उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानवाधिकारों के क्षेत्र में भारत विश्व के लिए आदर्श है

नई दिल्ली
दिसम्बर 10, 2023

मानवाधिकारों का सम्मान हमारी सभ्यता के लोकाचार और संविधान में अंतर्निहित है; यह हमारे डीएनए में है
कुछ वैश्विक संस्थाओं द्वारा हमारे साथ सबसे अधिक अनुचित व्यवहार किया गया है क्योंकि उन्होंने हमारे कार्य-निष्पादनका गहन अध्ययन नहीं किया है - उपराष्ट्रपति
मानवाधिकारों का पोषण लोकतंत्र की आधारशिला है
उपराष्ट्रपति ने मुफ्त के उपहारों (फ्रीबीज़) की राजनीति पर स्वस्थ बहस का आह्वान किया; कहा "हमें जेब को नहीं, बल्कि मानव दिमाग को सशक्त बनाने की आवश्यकता है"
उपराष्ट्रपति ने चुनाव के बाद हिंसा पर चिंता व्यक्त की
भ्रष्टाचार मानव अधिकारों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है; भ्रष्टाचार और मानवाधिकार एक साथ नहीं रह सकते।
जो लोग वातानुकूलित कक्षों में बैठकर भारत की प्रगति का मूल्यांकन करते हैं, वो यह नहीं देख सकते - उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति आज राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा आयोजित भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस समारोह में शामिल हुए

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज मानव अधिकारों की प्रगति में मानवता के 1/6वें हिस्से के आवास स्थल के रूप में भारत में हो रहे सकारात्मक बदलावों पर प्रकाश डाला उन्होंने कहा कि भारत मानवाधिकारों के लिए विश्व में 'रोल मॉडल'है। उन्होंने कहा, "विश्व का कोई भी हिस्सा मानवाधिकारों के साथ इतना समृद्ध, सम्पन्न नहीं है जितना हमारा देश है।"

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आज भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस समारोह में मुख्य संबोधन करते हुए उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया, "हमारा अमृत-काल, मुख्य रूप से मानवाधिकारों और मूल्यों के विकसित होने के कारण हमारा गौरव-काल बन गया है।" उन्होंने आगे कहा कि "हमारे सभ्यतागत लोकाचार और संवैधानिक प्रतिबद्धता मानव अधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पोषण के प्रति हमारे गहन समर्पण को दर्शाते हैं जो हमारे डीएनए में है"। उन्होंने पुन: इस बात पर बल दिया, "भारत मानवाधिकारों के पोषण, प्रोत्साहन और संवर्धन में दुनिया के लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य करता है।"

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मानवाधिकारों के पोषण को 'लोकतंत्र की आधारशिला'बताते हुए; उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि "कानून के समक्ष समरूपता मानव अधिकार को बढ़ावा देने का एक अविभाज्य पहलू है"। उन्होंने मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए शासन के तीनों अंगों, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रोत्साहन की भी सराहना की, क्योंकि "मानवाधिकारों का सम्मान हमारी सभ्यता के लोकाचार और संविधान में अंतर्निहित है", उन्होंने कहा।

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फ्रीबीज़ की राजनीति के चलन के बारे में बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने चेताया कि इससे व्यय प्राथमिकता बिगड़ जाएगी और व्यापक आर्थिक स्थिरता के बुनियादी ढांचाखोखलाहो जाएगा क्योंकि "राजकोषीय अनुदान के माध्यम से प्रलोभन से केवल निर्भरता बढ़ती है", उन्होंने मानव मस्तिष्क और मानव संसाधनों के सशक्तिकरण का आग्रह किया, न कि जेब का।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि कुछ वैश्विक संस्थाओं द्वारा भारत के साथ अनुचित व्यवहार किया गया है, उपराष्ट्रपति ने उनसे मानवाधिकारों पर देश के प्रदर्शन का गहन अध्ययनकरने के लिए कहा, न कि केवल ऊपरी तौर पर। वह चाहते थे कि ऐसी संस्थाएं "भारत के शासन मॉडल पर ध्यान दें जो भ्रष्टाचार, पक्षपात, भाई-भतीजावाद से मुक्त है।" यह पारदर्शिता, दायित्व और योग्यता से लिखित होता है।"

