उपराष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, वित्तीय और व्यापारिक संस्थानों में सुधार का आह्वान किया
भारत जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए नियम आधारित बहुपक्षीय क्रम का समर्थन करता है: उपराष्ट्रपति
संरक्षणवाद की प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए सुधारात्मक बहुपक्षीयवाद की आवश्यकता है;
उपराष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का लोकतंत्रीकरण करने का आह्वान किया
भारत युद्ध का संचालक नहीं है लेकिन कोई इसके आतंरिक मामलों में दखल देगा तो उसे करारा जवाब दिया जायेगा;
भारत समुद्रों को खुला, सुरक्षित और मुक्त रखने की सभी कोशिशों का समर्थन करता है;
उपराष्ट्रपति ने हैदराबाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में आयोजित “डेक्कन वार्ता II- अवरोधों की अवस्था में आर्थिक कूटनीति” को संबोधित किया
भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडु ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, वित्तीय और व्यापारिक संस्थानों में अधिक सुधार करने का आह्वान किया ताकि उन्हें जमीनी वास्तविकताओं को और अधिक स्पष्ट रूप से कर सकें।
हैदराबाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में आयोजित “डेक्कन वार्ता II- अवरोधों की अवस्था में आर्थिक कूटनीति” कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी विभाजन, व्यापारिक विवाद, आतंकवाद, संयोजकता और समुद्री खतरों जैसी कई साझी चुनौतियों से निपटने के लिए नियम आधारित बहुपक्षीय क्रम का समर्थन करता है।
यह देखते हुए कि भारत और अन्य विकासशील देशों ने जब एकपक्षवाद और संरक्षणवाद के मुद्दों का सामना किया, तो बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार के लिए आह्वान किया ताकि विकासशील देशों का वैश्विक अभिशासन में अधिक मत हो, उन्होंने कहा कि "हमें संरक्षणवादी प्रवृतियों की प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने के लिए सुधारवादी बहुपक्षीयवाद की अवश्यकता है।”
पूरी दुनिया की जनसंख्या का छठवां हिस्सा भारत में होने का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को विस्तार देने और उसे लोकतांत्रिक बनाने की भी मांग की।
21वीं सदी को एशियाई सदी माने जाने और एशिया एवं उससे आगे शांति, सुरक्षा और विकास को बढ़ावा देने में भारत की अहम भूमिका का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भौतिक और डिजिटल क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाकर व्यापार को बढ़ाया जा सकता है और यह समृद्धि एवं विकास लाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि सफल और सतत होने के लिए ऐसी पहलों को पारदर्शी, समावेशी होना चाहिए और संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों का सम्मान करना चाहिए।
इस संबंध में उन्होंने कहा कि भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करता है और वह युद्ध संचालक नहीं है। उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते कि हमारे आंतरिक मामलों में कोई दखल दे और यदि कोई ऐसा करता है तो भारत उसका उचित जवाब देगा।
श्री नायडु ने कहा कि विकासशील देशों को चौथी औद्योगिक क्रांति में शामिल होने और लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने के लिए नई तकनीकों को अपनाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि "ऐसा होने के लिए, हमें वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए उपयुक्त कार्यढांचे खोजने की ज़रूरत है जिससे डिजिटल विभाजन से बचा जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि चौथी औद्योगिक क्रांति एक समावेशी क्रांति हो।"
उपराष्ट्रपति ने जोर देते हुए यह भी कहा कि भारत आईसीटी और डिजिटल प्रौद्योगिकी के लिए एक खुले, सुरक्षित, स्थायी, सुलभ और भेदभाव-रहित वातावरण चाहता है। उन्होंने कहा कि भारत आईसीटी से संबंधित सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका को मानता है।
यह कहते हुए कि वैश्वीकरण के इस युग में पूरी दुनिया परस्पर रूप से पहले से ज्यादा जुड़ी हुई है, उपराष्ट्रपति ने कहा, "जिस ग्लोबल विलेज के हम आदी हो चुके हैं, वह अभूतपूर्व तरीकों से तेज़ी से बदल रहा है। इस तेजी से बदलते वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिदृश्य में प्रत्येक देश को सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीतिक, गतिशील और सुचारू प्रतिक्रियाओं को अपनाना होगा।"
व्यापार और वाणिज्य के पुराने तरीकों में तेजी से आ रहे बदलाव और नियम-आधारित, भेदभाव-रहित और समेकित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के अनिश्चित भविष्य का अवलोकन करते हुए करते हुए उन्होंने कहा कि इससे किसी भी देश को कोई लाभ नहीं होने वाला है। उन्होंने कहा "लेकिन विकासशील देश आर्थिक सहयोग की प्रक्रिया से खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं और आर्थिक गिरावट से उन्हें अधिकतम नुकसान झेलना पड़ता है।"
मौजूदा परिवर्तनों को देखते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम वैश्विक निर्णय लेने में उभरते बाजारों और विकासशील देशों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करके वैश्विक अभिशासन को और अधिक प्रतिनिधिपरक बनाने के प्रयासों का समर्थन करें।
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो वैश्विक आर्थिक विकास में 15 प्रतिशत से अधिक का योगदान देती है, और अगले कई दशकों तक वैश्विक आर्थिक शक्ति में योगदान देती रहेगी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को विस्तार देने के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर और बिम्स्टेक एवं भारतीय समुद्री क्षेत्र (आईओआर) जैसे क्षेत्रीय मंचों के सहारे संपर्क का बुनियादी ढांचा बढ़ाने पर जोर दे रहा है।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत सबके हित में समुद्र को खुला, सुरक्षित और बंधनों से मुक्त रखने की सभी कोशिशों का समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की दृष्टि एसएजीएआर (सागर)-क्षेत्र में सबकी सुरक्षा और वृद्धि पर आधारित है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनकी अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमरीका की आधिकारिक यात्राओं के दौरान उन्होंने व्यक्तिगत रूप से दक्षिण के देशों के साथ मजबूत आर्थिक और निवेश संबंधों की जबरदस्त क्षमता देखी है। उन्होंने कहा, "ऐसी अनेक अनुपूरकताएं हैं, जिनका पारस्परिक लाभ के लिए दोहन किया जा सकता है।"
इस अवसर पर विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री वी. मुरलीधरन, तेलंगाना के कृषि, विपणन और नागरिक आपूर्ति मंत्री श्री निरंजन रेड्डी, आंध्र प्रदेश के उद्योग, वाणिज्य एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री एम गौतम रेड्डी, विदेश मंत्रालय में अपर सचिव श्री पी. हरीश और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।