‘बुद्धिजीवी वर्ग और जनमानस को उन लोगों के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है,जो भारत के विरोध में खतरनाक विमर्श को मिलकर हवा दे रहे हैं’: उपराष्ट्रपति
‘जो संवैधानिक संस्थानों का नेतृत्व कर रहे हैं,उनके लिये टकराव की कोई जगह नहीं है, उन्हें एक-दूसरे के सहयोग से कार्रवाई करने और समाधान ढूंढने की जरूरत है’: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच व्यवस्थित संवाद-आधारित प्रणाली का आह्वान किया
कानून सबके लिये बराबर है; कोई भी कानून से ऊपर नहीं हैः उपराष्ट्रपति
जनादेश का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद संविधान की सर्वोच्च और विशिष्ट संरचना है – उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने पूर्व राज्यपाल श्री पीएस राममोहन राव के संस्मरणों का विमोचन किया; पूर्व उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुये
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनकड़ ने आज सचेत करते हुये कहा कि विश्व मंच पर भारत के उदय के साथ कई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं – जो भीतर की भी हैं और बाहर की भी। उन्होंने बुद्धिजीवी वर्ग और लोगों का आह्वान किया कि वे उन तत्त्वों से सावधान रहें, जो ‘भारत विरोधी विमर्श को पालते-पोसते हैं, ताकि हमारी विकास-गति कमजोर पड़ जाये और हमारे गतिशील लोकतंत्र तथा संवैधानिक संस्थानों को चोट पहुंचे।’
उपराष्ट्रपति नई दिल्ली में तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल श्री पीएस राममोहन राव के संस्मरण ‘गवर्नरपेट टू गवर्नर्स हाउसः अ हिक्स ऑडेसी’ का विमोचन करने के बाद उपस्थितजनों को सम्बोधित कर रहे थे। श्री धनकड़ ने सार्वजनिक जीवन में अपने योगदान और अपने संस्मरण में अपने अनुभवों को साझा करने के लिये पूर्व राज्यपाल का अभिनंदन किया।
श्री धनकड़ ने कहा कि ‘लोकतंत्र का सार’ यही है कि ‘सभी लोग समान रूप से कानून के प्रति जिम्मेदार हैं। कानून में न तो किसी को कोई विशेषाधिकार है और न किसी को अलग चश्मे से देखा जा सकता है।’ भारत को अत्यंत जीवन्त लोकतंत्र बताते हुये उन्होंने कहा, ‘कानून में समानता ऐसी चीज है, जिस पर हम कोई समझौता नहीं कर सकते।’
उपराष्ट्रपति ने शासन की गतिशीलता को चुनौतीपूर्ण बताते हुये कहा कि इसके लिये संवैधानिक संस्थानों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – के बीच सामंजस्यपूर्ण कामकाज की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘लेकिन जो इन संस्थानों का नेतृत्व करते हैं, उनके लिये टकराव या शिकायत करने की कोई जगह नहीं है। उन्हें सहयोगात्मक रूप से काम करना होगा और एक-साथ मिलकर समाधान निकालना होगा।’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस सम्बंध में ‘विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका जैसे शीर्ष संस्थानों के बीच व्यवस्थित संवाद-आधारित प्रणाली’ बनाई जानी चाहिये।
श्री धनकड़ ने फिर कहा कि ‘यह हमारे संविधान की प्रधानता है, जो लोकतांत्रिक शासन की स्थिरता, समरसता और उत्पादकता को दृढ़ बनाती है। जनादेश का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद संविधान की सर्वोच्च और विशिष्ट संरचना है।’
इस अवसर पर पूर्व उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू,हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय, तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल और लेखक श्री पीएस राममोहन राव, सांसद श्री के.केशव राव, श्री वाईएस चौधरी और अन्य गणमान्य उपस्थित थे।