंकि लोगों की किसी विशेष दृष्टिकोण के बारे में अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें एक ऐसी मध्यस्थता प्रणाली की जरूरत है जो मजबूत, तेज, वैज्ञानिक तथा प्रभावी हो और सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क के साथ काम करती हो।
अनौपचारिक मध्यस्थता की तुलना में संस्थागत मध्यस्थता के कई फायदे गिनाते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि यदि विवाद समाधान तंत्र काफी न्यायसंगत और निर्णायक है, तो विश्व आर्थिक व्यवस्था अधिक ऊंचाइयों पर जाएगी और समान प्रगति होगी। उन्होंने कहा कि हमारे देश में अनियंत्रित संस्थाओं में कुछ वृद्धि हुई है, लेकिन उन संस्थाओं को मुख्य स्थान लेने की जरूरत है और उन सभी को सार्थक बनाने के लिए कानून में आवश्यक बदलाव किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि मध्यस्थता संस्थानों के विकास के लिए एक गहरी व्यावसायिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए और यह कोई मनोरंजन का विषय नहीं हो सकता।
उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने कहा कि आपको मध्यस्थता प्रक्रिया के बारे में बहुत भावुक होना होगा। मध्यस्थ बार को विकसित करना होगा, लेकिन मुख्य बार के सहयोगी के रूप में नहीं। यह एक बहुत ही विशेषज्ञ विषय है और हमारे देश और दुनिया में अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने में आपका योगदान महत्वपूर्ण है।
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आईसीसी भारतीय न्यायालय के शताब्दी समारोह पर अपनी बधाई देते हुए उपराष्ट्रपति ने कानूनी पेशेवर के रूप में आईसीसी के साथ अपने लंबे जुड़ाव को याद किया और इसे एक समृद्ध अनुभव बताया। उन्होंने आईसीसी की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में सुश्री क्लाउडिया सॉलोमन के चुनाव को भी एक महत्वपूर्ण अवसर बताया।
इस आयोजन में आईसीसी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय की अध्यक्ष सुश्री क्लाउडिया सॉलोमन, आईसीसी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के महासचिव श्री अलेक्जेंडर जी. फेसास, आईसीसी मध्यस्थता और एडीआर के दक्षिण एशिया निदेशक श्री तेजस चौहान और अन्य गणमान्य हस्तियों ने भाग लिया।