उपराष्ट्रपति ने संवैधानिक संस्थाओं पर कुछ लोगों द्वारा अनुचित टिप्पणियाँ करने पर चिंता व्यक्त की
“राजनीतिक लाभ के लिए हमें संवैधानिक पदाधिकारियों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए” - उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से कहा*भारत के विरुद्ध चलाए जाने वाले नरेटिव को निष्प्रभावी करना समाज के प्रति आपका दायित्व है
"यह सदी एशिया की है, भारत को इसके उद्भव में बहुत बड़ी भूमिका निभानी है" - उपराष्ट्रपति
जी-20 के 21वें सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ का शामिल होना स्वतंत्रता, विश्व एकता और वैश्विक शांति के लिए एक बड़ी उपलब्धि है- उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने नालंदा के इतिहास और विरासत की प्रशंसा की, इस विरासत को उच्च स्तर पर ले जाने का आह्वान किया
उपराष्ट्रपति ने बिहार में गया और नालंदा विश्वविद्यालय का दौरा किया
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज नालंदा विश्वविद्यालय में वहां उपस्थित गणमान्य लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यह चिंतन, मनन और चिंता का विषय है कि कुछ लोग राजनीतिक चश्मा पहनकर संवैधानिक संस्थाओं पर अनुचित टिप्पणियाँ करते हैं। उन्होंने इस तरह के व्यवहार को हमारे सांस्कृतिक लोकाचार के खिलाफ बताते हुए कहा कि ''जो व्यक्ति जितने ऊंचे पद पर होता है, उसका आचरण उतना ही मर्यादित होना चाहिए। राजनीतिक लाभ लेने के लिए कोई भी टिप्पणी करना अच्छी बात नहीं है।
” जब संवैधानिक संस्थाओं की बात आती है तो सभी को काफी जिम्मेदार होने का आह्वान करते हुए, श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि “हमें केवल राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए संवैधानिक पदाधिकारियों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए। यह स्वीकार्य नहीं है।”
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आज बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय के छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों की एक सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में, दुनिया ने इससे अधिक शक्तिशाली केंद्र नहीं है। “नालंदा, क्योंकि इसका इतिहास और विरासत दुनिया में अलग है और लोग इसे सलाम करते हैं।” आपको इस विरासत को ऊंचे स्तर पर ले जाना है।
” यह देखते हुए कि नालंदा का पुनर्जन्म हमें ज्ञान के प्रसार के लिए वैश्विक आधार प्रदान करेगा, उन्होंने हाल ही में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन की पृष्ठभूमि में नालंदा महाविहार छवि के उपयोग की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, "नालंदा की उस पृष्ठभूमि में, नेताओं का स्वागत और अभिनंदन किया गया, जो आपके ब्ज्ञान की स्वीकार्यता, गैर-विवादास्पद, गैर-टकरावपूर्ण, सहयोगात्मक, सहकारी, सहमतिपूर्ण और विकास के लिए अनुकूल है।"
यह देखते हुए कि दुनिया ज्ञान, उदात्तता, सहनशीलता और अन्य दृष्टिकोणों को सुनने के अच्छे गुणों पर पनपती है, उन्होंने दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति सम्मान रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया, उन्होंने कहा कि “इसके बारे में निर्णयात्मक मत बनो। मेरे अनुभव में, कभी-कभी दूसरे का दृष्टिकोण सही होता है। यह स्वीकार करते हुए कि शिक्षा मानव जाति के प्रति सम्मान पैदा करती है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि "यह आपकी सोच का विस्तार करती है कि आप गाँव, राज्य या राष्ट्र के संदर्भ में नहीं सोचते... आप विश्व स्तर पर सोचते हैं!" उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे जिज्ञासु बनें और नालंदा छोड़ने के बाद भी सीखना बंद न करें।
युवाओं को 'लोकतंत्र के योध्या' बताते हुए उन्होंने उन्हें देश की छवि खराब करने के लिए सोशल मीडिया पर चल रहे नरेटिव के बारे में आगाह किया और उनसे ऐसे मुद्दों पर अपने मन की बात कहने को कहा। उन्होंने जोर देकर कहा, "यह आपकी बुद्धिमत्ता है जिसे इस तरह के आख्यानों को बेअसर करना है, यह इस समाज के प्रति आपका दायित्व है कि आपको ऐसे भयावह विचारों और आख्यानों को रोकने के लिए सक्रिय होना चाहिए।"
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इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि यह सदी एशिया की है, श्री धनखड़ ने कहा कि "इस तंत्र के उद्भव में, भारत को बहुत बड़ी भूमिका निभानी है और भारत के लिए यह भूमिका कुछ ऐसी है जो केवल युवा दिमाग ही कर सकते हैं।
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" इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने भारत में अपनी तरह का पहला शून्य उत्सर्जन और शून्य अपशिष्ट परिसर होने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर की भी प्रशंसा की।
इस अवसर पर डॉ. (श्रीमती) सुदेश धनखड़, श्री श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार, श्री कौशलेंद्र कुमार, नालंदा निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य (लोकसभा), श्री अभय कुमार सिंह, कुलपति, नालंदा विश्वविद्यालय, छात्र, संकाय और कर्मचारी उपस्थित रहे।