विशेष रूप से कमजोर वर्गों के लिए मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेह शासन को 'गेम-चेंजर'के रूप में संदर्भित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित करते हुए बताया कि सेवा वितरण में प्रौद्योगिकी के उपयोग ने भी इस क्षेत्र में प्रगति को बल प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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चुनाव के बाद की हिंसा पर न्यायमूर्ति मिश्रा की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि "मताधिकार के प्रयोग के परिणामों का अवलोकन चिंताजनक है" और अपनी रिपोर्ट में मानवाधिकारों के सार को समाहित करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की सराहना की, जिससे कानून के नियमों केसिद्धांतों को बढ़ावा दिया जा सके।

उपराष्ट्रपति ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के घरों में गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने को एक "परिवर्तनकारी क्रांति" के रूप में माना, जिससे हमारी माताओं और बहनों को आंखों में आंसू से राहत मिली, धुंए से राहत मिली। उन्होंने "मानवाधिकारों के प्रसार और सशक्तिकरण" के लिए व्यापक बुनियादी ढांचे के विकास की भी सराहना की।

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उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि सरकार की समावेशी नीतियों के सकारात्मक कार्यान्वयन ने लाखों लोगों को गरीबी केचुंगल से स्वतंत्र कराया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस उपलब्धि ने "आर्थिक अवसरों, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और अच्छी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है-एक मजबूत स्तंभ जिस पर एक मजबूत मानव अधिकार भवन बना हुआ है"।

अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि "मानवाधिकारों के लिए सबसे बड़ा खतरा भ्रष्टाचार से पैदा होता है", इस बात पर बल देते हुए कि "भ्रष्टाचार और मानवाधिकार एक साथ अस्तित्व में नहीं आ सकते", श्री धनखड़ ने संतोष व्यक्त किया कि "लंबे समय से भारत में भ्रष्टाचार का यह अभिशाप अब समाप्त हो गया है"। उन्होंने आगे कहा, “इसके स्‍थान पर एक शासन तंत्र है जो भाई-भतीजावाद, पक्षपात और पदोन्नति के लिए कोई स्‍थान नहीं देता है। सत्ता के गलियारों से भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया गया है।”

उपराष्ट्रपति ने सरकारी नीतियों द्वारा पोषित "आशा, आशावाद और आत्मविश्वास के सूचकांक" से भिन्न, वातानुकूलित और बंद कक्षों से भारत की प्रगति का मूल्यांकन करने वाले व्यक्तियों द्वारा "घातकबयानों और बाहरी अंशांकन" पर चिंता व्यक्त की।

भारत के राष्ट्रपति के रूप में एक आदिवासी महिला की नियुक्ति को मानवाधिकारों के प्रमाण के रूप में मान्यता देते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल देते हुए कहा कि मानवाधिकार एक यज्ञ के समान एक सामूहिक प्रयास है, और इसमें योगदान देना सभी की साझा जिम्मेदारी है तथापि यह प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित है।

कार्यक्रम के दौरान, उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) प्रकाशनों जैसे एनएचआरसी वार्षिक हिंदी जर्नल- मानव अधिकार नई दिशाएं, एनएचआरसी वार्षिक अंग्रेजी जर्नल और फोरेंसिक साइंस एंड ह्यूमन राइट्स का भी विमोचन किया।

एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, एनएचआरसी के सदस्यश्री राजीव जैन, एनएचआरसी के सदस्य डॉ. डी.एम. मुले, संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट समन्वयकश्री शोम्बी शार्प, एनएचआरसी के महासचिवश्री भरत लालऔर अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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