विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की जरूरत-उपराष्ट्रपति
“यह धरती केवल हमारी नहीं है हमें इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपना है - उपराष्ट्रपति।”
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी पर पड़ेगा; यह कोविड चुनौती से कहीं अधिक गंभीर और भयंकर है - उपराष्ट्रपति
जलवायु परिवर्तन का समाधान एक देश नहीं ढूंढ सकता; सभी देशों का साथ आना आवश्यक - उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने दूरदर्शी पहल के रूप में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और अमृत सरोवर योजना की सराहना की
इस दशक के अंत तक भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था होगा - उपराष्ट्रपति
गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्राएँ हमेशा मेरी स्मृतियों में रहेंगी- उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम - भारत द्वारा देश के नेतृत्व वाली पहल के समापन समारोह को संबोधित किया
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज विकास और संरक्षण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे नागरिकों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करते हुए हमारे जंगल फलते-फूलते रहें। यह देखते हुए कि वन हमारे लाखों नागरिकों, विशेषकर आदिवासी समुदायों की जीवन रेखा हैं, उन्होंने रेखांकित किया कि हालांकि वनों का संरक्षण, महत्वपूर्ण है तथापि वन संसाधनों पर निर्भर समुदायों को उन से अलग नहीं किया जा सकता है।
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देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में वनों पर संयुक्त राष्ट्र मंच - भारत द्वारा देश के नेतृत्व वाली पहल के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह पृथ्वी हमारी नहीं है, और हमें इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपना होगा। जैव विविधता के पोषण और संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हम केवल इसके ट्रस्टी हैं, और हम अपने लापरवाह दृष्टिकोण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ अपनी भावी पीढ़ियों के साथ समझौता नहीं कर सकते।
अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर काबू पाना सुरक्षित भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। भावी चुनौतियाँ के प्रति लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि यदि विकास टिकाऊ नहीं है तो पृथ्वी पर जीवित रहना मुश्किल होगा।
यह देखते हुए कि हम जिस जलवायु चुनौती का सामना कर रहे हैं, वह किसी व्यक्ति को प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि यह पूरी पृथ्वी को प्रभावित करेगी, श्री धनखड़ ने समाधान खोजने के लिए सभी संसाधन जुटाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, "कोविड की तरह, जो दुनिया के लिए एक चुनौती थी, जलवायु परिवर्तन कोविड चुनौती से कहीं अधिक गंभीर है।"
उपराष्ट्रपति ने पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए समन्वित वैश्विक रुख को एकमात्र विकल्प बताते हुए कहा कि “एक देश इसका समाधान नहीं ढूंढ सकता है । समाधान खोजने के लिए युद्धस्तर पर सभी देशों को एकजुट होना होगा।”
यह उल्लेख करते हुए कि वन एक कार्बन सिंक प्रदान करते हैं जो हर साल 2.4 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन को अवशोषित करता है, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि हम सभी को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि वन ही जलवायु परिवर्तन का एक मात्र समाधान हैं। उन्होंने कहा, "हमारे वन केवल एक संसाधन मात्र नहीं हैं बल्कि देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत को भी समाहित करते हैं।"
यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कि गाँव के चरागाहों और तालाबों का कायाकल्प और पोषण हो, जो गाँव के जीवन और मवेशियों के लिए आवश्यक हैं, श्री धनखड़ ने इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर ग्रामीण जनता के बीच जागरूकता पैदा करने का आह्वान किया। उन्होंने अमृत काल में अमृत सरोवर योजना के प्रभावी कार्यान्वयन पर भी प्रसन्नता व्यक्त की.
वैश्विक क्षेत्र में ऊर्जा हथियार के रूप में उपयोग करने का एक तरीका बन गया है, श्री धनखड़ ने स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की दिशा में भारत द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को रेखांकित किया। स्वच्छ ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 2030 तक हमारी आधी बिजली नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न होगी।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को एक दूरदर्शी पहल बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह उद्यमियों के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करता है और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की चुनौतियों का भी ध्यान रखता है।
'अमृतकाल' को 'गौरवकाल' के रूप में बताते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि दुनिया हमारी अभूतपूर्व वृद्धि से स्तब्ध है। “2022 में यूके और फ्रांस को पछाड़कर भारत पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस दशक के अंत तक यानी 2030 तक जापान और जर्मनी के को पीछे छोड़ते हुए भारत तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएगा यह विकास भारत पर उन वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए बड़ा दायित्व लाता है जिनका दुनिया सामना कर रही है।
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जंगलों में लगने वाली आग के बारे में बात करते हुए, वीपी ने कहा कि तकनीकी प्रगति के बावजूद, विकसित देश भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए बहुस्तरीय दृष्टिकोण को अपनाने का आह्वान करते हुए, उन्होंने जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं को कम करने के लिए कुछ कदमों के रूप में प्रौद्योगिकी, के प्रति जागरूकता बढाने को कहा।
उत्तराखंड के दो दिवसीय दौरे पर आए उपराष्ट्रपति ने इससे पहले गंगोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ का दौरा किया । अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा, "जब से मैं और मेरी पत्नी कल देवभूमि में उतरे हैं तब से दिव्यता, उदात्तता, शांति और मनोरम वातावरण का अनुभव हुआ है।"
गंगोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्राएँ उनकी यादों में हमेशा बनी रहेंगी, उपराष्ट्रपति ने कहा, “ये दिव्य स्थान हमारी सभ्यता के लोकाचार और सार को प्रतिबिंबित करते हैं। कई महान लोगों ने शांति और खुशी पाने के लिए इन पवित्र और पूजनीय स्थलों पर आकर इनका लाभ उठाया।
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उत्तराखंड के राज्यपाल, लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, वन महानिदेशक, श्री चंद्र प्रकाश गोयल, निदेशक, यूनिसेफ सुश्री जूलियट बियाओ कॉडेनौक पो , अतिरिक्त महानिदेशक वन, महानिदेशक, आईसीएफआरई, श्री बिवाश रंजन ,श्री भरत ज्योति, और विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सम्मानित प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।